
श्री गुरु जी का सम्पूर्ण जीवन परिचय
माधव सदाशिवराव गोलवरकर (श्री गुरू जी)
19 फरवरी, 1906 सोमवार को प्रातः 4.30 पर माता श्रीमती लक्ष्मीबाई तथा पिता श्री सदाशिवराव की गोद इस बालक जन्म से धन्य हुई। बालक का नाम ‘माधव’ रखा गया। परन्तु माँ प्यार से ‘मधु’ कहकर ही बुलाती थी माधव अपने अपने माता-पिता की संतानों में से एक मात्र जीवित सतान थे अतः उनकी आशा अपेक्षाएं इन्ही पर केन्द्रित थी।
जन्म से ही तीव्र बृद्धि के धनी माधव की बुद्धिमता के अनेक किस्से उनके विद्यालय में विख्यात थे। गणित के सवाल हल करना उनके लिए खेल था। इधर अध्यापक ने श्यामपट पर प्रश्न लिखा उधर माधव ने खड़े होकर उत्तर बता दिया। एक बार खडवा के हाईस्कूल में गणित का एक प्रश्न हल करने में सभी छात्र व अध्यापक जब असमर्थ रहे तो उन्होंने माधव को बुलाया उन्होंने वह प्रश्न आसानी से हल कर दिया। जब प्रधानाचार्य को इस घटना का पता लगा तो उन्होंने माधव को पूरे विद्यालय के सामने पुरस्कृत किया।
जब उच्च शिक्षा हेतु जब वे काशी विश्वविद्यालय पहुँचे तो उनकी अध्ययनशीलता की धाक वहाँ भी फैल गयी। एम.एस-सी. पूर्ण होने के पश्चात् वे शोध कार्य हेतु मद्रास गये। उधर पिताजी भी रिटायर हो गये अतः खर्च की समस्या उत्पन्न हुई इन सभी परिस्थितियों के कारण माधव ने अध्ययन छोड़कर काशी विश्वविद्यालय में प्राध्यापक का कार्य प्रारम्भ कर दिया। छात्रों के प्रति उनका असीम प्रेम तथा पढ़ाने की अभिवन शैली के कारण छात्र उनसे ही पढ़ना पसन्द करते थे।
नागपुर के एक छात्र प्रभारक बलवंत दाणी डा० हेडगेवार की योजना से वहां पर बी.ए. कर रहे थे तथा संघ की शाखा भी लगाते थे। गुरूजी भी कभी-कभी उस शाखा में जाने लगे इससे संघ के विचारों के प्रति उनका आकर्षण एवं प्रेम धीरे-धीरे बढ़ने लगा, इसी दौरान काशी की शाखा पर डा० हेडगेवार का आगमन हुआ, डॉ० जी एवं श्री गुरू जी प्रथम भेंट में ही एक दूसरे से बहुत प्रभावित हुए। विश्वविद्यालय की छुट्टी के दिनों में श्री गुरू जी नागपुर जाते तो डॉ० जी के साथ बैठकर घंटों विभिन्न विषयों पर चर्चा करते रहते। दोनों महापुरूष एक दूसरे को परख रहे थे। तीन वर्ष काशी में पढ़ाने के पश्चात् अपने माता-पिता के आग्रह पर वे नागपुर लौट आये तथा एल. एल. बी. की परीक्षा पास की
और वकालत शुरू की, अन्त में धोखाधड़ी पर आधारित वकालत के व्यवसाय को भी छोड़ दिया। इन्ही दिनों रामकृष्ण मिशन आश्रम में उनका जाना भी शुरू हो गया था।
सन् 1936 में दीपावली से पूर्व एक दिन श्री गुरु जी अचानक घर से गायब हो गये, वे स्वामी विवेकानन्द जी के गुरू भाई स्वामी अखण्डानन्द जी के सारगाछी (बंगाल) आश्रम जा जनवरी 1937 को मकर संक्रान्ति पहुँचे जहाँ 13. दिन उन्हें दीक्षा प्रदान की गई पर साथ ही यह आशीर्वाद भी दिया कि तुम्हें हिमालय की कन्दराओं में तपस्या नहीं करनी, अपितु समाज सेवा का महान कार्य तुम्हारे द्वारा होना है।
7 फरवरी 1936 को स्वामी अखण्डानंद जी का शरीर शांत होने के पश्चात् पुनः नागपुर लौट आए उनके लौट आने पर सर्वाधिक प्रसन्नता डॉ० जी को हुई। प्रारम्भ में तो श्री गुरु जी ने डा० जी को सामान्य व्यक्ति ही समझा परन्तु धीरे-धीरे डॉ० जी व श्री गुरू जी दो शरीर एक प्राण के रूप में कार्य करने लगे। 1938 में नागपुर के संघ शिक्षा वर्ग में सर्वाधिकारी का दायित्व उन्हें सौंपा गया। सन् 1939 में उन्हें सरकार्यवाहक का दायित्व दिया गया और सार देश में उनका प्रवाज प्रारम्भ हो गया।
डा0 जी का स्वास्थ्य दिन प्रतिदिन गिरता जा रहा था 27 जून 1940 को डॉ० जी के स्वर्गवास के पश्चात् सरसंघचालक का गुरुतर दायित्व श्री गुरू जी के कंधो पर आ गया। 3 जुलाई 1940 को रेशीमबाग संघस्थान पर आयोजित सार्वजनिक श्रद्धांजलि सभा में नागपुर प्राप्त संघचालक श्री बाबासाहब पाध्ये ने श्री गुरू जी को सरसंघचालक मनोनीत करने वाला डॉ. जी का निर्णय पढ़कर सुनाया और फिर शुरू हुई श्री गुरू जी की अखण्ड यात्रा सम्पूर्ण भारतवर्ष का वे वर्ष में 2 बार भ्रमण करते थे। देश का कोई प्रान्त जिला या महत्वपूर्ण स्थान ऐसा नहीं था जहाँ श्री गुरू जी संघकार्य के लिये न गये हों। 30 जनवरी 1948 को गाँधी जी
हत्या के पश्चात् 9 फरवरी 1948 को श्री गुरु जी को बन्दी बनाया गया। 4 फरवरी 1948 को संघ पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। 13 जुलाई 1948 को बैतूल जेल से मुक्त होने के बाद श्री गुरू जी ने सम्पूर्ण भारत का प्रवास फिर से प्रारम्भ कर दिया। भारत माँ की करोड़ो दुखी दरिद्र एवं उपेक्षित संतानों के लिए उनके मन में आप व्यथा व पीड़ा थी उनकी सेवा के लिए उन्होंने सैकड़ो कार्यकर्ताओं को प्रेरित किया। 33 वर्ष के कार्यकाल में उन्होंने लगभग 70 बार सम्पूर्ण देश का भ्रमण किया और 50,000 से भी अधिक पत्र अपने हाथ से लिखे।#माधव सदाशिवराव गोलवरकर (श्री गुरू जी)
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माधव सदाशिवराव गोलवरकर (श्री गुरू जी)
सन् 1969-70 में उनके सीने में बायी और एक गांठ उभर आई जिसके कारण उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा परन्तु प्रवास, बैठक, बौद्धिका निरन्तर चलता रहा। 5 जून 1963 को प्रातः ही उन्हें अपने महाप्रयाण को पूर्वाभास हो गया था उन्हों अपने निजि सचिव डॉ० आबाजी थत्ते से कहा कि आज घंटी बज रही है लगता बुलावा जाने वाला है, पूरा दिन ऐसे ही बीता रात्रि 9.05 बजे श्री गुरू जी ने दीर्घ श्वास लेकर मन ही मन अपने गुरू स्वामी अखण्डानन्द तथा अपने मार्गदर्शक डॉ० जी का पावन स्मरण किया और “भारत माता की जय” बोलते हुए देह त्याग दी।#माधव सदाशिवराव गोलवरकर (श्री गुरू जी)
तृतीय प०पू० सरसंघचालक श्री बालासाहब देवरस श्री मधुकर दत्तात्रेय (बालासाहब) देवरस का जन्म 11 दिसम्बर, 1914 का नागपुर के एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था। आपके पिता श्री दत्तात्रेय देवरस एक सामान्य सरकारी कर्मचारी थे तथा नागपुर के इतवारी मौहल्ले में रहते थे, बालासाहब के चार अन्य भाई तथा चार बहनें भी थीं। वैसे तो यह परिवार मूलतः आंध्र प्रदेश से आकर नागपुर में बसा था। #माधव सदाशिवराव गोलवरकर (श्री गुरू जी)
माधव सदाशिवराव गोलवरकर (श्री गुरू जी)
प. पू. श्री गुरु जी संक्षिप्त जीवन वृत्त
श्री गुरु जी अपने माता-पिता की चौथी सन्तान थे। उनका जन्म फाल्गुन कृष्ण एकादशी (विजय एकादशी)विक्रम संवत् १९६२ तथा अंग्रेजी तिथि सन् १९ फरवरी, १९०६ को तड़के साढ़े चार बजे नागपुर के ही श्री रायकर के पर में हुआ। उनका नाम माधव रखा गया। परन्तु परिवारीजन उन्हें “मधु” नाम से ही पुकारते थे। बचपन में | उनका यही नाम प्रचलित था। ताई माऊ जी की कुल संतानों में से केवल “मधु” हो बचा रहा और अपने माता-पिता की आशा का केन्द्र बना।
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* १९०८ – जब माधव २ वर्ष के थे तब उनके पिता जी को छत्तीसगढ़ के सरायपाली ग्राम जो रायपुर से ९० मील तथा रायगढ़ से ६० मील दूरी पर है वहां शिक्षक की नौकरी मिली। इस ग्राम में रहना पड़ा। वहीं पर शिक्षा प्रारम्भ हुई।
१९१५ प्राथमिक चौथी की परीक्षा, नर्मदा विभाग (स्वातंत्र्य पूर्व मध्य प्रदेश) से प्रथम क्रमांक ने उत्तीर्ण की।
१९२२ चांदा (चन्द्रपुर) के जुबली हाईस्कूल से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की।
* १९२४ इण्टर मीडिएट परीक्षा उत्तीर्ण की तथा अंग्रेजी विषय में प्रथम पारितोषिक मी प्राप्त किया। वंशीवादन की कला भी हस्तगत कर ली।
१९२६ बी० एस० सी० बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से उत्तीर्ण की।
१९२८ एम० एस० सी० प्राणिशास्त्र विषय में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। इन चार वर्षों में अध्ययन के साथ वहां के ग्रंथालय का उपयोग उन्होंने संस्कृत महाकाव्यों, पाश्चात्य दर्शन, श्रीराम कृष्ण परमहंस व स्वामी विवेकानन्द की ओजपूर्ण एवं विचार सम्पदा-भिन्न-भिन्न उपासना पंथों के प्रमुख ग्रंथों तथा शास्त्रीय विषयों के अनेक ग्रंथों का आस्थापूर्वक पठन किया। । #माधव सदाशिवराव गोलवरकर (श्री गुरू जी)
१९२९ शोध प्रबन्ध लिखने हेतु “मतस्य जीवन का विषय चुना तथा मद्रास के मतस्य संग्रहालय में जाकर रहे। पिताजी के सेवानिवृत होने के कारण पैसे के अभाव में एक वर्ष में ही शोध काम छोड़कर नागपुर वापस आना पड़ा #माधव सदाशिवराव गोलवरकर (श्री गुरू जी)
* १९३० बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में प्राध्यापक के नाते से नियुक्ति।
* १९३१ संघ प्रवेश
* १९३३ काशी से नौकरी छोड़कर पुनः नागपुर वापस आये। नागपुर में कानून का अध्ययन प्रारम्भ किया तथा मामाजी की कोचिंग क्लास में भी पढ़ाने जाते थे
१९३४ नागपुर की तुलसी बाग संघ शाखा के कार्यवाह बने। संघ कार्य हेतु कुछ समय मुम्बई में भीरहे।
* १९३५ एल० एल० बी० उत्तीर्ण किया तथा अकोला के संघ शिक्षा वर्ग में सर्वाधिकारी भी रहे।
* १९३६ दीपावली से पूर्व सारगासीर (बंगाल) में रामकृष्ण संघ के अध्यक्ष श्री अखण्डानंद जी सान्निध्य में पहुंचे।
१९३७ १३ जनवरी मकर संक्रांति पर्व के दिन दीक्षा ग्रहण की। ७ फरवरी को श्री अखण्डानन्द जी व महानिर्वाण । मार्च के अन्त में नागपुर वापस आ गये। नागपुर में संघ शिक्षा वर्ग में सर्वाधिकारी फरवरी के अंत में सिंधी (वय-प्रदेश में कार्यकतांची की बैठक में उपस्थित रहे। २६ मार्च को संघ कार्य हेतु कलकत्ता गये। नागपुर संघ शिक्षा वर्ग के सर्वाधिकारी १३ के रक्षाबन्धन पर्व पर सरकार्यवाह पद पर नियुक्ति दि. २१ जून पू० डाक्टर बेडगेवार जी को मृत्यु ३ जुलाई सरसंचालक पद पर नियुक्ति सरकारी आदेश से सैनिक कार्यक्रमों पर पाबंदी उसी समय गणवेश में सफेद कमीज सफेद जूते मोजे मौजे आये नये-नये खेल का समावेशा २ से १९४७ तक संघ कार्य की व्यापक कार्यवद्ध की योजना रावलपिंडी झेलम (पंजाब) तथा पेशावर (सीमाप्रांत) में भव्य सार्वजनिक कार्यक्रम डॉक्टर हेडगेवार भवन का निर्माणा प. पू. श्री गुरु जी का निवास एवं कार्यालय इस भवन में स्थानांतरित हुआ। मार्च में पंजाब प्रांत का विस्तृत प्रवास। पंजाब रिलीफ कमेटी की स्थापना तीन हजार सहायता शिविरों की व्यवस्था। ५ से ८ अगस्त तक हैदराबाद व कराची में भव्य कार्यक्रमा १५ अगस्त स्वतंत्र प्राप्ति। १२ सितम्बर को सरदार पटेल और महात्मा गांधी से भेंट १६ से १९ अक्तूबर श्रीनगर कश्मीर में महाराजा हरिसिंह से भेंट। * #माधव सदाशिवराव गोलवरकर (श्री गुरू जी)
फरवरी को नागपुर में गिरफ्तारी ४ फरवरी को शासन द्वारा संघ पर प्रतिबंध, ५ फरवरी को पू. गुरुजी द्वारा संघ का विसर्जना हजारों कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी ६ अगस्त को कारागृह से मुक्तिा १६ अक्तूबर दिल्ली को प्रस्थान । १२ नवम्बर को सरकार्यवाह भैया जी दाणी द्वारा संघ कार्य प्रारम्भ करने की दृष्टि से लिखित आहवाना दिल्ली में पुनः गिरफ्तारी १४ नवम्बर को दिल्ली से नागपुर कारागृह लाया गया। बाद में सिवनी कारागृह में रखा गया। ९ दिसम्बर को मा० भैया जी दाणी के नेतृत्व में सम्पूर्ण देश में सत्याग्रहा २१ जनवरी सत्याग्रह स्थगित- श्री ग० वि० केतकर और श्री टी० आर० पी० शास्त्री द्वारा मध्यस्थता। १२ जुलाई को संघ से प्रतिबंध हटा। १२ जुलाई बैतूल कारागृह से बिना शर्त मुक्ति। नागपुर आगमन। हिन्दुस्थान समाचार एवं अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् की स्थापना १९ जुलाई को टी० आर० बी० शास्त्री से भेंट करने मद्रास गये बम्बई में सरदार पटेल से भेंट। देशव्यापी प्रवास प्रारम्भ तथा २१ अगस्त को दिल्ली में अभूतपूर्व स्वागता दि. ८ फरवरी कलकत्ता में “वास्तुहारा समिति” की स्थापना दिनांक 19 अगस्त असम के भूकम्प पीड़ितों की सहायतार्थ सेवा कार्य का प्रारम्भा भारतीय जनसंघ की स्थापना। बिहार में अकालग्रस्त सहायता समिति की स्थापना। #माधव सदाशिवराव गोलवरकर (श्री गुरू जी)
विद्या भारती एवं वनवासी कल्याण आश्रम की स्थापना। गोहत्या विरोध आन्दोलन- दि. ६ दिसम्बर के लगभग २ करोड़ हस्ताक्षरों का निवेदन राष्ट्रप्रति डॉ० राजेन्द्र प्रसाद को समर्पित किया। मार्च-अप्रैल सिन्धी (वर्धा) में लगभग २५० प्रमुख प्रचारकों की प्रवीण बैठका २१ जुलाई को पिताजी का निधन। भारतीय मजदूर संघ की स्थापना। इक्यानवी वर्षगांठ देशभर में समारोह मार्च इन्दौर में अखिल भारतीय कार्यकर्ताओं की बैठक ९ अप्रैल वर्ष प्रतिपदा पर नागपुर रेशम बाग में स्मृति मंदिर का उद्घाटन स्वयंसेवकों का अखिल भारतीय मध्य सम्मेलन १२ अगस्त को पूज्य माता जी का स्वर्गवासा विवेकानन्द जन्मशताब्दी समारोह। विवेकानन्द शिला स्मारक समिति की स्थापना । भारत विकास परिषद् की स्थापना। कृष्ण जन्माष्टमी पर मुम्बई के संदीपनी आश्रम में विश्व हिन्दू परिषद् की स्थापना दि. ६ दिसम्बर भारत-पाक युद्धा प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री द्वारा आमंत्रित राष्ट्रीय नेताओं की बैठक में सहयोग अखिल भारतीय साहित्य परिषद् की स्थापना दि. २२, २३, २४ जनवरी प्रयाग में, विश्वहिन्दू परिषद् का सम्मेलना बह्मकपाल में स्वयं का आजकर्म अपने हाथ किया। भारतीय शिक्षण मण्डल की स्थापना। दि. 9 जुलाई मुम्बई में कैंसर का आपरेशना दि. २२ जुलाई को अस्पताल से वापस। #माधव सदाशिवराव गोलवरकर (श्री गुरू जी)
दि. २९ अक्तूबर से २ नवम्बर तक ठाणे में भारत के लगभग ४५० कार्यकर्ताओं की बैठका १९ दिसम्बर जनरल करिअप्पा द्वारा नागपुर में डॉ० मुंजे की प्रतिमा का अनावरणा २० अगस्त को दिल्ली में दीनदयाल शोध संस्थान का उद्घाटना दि. ४ फरवरी बंगलौर में अन्तिम सार्वजनिक कार्यक्रम दि. १४ मार्च प्रवास पूर्ण कर नागपुर वापस दि. २४-२५ मार्च नागपुर में अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में अपने इस अन्तिम भाषण में उपस्थित कार्यकर्ताओं को आश्वस्त करते हुए श्री गुरुजी ने कहा “ये सब (विद्यार्थी, राजनीति, मजदूर), “जो भिन्न-भिन्न काम है, उन सबका उद्दिष्ट एक ही है यह देश अपना है, यह समाज अपना है, यह राष्ट्र अपना है तथा इस राष्ट्र का श्रेष्ठ जीवन निर्माण करने के लिए विभिन्न क्षेत्रों के ये सब व्यवहार हो रहे हैं। राष्ट्र ही हमारा उपास्य है, उसी की सेवा में सब कार्य है। अपने सामने यह राष्ट्र न हो तो बाकी के व्यवहारों से भला हमें क्या करना है। ” #माधव सदाशिवराव गोलवरकर (श्री गुरू जी)
“साथ ही हमें यह ध्यान रखना चाहिये कि शाखा के बिना हम भिन्न-भिन्न कार्य नहीं कर पायेंगे। जहां अपनी शाखा अच्छी प्रकार से चलती है वहां पर कोई भी कार्य उठाया तो हम उसे निश्चयपूर्वक सफल कर सकते हैं। अतः संघ शाखा के कार्यक्रम, उसकी आचार पद्धति, स्वयंसेवकों का व्यवहार, स्वयंसेवकों का स्वभाव तथा उनका गुणोत्कर्ष आदि बातों की ओर हम ध्यान दें और उनका प्रसार तथा दृढीकरण करने का एकाग्र चित्त से प्रयत्न करें। इतना यदि हम लोग करेंगे तो सब क्षेत्रों में विजय प्राप्त करेंगे और जितना यह कार्य सुदृढ़ता से चलेगा और उसे हम एक अन्तः करण से करेंगे उतना अपने लिए सर्वदूर विजय ही विजय है।” दि. २ अप्रैल आगामी व्यवस्था के संबंध में तीन पत्र लिखकर सीलबंद कर रखें। दि. १९ से ३१ मई तक संघ शिक्षा वर्ग के शिक्षार्थियों के साथ गटशः वार्तालाप । ५ जून रात्रि ९-०५ पर महानिर्वाण ६ जून सायंकाल रेशमबाग में अन्तिम संस्कार। #माधव सदाशिवराव गोलवरकर (श्री गुरू जी)
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