
खुदीराम बोस जी का सम्पूर्ण जीवन परिचय जानने की इच्छा से आपने हमारे पेज का चयन किया उसके लिए आपका धन्यवाद और आपका स्वागत हैखुदीराम बोस
खुदीराम बोस जी का संझिप्त परिचय
30 अप्रैल 1908 रात के आठ बजने को थे मुजफ्फरपुर (बंगाल) के एक क्लब में अंग्रेज अफसर मौज-मस्ती में लगे थे। अचानक बम का धमाका हुआ, सभी काँप उठे। बम फेंकने वाले युवक थे खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी।खुदीराम बोस उन्होंने बम कलकत्ता हाईकोर्ट के क्रूर न्यायाधीश किंग्सफोर्ड की गाड़ी समझकर फेंका था।
भाग्य से किंग्सफोर्ड बच गया और गाड़ी का रंग मिलता- जुलता होने के कारण अंग्रेज वकील पी. कैनेडी, उसकी पत्नी एवं पुत्री इस बम विस्फोट में मारे गये। भारत में बम द्वारा की गयी यह पहली हत्या थी।
खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसम्बर 1889 को बंगाल के मिदनापुर जिले के सोपाती गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम टी. एन. बोस और माता का नाम लक्ष्मीप्रिया देवी थी। खुदीराम जब महज सात साल के थे तभी उनके माता- पिता दोनों का देहान्त हो गया। इसके बाद वह अपनी बहन अनुप्रिया के साथ रहने लगे। पढ़ाई-लिखाई में उनका मन नहीं लगता था,
उन्हें तो जासूसी उपन्यास पढ़ने और बांसुरी बजाने में आनन्द आता था । वंदे मातरम् और भारत माता की जय के नारे सुनकर खुदीराम का मन जोश से भर जाता। खुदीराम बोस ने नौंवी कक्षा से ही स्कूल छोड़ दिया था। स्कूल के दौरान ही वह कुछ क्रांतिकारियों के सम्पर्क में आए और स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने लगे। धीरे- धीरे वह लाठी, भाला, पिस्टल व बम चलाने में पारंगत हो गए।
देश में वंदे मातरम् की गूँज बढ़ती जा रही थी और प्रदर्शनों और बैठकों की शुरुआत ‘वंदेमातरम्’ के गायन से होने लगी थी। नमस्कार की बजाय वंदेमातरम् से अभिवादन होने लगा था। वंदे मातरम् की गूँज बढ़ने के साथ ही अंग्रेज सरकार का दमनचक्र भी बढ़ता चला जा रहा था। भारतीयों को मामूली गलती पर भी कठोर दंड दिया जाता था। इन निर्दयी अधिकारियों में जज किंग्सफोर्ड भी था, जिसने अनेक देशभक्तों को फाँसी व आजीवन कारावास की सजाएं दी थी।
कलकत्ता में क्रांतिकारियों ने एक बैठक कर किंग्सफोर्ड की हत्या करने का निर्णय लिया और इसका जिम्मा खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी को सौंपा गया। लेकिन गलती से किंग्सफोर्ड के स्थान पर कैनेडी मारा गया। खुदीराम इस बात से दुखी हुए कि वह किंग्सफोर्ड की हत्या नहीं कर सके।
बम फेंकने के बाद खुदीराम और चाकी एक दूसरे से अलग हो गये और वहाँ से बच निकले। पहचाने जाने पर कलकत्ता जाने वाली ट्रेन में प्रफुल्ल चाकी को पुलिस बलों ने घेर लिया। चाकी ने पुलिस पर गोलियों की बौछार कर दी, घिरने पर चाकी ने अपनी पिस्तौल कनपटी पर लगाई और घोड़ा दबा दिया। आजादी के यज्ञ में उसने अपने प्राणों की आहुति दे दी। शीघ्र ही खुदीराम को भी गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें कड़ी सुरक्षा में ट्रेन से मुजफ्फरपुर लाया गया। हजारों लोग उस अट्ठारह वर्ष के नौजवान को देखने उमड़ पड़े जिसने पहली बार भारत में अंग्रेजों पर बम फेंका था।
माँ भारती के इस सपूत ने अदालत में निडर होकर स्वीकार किया कि अपने देशवासियों पर किये जा रहे अत्याचारों का बदला लेने के लिये मैने ही बम फेंका था। । दो महीने तक सुनवाई का नाटक करने के बाद जज ने इस किशोर देशभक्त को फाँसी की सजा सुना दी। मौत की सजा सुनकर खुदीराम ठहाका लगाकर हंस पड़े।
11 अगस्त 1908 को खुदीराम को मुजफ्फरपुर जेल में फाँसी पर लटका दिया गया। फाँसी के समय उनके हाथ में गीता थी और होठों पर था- वंदे मातरम्। अंग्रेज अफसर उस मासूम बच्चे के मुख पर तेज देखकर दंग रह गए। उनके अन्तिम संस्कार में उमड़ा विशाल जनसमूह चिता की भस्म पर टूट पड़ा। कुछ लोगों ने उस भस्म का तिलक लगाया तो कुछ ने ताबीज बनाकर बांध लिये और कुछ लोगों ने सोने-चाँदी की डिबियों में बंद कर पूजा घर में गृह देवता के साथ सजाकर रख दिया। “हाँसी-हाँसी चढ़िबो फाँसी” जैसे लोकगीतों के द्वारा यह किशोर क्रांतिकारी अमर हो गया।
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