
वीर सावरकर जी का सम्पूर्ण जीवन परिचय जानने की इच्छा से आपने हमारे पेज का चयन किया उसके लिए आपका धन्यवाद और आपका स्वागत हैवीर सावरकर
वीर सावरकर जी का संझिप्त परिचय
जो वर्षों तक लड़े जेल में उनकी याद करें, जो फाँसी पर चढ़े खेल में उनकी याद करें। याद करें काला पानी को, अंग्रेजों की मनमानी को, कोल्हू में जुट तेल पेरते, सावरकर की बलिदानी को।।वीर सावरकर
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की ये पंक्तियाँ अनन्य देशभक्त, क्रांतिकारी वीर सावरकर के अदम्य साहस और भारतमाता के प्रति सर्वस्व समर्पित कर देने के उनके जज्बे का स्मरण कराती है।
वीर सावरकर का व्यक्तित्व बहुआयामी था, वे क्रांतिकारी होने के साथ-साथ मौलिक चिन्तक, समाज सुधारक, इतिहासकार व लेखक भी थे।
28 मई 1883 को जन्म के बाद अपने माता-पिता से शिवाजी, महाराणा प्रताप तथा पेशवाओं की वीर गाथाएँ सुन- सुनकर बड़े हुए वीर सावरकर के व्यक्तित्व ने भारतीय युवाओं के हृदय में क्रांति की ज्वाला जगा दी थी।वीर सावरकर
बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में जब स्वराज्य का नाम लेना भी देशद्रोह माना जाता था, पूर्ण स्वतंत्रता की पहली आवाज सावरकर ने ही बुलन्द की थी।
विदेशी वस्त्रों की पहली होली पूना में सावरकर जी ने 1905 में जलाई। अंग्रेजों ने वन्दे मातरम् बोलने व लिखने पर प्रतिबंध लगा रखा था,
ऐसे में भी लन्दन में 1857 की क्रांति के उपलक्ष में आयोजित स्वर्ण जयन्ती कार्यक्रम के लिये छापे गए आमंत्रण पत्र पर ‘वन्दे मातरम्’ लिखकर उन्होंने अंग्रेजों को खुली चुनौती दी।
बैरिस्टरी उत्तीर्ण करने के बाद ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति वफादार रहने की शपथ लेने से इंकार करने पर उन्हें अपनी बैरिस्टर डिग्री से वंचित रहने का गौरव भी प्राप्त है।
सावरकर द्वारा लिखित ‘1857 का स्वतंत्रता संग्राम’ नामक ओजस्वी पुस्तक विश्व की प्रथम पुस्तक है, जिससे भयभीत अंग्रेज सरकार ने उसके प्रकाशन से पहले ही प्रतिबंध लगा दिया था।वीर सावरकर
स्टुटगार्ड नामक स्थान पर अन्तर्राष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन में मैडम भीखाजी कामा के द्वारा सन् 1007 में फहरवाया था। इंग्लैण्ड में सावरकर जी को गिरफ्तार कर मुकदमा चलाने के लिये पानी के जहाज द्वारा भारत लाया जा रहा था।
उस जहाज से गहरे समुद्र में छलांग लगाकर अंग्रेजी सैनिकों को चकमा देने के उनके साहसिक प्रयास ने सारे विश्व में खलबली मचा दी थी। अंग्रेजी सैनिकों की गोलियों की बौछार के बीच में वे तैरते हुए फ्रांस की भूमि पर पहुँच गए थे।
अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध क्रांति का बिगुल बजाने के अपराध में एक ही जन्म में दो- दो आजन्म सश्रम कारावास की सजा पाने वाले सावरकर न केवल पहले अपितु अकेले भारतीय थे।
उनकी सारी सम्पत्तियाँ अंग्रेजों ने जब्त कर ली थी, उनके परिवार को भीषण कष्टों का सामना करना पड़ा। उनके अन्य दो भाइयों को भी क्रांति में भाग लेने पर अंग्रेजों ने जेलों में डाल दिया था।
खतरनाक मुजरिम मानते हुए सावरकर को काला पानी (सैल्यूलर जेल, अण्डमान व निकोबार) भेज दिया गया। जेल में सावरकर को कोल्हू में बैल की तरह जोतकर तेल पिरवाया जाता था।
मूँज कुटवाकर जब तक हाथों से खून न टपकने लगे उसकी रस्सी बटवाई जाती थी। बात-बात पर तन्हाई में बंद कर दिया जाता था।
उनके बड़े भाई गणेश सावरकर भी उन दिनों सैल्युलर जेल में ही बंद थे परन्तु वर्षों तक दोनों भाइयों को मिलने तक नहीं दिया गया। जेल में अमानवीय अत्याचारों का वर्णन सावरकर जी ने ‘माझी जन्मठेप’ (मेरा आजीवन कारावास) नामक पुस्तक में किया है। लेखन सामग्री के अभाव में उन्होंने जेल की कोठरी की दीवारों पर कीलों और काँटों की मदद से ‘कमला काव्य’ जैसी उत्कृष्ट कृति की रचना की।
कालापानी में भीषण शारीरिक और मानसिक यातनाएँ सहते हुए भी सावरकर जी ने अपनी प्रबल देशभक्ति की ज्योति को जगाए रखा। यह अत्यंत खेद का विषय है कि इतने कष्टों व त्याग के बाद भी सावरकर जी को कांग्रेस द्वारा अनेक बार उपेक्षित, अपमानित व प्रताड़ित किया गया। हालांकि यह अद्भुत क्रांतिवीर 26 फरवरी 1966 को हमेशा-हमेशा के लिये विदा हो गया परन्तु उनका चरित्र भारतीय युवाओं को युगों-युगों तक प्रेरित करता रहेगा।
कालापानी में भीषण शारीरिक और मानसिक यातनाएँ सहते हुए भी सावरकर जी ने अपनी प्रबल देशभक्ति की ज्योति को जगाए रखा। यह अत्यंत खेद का विषय है कि इतने कष्टों व त्याग के बाद भी सावरकर जी को कांग्रेस द्वारा अनेक बार उपेक्षित, अपमानित व प्रताड़ित किया गया। हालांकि यह अद्भुत क्रांतिवीर 26 फरवरी 1966 को हमेशा-हमेशा के लिये विदा हो गया परन्तु उनका चरित्र भारतीय युवाओं को युगों-युगों तक प्रेरित करता रहेगा।
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