
आरएसएस की शाखा में कौन कौन से खेल खेले जाते है और क्यों खेले जाते है बच्चो के लिए कौन से और युवाओ के लिए कौन से खेल और वुजर्गो के लिए कौन से खेल खेले जाते है समस्त जानकरी यहा मिलेगी
आरएसएस की शाखा में खेल क्यों खेले जाते है इसका कारण निम्न है
शाखा में व्यक्ति निर्माण हेतु शारीरिक शिक्षा का अपना स्वतंत्र है। प्राय यह अनुभव होता है कि स योगचाप, समता आदि विषयों की अपेक्षा खेली द्वारा स्पर्धा खिलाड़ वृति, विजयाकांक्षा आदि अनेक गुणों का विकास अधिका है ।
खेलों के माध्यम से उत्साह, उल्लास, आनन्द के साथ ही साथ स्वयंसेवकों की शारीरिक मानसिक क्षमता भी बढ़ती है। इसी नहीं खेलों के द्वारा अनेक प्रकार के सामाजिक गुणों की भी वृद्धि होती है।
उदाहरणार्थ 1 ‘मैं शिवाजी खेलते समय स्वयंसेवक संकट में पड़े अपने साथी का संकट अपने ऊपर लेता है, एक प्रकार से कश्मीरी ब्राह्मणों की रक्षार्थ गुरु तेगबहादुर के समान बलिदान के भाव का जागरण ‘सहायता खेल के माध्यम से अपने समाज में किसी भी असहाय / संकटग्रस्त व्यक्ति की पुकार पर सारे समाज का सहायतार्थ आगे बढ़ना अर्थात् एक जागृत समाज का संवेदनशील व्यक्ति बनने की प्रेरणा ‘शेर बकरी द्वारा संगठन में शक्ति भाव की अनुभूति । विष अमृत’ का खेल पुनर्जन्म की आस्था के आधार पर सिखाता है कि जीना मरना तो खेल है। ‘कबड्डी’ तो गुणों की खान ही है 1 • सारा जीवन ही संघर्ष है, जब तक सांस तब तक आस खेलने वाला स्वयं के लिए नहीं वरन् दल के हितार्थ खेलता है आदि ।
खेल खिलाते समय निम्नलिखित बातें ध्यान रखना आवश्यक है
- संघस्थान पर खेल लेने का प्रयास हो। वर्णन कम से कम हो।
- खेल की रचना-पद्धति-समय का निर्बंध ।
- खेलों के नियम के बारे में स्पष्ट सूचनाएँ व पालन ।
- खेल खेलते समय उत्साह रहे इस हेतु सूचनाएँ।
- गुण संवर्धन हो ऐसे खेलों का चयन तथा उनकी जानकारी (व्यक्तिगत गुण सावधानता, चपलता श्रेष्ठल दारवृत्ति, विजयाकांक्षा इत्यादि। सामाजिक गुण • पथकाभिमान, नेतृत्व, संघटित शक्ति सामर्थ्य, समभाव, खिलाड़ीपन इत्यादि ।
- कुशल खिलाडी का निर्माण हो। इसके लिए खेल के जानना व सिखाना ।
- खेलों के नियमों के पालन का आग्रह नियम तोड़ने की इसे परावृत करने का प्रयास।
- घोष-निनादों की जानकारी हो।
- जोश भरो सांधिक गीत कंठस्थ हो ।
- रोज शाखा में खेल लिए जाएँ इसलिए सप्ताह के सात दिनों के लिए विशेष आधार पर 8-10 खेलों के गट बनाने का प्रयास किया जा सकता है। गट बनाने के विविध प्रकार के उदाहरण निम्नानुसार हो सकते हैं।(अ) 5-7 स्वयंसेवकों के लिए खेल (आ) 15-20 स्वयंसेवकों के लिए खेल। (इ) अंधा, लंगडा, मेंढक इस स्थिति के खेल। (ई) दौड़ने के खेल। (उ) साधन सहित खेल (दंड, रुमाल, चप्पलें पत्थर इत्यादि) (ऊ) कम परिश्रम के खेल।
खेलने के प्रकार के आधार पर खेलों का वर्गीकरण निम्न प्रकार से भी किया जा सकता है-
(क) स्पर्श के खेल (ख) मंडल रचना के खेल (ग) द्वंद्व के खेल (घ) सर्वश्रेष्ठ की विजय (ङ) दो या अधिक दलों के खेल (च) साधन सहित खेल (छ) बैठकर खेलने के खेल
शाखा पर आने वाले शिशु-बाल-तरुण-प्रौद स्वयंसेवकों की आयु में तो अंतर होता ही है, शारीरिक क्षमता भी समान नहीं होती। अतः अलग-अलग गणों के लिए खेलों का चयन करते समय इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है। शिशु / बालों को दौड़-भाग, उछल कूद के खेल रुचिकर व उपयोगी होते हैं तो तरुणों को संघर्षों व शारीरिक क्षमता. दमखम प्रकट करने वाले चुनौतीपूर्ण खेला दूसरी ओर प्रौढ़ों की रुचि खेलने में समाप्तप्राय सी दिखती है, किन्तु विजयाकांक्षा युक्त समाज तैयार करने के लिए उसके प्रत्येक घटक का विजिगीषु भाव से अनुप्राणित होना अभीष्ट है। तदर्थ उन्हें भी खेल खिलाना आवश्यक है। अतः प्रौद्ध स्वयंसेवकों को कम शारीरिक परिश्रम के खेल खिलाने चाहियें।
इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु प्रस्तुत अध्याय में खेलों का वर्गीकरण आयुवर्ग के अनुसार किया गया है। यह वर्गीकरण अन्तिम नहीं है। एक वर्ग के लिए लिखे गए अनेक खेल सूक्ष्म सा परिवर्तन करके दूसरे वर्ग के स्वयंसेवक भी आसानी से खेल सकते हैं। उदाहरण के लिए बालों / तरुणों के लिए दिए गए स्पर्श के खेल सभी प्रौढ़ स्वयंसेवक सरलता से खेल सकते हैं, बशर्ते दौड़ने के स्थान पर चलने का नियम बना लिया जाए।
खेल खिलाने की प्राथमिक सिद्धता की दृष्टि से प्रथम शिक्षकों ने स्वयं खेल सीखना आवश्यक है। विषय को समझने हेतु खेलों के सुसंबद्ध तथा ठोस अभ्यासक्रम की भी आवश्यकता है। विश्वास है कि, सभी स्वयंसेवकों को यह अभ्यासक्रम लाभदायक होकर रुचि निर्माण करने में भी समर्थ होगा।
दो अथवा अधिक दलों के खेल
सामान्यतः शाखा पर दो दलों में रहकर स्पर्द्धात्मक अनेक खेलों में एक अनुभव आता है कि दल के अग्रिम स्वयंसेवक दौड़ रहे हैं, उनके पीछे वाले दौड़ने की तैयारी में हैं तथा शेष सभी खाली खड़े हैं अतः वे अनेक बार शरारतें करते हैं, अनुशासन भंग होता है।
अतः सुझाव है कि ऐसे खेलों को दो से ज्यादा दल बनाकर खिलाया जाए। दलों की संख्या तो स्वयंसेवकों की संख्या पर निर्भर करती है। एक सिद्धान्त ध्यान रहे कि दलों की संख्या ज्यादा तथा दल में स्वयंसेवकों की संख्या कम रखी जाए अर्थात् 5-7 संख्या के दो दलों की रचना की अपेक्षा 2-2, 3-3, संख्या के 4-5 दल बनाना अधिक उपयोगी। बालों/शिशुओं के लिए खेल के 16, 17, 18,20,22 के लिए खेल के 27 तथा प्रौढ़ों के लिए खेल के 7 खिला दलों की रचना उपर्युक्त प्रकार से की जाए।
आवश्यकतानुसार सूक्ष्म परिवर्तन करना
खेलों में मैदान की सीमा और खेलने वालों की संख्या शिक्षक ने निश्चित करनी चाहिए। संघस्थान, संख्या, शिक्षार्थियों की आयु उपलब्ध समय आदि बातों को ध्यान में रखकर अपनी दैनंदिन शाखा में इन खेलों का अभ्यास किया जा सकता है। शिक्षक अपनी प्रतिभा से खेलों में आवश्यक परिवर्तन कर सकता है। उदाहरण के लिए हम एक खेल लें।
- • यदि शेर कुछ कमजोर पड़ता है तो नियम बदला जा सकता है कि वह जिसे पहले बाहर निकालेगा, वो उसका सहयोगी बनेगा।
- स्वयंसेवकों में ‘शतावधानता’ के गुण का विकास करने की दृष्टि से दो या तीन शेर निश्चित किये जा सकते हैं।
- खेलते-खेलते कुछ बलवान स्वयंसेवकों के बाद हो जाने के बाद कमजोर स्वयंसेवक भयभीत से होकर भागते रहते हैं, किंचित भी संघर्ष नहीं करते। ऐसे में केवल एक शेर रहे तथा नियम किया जा सकता है कि बकरियाँ परस्पर सहयोग कर सकती हैं और / या शेर को मिलकर पकड़ भी सकती हैं।
- अधिक संघर्षपूर्ण स्थिति लाने के लिए एक अन्य प्रकार हो सकता है- शेर मंडल के भीतर रहते हुए ही बकरियों को बाहर धकेल कर बाद करेगा, स्वयं बाहर नहीं जाएगा तथा बकरियाँ शेर की पीठ पर दोनों हाथों से एक साथ मुक्के मारेंगी। केवल एक हाथ से मुक्के लगाना वर्जित होगा।
- संख्या अधिक / कम होने पर मण्डल बड़ा / छोटा तथा शेरों की संख्या अधिक / कम रखी जा सकती है। .
- इसी प्रकार और भी अनेक परिवर्तन किए जा सकते हैं.
बालों / शिशुओं के लिए खेल
- मेंडक – 3 मीटर त्रिज्या के मंडल में दौड़नेवाले एक पैर पर दौड़ेंगे और “क्ष मेंडक की चाल से अपने पैर से उन्हें छुएगा। 2. हाथी की सूंड – “क्ष” अपना बाँया हाथ दाहिने हाथ के नीचे से लेकर उससे दाहिना कान पकड़कर दाहिने हाथ (हाथी की सूंड) से दौड़नेवाले को स्पर्श करेगा।
- नमस्कार छू – “क्ष” दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार की स्थिति में रहेगा। हाथ उसी स्थिति में रखकर “क्ष” हाथों की उगालियों से दौड़नेवालों को स्पर्श करेगा।
- वाह रे शेर – एक मध्यबिन्दु से एक छोटा और एक बड़ा ऐसे दो मंडल बनाओ। “क्ष” छोटे मंडल में मेंडक की स्थिति में होगा। दौड़ने वाले दो मंडलों के बीच में खड़े होंगे। “क्ष” मंडल के भीतर रहकर अपनी टाँग (एक समय में एक पैर से दौड़नेवालों को छुएगा। दौड़नेवालों उसकी पीठ पर थप्पी मारकर “वाह रे शेर” कहेंगे ।
- नमस्ते – एक स्वयंसेवक मंडल के बाहर से दौड़ते हुए किसी एक स्वयंसेवक की पीठ को स्पर्श करेगा। वह स्वयंसेवक विरुद्ध दिशा में बाहर से दौड़ेगा। जब दोनों एकत्र मिलेंगे तब एक दूसरे को नमस्ते कहेंगे, बाद में दोनों उसी दिशा में दौड़ते हुए रिक्त स्थान ग्रहण करने के लिए प्रयत्न करेंगे जो हार जायेगा वह फिर से दौड़ेगा ।
- कबड्डी (श्वासवृद्धि मंडल (3 मी त्रिज्या के बाहर से एक स्वयंसेवककबड्डी कबड्डी कहते हुए दौड़ेगा। प्रत्येक एक कम पूरा होने के बाद मंडल की त्रिज्या बढ़ेगी। अपने पर आने के पूर्व जिसका दम टूटेगा यह माद (कबड्डी कबड्डी के स्थान पर हिन्दुस्थान हिन्दुओं का माता की जय’, संगठन में शक्ति है, आदि भी कह सकते।
- रेखा पर खड़े रहो • अपने पैरों के अंगूठे हाथ से पकड़ना एक रेखा पर सभी स्वयंसेवकों ने इस स्थिति में रहने का प्रय करना। संकेत होने पर जिस स्वयंसेवक को रेखा पर स्थान नह मिलेगा वह बाद होगा। हर बार रेखा की लंबाई कम करने चाहिये।
- धर्मशाला • एक मंडल (3 मीटर त्रिज्या) में सभी स्वयंसेवक रहेंगे और एक दूसरे को मंडल के बाहर किलेंगे। बाहर आया हुआ स्वयंसेवक बाद होगा। – खरे
- भस्मासुर – दूसरे स्वयंसेवक के सिर पर हाथ रखना। जिसके सिर पर हाथ रखा जाएगा वह बाद होगा ।
- भालूयुद्ध – प्रतिस्पर्धियों ने अपने पैर के अंगूठे हाथ से पकड़ना और दूसरे को गिराना या उसके हाथ छुड़ाना ।
- लंबी कूद – सब स्वयंसेवक एक रेखा पर खड़े होंगे और वहाँ से दोनों पैर मिलाकर लंबी कूद लेने का प्रयास करेंगे। एक कूद में सबसे अधिक अंतर लोचने वाला विजयी होगा।
- मेंढक कूद स्पर्धा प्रारंभ रेखा पर सभी स्वयंसेवक मेंडक स्थिति में बैठेंगे। संकेत होने पर निश्चित मर्यादा तक मेंडक के समान कूदते हुए जाएंगे। प्रथम पहुँचने वाला विजयी होगा।
- तांडव नृत्य – सभी स्वयंसेवक 3 मीटर त्रिज्या के मंडल में हाथ पीछे बाँधे हुए खड़े रहेंगे। दूसरे के पैर पर पैर रखने का प्रयास करेंगे। जिसके पैर पर पैर रखा जाएगा वह बाद होगा।
- तीन पैर की दौड़ स्वयंसेवक दो-दो की जोड़ी में खड़े – रहेंगे। उनके एकत्रित आए हुए बाँए-दाँए पैरों को रुमाल से बाँधकर तीन पैरों की जोड़ी खड़ी रहेगी। संकेत होने पर निश्चित मर्यादा तक प्रथम पहुँचने वाली जोड़ी विजयी होगी।
- राम रावण – दो दल आमने सामने खड़े होंगे। एक दल राम और दूसरा रावण होगा। जिस दल का नाम शिक्षक कहेगा वह दल पीछे अपनी सीमा रेखा तक दौड़ते जाएगा और दूसरा दल उनको स्पर्श करने के लिए उनका पीछा करेगा। जिसे स्पर्श होगा वह बाद होगा। जिस दल के ज्यादा स्वयंसेवक बचेंगे वह दल विजयी होगा।
- पत्थर वहन प्रत्येक दल के प्रथम स्वयंसेवक ने रेखा तक जाकर पत्थर रखना दूसरे ने पत्थर लाना। यह कृति क्रमश चलेगी। जिस दल का यह काम प्रथम पूर्ण होगा वह विजयी – होगा।
- खंडहर कूद स्पर्श रेखा तक दौड़ते समय बीच में 1 मी. 0 2 मी. का चौकोन (खंडहर) होगा, उसके ऊपर से कूदना प्रत्येक दल का अलग-अलग खंडहर होगा। वापिस आते समय भी इसी प्रकार खंडहर लाँघ कर आना। बाद में प्रत्येक दल का द्वितीय स्वयंसेवक दौड़ेगा । जिस दल का काम प्रथम समाप्त होगा वह दल विजयी होगा।
- अखंड लंबी कूद प्रत्येक दल का प्रथम स्वयंसेवक दोनों पैर – जोड़कर लंबी कूद लेगा। दूसरे ने उस स्थान से पुनः लंबी कूद (पैर जोड़कर) लेना। पूरे दल की मिलाकर कूद की लंबाई निश्चित करना ज्यादा दूरी तक जाने वाला दल विजयी ।
- डमरू दौड़ दो दल आमने-सामने तति में 20 कदम के अंतर पर खड़े रहेंगे। संकेत होने पर दोनों के प्रथम स्वयंसेवक दोनों दलों की तति से बने हुए चतुष्कोण के कोनों पर से डमरू जैसे (8′ जैसी) दौड़कर अपना स्थान तति के पीछे से जाकर ग्रहण करेंगे। तुरन्त द्वितीय स्वयंसेवक यही काम करेगा। इसी प्रकार करते हुए जो दल यह काम पहले पूर्ण करेगा वह दल विजयी होगा।
- अपरिचित साथी प्रत्येक दल के प्रत्येक स्वयंसेवक को क्रमांक दिया रहेगा। सभी दल मैदान में दौड़ेगे। शिक्षक के संकेत करते ही अपने मां का साथी ढूंढकर निश्चित स्थान पहुँचना जो जोडी अंत में आएगी याद होगी।
- रुमाल उठाओं दो दलों को आमने-सामने खड़ा कर प्रत्येक दल के स्वयंसेवक को कमांक दो, परन्तु दोनों दलों के क्रमांक एक दूसरे को ज्ञात नहीं होने चाहिये। दोनों दलों के बीच दो की त्रिज्या के मंडल में एक रुमाल रखो। शिक्षक द्वारा पुकारने पर वे दोनों स्वयंसेवक रुमाल के पास आएंगे और म उठाकर दूसरे द्वारा बिना छुए अपने दल में जाकर मिलने प्रयत्न करेंगे। जिस दल के अधिक स्वयंसेवक रुमाल ले जाने में सफल होंगे वह दल विजयी होगा।
- खो-खो दौड़ स्पर्धा – सभी स्वयंसेवक दो अथवा अधिक गुटों में खो-खो की पद्धति से बैठेंगे। अन्त का स्वयंसेवक स्पर्श रेखा तक दौड़कर वापिस आएगा और पहले स्वयंसेवक को खो देगा। पहला दूसरे को दूसरा तीसरे को इस प्रकार अंतिम स्वयंसेवक को खो मिलने पर वह दौड़ना प्रारंभ करेगा। निश्चित मर्यादा तक दौड़कर प्रथम वापिस आने वाला गट विजयी होगा।
- दंड त्रिकोण – तीन दंड का त्रिकोण (पिरॉमिड जैसा) तैयार करने की स्पर्धा है। प्रथम करने वाला विजयी ।
- दाँया बाँया दंड सभी स्वयंसेवक (संदड) मंडल की परिधि – पर रहेंगे। प्रत्येक ने दंड सामने जमीन पर खड़ा करना, और दंड को एक हाथ से पकड़ना। शिक्षक ने ‘बाँया’ कहने पर अपना दंड छोड़कर बाँयी ओर के स्वयंसेवक का दंड पकड़ना, ‘दाँया’ कडे जाने पर दाँई ओर का दंड पकड़ना । गलती करने वाला बाद।
तरुणों (युवाओ ) के लिए खेल
- मैं शिवाजी :दौड़नेवालों में से किसी एक का नाम पुकारकर “क्ष” उसे छूने को दौड़ेगा। इन दोनों के बीच में से “मैं शिवाजी” कहता हुआ जो दौड़नेवाला जाएगा उसे छूने का प्रयत्न “क्ष” लेने का प्रयत्न प्रत्येक दौड़नेवाला करेगा। करेगा। दोनों के बीच में से जाकर “क्ष” का आक्रमण अपने ऊपर दो वयंसेवक एक साथ बीच में आने से किसी को भी कर बाद किया जा सकता है।
- कबड्डी हुए दौड़नेवाले को स्पर्श करेगा। (क्ष एक पैर पर ही गाडी बन्द होने पर शेष स्वयंसेवक उसको निश्चित स्थान पर जाने तक पीठ पर मुक्के मारते रहेंगे।
- नदी पार करना – चौकोन में “क्ष” लंगड़ी स्थिति में खड़ा होगा। दौडनेवालों को लंगड़ी स्थिति में आधे मिनट के भीतर चौकोन पर करना होगा। “दक्ष” उन्हें छूने का प्रयत्न करेगा। आधे मिनट में पार न कर सकने वाले या “क्ष” के हाथ से छुए गए बाद समझे जाएंगे।
- मित्र-रक्षा मंडल की परिधि पर खड़े हुए स्वयंसेवक हाथ / पकड़ेंगे। “क्ष” मंडल के भीतर और दौड़नेवाला (मित्र) बाहर होगा। “क्ष” किसी भी युक्ति से मण्डल के बाहर जाकर दौड़नेवाले को छूने का प्रयत्न करेगा। परन्तु परिधि पर खड़े हुए स्वयंसेवक अपने पैर न हटाते हुए अन्य सभी उपायों से उसे बाहर जाने अथवा बाहर से भीतर आने से रोकेंगे और मित्र की रक्षा करेंगे। दौड़ने वाला मित्र भीतर या बाहर कहीं भी जा सकता है।
- अनपेक्षित लंगड़ी – समान संख्या के दोगट एक गट मंडल बनाकर खड़ा रहेगा। दूसरा पूरा गट या उनमें से 3-4 खिलाड़ी मंडल में आएंगे। इनमें लगड़ी से छूने की स्पर्धा रहेगी। मंडल बनाकर खड़े स्वयंसेवकों को क्रमांक दिए जाएंगे और मंडल परिधि पर खड़े रहेंगे। अंदर दौड़नेवालों को किसका क्रमांक कौन सा इसकी जानकारी नहीं रहेगी। प्रमुख द्वारा क्रमांक पुकारते ही उस क्रमांक का स्वयंसेवक कबड्डी बोलकर लंगड़ी से छूना प्रारंभ करेगा। इस तरह से वह प्रतिस्पर्धी खिलाडियों को बाद करेगा। मंडल परिधि पर के सभी स्वयंसेवक क्रमशः छूएंगे। (अंक पुकारने का काम भीतर रहने वाले दल के ही किसी स्वयंसेवक को देने से उसकी सावधानता बढ़ेगी, यदि गलती से कोई क्रमांक दुबारा. पुकारा गया, तो उसे पुनः पकड़ने का अवसर मिलेगा।)
- अनि कोटा मंडल जमीन पर खींचकर बाहर सारे स्वयंसेवक हाथ खेल प्रारंभ होने पर प्रत्येक का प्रयत्न क दूसरे को खीचते हुए छोटे मंडल में गिराने का होगा। छोटे याने अग्नि में गिरनेवाला खेल से बाहर हो जाएगा। संकल जहाँ टूटेगी ये दोनों खेल के बाहर जाएंगे। आखिर टिकने वाला विजयी होगा। एक
- घोड़े पर सवारी सब स्वयंसेवक जोड़ी में एक के पीछे खडे होकर केन्द्रमुख मंडल करेंगे। संकेत मिलने के बाद पिछल स्वयंसेवक अगले स्वयंसेवक के ऊपर से कूड़ेगा। बाद में उ स्वयंसेवक के दो पैरों के बीच में से बाहर आकर दाहिनी दिशा। मंडल के बाहर से दौड़ेगा और पूर्ण मंडल घूमकर अपने घोड़े की पीठ पर सर्वप्रथम सवारी करनेवाला जयघोष करेगा। एक
- साथी ढूँढना दो गुट बनाकर दो मंडल बनाएंगे। एक मंडल – अंदर और उनके बाहर दूसरा मंडल अंदर के मंडल का स्वयंसेवक तथा बाहर के मंडल में उसके पीछे खड़ा दूसरा स्वयंसेवक इनकी एक जोड़ी, इस तरह से जोड़ियाँ बनेंगी। पहली सीटी पर दोनों मंडल के स्वयंसेवक मंडल परिधि पर विरुद्ध दिशाओं में दौड़ेंगे। दूसरी सीटी बजने पर सभी स्वयंसेवक हुए नियोजित स्थान पर जाएंगे और वहाँ अपने साथी को ढूंढकर उसका हाथ पकड़ कर मंडल के केन्द्र स्थान पर आएंगे। प्रथम आने वाली जोड़ी विजयी होगी।
- दण्ड पकड़ो – सभी स्वयंसेवकों को क्रमांक दिए जाएंगे और वे बड़ा मंडल बनाएंगे। शिक्षक अपनी उंगली और जमीन के आधार पर दण्ड मंडल के मध्य में खड़ा करेगा। शिक्षक क्रमांक पुकारकर दण्ड पर से हाथ छोड़ेगा। जिसका क्रमांक पुकारा है वह स्वयंसेवक दौड़कर आएगा और गिरने के पूर्व ही दण्ड पकड़ने का प्रयास करेगा ।
- लंगड़ों में स्पर्धा सभी स्वयंसेवक एक मंडल में मंडल के – मध्य में कुछ हलकी वस्तुएं (रुमाल, कंकर, इत्यादि) रखी जाएंगी। लगडी स्थिति में प्रथम स्वयंसेवक एक वस्तु उठाकर लंगड़ते हुए ही वापिस आएगा। बाद में वही स्वयंसेवक दूसरी वस्तु उसी प्रकार लाएगा। अधिकतम वस्तु लाने वाला विजयी ।
- खजाने की रक्षा – 1/2 मी. त्रिज्या के मंडल में गेंद रखकर उसकी रक्षा एक स्वयंसेवक करेगा। 1 मी. त्रिज्या के मंडल की परिधि पर शेष स्वयंसेवक रहेंगे और गेंद को पैर से बड़े मंडल के बाहर धकेलेंगे। गेंद की रक्षा करनेवाला जिसको स्पर्श करेगा यह बाद होगा।
- कुक्कुट युद्ध • प्रत्येक स्वयंसेवक अपना बाँयाँ पैर उठाकर बॉए हाथ से पकड़ेगा और दाहिने हाथ के पीछे से बाँयाँ हाथ पकड़ेगा, यह कुक्कुट अवस्था होगी। इस स्थिति में प्रत्येक ने अपनी दाहिनी भुजा से धकेलकर प्रतिद्वंदी का हाथ छुड़ाना या उसे गिराने का प्रयत्न करना या मंडल के बाहर धकेलना। जो अन्त तक रहेगा वह विजयी होगा।
- घोड़ा बाँधो – प्रत्येक स्वयंसेवक के पास रुमाल चाहिये। अपने प्रतिद्वंद्वी के घुटने को रुमाल की कम से कम एक गांठ मारना। ऐसा करने वाला विजयी होगा।
- वृश्चिक युद्ध एक स्वयंसेवक ने दूसरे के दोनों पैर पीछे से अपनी कमर के पास पकड़कर ऊपर उठाना। पहले स्वयंसेवक के हाथ जमीन पर रहेंगे, यह वृश्चिक (बिच्छू) स्थिति होगी। इस प्रकार अनेक जोड़ियाँ तैयार करना। इसमें एक बिच्छू ने दूसरे को गिराना। जो बिच्छू गिर जाएगा वह बाद होगा। अंत तक रहने वाला बिच्छू (जोड़ी) विजयी होगा।
- दिल्ली हमारी – एक स्वयंसेवक एक छोटे मंडल (30 सें.मी. त्रिज्या) में खड़ा रहेगा। इस मंडल को दिल्ली कहेंगे। मंडल में स्थित वह स्वयंसेवक पूछेगा दिल्ली किसकी ? शेष स्वयंसेवक कहेंगे – दिल्ली हमारी। यह तीन बार होगा। तीसरी बार प्रश्न कहेंगे पूछने के तुरन्त पश्चात् सभी उस मंडल का स्थान ग्रहण करने का प्रयास करेंगे। सीटी होने पर जो स्वयंसेवक उस स्थान पर होगा वह विजयी कहलाएगा। (इस प्रकार काश्मीर / लाहौर हमारा भा खेला जा सकता है)
- घुड़सवार यु एक स्वयंसेवक की पीठ पर दूसरे ने बैठना पैर सामने यह घुडसवार होगा। खींचने पर नीचे गिरनेवाला या पीठ पर से उतरने वाला घुडसवार बाद होगा (मंडल मर्यादा के बाहर जाने वाला भी बाद)।
- मंडल युद्ध दो दलों में से एक दल 3 मीटर त्रिज्या के मंडल के अंदर रहेगा। दूसरे दल के स्वयंसेवा मंडल के अंदर खड़े रहने वाले स्वयंसेवक को बाहर खीचेंगे जो मंडल के बाहर जाएगा वह बाद होगा। बाहर के दल के स्वयंसेवक की पीट मंडल के अंदर जमीन पर लग जाने से वह बाद होगा।
- संकल खींच प्रत्येक दल के स्वयंसेवक संकल बनाएंगे। किनारे के स्वयंसेवक हाथ से दूसरी संकल के स्वयंसेवकों को अपनी मर्यादा में खींचेंगे।
- एक पैर ऊपर स्पर्धा प्रारंभ रेखा पर सभी स्वयंसेवक हाथ – जमीन पर रखेंगे और एक पैर ऊपर उठाया हुआ। इस स्थिति में निश्चित मर्यादा तक दौड़कर प्रथम आनेवाला विजयी होगा।
- दंड खींचना – दो स्वयंसेवकों ने आमने-सामने खड़े होकर दंड पकड़ना और अपनी ओर 4 कदम खींचना। ऐसा करने वाला विजयी होगा।
- आहवान प्रत्येक दल का एकेक स्वयंसेवक दूसरे दल पर आक्रमण करेगा अर्थात् स्पर्श करेगा। आक्रामक जिसे स्पर्श करेगा वह आक्रामक को पकड़ सकता है अपनी सीमा रेखा तक आक्रामक पकड़ा न जाने से वह विजयी होगा। यही काम दूसरे दल के स्वयंसेवक करेंगे।
- घोड़ा कबड्डी समान संख्या के दो दल रहेंगे। छूने वाला दल अपना एक स्वयंसेवक (घोड़ा) भागनेवाले की सीमा में भेजेगा। वह घोड़ा वहाँ एक छोटे मंडल में बैठेगा। छूनेवाले दल का एक-एक स्वयंसेवक ‘क्ष’ घोड़े को स्पर्श करके कबड्डी कबड्डी करते हुए भागने वाले स्वयंसेवक को बाद करने का प्रयास करेगा। ‘क्ष’ भागने वालों से अपने बैठे घोड़े की रक्षा करेगा। साँस टूटने पर ‘क्ष’ बाद होगा। सबकी दृष्टि से बचकर थोड़ा मांगने का प्रयास करेगा। घोड़े को स्पर्श कर फिर उसे अपने स्थान पर बिठाना धूनेवाले दल के सभी स्वयंसेवकों का उपयोग होने के बाद दल को बदल करना। –
- सुरंग दो दलों के स्वयंसेवक आमने-सामने तति में खड़े रहेंगे। एक स्वयंसेवक दोनों ततियों में से दौड़ते हुए जाएगा। राति में खड़े रहनेवाले स्वयंसेवकों ने इस दौड़ने वाले की पीठ पर घूंसे मारना। उसको रोकना नहीं, या अपना स्थान छोड़ना नहीं।
- रस्सीखींच एक मजबूत लंबी रस्सी को दोनों दलों के स्वयंसेवकों ने आधे-आधे हिस्से में पकड़ना और अपनी और 3 कदम खींचना। ऐसा करनेवाला दल विजयी होगा। (आवश्यकता होने पर रस्सी को रुमाल बाँध सकते हैं।)
- दीवार युद्ध – दो दल के स्वयंसेवक पास-पास दो ततियों में एक दूसरे की ओर पीठ करके खड़े रहेंगे। प्रत्येक स्वयंसेवक अपने बाजू वाले की कोहनी में अपनी कोहनी डालकर संकल बनाएंगे। खेल शुरू होने पर प्रत्येक तति दूसरी तति को दो मीटर पीछे धकेलने का प्रयास करेगी। जो दल पीछे हटेगा वह बाद होगा ।
- दंड पकड़ो – स्वयंसेवक परिधि पर खड़े रहेंगे। केंद्र से शिक्षक ने किसी स्वयंसेवक की तरफ दंड फेंकना और स्वयंसेवक ने पकड़ना असफल खिलाड़ी बाद।
- दंड पर से कूदना प्रत्येक दल के प्रथम स्वयंसेवक दंड के – साथ निश्चित स्थान पर जाकर वापस आएंगे। बाद में प्रथम और द्वितीय स्वयंसेवक हाथ में दंड पकड़ेंगे। उस दल के सभी स्वयंसेवक दंड पर से कुदेंगे। अन्त में प्रथम स्वयंसेवक खड़ा रहेगा और द्वितीय स्वयंसेवक दौड़ेगा ।
- दंड झगड़ा दो स्वयंसेवकों ने मिलकर एक दंड पकड़ना, दंड दोनों के बाएं हाथों में और दाहिने हाथ से पीछे धकेलना या अपनी ओर खींचना। हाथ से दंड छूट जाने पर खिलाड़ी बाद। –
- दंड स्पर्धा (अंध) – निर्धारित मंडल में अनेक दंड रखना और सभी को अंधा बनाना निश्चित समय ज्यादासे ज्यादा प्राप्त करनेवाला विजयी होगा।
- शेर बकरी सभी स्वयंसेवक (बकरी) (शेर मंडल के बाहर रहेगा शेर किसी भी ि जाई को पकड़कर मंडल से बाहर निकालेगा बकरियाँ शेर की ि पर मुक्के मार सकेगी। बाहर जाने वाली बकरी अन्य को पकड़कर सहायता प्राप्त कर सकती है, किन्तु अन्य बकरियों बाहर से जा रही बकरी या शेर को पकड़ नहीं सकती।
प्रौढ़ों के लिए खेल
- अंधाक्ष की आँखों पर रुमाल बाँधकर उसे अँधा बाद में “दक्ष” अपने हाथों से अन्यों को स्पर्श करेगा।
- कठघरा एक मंडल की परिधि पर दो स्वयंसेवक कठघरा बनाकर खड़े होंगे, यह कठघरा अर्थात ‘क्ष’ होगा। बाकी स्वयंसेवक मंडल की परिधि पर खड़े स्वयंसेवक एक के पीछे एक खड़े होंगे। खेल शुरू होने पर मंडल की परिधि पर से ही कठघर बनानेवाले स्वयंसेवकों के ऊँचे उठे हुए हाथों के नीचे से चलते हुए पार होते. जाएंगे। जब शिक्षक सीटी बजाएगा तब कठघर वाले अपने नीचे लाएंगे। उस समय हाथों के नीचे पर वे दूसरा कठघर बनाएंगे। सभी के पकड़े जाने तक कठघरों की संख्या बढ़ती जाएगी। हाथ
- घर बदलो- प्रत्येक स्वयंसेवक अपने चारों ओर गोल या चौकोन खींचेगा। जितने खेलनेवाले होंगे उतने गोल या चौकोन बनेंगे और वे उनके घर कहलाएंगे “क्ष” बेघर होगा। शेष अपने-अपने घरो में खड़े होंगे। खेल शुरु होने पर सभी आपस में घर बदलते जाएंगे, इसी बीच “क्ष” खाली घर में पहुँचने का प्रयत्न करेगा। जिसे घर नहीं मिलेगा वह “”क्ष” का स्थान लेगा।
- दण्ड दौड़ दो (अथवा अनेक) समान दल बनाकर दो (अथवा अनेक) मंडल बनाएंगे। दो स्वयंसेवकों में दो कदम का अंतर रहेगा। हरेक मंडल में एक स्वयंसेवक के पास दण्ड होगा। सीटी बजते ही दण्ड अपनी दाहिनी ओर के स्वयंसेवक को देंगे। इस तरह से दण्ड न गिराते हुए यह दण्ड मंडल में घूमेगा प्रथम जिस स्वयंसेवक के पास दण्ड था उसी के पास दण्ड आने पर खेल पूर्ण होगा। जिस मंडल में दण्ड की परिक्रमा प्रथम होगी यह दलविजयी होगा। मंडल पर स्पर्श
- सभी स्वयंसेवक 3 मी. त्रिज्या के मंडल की ‘परिधि पर खड़े रहेंगे। संकेत मिलने पर मंडल पर एक दिशा में चलेंगे और सामने वालों को स्पर्श करेंगे। जिसको स्पर्श होगा वह बाद होगा।
- अन्धा आदमी 1 एक स्थान पर पत्थर रखना एक स्वयंसेवक को रूमाल से अन्धा बनाकर दंड से पत्थर पर आघात करने को कहना। तीन आघातों में दंड न लगने पर खिलाड़ी बाद।
- दंड ढूँढना प्रत्येक स्वयंसेवक का दंड जमीन पर एकत्रित रखना। स्वयंसेवक 20 कदम दूरी पर दंड की ओर पीठ करके खड़े रहेंगे। शिक्षक 1 या 2 दंड उठाकर दूर रखेगा। संकेत होते ही सभी स्वयंसेवक वापिस आकर अपना दंड उठाएंगे। तब 1 या 2 स्वयंसेवकों को दंड नहीं मिलेंगे। वे बाद होंगे।
- रुमाल तह करना – सभी स्वयंसेवक मंडल में बैठेंगे। ‘क्ष मंडल के बाहर कुछ दूर तक जाएगा, इस समय शिक्षक अथवा कोई स्वयंसेवक रुमाल की पाँच तह करेगा, सभी ध्यान से देखेंगे। वापस लौटकर ‘क्ष’ तह किये हुए रुमाल को देखेगा, पश्चात् शिक्षक तह खोलकर वह रुमाल उसे देगा ‘क्ष’ को उसी क्रम से रुमाल तह करना है । प्रत्येक तह के बाद यदि तह ठीक है तो स्वयंसेवक शांत रहेंगे, गलत होने पर ताली बजाएंगे। क्रम से हर स्वयंसेवक यह कार्य करेगा। कम समय में करने वाला विजयी ।
बैठकर खेलने के खेल-
यह खेल सभी प्रकार के स्वयंसेवक खेल सकते हैं। इस विभाग में कुछ कम थकावट लाने वाले खेल भी सम्मिलित हैं
- विपरीत संख्या – दो गटों में स्वयंसेवक बैठेंगे। प्रथम गट का प्रथम स्वयंसेवक 100, 99, 98, ….. 1 तक उलटी गिनती कहेगा। गलती। वाएंगे। होने पर द्वितीय गट का प्रथम स्वयंसेवक यही करेगा। जिस गट का स्वयंसेवक अधिकतम संख्या कहेगा वह गट विजयी
- रामकृष्ण सभी स्वयंसेवक क्रमशः संख्या कहना शुरू करेंगे। 3 से विभाजित होने वाली संख्या आने पर राम और 5 से विभाजित होने पाली संख्या आने पर कृष्ण कहना चाहिये 3 और 6 दोनों से विभाजित होने वाली संख्या आने पर रामकृष्ण कहेंगे। गलती करनेवाला बाद होगा।
- नेता पहचानो एक स्वयंसेवक को नेता मानकर उसकी कृति के अनुसार सब स्वयंसेवक कृति करेंगे। बाहर भेजे गए स्वयंसेवक को नेता पहचानना है।
- जल-स्थल-नभ-अग्नि सब स्वयंसेवक मंडल पर और ‘क्ष केन्द्र पर खड़ा होगा। इधर-उधर दौड़ते या चलते हुए “क्ष” किसी भी एक स्वयंसेवक के सामने खड़ा होकर जल-स्थल-नम या अग्नि में से एक शब्द कहेंगा, प्रत्युत्तर में स्वयंसेवक जल-स्थल–नभ-अग्नि में विचरण करने वाले प्राणी का नाम लेगा। परन्तु “अग्नि” के प्रत्युत्तर में चुप रहेगा। भूल करनेवाला स्वयंसेवक “क्ष का स्थान लेगा। (जल-स्थल नभ-अग्नि के स्थान आकाश-पानी जमीन- आग भी कह सकते हैं।) पर
- खाएंगे – सारे स्वयंसेवकों को एक तति में खड़ा करो। शिक्षक सामने खड़ा होकर एक-एक वस्तु का नाम पुकारता जाएगा। वह वस्तु खाने के योग्य होने पर सारे स्वयंसेवक अपना दाहिना हाथ उठाकर “खाएंगे” चिल्लाएंगे। वस्तु खाने योग्य न होने पर हाथ उठानेवाले या “खाएंगे” कहने वालों को खेल से अलग किया जाए। आखिर तक टिकनेवाला विजयी होगा।
- घोड़ा-पानी – एक स्वयंसेवक बाँए हाथ की मुट्ठी बाँधकर अँगूठा ऊपर की ओर बाहर निकालेगा, यह है घोड़ा दूसरा स्वयंसेवक अपनी दोनों हथेलियाँ एक दूसरी पर घिसकर उस घोड़े को पानी पिलाएगा। प्रथम स्वयंसेवक हथेलियों पर थप्पड़ मारने का प्रयत्न करेगा। अयशस्वी होने पर कृति में बदल करना ।
- प्रश्नोत्तर से नेता पहचानो दो गुटों में स्वयंसेवक बैठेंगे। प्रथम गट किसी महान व्यक्ति का नाम तय करेगा। द्वितीय गट के स्वयंसेवक प्रथम गट को केवल 10 प्रश्न पूछकर नाम देंगे। बाद में द्वितीय गट नाम तय करेगा और प्रथम गट प्रश्न पूछेगा सही नाम बतानेवाला गट विजयी होगा। प्रश्न इसी प्रकार के हाँ कि उनका उत्तर ‘हो’ या ना’ में दिये जा सके।
- संघ खेल – आज्ञा के पूर्व संघ शब्द आने पर उस आज्ञा का पालन होगा, अन्यथा नहीं। गलती करनेवाला स्वयंसेवक बाद होगा। अंत तक बाद न होने वाला विजयी ।”क्ष” केन्द्र पर और बाकी सारे मंडल पर खडे होंगे। सब एक-एक शहर का नाम बताएंगे। शिक्षक उनमें से एक शहर का
- डाकघर नाम लेकर “क्ष को उस शहर में जाने को कहेगा “क्ष” उस शहर का नाम लेने वाले स्वयंसेवक के सामने खड़ा हो जाएगा। उसकी भूल हो तो वह स्वयंसेवक “क्ष” की पीठ पर घूँसा मारकर मुहर लगायेगा। ठीक शहर के निकट पहुँचने तक “क्ष” को मुहर लगती जाएगी। पश्चात् दूसरा “क्ष” बनेगा।
- अंत्याक्षरी – पहला दल कविता कहेगा और इस कविता के अंत्याक्षर से दूसरे दल वाले अपनी कविता कहेंगे। दूसरे दल वाले उस अक्षर से प्रारंभ होने वाली कविता नहीं कह सके तो पहले दल को एक गुण मिलेगा। समान अवसर देने के बाद अधिक गुण प्राप्त करनेवाला दल विजयी होगा।
- मुफ्त का आदेश – सब मंडल पर बैठेंगे। किसी क्रिया के आदेश देने वाले एक दो वाक्य प्रत्येक स्वयंसेवक एक-एक चिट्ठी पर दूसरों को न बताते हुए लिखेगा। सारी चिट्ठियाँ बंद कर एकत्र मिलाओ । पश्चात् उनमें से एक-एक चिट्ठी एक-एक स्वयंसेवक उठाकर उसमें लिखा हुआ आदेश जोर से पढ़ेगा। (जैसे -गीत गाओ, आसन करो) और उस प्रकार क्रिया करेगा।

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