
वीर बन्दा बैरागी जी का सम्पूर्ण जीवन परिचय जानने की इच्छा से आपने हमारे पेज का चयन किया उसके लिए आपका धन्यवाद और आपका स्वागत हैवीर बन्दा बैरागी
वीर बन्दा बैरागी जी का संझिप्त परिचय
काश्मीर राज्य के राजौरी नामक गाँव में 27 अक्टूबर सन् 1670 को एक राजपूत परिवार में बालक लक्ष्मणदेव का जन्म हुआ। अपनी माता से वीरों के किस्से सुन-सुन कर बड़ा हुआ यह बालक अचूक निशानेबाज था जब यह 14 वर्ष का थावीर बन्दा बैरागी तो एक बार शिकार करते समय इसके हाथों से एक हिरणी का वध हो गया।
मरते-मरते हिरणी ने दो बच्चों को जन्म दिया, जो लक्ष्मणदेव की आँखों के सामने ही तड़प-तड़प कर मर गये। इस दृश्य ने लक्ष्मणदेव के हृदय को झकझोर दिया। वह वहीं तीर-कमान फेंक कर घर के बजाय पाप मुक्ति का उपाय ढूंढने चल पड़ा। जानकीदास नाम के संत ने उन्हें दीक्षा दी और वह लक्ष्मणदेव से माधोदास वैरागी बन गया।
गोदावरी नदी के किनारे नान्देड़ (महाराष्ट्र) पहुँचकर उन्होंने वहाँ आश्रम बनाकर तपस्या प्रारम्भ कर दी।वीर बन्दा बैरागी जल्दी ही माधोदास की सिद्धियों व चमत्कारों की ख्याति दूर-दूर तक फैल गयी।गुरु गोविन्द सिंह के चारों बेटों का बलिदान हो चुका था।वीर बन्दा बैरागी गुरुजी दक्षिण भारत की यात्रा पर थे, वहीं पर सन् 1707 में माधोदास की गुरुजी से भेंट हुई।
गुरुजी ने माधोदास से कहा, “देश, धर्म पर घोर आपत्ति है, हिन्दू समाज को तुम्हारी आवश्यकता है।’ माधोदास ने चरणों में शीश झुकाकर कहा- ‘आदेश दें गुरुवर, मैं आपका बन्दा हूँ।” गुरुजी ने बन्दा का समर्पण स्वीकार करते हुए कहा- “तलवार उठाकर चले जाओ और मलेच्छ संस्कृति और सभ्यता बढ़ने मत दो।’
गुरुजी ने बैरागी को खड्ग, पाँच तीर व ध्वज प्रदान कर पंजाब की ओर रवाना किया और पंजाब के लोगों के नाम एक पत्र भी दिया कि “हमारा भेजा हुआवीर बन्दा बैरागी बन्दा बहादुर दुष्टों का नाश करने आ रहा है। सभी योद्धा उसका साथ दें और उसकी आज्ञाओं का पालन करें।’
बन्दा बैरागी ने मार्ग में ही सब प्रकार के साधन जुटाते हुए सेना संगठित की तथा भरतपुर होते हुए पंजाब पहुँचते ही शत्रु पर हमला कर दिया। बन्दा ने फतेहाबाद, सिरसा, कैथल, भिवानी और सोनीपत पर अधिकार कर लिया। मार्ग में समारा, मालेर, कोटला, पटियाला, पठानकोट व अन्य नगरों को भी जीत लिया।
गुरु पुत्रों के कातिल सामल बेग और बरसल बैग की हत्या की। सरहिन्द की हत्या पर धावा बोल गुरु पुत्रों को दीवार में जिंदा चिनने की आज्ञा देने वाले सूबेदार बहादुर वजीर खाँ को जिन्दा जला दिया व शहर को मटियामेट कर दिया गया। बैरागी ने गुरु गोविन्द सिंह को धोखा देने वाले अली हुसैन एवं गुरु तेग करने वाले जलालुद्दीन व उसके दस हजार साथियों को मार गिराया।
मुसलमानों ने षड्यंत्र के तहत बन्दा को भेटे अर्पित की परन्तु बन्दा उनकी चाल समझ गया और उन सबका कत्ल करवा दिया। उस स्थान का नाम कत्लगढ़ पड़ गया। बन्दा ने लगातार 8 वर्ष तक युद्ध कर अत्याचारी शासकों के होश ठिकाने लगा दिये। मुगल थर-थर काँपने लगे थे।
फूट से साथी मुगलों से जा बन्दा से भयभीत मुगल बादशाह फर्रुखशियर ने उसके साथियों में डालने का जाल बुना। जिसमें फँस कर बन्दा के बहुत मिले और बन्दा को धोखे से बंदी बना लिया गया। 19 जून 1716 को उसे लोहे के पिंजरे में बंद कर दरबार में पेश किया गया। उसके साथियों के सिर काटकर भालों की नोंकों पर टांग दिये गये।
बन्दा के 4 वर्षीय की हत्या करके उसका कलेजा निकालकर बंदा के मुँह में ठूंस दिया गया। पहले छुरे से बन्दा की एक आँख निकाली, बायाँ पैर काटा, फिर हाथ काटे। गरम लोहे की सलाखों से शरीर गोदा गया। बाद में बन्दा की बोटी-बोटी काटी गयी व उसका सिर काटकर शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिये गये। इतने कष्ट सहते हुए भी बन्दा ने इस्लाम स्वीकार नहीं किया और वीरगति प्राप्त कर बन्दा बैरागी भारतीय इतिहास में ‘बन्दा बहादुर’ नाम से प्रसिद्ध हुआ।
और अधिक जानकरी के लिया यहाँ क्लिक करे https://rsssangh.in/ और हमारे पेज से जुड़ने के लिया यहाँ क्लिक करे http://rsssang.in