
लाला लाजपत राय जी का सम्पूर्ण जीवन परिचय जानने की इच्छा से आपने हमारे पेज का चयन किया उसके लिए आपका धन्यवाद और आपका स्वागत हैलाला लाजपत राय
लाला लाजपत राय जी का संझिप्त परिचय
बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी लाला लाजपत राय एक उत्कृष्ट वक्ता, श्रेष्ठ लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता, राजनैतिक नेता, शिक्षा शास्त्री, चिन्तक, विचारक एवं दार्शनिक थे। 1905 के बंगाल विभाजन ने उनको भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में गर्म दल के नेता के रूप में प्रतिष्ठित किया।
उन्होंने अपना सर्वस्व समाजसेवा और देशसेवा की वेदी पर न्यौछावर कर दिया था। इसीलिए भारतीय जनता ने उन्हें ‘पंजाब केसरी’ की उपाधि से भी सुशोभित किया।लाला लाजपत राय लाला जी का जन्म 28 जनवरी 1865 को अपने ननिहाल के गाँव दुढिके (जिला फरीदकोट, पंजाब) में हुआ था।
उनके पिता लाला राधाकृष्ण अग्रवाल लुधियाना जिले के जगराँव कस्बे के रहने वाले थे।लाला लाजपत राय लाहौर में अध्ययन के दौरान आर्यसमाज के सम्पर्क में आये। डीएवी कॉलेज, लाहौर के प्रथम प्राचार्य लाला हंसराज तथा प्रसिद्ध वैदिक विद्वान पं. गुरुदत्त साथ उन्होंने आर्यसमाज के कार्यक्रमों में भाग लिया।
आर्य समाज ने उन्हें इतिहास पर गर्व करना सिखाया और विदेशी शासन के प्रति उनके मन में विद्रोह उत्पन्न किया। उन्होंने गीता के बारे में ‘द मैसेज ऑफ ‘भगवद्गीता’ नामक एक छोटी पुस्तक लिखी थी। उनके विचार से गीता निराश व्यक्तियों को साहस की प्रेरणा देती है।
लाला जी ने शिवाजी, महाराणा प्रताप, गुरु गोविन्द सिंह और अशोक जैसे महानायकों की जीवनियाँ लिखकर हिन्दुओं को उनके प्राचीन गौरव का स्मरण कराया।लाला लाजपत राय लाहौर उनकी सार्वजनिक गतिविधियों का केन्द्र बना यहीं वे राजनैतिक आंदोलनों से भी जुड़े।
लाला लाजपत राय उन्होंने अनेक विदेश यात्रायें की और पश्चिमी देशों को भारत की राजनैतिक परिस्थितियों की सच्चाई से अवगत कराया। लोकमान्य तिलक और विपिन चन्द्र पाल के साथ मिलकर उन्होंने कांग्रेस में उग्र विचारों का प्रवेश कराया। वे जनता को यह विश्वास दिलाने में सफल हो गये थे
कि केवल प्रस्ताव पास करने और गिड़गिड़ाने से स्वतंत्रता मिलने वाली नहीं है। जब 1896 तथा 1899 में उत्तर भारत में भयंकर अकाल पड़ा तो एक सच्चे जनसेवक के रूप में लाला जी ने अपने साथी लाला हंसराज के सहयोग से पीड़ित लोगों की तन-मन-धन से सहायता की।
जिन अनाथ बच्चों का ईसाई पादरी धर्म परिवर्तन करना चाहते थे, उन्हें इन मिशनरियों के चंगुल से बचाकर फिरोजपुर तथा आगरा के आर्य अनाथालयों में भेजा। इसके अतिरिक्त 1905 के कांगड़ा भूकम्प व 1907-08 में उड़ीसा, म.प्र. तथा संयुक्त प्रांत में अकाल पड़ने पर भी उन्होंने पीड़ित लोगों की हर सम्भव मदद की।
यद्यपि लाला जी हिन्दू-मुस्लिम एकता के समर्थक थे,लाला लाजपत राय परन्तु कांग्रेस की बढ़ती मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति व मुसलमानों में साम्प्रदायिकता के बढ़ते आवेग को वे हिन्दुओं और राष्ट्र के लिए घातक मानते थे। लाला जी इस बात से भी चिन्तित थे कि मुस्लिम और ईसाई संगठन हिन्दुओं का बड़े पैमाने पर धर्म- परिवर्तन करा रहे थे।
इन परिस्थितियों के चलते लाला लाजपत राय हिन्दू महासभा की ओर आकृष्ट हुए। स्वामी श्रद्धानन्द व पं. मदनमोहन मालवीय के साथ मिलकर उन्होंने हिन्दू संगठन, अछूतोद्धार व शुद्धि जैसे कार्यक्रम चलाये।सन् 1928 में नियुक्त साइमन कमीशन के भारत आगमन पर उसके विरुद्ध प्रदर्शनकारी जनता का नेतृत्व लाला जी कर रहे थे।
प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया। एक अंग्रेज सार्जेंट साण्डर्स ने लालाजी की छाती पर लाठियों से निर्मम प्रहार किये, जिससे उन्हें गंभीर चोट पहुँची। उसी दिन सायंकाल को लाहौर की एक विशाल जनसभा को सम्बोधित करते हुए लालाजी ने गर्जना की ‘मेरे शरीर पर पड़ी लाठी की प्रत्येक चोट अंग्रेजी साम्राज्य के ताबूत की कील का काम करेगी।’
इस घातक प्रहार से आहत लालाजी ने 18 दिन तक विषम ज्वर की पीड़ा भोग कर 17 नवम्बर 1928 को परलोक के लिए प्रस्थान किया। लालाजी के बलिदान के पश्चात् देशबन्धु चितरंजन दास की पत्नी बसंती देवी ने एक वक्तव्य जारी कर कहा कि ‘क्या देश में कोई ऐसा क्रांतिकारी युवक नहीं है, जो लाला जी की मौत का बदला ले सके ?’
जब यह बात सरदार भगत सिंह तक पहुँची तो उन्होंने लालाजी पर लाठियों से प्रहार करने वाले साण्डर्स को मारकर उस महान् देशभक्त को श्रद्धांजलि दी ।पादरी धर्म परिवर्तन करना चाहते थे, उन्हें इन मिशनरियों के चंगुल से बचाकर फिरोजपुर तथा आगरा के आर्य अनाथालयों में भेजा।
इसके अतिरिक्त 1905 के कांगड़ा भूकम्प व 1907-08 में उड़ीसा, म.प्र. तथा संयुक्त प्रांत में अकाल पड़ने पर भी उन्होंने पीड़ित लोगों की हर सम्भव मदद की। यद्यपि लाला जी हिन्दू-मुस्लिम एकता के समर्थक थे, परन्तु कांग्रेस की बढ़ती मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति व मुसलमानों में साम्प्रदायिकता के बढ़ते आवेग को वे हिन्दुओं और राष्ट्र के लिए घातक मानते थे
। लाला जी इस बात से भी चिन्तित थे कि मुस्लिम और ईसाई संगठन हिन्दुओं का बड़े पैमाने पर धर्म- परिवर्तन करा रहे थे। इन परिस्थितियों के चलते लाला लाजपत राय हिन्दू महासभा की ओर आकृष्ट हुए। स्वामी श्रद्धानन्द व पं. मदनमोहन मालवीय के साथ मिलकर उन्होंने हिन्दू संगठन, अछूतोद्धार व शुद्धि जैसे कार्यक्रम चलाये।
सन् 1928 में नियुक्त साइमन कमीशन के भारत आगमन पर उसके विरुद्ध प्रदर्शनकारी जनता का नेतृत्व लाला जी कर रहे थे। प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया। एक अंग्रेज सार्जेंट साण्डर्स ने लालाजी की छाती पर लाठियों से निर्मम प्रहार किये, जिससे उन्हें गंभीर चोट पहुँची।
उसी दिन सायंकाल को लाहौर की एक विशाल जनसभा को सम्बोधित करते हुए लालाजी ने गर्जना की ‘मेरे शरीर पर पड़ी लाठी की प्रत्येक चोट अंग्रेजी साम्राज्य के ताबूत की कील का काम करेगी।’ इस घातक प्रहार से आहत लालाजी ने 18 दिन तक विषम ज्वर की पीड़ा भोग कर 17 नवम्बर 1928 को परलोक के लिए प्रस्थान किया।
लालाजी के बलिदान के पश्चात् देशबन्धु चितरंजन दास की पत्नी बसंती देवी ने एक वक्तव्य जारी कर कहा कि ‘क्या देश में कोई ऐसा क्रांतिकारी युवक नहीं है, जो लाला जी की मौत का बदला ले सके ?’ जब यह बात सरदार भगत सिंह तक पहुँची तो उन्होंने लालाजी पर लाठियों से प्रहार करने वाले साण्डर्स को मारकर उस महान् देशभक्त को श्रद्धांजलि दी ।
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