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युधिष्ठिर कौन है इनके चर्चे विश्व मे क्यो हो रहे है ?आओ जाने

Posted on March 29, 2023December 12, 2023 by Writer Swami

युधिष्ठिर पांडवों में सबसे बड़े भाई थे। धर्मराज युधिष्ठिर के नाम से विख्यात थे। वे एक सरल चित्त तथा शांति प्रिय व्यक्ति थे। कुछ लोग उनकी शांति-प्रियता को कायरता मानते थे। उनके धैर्यशील एवं क्षमावान स्वभाव के कारण उन्हें बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। (बहुत बड़ा मूल्य चुकाना पड़ा)।

जब अर्जुन ने अपने बल पर द्रोपदी का वरण कर लिया (स्वयंवर में जीत लिया), युधिष्ठिर की धर्म की संकल्पना, जो अब तक कभी सुनी नहीं गई थी, के कारण द्रोपदी को भाइयों की एकता के नाम पर, पाँचों की पत्नी बनकर रहना पड़ा। द्रोपदी जब युधिष्ठिर के साथ पत्नी के रूप में होती तो सभी के लिए माँ समान होती। कितनी विडंबना है कि इन्हीं पाँच भाइयों की पत्नी को अर्ध नग्न अवस्था में घसीटा जा रहा था, भीम ने प्रतिकार करने का प्रयत्न किया। तो धर्म के नाम पर (क्योंकि वे सब जुए में हारकर दुर्योधन के दास बन चुके थे) युधिष्ठिर ने शांत कर दिया।

युधिष्ठिर के साथ जुए

युधिष्ठिर जुए के निमंत्रण को अस्वीकार कर सकते थे, खेल इस बात पर अड़ सकते थे कि खेल सीधा दुर्योधन के साथ खेला जाएगा। यदि दुर्योधन के स्थान पर अन्य व्यक्ति खेलने के लिए नियुक्त किया गया था, तो वे भी अपने स्थान पर किसी अन्य अधिक अनुभवी व्यक्ति को नामित कर सकते थे। इस जुए के खेल में युधिष्ठिर अपना सर्वस्व, अपना राज्य व संपत्ति, सभी भाइयों, स्वयं को, यहाँ तक कि अपनी पत्नी को हार गए तथा उन्हें खेल की शर्त के अनुसार वनवास का दंड भुगतना पड़ा।

आत्म-ग्लानि की भावना से पीड़ित होकर धृतराष्ट्र ने उन्हें उनका खोया हुआ राज्य एवं सर्वस्व लौटा दिया। एक बार जुए के दुष्परिणाम भुगतने के बाद भी उन्होंने उसी दिन, उसी समय उसी धोखेबाज टोली के साथ पुनः जुआ खेलना स्वीकार कर लिया। कोई भी सूझ-बूझ वाला व्यक्ति ऐसा नहीं करता, परन्तु युधिष्ठिर ने ऐसा ही किया।

जब पांडव वनवास के कष्ट सहन कर रहे थे,

सैंधव नरेश जयद्रथ वहाँ आया। अकस्मात उसने द्रोपदी को देखा। उसकी सुंदरता पर वह मुग्ध हो गया। उसने छल से द्रोपदी का अपहरण कर लिया। बाद में उसे ढूँढकर, उसे युद्ध में हराकर उसे बंदी बना लिया गया। उसे मृत्यु दंड देने के स्थान पर यह कहकर कि जयद्रथ उनकी चचेरी बहन (कौरवों की बहन) दुशाला का पति है, उसे क्षमादान देकर मुक्त कर दिया गया। जयद्रथ को मुक्त करने की मूर्खता का परिणाम उन्हें युद्ध में भुगतना पड़ा। जयद्रथ ने ही पांडवों के पुत्र महारथी अभिमन्यु का छलपूर्ण ढंग से वध कर दिया।

दुर्योधन पाण्डवों को वनवास काल

में होने वाले कष्टों को अपनी आँखों से देखकर आनंदित होना चाहता था। अतः वह अपनी सेना लेकर जंगल की ओर चल पड़ा। मार्ग में गंधर्व डेरा डाले हुए थे। गंधर्वों के साथ दुर्योधन की सेना को युद्ध करना पड़ा। गंधर्वों ने सेना का विनाश कर दिया और दुर्योधन को बंदी बना लिया। युधिष्ठिर को इस घटना का पता चलने पर उन्होंने अपने भाइयों को दुर्योधन को मुक्त कराने का आदेश दिया। यह एक और बड़ी गलती थी।

अंत में जब वह स्वयं भी सत्ता के लिए लालायित हो गए तो उन्होंने स्वयं अपने ही मुख से बहुत बड़ा अधर्म का कार्य किया। उन्होंने अपने गुरु के सामने जानबूझ कर असत्य बोला कि “अश्वत्थामा मारा गया है” इस असत्य को सत्य समझकर द्रोण निश्चेष्ट एवं स्तब्ध हो गए (मूर्ति के समान) उन्होंने युद्ध क्षेत्र में ही समाधि लगा ली। तब धृष्टद्युम्न ने उन पर आक्रमण करके उनका शीश काट दिया। युधिष्ठिर का यह कृत्य (कर्म) किसी अन्य के द्वारा की गई हत्या ‘गुरु हत्या’ जैसा पापपूर्ण कृत्य था।

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