
महात्मा बुद्ध जी का सम्पूर्ण जीवन परिचय जानने की इच्छा से आपने हमारे पेज का चयन किया उसके लिए आपका धन्यवाद और आपका स्वागत है #महात्मा बुद्ध
महात्मा बुद्ध जी का संझिप्त परिचय
बौद्धमत के प्रवर्तक महात्मा बुद्ध ने धर्म को पाखण्ड, तर्क जाल और आडम्बरों से मुक्त कर सरल, सुंदर और स्वस्थ रूप दिया। उन्होंने अहिंसा के साथ, प्रेम, दया, करूणा और लोक सेवा के आदर्श भी समाज के सामने रखे। आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व कपिलवस्तु से पन्द्रह मील दूर लुम्बिनी नामक स्थान पर बुद्ध का जन्म हुआ। उनके पिता शुद्धोधन कपिलवस्तु के राजा थे। बुद्ध का वास्तविक नाम सिद्धार्थ था, उनका एक अन्य नाम गौतम भी था। भगवान बुद्ध को भारतीय सनातन परम्परा में भगवान विष्णु के नवम् अवतार के रूप में स्वीकार किया गया है।# महात्मा बुद्ध
गौतम को एक-एक करके दुनिया के दुख, कष्टों की अनुभूति हुई। उनके मन में अनेक प्रश्न उठते, इन दुःखों का कारण क्या हैं? और यदि इसका कारण पता चले तो इनसे मुक्ति कैसे सम्भव है? अगर इसकी खोज नहीं करेंगे तो इस प्रकार के कष्टों को सम्पूर्ण मानवता हमेशा-हमेशा सहती रहेगी। इन सभी प्रश्नों का उत्तर खोजने के लिए वे अपने माता-पिता का स्नेह, पत्नी-पुत्र का मोह, राजसी वैभव त्याग कर रात के अंधेरे में जब सारा नगर सोया पड़ा था
अपने घोड़े पर सवार हो दूर निकल गये। वहाँ से लगभग 24 कोस की दूरी पर अनोया नदी के समीप घने जंगल में पहुँचकर अपने कीमती वस्त्र और “कन्थक” घोड़ा रक्षक के हाथों वापिस भेजकर वे अपने पथ पर चले गये । #महात्मा बुद्ध
उन्होंने 6 वर्षों तक कठोर तपस्या की व विभिन्न सन्तों, साधुओं, योगियों, तपस्वियों और तान्त्रिकों के विचार ग्रहण किये। परन्तु उनके सन्देह दूर न हो सके। तपस्या के मार्ग से निराश होकर सिद्धार्थ वर्तमान बोध गया के समीप पहुँचे। थककर सिद्धार्थ एक विशाल पीपल के वृक्ष की छाया में बैठ गये। सात दिन और सात रात, वह एक ही स्थान पर एकाग्रचित्त ध्यानमग्न बैठे रहें। आखिर उन्हें सत्य की ज्योति का प्रकाश मिला और उन्होंने बुद्धत्व को प्राप्त किया। इस प्रकार सिद्धार्थ नाम का यह राजकुमार अब गौतम बुद्ध बन गया।
गौतम बुद्ध ने कष्टों से बचने का मार्ग खोज निकाला। वे चार आर्य सत्यों और अष्टांगिक सम्यक् मार्ग को लेकर सारे देश से मिलने के लिए चल पड़े और चलते-चलते बोध गया से काशी तक पहुँचे और वहाँ सारनाथ आकर उन्होंने अपना पहला प्रवचन दिया। महात्मा बुद्ध ने अपने उपदेशों में सूक्ष्म उलझनों और जटिलताओं को स्थान नहीं दिया। यही कारण है कि उनके सहज और सरल उपदेश उनके जीवन काल और उनके पश्चात् भी देश-देशांतरों में फैल गये ।
भगवान बुद्ध ने कोई पुस्तक नहीं लिखी। उनकी मृत्यु के पश्चात् उनके शिष्यों ने उनके उपदेशों का जो संग्रह किया वह “त्रिपिटक” कहलाया । त्रि अर्थात् तीन और पिटक अर्थात् पिटारी। शिक्षा की तीन पिटारियाँ, इनके नाम हैं- सुत्तपिटक, अभिधम्म पिटक और विनय पिटक। बुद्ध समाज में ऊँच-नीच की मनोवृत्ति के कट्टर विरोधी थे। उनके शिष्यों में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, वैश्या इत्यादि सब समान स्थान रखते थे। उनसे दीक्षा लेने वालों में बिम्बिसार, अजातशत्रु, प्रेसनजीत जैसे राजा, अंगुलिमाल जैसे डाकू व वैशाली की नगरवधू आम्रपाली भी थी।
भगवान बुद्ध ने 80 वर्ष की आयु में कुशीनगर में 7 लाख भिक्षुओं की उपस्थिति में परिनिर्वाण प्राप्त किया। दैवयोग से उस दिन वैशाख मास की पूर्णिमा थी। इस दिन से बुद्ध के जीवन की तीन प्रमुख घटनाएँ उनके साथ जुड़ गयीं। यह उनका जन्मदिन भी है, उन्हें बुद्धत्व की प्राप्ति भी इसी दिन हुई और इसी दिन गौतम बुद्ध ने निर्वाण भी प्राप्त किया। इसीलिए वैशाख पूर्णिमा पूरे विश्व में बुद्ध पूर्णिमा उत्सव के रूप में मनायी जाता है।
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