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वासुदेव बलवन्त फड़के कौन है इनके चर्चे विश्व मे क्यो हो रहे है ?आओ जाने

Posted on February 14, 2023December 12, 2023 by student
वासुदेव बलवन्त फड़के

वासुदेव बलवन्त फड़के जी का सम्पूर्ण जीवन परिचय जानने की इच्छा से आपने हमारे पेज का चयन किया उसके लिए आपका धन्यवाद और आपका स्वागत हैवासुदेव बलवन्त फड़के

वासुदेव बलवन्त फड़के जी का संझिप्त परिचय

मातृभूमि के लिये सर्वस्व समर्पण कर मृत्यु को गले लगाने वाले वासुदेव बलवन्त फड़के का जन्म 4 नवम्बर, 1845 ई. को हुआ था। वासुदेव देशभक्तों से बहुत प्रभावित थे। महादेव गोविंद रानाडे के शब्द “अपने देश की स्वाधीनता के लिये नौजवानों को फिर से महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी बनकर दिखाने की जरुरत हैं।” हमेशा उनके कानों में गूंजते रहते थे।

फड़के पूना में फौज के वित्त विभाग में सेवारत थे। एक दिन उन्हें अपनी माताजी के गम्भीर रूप से बीमार होने का समाचार मिला। चिन्तित फड़के ने अपने अंग्रेज अधिकारी से एक सप्ताह की छुट्टी मांगी, परन्तु उसने एक दिन की छुट्टी देने से भी इंकार कर दिया। फड़के ने तुरन्त अपना त्यागपत्र लिखा और अंग्रेजी साहब की मेज पर पटक कर अपने गाँव की ओर दौड़ लगा दी। फड़के अपने गाँव शिरढौन जा पहुँचा, परन्तु दुर्भाग्य से उसकी माता बच नहीं सकी।

उनका मन से उठा। परन्तु शीघ्र ही उनके अन्दर देशभक्ति हिलोरे मारने लगी। “क्या हुआ जो मेरी माँ मर गई ? देर-सबेर सभी की माताएँ मरती हैं। कौन बचा सका है अपनी माँ को ? पर एक और माँ है वासुदेव बलवन्त फड़के- भारत माता। जिसे हम सबको मिलकर बचाना चाहिये। अंग्रेजों ने भारत माता को गुलामी की बेड़ियों से जकड़ रखा है। हमें इन बेड़ियों को तोड़ना होगा।”

इस विचार को संकल्प के रूप में धारण कर वह हमेशा के लिये अपना गाँव छोड़कर चल दिया, अब उस गाँव के स्थान पर उसकी दृष्टि में समूचा देश था- भारत देश ।फड़के ने अंग्रेजों की असीम ताकत को देखते हुए छापामार युद्ध करने का निर्णय लिया। उसने अनेक वन्य जातियों जैसे भीम, रामोशी और नाईक के युवकों को संगठित कर उन्हें सहयाद्रि की पहाड़ियों पर छापामार युद्ध का प्रशिक्षण दिया। हाथ में अन्न लेकर ये युवक दत्तात्रेय भगवान की मूर्ति के सम्मुख स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा लेते थे।

लोग फड़के को “शिवाजी द्वितीय” के नाम से पुकारने लगे। स्वराज्य के युद्ध के लिये पहली आवश्यकता शस्त्रों की थी।वासुदेव बलवन्त फड़के अंग्रेजों के खजानों और शस्त्रागारों को लूटा जाने लगा। धन की पूर्ति के लिये वह सेठ-साहूकारों के यहाँ भी डाके डालने से नहीं चूकता था। जो कुछ वह लूटता उसकी रसीद मालिक को दे आता। उसका कहना था कि देश के स्वाधीन होने पर लूटा हुआ धन वह ब्याज सहित लौटा देगा।

सन् 1876-77 में महाराष्ट्र में पड़े भयंकर अकाल के कारण हजारों लोग भूख-प्यास से दम तोड़ रहे थे। ऐसे में फड़के अंग्रेजों के भण्डार गृहों को लूट- लूट कर गरीबों का पेट भरने लगा। उसने कई सरकारी भवन जला डाले तथा अनेक अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया। ऐसा लगता था. जैसे महाराष्ट्र के सात जिलों में अंग्रेजों की हुकूमत पलटकर फड़के की हुकूमत कायम हो गई हो। उसने जेलों पर धावा बोलकर कैदियों को छुड़ाकर अपनी सेना में शामिल कर लिया था।वासुदेव बलवन्त फड़के

ब्रिटिश सत्ता लड़खड़ाने लगी, फड़के के आतंक से अंग्रेजों की नींद हराम हो गई। बम्बई के गर्वनर रिचर्ड टैंपल ने फड़के को पकड़ने या मारने वाले को पाँच हजार का इनाम घोषित कर दिया। दूसरे दिन फड़के ने भी गवर्नर का सिर काट लेने वाले को दस हजार रुपये देने के पोस्टर लगा दिये। बेचारे गवर्नर महोदय ने बाहर घूमना-फिरना ही बंद कर दिया। सपने में भी उसे फड़के नजर आता।वासुदेव बलवन्त फड़के

अंग्रेजों व हैदराबाद के निजाम की फौजे फड़के का पीछा करने लगीं। निरन्तर संघर्षों के कारण फड़के थकान व बुखार से पीड़ित हो गये। अन्ततः मेजर डेनियल के नेतृत्व में अंग्रेज सेना ने उन्हें बंदी बना लिया। राजद्रोह का मुकदमा चलाकर उन्हें आजन्म कारावास का दण्ड सुनाया गया। फड़के को खतरनाक कैदी मानते हुए भारतभूमि से दूर विदेश ले जाकर अदन की जेल में रखा गया। मातृभूमि की कुछ मिट्टी अपने साथ लेकर वे जहाज पर बैठ गये।

वहाँ भी वे अदन की जेल तोड़कर भाग निकले परन्तु विदेश होने के कारण पकड़े गये। जेल में भीषण अत्याचार सहते-सहते उन्हें टी.बी हो गयी, परन्तु जेल प्रशासन ने दवा का प्रबन्ध नहीं किया। अदन जेल में ही 17 फरवरी 1883 को इस वीर ने प्राण त्याग दिये। मृत्यु के समय उनके हाथ में एक पुड़िया मिली, जिसमें भारतभूमि की मिट्टी थी।

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