
महाराजा रणजीत सिंह जी का सम्पूर्ण जीवन परिचय जानने की इच्छा से आपने हमारे पेज का चयन किया उसके लिए आपका धन्यवाद और आपका स्वागत हैमहाराजा रणजीत सिंह
महाराजा रणजीत सिंह जी का संझिप्त परिचय
शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह पंजाब के महानतम् सम्राट थे। महाराजा रणजीत सिंह ने न केवल पंजाब को एक सशक्त राज्य के रूप मैं एकजुट रखा, वरन् अपने जीते जी अंग्रेज व मुस्लिम आक्रमणकारियों को अपने साम्राज्य के पास फटकने भी नहीं दिया। उन्होंने अपने शौर्य, पराक्रम, सूझबूझ और कूटनीति से अपने राज्य की सीमाएं अटक, पेशावर, काबुल और जमरुद तक पहुँचा दी थी।महाराजा रणजीत सिंह
रणजीत सिंह का जन्म सिखों की शुकरचकिया मिसल (छोटी रियासत) के उत्तराधिकारी के रूप में 13 नवम्बर 1780 को गुजरांवाला (अब पाकिस्तान) मे हुआ था। रणजीत सिंह के पिता सरदार महासिंह शुकरचकिया मिसल के कमांडर थे। छोटी सी उम्र में चेचक की वजह से रणजीत सिंह की एक आँख की रोशनी जाती रही। जब वे केवल 12 वर्ष के थे तब उनके पिता महासिंह का निधन हो गया और मिसल की देखभाल का बोझ इन्हीं के कंधों पर आ गया।
आरम्भ में इनके विरोधियों ने इनके विरुद्ध कई अभियान चलाए परन्तु सब असफल रहे। रणजीत सिंह ने सारे सिख धड़ों को एकसूत्र में पिरोकर एकता स्थापित की। 12 अप्रैल 1801 को रणजीत सिंह ने महाराजा की उपाधि ग्रहण की। गुरु नानक के एक वंशज ने उनकी ताजपोशी कराई। लाहौर को अपनी राजधानी बनाने के उपरान्त उन्होंने 1805 तक अमृतसर पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित कर लिया। महाराजा रणजीत सिंह ने अफगानों के खिलाफ कई युद्ध लड़े और
उन्हें पराजित कर पेशावर समेत समस्त पश्तून क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। यह पहला अवसर था जब पश्तूनों पर किसी गैर मुस्लिम ने राज किया। इसके बाद उन्होंने जम्मू, कांगड़ा, शिमला, काश्मीर और लद्दाख पर भी अधिकार कर लिया। अपने राज्य की सीमाओं का विस्तार कर रणजीत सिंह ने प्रशासनिक सुव्यवस्था और शांति स्थापित की।
रणजीत सिंह की विशाल सेना में 92,000 पैदल, 31,000 घुड़सवार, 384 भारी और 400 हल्की तोपें थी जो 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध के समय ब्रिटिश सैन्य शक्ति के बराबर थी। सेना को आधुनिक बनाने के लिये उन्होंने नेपोलियन की सेना के एक अधिकारी बापिस्ते वेंचूरा को पैदल तथा जीन फ्रांसिस अलार्ड को घुड़सवार सेना के प्रशिक्षण के लिये नियुक्त किया। बंदूकों के निर्माण के लिये क्लाड आगरस्ट तथा बारुद उपकरणों के लिये हंगरी के होनाइजर की सेवाए ली।
इस प्रकार अपनी सेना को आधुनिक बनाने वाले वे प्रथम भारतीय शासक थे। उनके पराक्रम के कारण ही भारत की पश्चिमी सीमा पर सैकड़ों वर्ष से हो रहे मुस्लिम आक्रमणों पर रोक लग गयी और लम्बे समय तक अंग्रेज भी पंजाब को नहीं हड़प सके। एक ऐसा मौका भी आया जब पंजाब ही एकमात्र ऐसा सूबा था जिस पर अंग्रेजो का कब्जा नहीं था ।
ब्रिटिश इतिहासकार टी. व्हीलर के अनुसार यदि वह एक पीढ़ी पहले होते. तो पूरे हिन्दुस्तान को ही फतह कर लेते। यद्यपि उनकी शिक्षा नहीं हो पायी थी पर उनकी कल्पनाशक्ति और योजकता विलक्षण थी। इसी के बल पर उन्होंने भारत की यश पताका चारों ओर फहराई। उन्होंने अपने राज्य में शिक्षा और कला को बहुत प्रोत्साहन दिया। उन्होंने हिन्दुओं और सिखों से वसूले जा रहे ‘जजिया’ पर भी रोक लगाई।
रणजीत सिंह धर्मप्रेमी शासक थे। अफगानिस्तान विजय से जो सोना उन्हें मिला उसका आधा काशी विश्वनाथ मंदिर को दिया और आधा सोना अमृतसर के हरमंदिर साहिब गुरुद्वारे में लगवाया तभी से उसे स्वर्ण मंदिर कहा जाने लगा। बेशकीमती हीरा कोहिनूर उनके खजाने की रौनक था। उनकी इच्छा थी कि वे कोहिनूर हीरे को जगन्नाथपुरी में भगवान जगन्नाथ को अर्पित करें। परन्तु दुर्भाग्यवश वहाँ पहुँचने से पहले ही उसे अंग्रेजों ने हड़प लिया और
लार्ड हार्डिंग ने इंग्लैण्ड की महारानी विक्टोरिया को खुश करने के लिये कोहिनूर हीरा लंदन पहुँचा दिया। रानी विक्टोरिया ने उसे अपने ताज में जड़वा लिया। आज भी भारत की वह प्राचीनतम अमूल्य निधि, हिन्दुस्तान की विरासत, लंदन संग्रहालय की कैद में है। इस विलक्षण पराक्रमी सम्राट का देहान्त 27 जून 1839 को हो गया, उनकी समाधि लाहौर में बनवाई गई जो आज भी वहाँ स्थित है।
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