
भीम माता कुंती एवं पाण्डवों की जीवन रक्षा के लिए महान स्तंभ के समान थे। उन्होंने अपने जीवन में अनेक चुनौतियों एवं मुसीबतों (रुकावटों) का सामना करके उन पर सफलतापूर्वक विजय पाई। भीम एक बढ़िया रसोइया थे। उन्हें भूख भी बहुत लगती थी। अतः वे बहुत अधिक मात्रा में भोजन करते थे। शारीरिक शक्ति एवं क्षमताओं में उनके समान अन्य कोई योद्धा नहीं था। वह एक उत्तम तैराक थे। मल्लयुद्ध में भी उनके समान कोई नहीं था। अतः वे समय-समय पर कौरवों को आघात् पहुँचाते रहते थे। कौरवों की भीम से अनंत ईर्ष्या के अनेक कारणों में से यह भी एक बहुत बड़ा कारण था।
लाक्षागृह से सुरक्षित निकल जाने के बाद कुंती और उनके पुत्रों ने एकचक्र नगरी में एक ब्राह्मण के घर शरण ली। वे वहाँ ब्राह्मण वेश में रहे। वे ब्राह्मणों की गलियों में ही भिक्षा लेने के लिए जाते थे।
एकचक्र नगरी का शासक दुर्बल था अतः वहाँ बकासुर नामक दैत्य का आतंक था। वह एकचक्र से मीलों दूर एक गुफा में रहता था। वहाँ की यह परंपरा बन गई थी कि प्रतिदिन एक परिवार बकासुर के लिए भोजन पहुँचाया करेगा। उसका भोजन “कई क्विंटल चावल, दाल, दही, मांस, शराब, सामान लाने वाली गाड़ी के दो पशु तथा उसका चालक” के रूप में होता था। एक दिन उस परिवार की बारी आई, जिनके घर में पाण्डवों ने शरण ली हुई थी। भीम ने भोजन
पहुँचाने का दायित्व स्वयं ही ले लिया। भीम खाने का सामान लेकर देर से पहुँचा। बकासुर गुफा के बाहर भूख से बेचैन बड़े क्रीम की अग्नि से जल रहा था। भीम को देर से व धीरे-धीरे आते देखकर उसका क्रोध बढ़ गया। भीम ने उसके क्रोध की उपेक्षा करते हुए (चिंता न करते हुए) गाड़ी को रोका और स्वयं ही उसमें रखा भोजन खाने लगा। बकासुर अपने क्रोध पर काबू नहीं रख सका। उसने एक पेड़ उखाड़ कर भीम पर आक्रमण कर दिया। फिर भी भीम निश्चिंत होकर भोजन करता रहा। भोजन करके संतुष्ट होने पर उसने बकासुर से युद्ध आरंभ किया।
एक भयानक दृश्य उपस्थित हुआ। भीम ने राक्षस को नीचे गिराकर अपने घुटने से उसकी पीठ की हड्डियाँ तोड़ दीं। बकासुर भयंकर रूप से दर्द से चीखा, खून की उल्टी करके उसके प्राण पखेरू उड़ गए। वह मर गया।
भीम ने हिडंबा तथा अनेक अन्य राक्षसों का भी वध किया, जो गाँव के लोगों के लिए आतंक बने हुए थे।
जब युधिष्ठिर हस्तिनापुर का शासन सँभाले हुए थे, सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि युधिष्ठिर राजसूय यज्ञ का आयोजन करके सम्राट पद से विभूषित किये जाएँ। सम्राट बनने के लिए तत्कालीन अन्य सभी राजाओं को परास्त करना अपेक्षित था। इस कार्य की सफलता में केवल जरासंध ही बाधा के रूप में उपस्थित था।
जरासंध का वध करने का निर्णय लिया गया। उसे मल्लयुद्ध मैं हराकर मारने का भी निर्णय लिया गया। कृष्ण, अर्जुन तथा भीम
तीर्थ यात्रियों के वेश में निःशस्त्र मगध पहुँचे, परंतु जरासंध ने उनकी चाल को भाँप लिया और सत्य बोलने को कहा। तब उन्होंने कहा “वास्तव में हम तुम्हारे शत्रु हैं। तुमसे मल्लयुद्ध के इच्छुक हैं। तुम हममें से किसी एक से मल्लयुद्ध करो।”
घमंड से अट्टहास करते हुए जरासंध बोला “कृष्ण तुम एक कायर ग्वाले हो। अर्जुन अभी बच्चा है। भीम अपनी शारीरिक क्षमता के लिए विख्यात है। इसी के साथ मैं मल्लयुद्ध करूँगा।”
वे दोनों योद्धा समानरूप से शक्तिशली एवं कुशल थे। बारह दिन-रात तक युद्ध चालू रहा। अंत में भीम ने जरासंध को भूमि पर पटका और उसकी टाँग खींच कर उसके दो टुकड़े कर दिये और उन्हें दूर फेंक दिया। सभी को बड़ी हैरानी हुई कि दोनों टुकड़े जुड़ गए और जरासंध पुन: जीवित हो उछल कर खड़ा हो गया। भीम ने लाचार होकर श्रीकृष्ण की ओर देखा। श्रीकृष्ण ने एक तिनका उठाकर उसे तोड़ा तथा दोनों टुकड़े विपरीत दिशाओं में फेंक दिये। भीम को संकेत समझ में आ गया। पुनः उसने जरासंध के दो टुकड़े किए तथा दोनों को विपरीत दिशाओं में फेंक दिया। इस प्रकार आतंकी जरासंध का अंत हुआ।
बारह वर्षों के वनवास के पश्चात् पाण्डवों ने विराट के राज्य में एक वर्ष गुप्त रूप से निवास किया। भीम वल्लभ नाम से राजा का रसोइया बना। द्रोपदी सैरंध्री के रूप में रानी सुदेशना की सेवा में रत रहीं। विराट की सेनाओं का सेनापति उसका साला कीचक था। वास्तव में राज्य में कीचक का ही शासन चलता था। वह बहुत बलशाली एवं धूर्त था।
रानी की नौकरानी सैरंध्री की सुंदरता पर वह मुग्ध हो गया। एक दिन रानी के साथ परामर्श करके उसने सैरंध्री को अपने कक्ष में बुलवा लिया तथा उसे समर्पण करने के लिए आग्रह किया। सैरंध्री ने हिंसात्मक रूप से प्रतिरोध किया तथा उसे परिणाम भुगतने की चेतावनी दी। तब कीचक ने उसे ठोकरें मारी और थप्पड़ लगाए। किसी प्रकार वह वहाँ से बचकर निकल गई। रात्रि को वह भीम से मिली और पूरी घटना उसे सुना दी। भीम ने उसके साथ एक योजना बनाई। उसके अनुसार सैरंध्री अगले दिन कीचक से मिली तथा उसे कहा कि वह उसकी इच्छा पूर्ण करना चाहती है। परंतु, डर व शर्म के कारण उसने विरोध किया था। उसे नृत्य-कक्ष में एकांत में मिलने के लिए कहा। जब रात्रि के समय कीचक कक्ष में पहुँचा, उसने सैरंध्री को चटाई पर लेटे हुए पाया। वह धीरे से उसके पास गया और उसे आलिंगनबद्ध करने लगा। ओह! यह क्या! यह तो भीम (वल्लभ) था। कुछ देर तक घोर संग्राम के बाद भीम ने कीचक को मार गिराया।
द्रोपदी के लिए सौगंधिका नाम के फूलों की खोज में भीम अकस्मात् अपने बड़े भाई हनुमान जी से मिले। हनुमान जी ने उनको को भावी युद्ध में विजयी होने का शुभाशीष दिया।
भीम ने महाभारत के युद्ध में अनेक महारथियों का वध किया।

अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार अकेले ही उन्होंने धृतराष्ट्र के सभी पुत्रों का वध भी किया। अपनी गदा के साथ दुर्योधन की जंघाएँ तोड़ कर उसे यमपुरी पहुँचा दिया। उसने दुःशासन की छाती चीरकर अट्टहास करते हुए उसका रक्त भी पिया। उसका अट्टहास (दहाड़) पूरे युद्धक्षेत्र में गूँजा तथा शेष कौरव सेना में भीम के नाम का आतंक (डर) बैठ गया।अपने रक्त से सने हाथों से उसने द्रौपदी के वालों को धोकर बाँधा ।

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