
आचार्य सुश्रुत जी का संझिप्त परिचय
सुश्रुत प्राचीन भारत के एक महान् चिकित्सा शास्त्री एवं शल्य चिकित्सक थे। उनको शल्य चिकित्सा का जनक माना जाता है। ‘शल्य’ शब्द का अर्थ है शरीर की पीड़ा। इस पीड़ा का निवारण करना ही शल्य क्रिया कहलाती है। अंग्रेजी में इसे सर्जरी अथवा ऑपरेशन भी कहते हैं। महर्षि सुश्रुत ही वे प्रथम चिकित्सक थे जिन्होंने शल्य क्रिया को केवल व्यवस्थित एवं परिष्कृत रूप ही प्रदान नहीं किया अपितु असंख्य मनुष्यों को उनके कष्टों से मुक्ति दिलाई। #आचार्य सुश्रुत जी
अधिकांश विद्वानों ने सुश्रुत को विश्वामित्र का वंशज माना है, जिसका जन्म 600 ईसा पूर्व हुआ था । ये काशी में जन्मे थे और वहीं पर महर्षि धन्वंतरि के आश्रम में शिक्षा-दीक्षा प्राप्त की थी। शल्य चिकित्सा के आदि ग्रंथ का नाम ‘सुश्रुत संहिता’ है। इसमें धन्वंतरि के उपदेशों का संग्रह है। चूंकि सुश्रुत ने इन उपदेशों का संग्रह किया था, इसलिये इसे सुश्रुत संहिता के नाम से जाना गया। विक्रम संवत् 57 के आसपास सुप्रसिद्ध रसायनवेत्ता नागार्जुन ने इसे पुनः सम्पादित कर नया स्वरूप प्रदान किया। #आचार्य सुश्रुत जी
‘सुश्रुत संहिता’ मुख्य रूप से पाँच खण्डों में विभक्त है। प्रथम खण्ड में 46 अध्याय, द्वितीय खण्ड में 16, तृतीय में 10, चतुर्थ में 40 एवं पंचम खण्ड में 8 अध्याय है। इस प्रकार सुश्रुत संहिता में कुल 120 अध्याय हैं। इन अध्यायों के अतिरिक्त सुश्रुत संहिता में एक परिशिष्ट खण्ड भी हैं। इस खण्ड के अन्तर्गत 66 अध्यायों में काय-चिकित्सा का वर्णन किया गया। (औषधियों के द्वारा उपचार की विधि काय-चिकित्सा के नाम से जानी जाती है)। इस तरह यदि शल्य चिकित्सा और काय चिकित्सा के सभी अध्यायों को जोड़ दिया जाये तो सुश्रुत संहिता 186 अध्यायों वाले एक वृहद ग्रंथ के रूप में हमारे सामने आता है। सुश्रुत संहिता में शल्य चिकित्सा के विभिन्न पहलुओं को विस्तार से समझाया गया है। शल्य क्रिया में सुश्रुत 125 तरह के औजारों का प्रयोग करते थे। उन्होंने 300 प्रकार की ऑपरेशन प्रक्रियाओं की खोज की। #आचार्य सुश्रुत जी
सुश्रुत जी संहिता में मोतिया बिंद के ऑपरेशन करने की विधि को विस्तार से बताया गया है। उन्हें शल्य क्रिया द्वारा प्रसव कराने का भी ज्ञान था। सुश्रुत को टूटी हड्डियों को जोड़ने, मूत्र नलिका में पाई जाने वाली पथरी निकालने में भी दक्षता प्राप्त थी। उन्हें मधुमेह व मोटापे के रोग की भी विशेष जानकारी थी। शल्य क्रिया करने से पहले वे औजारों को गर्म करते थे, जिससे औजारों में लगे कीटाणु नष्ट हो जायें। शल्य क्रिया के दौरान होने वाले दर्द को कम करने के लिये विशेष प्रकार की औषधियाँ भी देते थे। यह क्रिया संज्ञा हरण (Anaesthesia) के नाम से जानी जाती है। #आचार्य सुश्रुत जी
सुश्रुत को प्लास्टिक सर्जरी का पिता भी माना जाता है। सुश्रुत संहिता में अनेकों जगह नाक, कान और होठ की प्लास्टिक सर्जरी का जिक्र मिलता है। इस प्रकार प्लास्टिक सर्जरी भारत से शुरु होकर अरबों के माध्यम से शेष विश्व में पहुँची। सुश्रुत संहिता का सबसे पहला अनुवाद आठवीं शताब्दी में अरबी भाषा में हुआ था, जो कि ‘किताब ए सुसरुद’ के रूप में काफी प्रसिद्ध हुई। #आचार्य सुश्रुत जी
महर्षि सुश्रुत श्रेष्ठ शल्य चिकित्सक होने के साथ-साथ एक योग्य आचार्य भी थे। उन्होंने शल्य चिकित्सा के प्रचार-प्रसार के लिये अनेकों शिष्यों को शल्य चिकित्सा के सिद्धांत बताए। वे अपने शिष्यों को शल्य चिकित्सा का ज्ञान देने के लिये प्रारम्भिक अवस्था में फूलों, सब्जियों और मोम के पुतलों का उपयोग करते थे। उनका विचार था कि चिकित्सक को सैद्धांतिक एवं पुस्तकीय ज्ञान के साथ- साथ प्रयोगात्मक ज्ञान में भी प्रवीण होना चाहिये। #आचार्य सुश्रुत जी
मानव शरीर की अंदरुनी रचना को समझाने के लिये सुश्रुत मुर्दे के नाजुक अंगों की शल्य क्रिया का प्रदर्शन करते व बाद में छात्रों से भी वही अभ्यास करवाते थे। इन्होंने शल्य चिकित्सा के साथ-साथ आयुर्वेद के अन्य पक्षों जैसे- शरीर संरचना, बाल रोग, स्त्री रोग, मनोरोग इत्यादि के बारे में भी विस्तृत जानकारी दी। आचार्य सुश्रुत का नाम आधुनिक भारतीय चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्रों में आज भी विशेष सम्मान के साथ लिया जाता है। साथ ही पूरे विश्व को भारतीय चिकित्सा विज्ञान के गूढ़ ज्ञान से लाभान्वित करने में उनका योगदान चिरस्मरणीय रहेगा। #आचार्य सुश्रुत जी
आचार्य सुश्रुत जी
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