हे मातृभूमि तेरे-संघ गीत
हे मातृभूमि तेरे चरणों में सर नवाऊँ, मैं भक्ति भेंट अपनी तेरी शरण में लाऊँ । हे..
माथे पे तू हो चन्दन सीने पे तू हो माला, जिह्वा पर गीत तू हो मैं तेरा नाम गाऊँ । हे…….
जिससे सपूत उपजे श्री रामकृष्ण जैसे, उस तेरी धूलि को मैं निज शीश पे चढ़ाऊँ । हे..
तेरे ही काम आऊँ तेरा ही मन्त्र गाऊँ, मन और देह तुझ पर बलिदान में चढ़ाऊँ। हे………
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सच्चा वीर बनादे मां-संघ गीत
सच्चा वीर बनादे माँ सच्चा वीर बनादे माँ।
ध्रुव जैसी मुझे भक्ति दे दे अर्जुन जैसी शक्ति दे दे, गीता ज्ञान सुना दे माँ- सच्चा वीर बना दे माँ ।।१।।
वीर हकीकत में बन जाऊँ धर्म पे अपना शीश कटाऊँ, ऐसी लगन लगा दे माँ सच्चा वीर बना दे माँ १२||
गुरू गोविन्द सा त्यागी बना दे शिवाजी जैसी आग लगादे, हथ तलवार थमा दे माँ- सच्चा वीर बना दे माँ।।
केशव सा ध्येयनिष्ठ बना दे माधव सा मुझे ज्ञान करा दे, जीवन देश पर हो बलि माँ- सच्चा वीर बना दे माँ।।३।।
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आसेतु हिमाचल सारा-संघ गीत
आसेतु हिमाचल सारा, हिन्दु-हिन्दु मेरा अपना ।
भारतीय जन सिन्धु का, बिन्दु-बिन्दु मेरा अपना ।।
इस पवित्रतम धरती का, मैं सैनिक, सेवक, भक्त, इस उदारतम संस्कृति का, नस-नस में बहता रक्त।
अभिमान जिसे माटी का, बन्धु-बन्धु मेरा अपना ।।१।।
सरिताएं पर्वत वायु, सूर्य-चन्द्र, अम्बर प्यारा, ऋतुराज यहां के प्रिय हैं, प्रिय वर्षा की जलधारा ।
बगिया के फल फूलों का, गन्ध-गन्ध मेरा अपना ।।२।।
हो भले विविध मत पंथ, भिन्न प्रान्त भाषा विविधा, ऊँच-नीच भेद मन में, हो समाप्त सारी दुविधा ।
इस विराट राष्ट्र पुरुष का, बाहु-बाहु मेरा अपना । । ३ । ।
तन, मन, धन अर्पण मेरा, प्रिय जननी के चरणों में, कर्तृत्व, पराक्रम, विद्या, माता के पद पद्मों में।
काँटों के पथ पर बढता, पग-पग यह मेरा अपना ।। ४ ।।
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प्राणों से भी प्यारा है-संघ गीत
प्राणों से भी प्यारा है, यह भारत देश हमारा है।
भारत देश हमारा है यह प्राणों से भी प्यारा है।।
मातृभूमि यह पितृभूमि यह जगती में अवतारी है।
स्वर्गलोक से भी बढ़कर है तीन लोक से न्यारी है।
चांद सितारों ने, ऋतुओं ने इसका गात्र संवारा है।
इसका गात्र संवारा है यह प्राणों से भी प्यारा है ।।१।।
रणवीरों ने रिपुमुण्डों से माता का श्रृंगार किया।
संतों ने मुनियों ने जग को ज्ञान दिया उपकार किया।
भारत माता की जय होवे ऐसा यत्न हमारा है।
ऐसा यत्न हमारा है यह प्राणों से भी प्यारा है ।।२।।
सरिता से सीखा है हमने पल-पल बढ़ते जाना है।
दीपक से सीखा है नित ही तिल-तिल जलते जाना है।
ज्योतित रहना ज्योतित करना, पहला कर्म हमारा है।
पहला कर्म हमारा है, यह प्राणों से भी प्यारा है । । ३ । ।
जन-जन में एकात्म जगाकर संगठन में लायें हम।
हिन्दू-हिन्दू भाई-भाई ऐसी क्रांति मचायें हम।
पुनः परम वैभव पाने का पावन ध्येय हमारा है ।
पावन ध्येय हमारा है यह प्राणों से भी प्यारा है ।। ४ ।।
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विश्व गुरु तव अर्चना में-संघ गीत
विश्व गुरु तव अर्चना में, भेंट अर्पण क्या करें?
जबकि तन-मन-धन तुम्हारे, और पूजन क्या करें?
प्राची की अरुणिम छटा है, यज्ञ की आभा विभा है।
अरुण ज्योतिर्मय ध्वजा है, दीप दर्शन क्या करें? ।19।।
वेद की पावन ऋचा से, आज तक जो राग गूंजे।
वन्दना के उन स्वरों में तुच्छ वन्दन क्या करें ? ।।२।।
राम से अवतार आएं, कर्ममय जीवन चढ़ाए।
अचिर तन तेरा चलाएं, और अर्चन क्या करें? ।।३।।
पत्र फल और पुष्प जल से भावना ले हृदय तल से ।
प्राण के पल-पल विपल से, आज आराधन करे? ।।४ ।।
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प्राची के मुख की अरुण ज्योति-संघ गीत
प्राची के मुख की अरुण ज्योति, यह भगवाध्वज फहरे। यह भगवाध्वज पहरे ।।
यह वह्नि शिखा का वेश लिए, गत वैभव का संदेश लिए। हिन्दू संस्कृति का अचल रूप, यह भगवा ध्वज फहरे ।।१।।
भारत माता का उच्च भाल, आर्यों के उर की अग्नि ज्वाल । हिन्दू संस्कृति का अमर चिह्न, यह भगवा ध्वज फहरे ।। २ ।।
यह चन्द्रगुप्त कर की कृपाण, विक्रमादित्य का शिरस्त्राण । इस आर्य देश का कठिन कवच, यह भगवा ध्वज फहरे ।।३।।
बप्पा रावल की शान यही, चौहान नृपति का मान यही । राणा के त्यागों का प्रतीक, यह भगवा ध्वज फहरे । । ४ । ।
बन्दा गुरू के बलिदानों से, रक्षित फत्ता के प्राणों से । नीतिज्ञ शिवा का विजय केतु, यह भगवा ध्वज फहरे । । ५ । ।
दुर्दल विजितों की शक्ति प्रबल, उत्थान मार्ग का यह सम्बल। पथ भ्रष्ट जाति का ध्रुव तारा, यह भगवा ध्वज फहरे ।। ६ ।।
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भगवा ध्वज है अखिल राष्ट्र-गुरु-संघ गीत
भगवा ध्वज है अखिल राष्ट्र-गुरु, शत-शत इसे प्रणाम।
लेकर भगवा, ध्येय-मार्ग पर बढ़े चलें अविराम ।।
वैदिक ऋषियों के यज्ञों की इसमें दिखती ज्वाला, इसमें तो ऊषा ने अपना अरुण रंग है डाला।
इसका दर्शन कल्मष हरता, करता मन निष्काम ।। लेकर……..।।
यह आर्यों की विजय पताका, ऋषियों का वरवेश; त्याग और शुचिता का देता सबको शुभ संदेश ।
लौकिक, आध्यात्मिक उन्नति का अभय प्रेरणा-धाम लेकर ।।
गढ़ चित्तौड़ की जौहर ज्वाला इसमें जलती पाते, देख इसे बलिदान अनेकों याद हमें हो आते।
अर्जुन- – रथ और दुर्ग दुर्ग पर फहरा यह अविराम।।
लेकर…. इसकी छाया में न निराशा, भीति न कभी सताती, स्वर्णिम गैरिक छटा हृदय में अमिट शक्ति उपजाती ।
फहरायेंगे दशों दिशा में यह पावन सुख-धाम।।लेकर…..
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तव रज लागे माथे माता-संघ गीत
तव रज लागे माथे माता-२
उज्ज्वल कितने हैं तेरे कण, उत्तम हीरों सम-मन भावन चमकदमकलख जिनकी प्रतिक्षण, चन्द्र सूर्य शरमाते माता ।।१।। निशदिन दर्शन पूजन वन्दन, निशदिन कर तेरा अभिनन्दन प्राणि मात्र के जनम-जनम के सभी पाप कट जाते माता ।।२।।
ऋषि मुनिजन योगाभ्यासी ज्ञानी परम धाम के वासी तिहुँ लोक में जा जा तेरी महिमा के गुण गात माता ||३||
विपद घड़ी जब तुझ पर आती प्यार परीक्षा तब हो जाती कोटि-कोटि माँ तेरे लाडले दे मस्तक होते माता ।।४।।
दानव-मानव सब ललचाते रूप-रूप धर ईश भी स्वर्गलोक के सभी देवगण सदा पुष्प बरसाते माता ।।५।।
तव रज लागे माथे माता, तव रज लागे माथे माता। आते
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माँ की गोदी पावन गोदी-संघ गीत
माँ की गोदी पावन गोदी
पा धन्य हुआ सुध-बुध खोदी माँ की गोदी पावन गोदी मेरी जड़ता तेरा चेतन मैं चाँद तेरा चमके पूनम शीतल किरणें झिलमिल-२ है पूज्य परम है आनन्दवान कलियाँ महकी चिड़ियाँ चहकी झोली तेरी तूने भर दी पा धन्य हुआ….. ||१||
मेरी काया तेरी काया तुझसे ही यह जीवन पाया नौ मास सहे प्रेमाश्रु बहे कोमल-कोमल कर सहलाया फिर-फिर चूमा झूला झूमा पयधार मेरी चादर धो दी पा धन्य हुआ….. ॥२॥
मेरी धड़कन तेरी धड़कन मैं ही हूँ तेरा अन्तर्मन पग पैजनिया रुनझुन-२ जागा सोया लोरी सुन- २विकास योजना का
ऋषि मुनिजन योगाभ्यासी ज्ञानी परम धाम के वासी तिहुँ लोक में जा जा तेरी महिमा के गुण गात माता ||३|| विपद घड़ी जब तुझ पर आती प्यार परीक्षा तब हो जाती कोटि-कोटि माँ तेरे लाडले दे मस्तक होते माता ।।४।। दानव-मानव सब ललचाते रूप-रूप धर ईश भी स्वर्गलोक के सभी देवगण सदा पुष्प बरसाते माता ।।५।। तव रज लागे माथे माता, तव रज लागे माथे माता। आते
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माँ की गोदी पावन गोदी-संघ गीत
माँ की गोदी पावन गोदी पा धन्य हुआ सुध-बुध खोदी माँ की गोदी पावन गोदी मेरी जड़ता तेरा चेतन मैं चाँद तेरा चमके पूनम शीतल किरणें झिलमिल-२ है पूज्य परम है आनन्दवान कलियाँ महकी चिड़ियाँ चहकी झोली तेरी तूने भर दी पा धन्य हुआ….. ||१||
मेरी काया तेरी काया तुझसे ही यह जीवन पाया नौ मास सहे प्रेमाश्रु बहे कोमल-कोमल कर सहलाया फिर-फिर चूमा झूला झूमा पयधार मेरी चादर धो दी पा धन्य हुआ….. ॥२॥
मेरी धड़कन तेरी धड़कन मैं ही हूँ तेरा अन्तर्मन पग पैजनिया रुनझुन-२ जागा सोया लोरी सुन- २શુખાવા
मैं मुसकाया तू मुसकायी जब २ रोया तू भी रो दी पा धन्य हुआ….||३|| मेरी हलचल तेरे करतल उभरा यौवन व्यापी सिंहरन मदमाता सा तन मन भटका बिसराया तेरा संवेदन सुविचार भरो छः विकार हरो अब क्षमा करो विनती कर दी पा धन्य हुआ…..||४||
मैं हूँ बालक तू परिपालक तेरी भक्ति अति सुखदायक तू वैभव विद्या की देवी तू ही दुर्गा अरि संहारक तेरी महिमा गौरव गरिमा तेरी तेरे चरणों धर दी पा धन्य हुआ….. ॥५॥
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केशव – माधव अर्चना
राष्ट्र पुरुष हे !-संघ गीत
राष्ट्र पुरुष हे! युग पुरुष हे !! हो चुकी अब वेदि रचना ।
कोटिशः साधक खड़े हे, हव्य ले सर्वस्व अपना ।।
आप अब नव-मन्त्र बोलें, और धधके यज्ञ ज्वाला ।
एक इंगित पर चढ़ाएं, लक्ष जीवन पुष्प माला ।
प्राप्त वैभव मां निहारे, पूर्ण सबका दिव्य सपना । । १ । ।
आज स्वार्थ-द्वेष, कलुषित राष्ट्र का दुख पूर्ण जीवन ।
हो तुम्हारी प्रेरणा से, चिर-सुगंधित राष्ट्र कण-कण ।
हम करें सर्वस्व देकर, राष्ट्र की नव दिव्य रचना । । २ । ।
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जलते जीवन के प्रकाश में-संघ गीत
जलते जीवन के प्रकाश में, अपना जीवन तिमिर हटायें।
उस दधीचि की तपः ज्योति से, एक एक कर दीप जलायें।।
जल-जल दीप प्रखर तेजस्वी, अरुणाञ्चल माता का कर दे
अमृतमय, शोभामय, मधुमय, भारत-यू वैभव से भर दें
निजादर्श रख निज जीवन को हंसते-हंसते भेंट चढ़ायें ।।१।।
जग जगाये मातृभूमि को, पुण्य भूमि को जन्मभूमि को,
अर्पित कर दें जीवन की तरुणाई पावन देव भूमि को,
तन में शक्ति हृदय में बल हो प्रभु वह ज्योति पुनः प्रकटायें ||२||
नहीं चाहिए पद-यश गरिमा, सभी चढे माँ के चरणों में,
भारत माता की जय केवल शब्द पड़े जग के कर्णों में,
आशा रख विश्वास बढ़ा कर श्रद्धामय जीवन अपनायें । । ३ । ।
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अभिनन्दन हे! मौन तपस्वी-संघ गीत
अभिनन्दन हे ! मौन तपस्वी धीरोदात्त पुजारी ।
तुम्हें जन्म दे धन्य हुई माँ, भारत भूमि हमारी ।।
नव जीवन भर कर कण-कण में, बहा प्रेम रस धारा,
अरुण राग मन में भर केशव सार्थक नाम तुम्हारा ।
फिर बसंत की फूल रही है, आशा की फुलवारी । । १ । ।
आज जागरण का स्वर लेकर, मलियानिल के झोंके,
प्रेम हृदय में भरते जाते, कोटि-कोटि सुमनों के ।
नव प्रभात हो रहा चतुर्दिक, फैली फिर उजियारी । । २ । ।
बाची का मुख भी उज्ज्वल है, केशव किरणें फैली,
ला अंधेरा ले समेट कर अपनी चादर मैली ।
१४अंधकार अज्ञान तिमिर की मिटी कालिमा सारी।।३।।
देव तुम्हारा स्वागत करते, रोम-रोम हर्षित है.
देव तुम्हारे पद-पदमों पर श्रद्धांजलि अर्पित है।
केशव बन ध्रुव ज्योति दिखा दो, जन मानस भवहारी ।।५।।
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केशव महान् केशव महान्-संघ गीत
केशव महान् केशव महान्, किस विधि गायें तव यशोगान ।।
भारत में छाई घोर घटा, अज्ञान निरन्तर बरस रहा,
अब तुमने आ गोवर्धन धर, जन-जन जीवन नव मर्म दिया।
हिन्दू जन के रक्षक सुजान।। केशव महान्…… जब जकड़ खड़े थे
मोह पाश, हत शौर्य खड़ा भारत हताश ।
संगठन मन्त्र तब दे विराट, कर दिया सकल भ्रम का विनाश।
तुम धन्य-धन्य तव महत् ज्ञान ।।
केशव महान् नवजीवन की पावन गंगा,
तुमने निज साहस से सरसा,
मृत तुल्य पड़े इन सगर सुतों को शाप ताप से मुक्त किया।
व्रत भव्य भगीरथ लिया ठान ।।
केशव महान्.. कर यज्ञ कुण्ड निज तन अनूप,
निज रक्त जलाया घृत स्वरूप, दे दे आहुति प्रतिभा पौरुष,
तन मन सारा समिधा स्वरूप। कर गये सफल सब अनुष्ठान ।। केशव महान्…
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हे भारतीय पथ के प्रदीप-संघ गीत
तुम चले, चल पड़ी तरूणाई, युग ने ली नूतन अंगड़ाई,
कुंकुम थाल सजा कर में, स्वागत की उषा स्वयं आई,
जब तक न प्राप्त गंतव्य हुआ, तब तक न लिया तुमने विराम ।।१।।
हे युगादर्श, युग निर्माता, दे गये एक तुम मन्त्र नव्य,
นजिससे पायेगी भारत माँ फिर से अपना वह रूप भव्य,
है हिन्दू-भूमि के वीर पुत्र, हे युग पुरुषों में दिव्य नाम ।।२।।
बलिदान यज्ञ से पुनः आज, जागा है नव-पौरुष प्रचण्ड,
इस हिन्दू राष्ट्र की दिव्य-ध्वजा, फहरेगी फिर से दिग्दिग्न्त, उस दिन नम तारक थाल सजा,
आरती उतारेगा ललाम ।।३ ।।
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हर स्वयंसेवक हृदय में-संघ गीत
हर स्वयंसेवक हृदय में स्मृति संजोये है तुम्हारी।।
भूल सकता कौन निशि-दिन, राष्ट्र का चिंतन तुम्हारा, ध्येय के हित साधना में व्यस्त वह जीवन तुम्हारा।
प्राण का नेवैद्य दे माँ, आरती तुमने उतारी । । १ । ।
शिव सदृश, देखा जगत ने, वह गरल पीना तुम्हारा, देश के कल्याण के हित ही सतत जीना तुम्हारा ।
शील संयम से तुम्हारे, दानवों की शक्ति हारी ।। २ ।।
शत सहस्रों को तुम्हीं ने ध्येय पर चलना सिखाया। स्नेह देकर, बात देकर दीप सा जलना सिखाया।
रच दिये तुमने अनेकों मातृ-मन्दिर के पुजारी । । ३ । ।
देखते साक्षात् तुममें राष्ट्र को वर-वेश धारे, विजय का विश्वास लेकर चरण चलते थे तुम्हारे ।
राष्ट्र प्रतिमा त्याग तप की शक्ति से तुमने संवारी । ।४ ।।
देह नश्वर किन्तु कृति के रूप में तुम तो अमर हो, हर हृदय में राष्ट्र-निष्ठा की तुम्हीं उठती लहर हो ।
देखते अदृश्य नयनों से तुम्हीं कृतियाँ हमारी । । ५ । ।
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हमें वीर केशव मिले आप-संघ गीत
हमें वीर केशव मिले आप जब से।
नई साधना की डगर मिल गई है।
भटकते रहे ध्येय पथ के बिना हम,
न सोचा कभी देश क्या धर्म क्या है?
न जाना कभी पा मनुज-तन जगत में,
हमारे लिए श्रेष्ठतम कर्म क्या है?
दिया ज्ञान जब से मगर आपने है,
निरन्तर प्रगति की डगर मिल गई है।।१।।
समाया हुआ घोर तम सर्वदिक् था,
सुपथ है किधर कुछ नहीं सूझता था,
रांगी सुप्त थे घोर तम में अकेला,
हृदय आपका हे तपी जूझता था,
जलाकर स्वयं को किया मार्ग जगमग,
हमें प्रेरणा की डगर मिल गई है ।।२।।
बहुत थे दुःखी हिन्दू निज देश में ही,
युगों से सदा घोर अपमान पाया,
द्रवित हो गये आप यह दृश्य देखा,
नहीं एक पल को कभी चैन पाया,
हृदय की व्यथा संघ बन फूट निकली,
हमें संगठन की डगर मिल गई है।।३।।
करेंगे पुनः हम सुखी मातृ – भू को,
यही आपने शब्द मुख से कहे थे,
पुनः हिन्दू का हो सुयश गान जग में,
१७संजोये यही स्वप्न पथ पर बढ़े थे,
जला दीप ज्योतित किया मातृ मन्दिर,
हमें अर्चना की डगर मिल गई है ।।४।।
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चाहिए आशीष माधव-संघ गीत
चाहिए आशीष माधव, नम्र गुरूवर प्रार्थना।।
देव इंगित पर तुम्हारे, ध्येय पथ पर बढ़ रहे हैं,
आपसे ज्योतित, अनेकों दीप अविचल जल रहे हैं,
राष्ट्र मन्दिर का गहन तम शीघ्र ही मिट कर रहेगा,
मातृ मन्दिर में विभूषित दिव्य तव आराधना।। चाहिए..
संकटों से पूर्ण पथ पर, पुण्य स्मृति तब मार्ग दर्शक,
फूल होंगे शूल सारे मित्र होंगे सब विरोधक दीजिये यह शक्ति ऋषिवर,
बढ़ सकें पथ पर निरन्तर, कर सकें साकार गुरूवर, आपकी हम कल्पना।। चाहिए……
शत्रु को भी जीतता था आपका चारित्र्य उज्ज्वल, निन्दकों को मात करता आपका,
व्यवहार निर्मल, मातृ-भू की वेदना जो,
आपके उर में बसी थी, अंश भी हम पा सकें तो पूर्ण होगी साधना।। चाहिए…..
पूज्य केशव थे भगीरथ, साथ लाये संघ धारा,
इष्ट उनको मान तुमने, भाग्य भारत का संवारा,
लक्ष्य की द्रुत पूर्ति ही हम मांगते आशीष तुमसे,
कर सकें हम शीघ्र पूरी मातृ-भू की अर्चना ।। चाहिए…
चाहिए आशीष माधव, नम्र गुरूवर प्रार्थना।।
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ध्येय मन्दिर की दिशा में-संघ गीत
ध्येय मन्दिर की दिशा में पग सदा बढ़ते रहें।
हृदय में तव स्मृति-लता नित पल्लवित होती रहे ।।
कृपा से हमको मिले, गति-मति सहित धृति आपकी।
कष्ट में, सुख में सदा उर-बसी हो छवि आपकी ।
ध्येयनिष्ठा लिए उर में, पथिक बस चलता रहे ।।१।।
देख कर चहुं ओर दुःख, दारिद्रय् भीषण आपदा ।
द्रवित होकर आपने फिर त्याग दी सब सम्पदा ।
दंभ मोह हताश होकर, आपको लखते रहे ।।२।।
शत युगों में आप जैसा अवतरित व्यक्तित्व पाया ।
आपके स्मृति कवच ने नित्य ही हमको बढाया।
दृष्टि निश्चय भाव से ध्रुव ध्येय पर केन्द्रित रहे ।।३।।
धूल के प्रत्येक कण में घोष उठता है महान् ।
आपका पद स्पर्श पाया देह धन्य हुई महान् ।
चरण की गति हो अखण्डित और वह बढ़ती रहे ।।४।।
संघ गीत #rssgeet #Rsssangh Geet
शत नमन केशव चरण में-संघ गीत
शत नमन केशव चरण में,
शत नमन केशव चरण में ।।
देश में घनघोर तम था,
मातृ भू की दुर्दशा थी ।
आत्मविस्मृत हम सभी थे,
कुछ न जीवन की दिशा थी।
घोर तम में भी तुम्हारे, स्वप्न स्वर्णिम था नयन में । । १ ।
तुम सखा थे बन्धु तुम थे,
मार्गदर्शक भी तुम्हीं थे
१६मन्त्र दृष्टा तन्त्र सृष्टा, संगठन मर्मज्ञ तुम थे।
आप अपनी ही कृति से, बस गये प्रत्येक मन में ।। २ ॥
देश फिर यह विश्व गुरु हो,
संगठन नूतन बनाया।
और माधव सा विलक्षण,
दिव्य था प्रतिबिम्ब पाया।
श्वास अन्तिम भी समर्पित,
मातृ भू के उन्नयन में || ३ ||
धन्य हो जीवन हमारा,
अंश भी तब पा सके जो ।
स्वप्न जो छोड़ा अधूरा,
पूर्ण निश्चय हम करें वो ।
राष्ट्रभक्ति को जगाने, हम बढ़े गिरि ग्राम वन मैं । । ४ । ।
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लो श्रद्धाञ्जलि राष्ट्र पुरुष-संघ गीत
लो श्रद्धाञ्जलि राष्ट्र-पुरुष, शतकोटि हृदय के कंज खिले हैं।
आज तुम्हारी पूजा करने, सेतु हिमाचल संग मिले हैं।।
माँ के पद-पद्मों में तुमने, जो अमूल्य उपहार रखा है।
सत्य चिरन्तन अक्षय है, हिन्दू की अमिट रूप रेखा है।
पावन संस्कारों से निर्मित, तन-मन ये अनभेद्य किले हैं ।।१।।
तुमने किया व्यतीत,कठिनतम लोक-प्रसिद्धि – पराङ्मुख जीवन ।
भीष्म समान रहे तुम अविचल, हिन्दु राष्ट्र के हित आजीवन ।
देव! तुम्हारी घोर तपस्या, के ही तो यह सुफल मिले हैं । । २ ।।
तुम अजात-अरि, लोक-संग्रही, संघ शक्ति के वलयकेन्द्र थे।
देव बता दो प्रतिपक्षी भी, क्यों इतने संतुष्ट मौन थे।
सुनकर पावन चरित तुम्हारा, कोटि हृदय-प्रस्तर पिघले हैं ।। २ ।।
आज तुम्हारी पार्थिव प्रतिमा, चर्म-चक्षुओं से अदृश्य है।
किन्तु कोटि उन निलयों में तव दिव्य मूर्ति प्रस्थित अखण्ड है।
तेजोमय प्रतिबिम्ब तुम्हारे, स्वयं सिद्ध अगणित निकले हैं । । ४ । ।
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हम केशव के अनुयायी हैं-संघ गीत
हम केशव के अनुयायी हैं हमने तो बढ़ना सीखा है ।।
लक्ष्य दूर है पथ दुर्गम है, किन्तु पहुँचकर ही दम लेंगे।
बाधाओं के गिरि शिखरों पर हमने तो चढ़ना सीखा है।।
ख्याति प्रतिष्ठा हमें न भाती केवल माँ की कीर्ति सुहाती।
माता के हित प्रतिपल जीवन, हमने तो जीना सीखा है ।।
अन्धकार में बन्धु भटकते, पंथ बिना व्याकुल दुख सहते।
पथ दर्शक दीपन बन तिल-तिल हमने तो जलना सीखा है।
तृषित जनों को जीवन देंगे शस्य श्यामला भूमि करेंगे।
सुरसरि देने हिमगिरि के सम हमने तो गलना सीखा है ।।
धरती को सुरभित कर देंगे, हे माँ हम मधु ऋतु लायेंगे।
शूलों में भी सुमनों के सम, हमने तो खिलना सीखा है ।।
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आज पूजा की घड़ी है-संघ गीत
आज पूजा की घड़ी है ।।
साधना के शूल-मय पथ पर सदा सबको बढ़ाता,
ध्येय की धुन धमनियों में फूंकता युग क्रांति लाता ।
हर फड़ख में के उत्थान की आशा भरी है ।। १ ।। राष्ट्र
सूर्य की पहली छटा की अग्नि का है वास इसमें,
पूर्वजों की यह पताका, विजय का विश्वास इसमें ।
कोटि हृदयों के मिलन की भावना इसमें जुड़ी है ।। २ ।।
राष्ट्र का निर्माण, पोषण, वृद्धि है इसकी कहानी,
आन पर बलिदान की है, प्रेरणामय यह राष्ट्र-पुरुषों की चिरन्तन कल्पनाओं की कड़ी है ।।३ ॥
इस ध्वजा से श्रेष्ठ जीवन का अमर सन्देश पायें,
और लाखों प्राण इंगित मात्र पर इसके चढ़ावें ।
फिर सफलता हाथ जोड़े सामने मानों खड़ी है ।।४। निशानी।
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धन्य तुम्हारा जीवनदान-संघ गीत
धन्य तुम्हारा जीवनदान सोती दुनिया जाग रही थी। दूर निराशा भाग रही थी,
मन में जलती आग रही थी। उस क्षण में हम खो बैठे हैं,
तुमको नर-वर श्रीमान् ।।१।।
दबी राख में छिपे अग्नि-कण
उन्हें शोध कर लिया वीर प्रण इन्हीं कणों से विजय करूँ रण इधर पूर्ति का समय,
उधर हो! अकस्मात दीपक निर्वाण ।। २ ।।
वे पत्थर अब मूर्ति बने हैं, थे अपयश अब कीर्ति बने हैं, आकांक्षा की पूर्ति बने हैं,
अरे दैव क्या चला गया वह,
कलाकार मंत्रज्ञ महान् ।।३ ।।
चला चला जा यहाँ कोटि-शत, देख रहे हैं बाट वीरव्रत ।
जो माता के लिए हुत, देख वही से अपने पथ के पथिकों का प्रचलन रण गान । ।४ ।।
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पूर्ण करेंगे हम सब केशव-संघ गीत
पूर्ण करेंगे हम सब कैशव! वह साधना तुम्हारी।
आत्म हवन से राष्ट्रदेव की आराधना तुम्हारी।।
निशि दिन तेरी ध्येय-चिंतना, आकुल मन की तीव्र वेदना,
साक्षात्कार ध्येय का हो, यह मन-कामना तुम्हारी पूर्ण करेंगे. ।।9।।
कोटि-कोटि हम तेरे अनुचर, ध्येय-मार्ग पर हुए, अग्रसर होगी पूर्ण,
सशक्त राष्ट्र की, वह कल्पना तुम्हारी पूर्ण करेंगे. । । २ । ।
तुझसी ज्योति हृदय में पावें, कोटि-कोटि तुझ से ही जावें तभी पूर्ण हो राष्ट्रदेव की,
वह अर्चना तुम्हारी पूर्ण करेंगे. ।। ३ ।।
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स्मरे राष्ट्र सारा भरे प्रेम से जो-संघ गीत
स्मरे राष्ट्र सारा, भरे प्रेम से जो ।
प्रभावी तुम्हारी तपो साधना, अति व्याकुला बुद्धि से गाऊँ कैसे,
यशोगान की गौरवालापना ?
कभी वासना थी न लोकेषणा की,
जगाई कृति दीप्ति तेजस्वला सहस्रों मनों में वही जागृता हो,
उठी हिन्दु स्वातंत्र्य की प्रज्ज्वला ॥19॥
न हो देव! पीड़ा तुम्हें चिंतना से, सुनोगे हमी से यशोगर्जना,
बहे नेत्र से भावना-नीर-धारा,
मदीया यही अश्रु-पुष्पार्चना ।। २ ।।
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धन्य हे युगपुरुष केशव-संघ गीत
धन्य हे युगपुरुष केशव, धन्य तेरी साधना ।
कोटि कंठों में समाहित, राष्ट्र की आराधना ।।
राष्ट्र का दिनकर छिपा, छाई अमावस की निशा ।
दासता की श्रृंखला में, भटकते हम थे दिशा चक्रव्यूह में जा फंसी थी, राष्ट्र की तेजस्विता ।
अस्मिता बाधित रही, औ सुप्त सारी कामना ।।१।।
शक्ति के नव जागरण का, वर्ष का शुभ दिन प्रथम ।
प्रखर दिनकर सा उदित तुम, मेटने को गहन तम ।
मातृ भू की अर्चना का, हृदय में संकल्प लेकर ।
वीर विक्रम सा किए तुम, विजय की प्रस्तावना ।।२।।
छत्रपति की प्रेरणा से, राष्ट्र पौरुष को जगाकर ।
शालिवाहन सा सतत नव, संगठन का भाव लाकर ।
भेंट की गत जाति भाषा, प्रान्त की सब रुढ़ियाँ ।
fसुप्त हिन्दू राष्ट्र को जागृत किया कर साधना ।। ३ ।।
स्वप्न जो उर में संजोये, आज वह साकार ढलता ।
राष्ट्र नव निर्माण का है संघ अब आधार बनता ।
विविध पथ से बढ़ रहे हैं ध्येय के तेरे उपासक ।
सत्य होगी आपकी अब चिर प्रतीक्षित कामना ।।४।।
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पूज्य केशव वर्ष नव तव जन्म पावन प्रेरणा श्रद्धाञ्जली-संघ गीत
पूज्य केशव वर्ष नव तव जन्म पावन प्रेरणा श्रद्धाञ्जली
श्री चरण में हम चढ़ाये उभरती जीवन कली, प्रेरणा श्रद्धाञ्जली प्रेरणा श्रद्धाञ्जली
राष्ट्र वेदी को संवारी, राष्ट्र हित आहुति तुम्हारी राष्ट्र में आलोक प्रकटा, देह तिल-तिल कर जली ||१||
राष्ट्र मंथन राष्ट्र जागा, राष्ट्र गौरव दैन्य भागा राष्ट्र हिन्दू स्फुरण ले, नव सृजित रत्नावली ।। २ ।।
राष्ट्र विघटन वेदना ले, राष्ट्र दैविक चैतना ले राष्ट्र विजय संस्कारित, टोलियां पथ पर चली ।। ३ ।।
राष्ट्र काया कल्प करने राष्ट्र जीवन मूल्य भरने जगत के कल्याण अर्पित यह प्रथम पुष्पाञ्जली ।। ४ ।।
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ध्येय चिन्तन-संघ गीत
पूज्य माँ की अर्चना का पूज्य मों की अर्चना का एक छोटा उपकरण हूँ।
उच्च है वह शिखर देखो में नहीं वह स्थान लूँगा, और चित्रित भित्तिका है, मैं नहीं शोभा बनूँगा ।
पूज्य है यह मातृ मन्दिर नींव का मैं एक कण हूँ। 1911
मुकुट माँ का जगमगाता, मैं नहीं सोना बनूँगा, जगमगाते रत्न देखो,
मैं नहीं हीरा बनूँगा। पूज्य माँ की चरण-रज का, एक छोटा धूलिकण हूँ।। २ ।।
आरती भी हो रही है, गीत बन कर क्या करूँगा, पुष्प माला चढ रही है,
फूल बन कर क्या करूँगा। मालिका का एक तन्तु, गीत का मैं एक स्वर हूँ ।। ३ ।।
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मन समर्पित तन समर्पित-संघ गीत
मन समर्पित तन समर्पित और यह जीवन समर्पित ।
चाहता हूँ मातृ-भू तुमको अभी कुछ और भी दूँ।।
माँ तुम्हारा ऋण बहुत है, मैं अंकिचन, किन्तु इतना कर रहा फिर भी निवेदन ।
थाल में लाऊँ सजा कर भाल जब,
स्वस्वीकार कर लेना दयामय यह समर्पण।
गान अर्पित प्राण अर्पित रक्त का कण-कण समर्पित ।।
मांज दो तलवार को लाओ न देरी,
बाँध दो कस कर कमर पर ढाल मेरी।
भाल पर मल दो चरण की धूल थोड़ी ।
शीश पर आशीष की छाया घनेरी ।
स्वप्न अर्पित प्रश्न अर्पित, आयु का क्षण-क्षण समर्पित ।।
तोड़ता हूँ मोह का बन्धन क्षमा दो,
गांव मेरा द्वार घर आंगन क्षमा दो ।
आज सीधे हाथ में तलवार दे दो,
और बाँयें हाथ में ध्वज को थमा दो ।
ये सुमन लो, ये चमन लो नीड़ का तृण-तृण समर्पित । ।
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साधना रत हों निरन्तर-संघ गीत
साधना रत हों निरन्तर माँ यही वरदान दो ।
राष्ट्र की सेवा मूल सीचें यह सरस शुभ ज्ञान दो ।।
कर विविध शाखा प्रशाखा अध्ययन विद्वान हों,
पकड़ कर अंगुलि इड़ा की, प्रगति पथ गतिमान हों।
किन्तु अपनी भक्ति को शाश्वत हृदय में स्थान दो । । १ । ।
विश्व भर में श्रेष्ठ मानवता यहाँ परिपुष्ट हो,
सन्त चरणों में झुका कर शीश जग सन्तुष्ट हो धर्म का आधार है जो संगठन का ध्यान दो || २ |
राष्ट्र हित जीवन रचायें, भय नहीं लव-लेश हो स्वर्ण आशा का मुकुट – आधार रत देश हो
२७आज प्राणों में हमारे शक्ति का आह्नान दो ||३ ||
मातृ-मन्दिर के अडिग हम नींव के पत्थर बनें,
ध्येय का ध्रुव प्रेरणा-स्वर आत्मदर्शी हो सुनें।
नित्य-निर्मल मन मुकुर में सत्य की पहचान दो ||४||
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स्वर्णमयी लंका न मिले माँ-संघ गीत
स्वर्णमयी लंका न मिले माँ, अवधपुरी की धूल मिले।
सोने में कांटे चुभते हैं, मिट्टी में हैं फूल खिले ।
इन्द्रासन वैभव नहीं प्यारा, माता की गोदी प्यारी,
नमो-नमो जग जननी माता, कण-कण पर सुत बलिहारी,
पुष्पों की शय्या न मिले माँ, कदम-कदम पर शूल मिलें ||१||
तेरा सुख सर्वस्व हमारा, तेरा दुःख आह्वान बने,
तेरी शान बढ़ाते जायें, मृत्युं विजय की शान बने ।
आजीवन पतवार चलायें, धार मिले या कूल मिले ।।२।।
नयनों में ज्योतित रहना माँ, सिर पर वर का कर धरना माँ,
रग-रग में जीवन भरना माँ, तुम्हीं प्रेरणा का झरना माँ।
जीवन भक्ति समर्पित हो नित, अमृत रस में मूल मिले। । ३ ।।
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मां तेरी पावन पूजा में
माँ तेरी पावन पूजा में, हम केवल इतना कर पायें ।।
युग-युग से चरणों में तेरे, चढ़ते आये पुष्प घनेरे ।
हमने उनसे सीखा केवल, अपना पुष्प चढ़ा पायें। माँ……..
चित्तौड़ दुर्ग के कण-कण, जय बोल रहे तेरी क्षण-क्षण
हम भी अपने टूटे स्वर को, उनके साथ मिला पायें। । माँ……….
कुछ कली चढ़ीं कुछ पुष्प चढे, कुछ समय से पहले फिसल पड़े.
हमको दो वरदान यही मां, विकसित होकर चढ़ जायें। । माँ……..
जगती के बन्धन आकर्षण, यदि स्वयं काल से भी हो रण । माँ
तेरे पूजा पथ पर हम, लड़ते-भिड़ते बढ़ते जायें।। माँ..
अन्तिम आकांक्षा हम सबको, जब पावन पूजा हो तेरी ।
तब तनिक न पड़ असमंजस में, यह जीवन पुष्प चढ़ा जायें। माँ…….
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पूजन का मैं पुष्प मात्र हूँ
पूजन का मैं पुष्प मात्र हूँ, सेवा ही अधिकार मेरा, सेवा ही अधिकार ।।
पाता हूँ अविरल प्रकाश । मैं दीपक हूँ, महादीप क्यों न बिखेरू उस प्रकाश को, जिस पर नहीं अधिकार मेरा ।।१।।
मैं बिन्दु हूँ महासिन्धु का, पाता हूँ प्रतिपल आकार । सिन्धु जीवन में मिल जाना, होना एकाकार मेरा ।।२।।
मैं हव्य कण हूँ महावेदी में, आहुति बन जल जाना। जलते-जलते दिव्य जीवन का करना साक्षात्कार मेरा ।। ३ ।।
राष्ट्रपुरुष का अंग हूँ मैं. पूर्ण जीवन उससे पाता। राष्ट्र जीवन के भव्य रंग में, लय होना अधिकार मेरा ॥१४॥
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जननी जगन्मात की
जननी जगन् मात की, प्रखर मातृ भक्ति की।
सुप्त भावना जगाने हम चल ।।
सदैव से महान् जो सदैव ही महान् हो, कोटि-कोटि कंठ से अखण्ड वंद्य गान हो, मातृ-भू की अमरता समृद्धि और अखंडता की, शुभ्रकामना जगाने हम चले ।।9।।
एक माँ के पूत एक धर्म एक देश है, फिर भी प्रेम के स्थान ईर्ष्या व द्वेष है, सुबन्धुता व स्नेह की सुकार्य औ, सुध्येय की, स्वच्छ भावना जगाने हम चले ।।२।।
प्रांत-भेद, भाषा-भेद, भेद भी अनेक हैं, छिद्र-छिद्र राष्ट्र का शरीर देख खेद है, अनेकता व भेदता से एकता अभेदता की, श्रेष्ठ भावना जगाने हम चले ।।३ ।।
व्यक्ति-व्यक्ति के हृदय समष्टि भाव को जगा, सकामना व स्वार्थता के हेय भाव को मिटा, परहित- सुखों में निज के हित-सुखों को देखने की, श्रेष्ठ चाह को जगाने हम चले । । ४ । ।
निज सुखों की एक ओर छोड़ करके लालसा.
चल पड़े हैं मातृ-भू उत्थान का ले रास्ता, श्रम से, तप से त्याग से, संघ दीप जगमगा,
महान् चेतना जगाने हम चले । १५ ।।
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तंत्र है नूतन भले ही
तंत्र है नूतन भले ही चिर पुरातन साधना । संघ में साकार अनगिन है युगों की कल्पना ।।
विश्व गुरू यह राष्ट्र, शाश्वत सूत्र में आबद्ध हो । सभ्यता का हो निकेतन यह सुमंगल भावना ।। १ ।।
ज्ञान- श्रद्धा कर्म तीनों मिल समन्वित रूप हों । वेद से आयी अखण्डित हिन्दू की ध्रुव धारणा ।। २ ।।
तीन गुण नवरस सुशोभित सप्त रंगों का धनुष । ऐक्य ओर वैविध्य की है नित्य नूतन सर्जना ।। ३ ।।
विश्व व्यापी अर्चना हो, सर्व हित शुभ चिंतना । पूर्ण वैभव से सतत हो, मातृ पद युग वन्दना।।४।।
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यही मंत्र है यही साधना
यही मंत्र है यही साधना, ग्राम ग्राम में जायेंगे । हिन्दू-हिन्दू, जुटा-जुटाकर, सबको शाखा लायेंगे ।।
विस्मृति में जो दबा पड़ा वह, समाज हम चेतायेंगे, मानस पर है जमी राख जो, सत्वर उसे हटायेंगे ।
चिन्गारी प्रगटेगी उसमें, अपने दोष जलायेंगे । । १ । ।
अपना देश धरित्री प्यारी, माँ का रूप निहारेंगे, हम हैं सारे सपूत इसके बन्धुभाव विकसायेंगे ।
ऊँच-नीच सब भेद हटाकर, समता-ममता लायेंगे ॥२॥
अपने पुरखों की धरती का, बीता गौरव लायेंगे. इसी हेतु हम अपना सब कुछ, अर्पित करते जायेंगे।
केशव के चिन्तन में था जो, हिन्दू राष्ट्र सरसायेंगे ||३
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ध्येय ने बलिदान के पथ पर पुकारा
ध्येय ने बलिदान के पथ पर पुकारा।
तोड़नी है हमें अन्तिम मोह कारा ।।
सूर्य संस्कृति का गहन तम से ढका है,
स्रोत जीवन का थका उलझा रुका है,
अभी माँ के केश रूखे अधर सूखे,
दृग सजल हैं कोटि उसके पुत्र भूखे,
इस गहन तम में बने हम ही सहारा ।।१।।
हुआ लांछित पुनः आज स्वदेश अपना,
विगत सीमा प्रांत पौरुष तेज अपना,
लाज से हिमगिरि न अब निज सिर उठाता,
उदधि भी उठ उठ न अब जयगान गाता,
झुके चरणों में पुनः यह विश्व सारा ।।२।।
राम का हम आज धर्म महान भूले,
कृष्ण का भी हाय! गीता ज्ञान भूले,
विस्मृत चाणक्य की जय की कथा है,
क्यों न उर में जागती फिर भी व्यथा है,
गर्जना से आज हिलता गगन सारा ।। ३ ।।
हैं कहाँ अब चन्द्रगुप्त महान् विक्रम,
भर रहा सब ओर अति अवसाद विभ्रम,
उठो! हे चित्तौड़ पुण्य प्रताप जागो, है शिवा! है केसरी!
आलस्य त्यागो, आज पुनः समर्थ ने हमको पुकारा ।।४।।
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जय भारत जिसकी कीर्ति
जय भारत जिसकी कीर्ति सुरों ने गाई । हम हैं हिन्दु सन्तान करोड़ों भाई ।।
हाँ गूँज उठे आकाश अनिल के द्वारा, अगणित कण्ठों से बहे एक स्वर धारा ।
कह दो पुकार कर सुने चराचर सारा हे भारत हिन्दू राष्ट्र अखण्ड हमारा ।
अब तक भी है कुलकीर्ति हमारे छाई ।। १ ।।
बस इसी दिशा में प्रथम प्रकाश हुआ था, शुभ सामगान से मोह विनाश हुआ था।
पृथ्वी तल का पशु भाव हताश हुआ था, मानव कुल में मनुजत्व विकास हुआ था।
हमसे जीवन की ज्योति जगत ने पाई ।। २ ।।
सब बातों में हम सदा रहे आगे हैं, विघ्नों के डर से कभी नहीं भागे हैं।
सदियों से रिपु ही हार-हार भागे हैं, अब भी हमने यह भाव नहीं त्यागे हैं।
फिर बारी है संसार हमारी आई ।। ३ ।।
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स्वयं प्रेरणा से
स्वयं प्रेरणा से माता की, सेवा का व्रत धारा है।
सत्य स्वयंसेवक बनने का, सतत् प्रयत्न हमारा है।।
देशभक्ति अधिकार जन्म से, जागृत होकर जाना है,
भरत भूमि सुत हिन्दू हूँ मैं, हमने यह पहिचाना है।
जीवन मरण सदा क्षण-क्षण में, यह सन्देश ही प्यारा है ।।१।।
प्यार नहीं व्यापार हमारा, पुरस्कार की चाह नहीं,
उपकारों का मोह नहीं, जयकारों की परवाह नहीं ।
अहंकार को दूर रखेंगे, प्रभु का सदा सहारा है ।।२।।
नित्य नियम से शाखा जाते, गंगा में अवगाहन को ।
संस्कारों से पल-पल अपने, तन-मन को पुलकाने को।
आत्म विजय के हेतु स्वयं का, यह अनुशासन सारा है।।३।।
हम समाज के चेतन प्रहरी, घर-घर अलख जगायेंगे,
गली-गली में नगर ग्राम में, दीप से दीप जलायेंगे,
भारत हो वैभव से पूरित, जीवन लक्ष्य हमारा है।।४।।
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चल रहें हैं चरण अगणित
चल रहे हैं चरण अगणित, ध्येय के पथ पर निरन्तर ।।
श्रेष्ठ जीवन की धरोहर पूर्वजों से जो मिली है, विश्व की सुख शांति दात्री जो यहाँ संस्कृति पली है।
है उसे रखना चिरंतन, मृत्यु का भी सर कुचल कर ।1911
हूण, शक, बर्बर यवन की मौत इस भू पर हुई है, आंग्ल-मुगल, विदेशियों की जीत हार बनी यहीं है।
अन्त में विजयी हमीं हैं, आदि का अभिमान लेकर ।।२।।
३४शांति जन-मन की मिटाते, क्रांति का संगीत गाते. एक के दस लक्ष होकर कोटियों को हैं बुलाते ।
मातृभू की अर्चना में विजय का विश्वास रखकर 113 11
साध्य करना है हमें गीता-प्रदर्शित ध्येय सपना, बस इसी की पूर्ति के हित हो समर्पित जन्म अपना ।
तुष्ट माँ होगी तभी तो विश्व में सम्मान पाकर ।।४।।
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मैं राष्ट्र-मालिका का मोती
मैं राष्ट्र मालिका का मोती अगणित हूँ केवल एक नहीं ।।
आई अन्तः स्थल से पुकार, हिल उठा हृदय का तार-तार, मैं गद्गद् हो करता विचार आहा! विशाल मेरा प्रसार ।
मैं महा जलधि का एक बिन्दु मेरा अब व्यक्ति विवेक नहीं।।१।।
जो मातृभूमि से ही पाया, वह लघुतम सा उपहार लिये, माता के मन्दिर में आया, अतुलित साहस-सम्भार लिए ।
कर चुका समर्पित राष्ट्र देव! झोली में कुछ अवशेष नहीं । । २ । ।
मैं महाजलधि का नाद घोर, उठती प्रलयंकारी-सी हिलोर,
जग त्रस्त किन्तु साहस बटोर! हम चले नाव ले क्षितिज ओर।
मैं राष्ट्र-तारि का लघु नाविक, मन में चिंता का लेश नहीं ।। ३ ।।
उठ पड़ें आज हिन्दू-हिन्दू, प्राणों की बलि से बन्धु-बन्धु, राणा के पावन रक्त-1 5-बिन्दु! भुज बल विक्रम के अतुल सिन्धु ।
क्या इन हाथों से भारत का अब कर सकते अभिषेक नहीं।।४।।
प्रतिक्षण इस गंगा में होते विलीन बढ़ते इसकी उता सरगी में सब दावानल दबते जाते।
सवाला जल धारा का उद्रेक कहीं । ॥
राष्ट्रका अनुयायी, हिन्दुत्व सूर्य की एक किरण जलती अन्तज्वला का कण में संघतत्व का मणि दर्पण प्रतिबिम्बित जिसके अणु-अणु में, अगणित हूँ केवल एक नहीं ||६||
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जाते,हो गये हैं स्वप्न सब साकार
हो गये है स्वप्न सब साकार कैसे मान लें हम। टल गया सर से व्यथा का भार कैसे मान ले हम।।
आ गया स्वातंत्र्य फिर भी चेतना आने न पायी। प्रगति के ही नाम श्रद्धा और श्रम को दी विदायी ।।
इस भयंकर मौज को पतवार कैसे मान लें हम ।।१।। देश सारा घिर रहा है दैन्य के घन बादलों से ।
घिर रही प्रिय मातृ-भू है, चतुर्दिक खल अरिदलों से ।। इस अमां के तिमिर को ही अरुणिमा क्या मान लें हम । ॥ २ ॥
राष्ट्र को सब लोग भूले स्वार्थ है युग मंत्र सारा । प्रांत भाषा भेद की है बह रही नित कलुष धारा ।।
इस पराये तंत्र को निज तंत्र कैसे मान लें हम ।। ३ ।। वेश वाणी तत्व-दर्शन दूसरों का यह सभी लें।
विकृति को ग्रहण करते निज प्रकृति को आज भूले ।। दूसरों की यह नकल है अस्मिता क्या मान लें हम । । ४ । ।
अलस तज कर उद्यमी बन, ले हृदय में ध्येय निष्ठा ।
३६हम सभी का एक व्रत हो विश्व में माँ की प्रतिष्ठा ।।
देश के भवितव्य को ही, अब चुनौती मान लें हम ।। ५ ।।
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साध्य हो साधन तुम्हीं माँ
साधकों के प्राण में हो, माँ तुम्हीं चिर चेतना ।
साध्य हो साधन तुम्हीं माँ और तुम ही साधना ।।
हिन्दू का कर संगठन दृद, शक्ति भर सब देश में, विश्व को एकात्मता दे, अरुण रंजित वेश में, परम वैभव में समाये, विश्व हित की कल्पना ।। १ ।।
घोषणा भाषण प्रदर्शन, सफलता लाते नहीं, मूल सिंचन के बिना तो वृक्ष सरसाते नहीं, नित्य शाखा का नियम है, देवता की अर्चना || २ ||
योजना सार्थक तभी है, हाथ जुट पायें सभी, कर्म के सहयोग का फल, हर्ष से पायें सभी, फुल्ल कुसुमित सुमन विरचित, ध्येय हित की साधना ।। ३ ।।
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पथिक अनथक जा रहा
पथिक अनथक जा रहा, निज रक्त ही पाथेय लेकर ।।
कालिमा ही कालिमा का क्रूर नर्तन हो रहा जब,
भाग्य सारा पलट नभ का ईश प्यारा सो रहा जब,
गरल को छू सरल मानव विकल-अंगी हो रहा जब,
एक तिनके का सहारा ही बचा संसार को जब,
त्रस्त जन का त्राण करने श्रेय में तब प्रेम लेकर ।।१।।
है अकेला पर नहीं हैं डगर में पग डगमगाते,
विपिन के सब जीव हिंसक पथिक का साहस बढ़ाते,
शैल मस्तक पर दूर तक छोड़ आते
चरण चुम्बन वाल फूल सब समाते
आपदायें आ खड़ी बन प्रेरणाएं स्नेह लेकर ||२||
प्रगति का वरदान पाही स्वयं गति से पा रहा है,
लिये सम्बल तेज बल का पथिक बढ़ता जा रहा है.
सतत तप बल से सिमटता प्रातः युग का आ रहा है,
क्षितिज से स्वागत ध्वजा ले निरत दौड़ा आ रहा
साधना साधन पथिक का साधना ही ध्येय लेकर ।।३ ।।
है न आकक्षा हृदय में फूल माला की तनिक भी,
अस्थियों के फूल तक भी मातु आर्या मांग लेगी,
कामना बस एक मन में देश की हो कीर्ति विकसित,
जन्म-जन्मांतर अवधि ही क्षीण हो हित मातृभक्ति,
देह की आसक्तियां तज अमर तत्व अजेय लेकर ||४||
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आज यही युग धर्म हमारा
आज यही युग धर्म हमारा ।।
देव दुर्लभा भरत भूमि का, पितृ भूमि का पुण्यभूमि का ।
पूज्य पूर्वजों द्वारा निर्मित, पावन मन्दिर मातृ-भूमि का ।
आज उपेक्षित खण्डहर सा है, सकल प्रेरणा श्रद्धा खोकर ।
इसको फिर से करें सुसज्जित, पूजित त्याग तपस्या द्वारा ।।१।।
जिसके कण-कण में अंकित है, राम-कृष्ण विक्रम यश गाथा ।
विश्व विजेता ज्ञानी मुनिजन, श्रद्धा से झुकता है माथा।
वंशज उनके कहलाकर क्या, इसको यूं ही मिटने देंगे।
नहीं-नहीं चमकायेंगे फिर इसको सारे जग से न्यारा ।।२।।
जिस माता के स्नेह प्रेम से, पोषित हैं हम सब के ये तन ।
करती आज करुण आक्रन्दन, धिक् हम सबका पौरुष यौवन।
वह जीवन भी क्या जीवन है जो माता के काम न आये।
उठो मिटा दें दुःख माता के, होवे जीवन सफल हमारा ।।३ ।।
संघ गीत #rssgeet #Rsssangh Geet
हो जाओ तैयार
हो जाओ तैयार साथियों, हो जाओ तैयार ।।
अर्पित कर दो तन-मन-धन, मांग रहा बलिदान वतन,
अगर देश के काम न आये, तो जीवन बेकार ।।9।।
सोचने का समय गया, उठो लिखो इतिहास नया,
बंसी फेंको और उठा लो, हाथों में तलवार ।।२।।
तूफानी गति रुके नहीं, शीश कटे पर झुके नहीं,
उठे हुए माथे के सम्मुख, ठहर न पाती हार ।। ३ ।।
कांप उठे धरती अम्बर, और उठा लो ऊँचा स्वर,
कोटि-कोटि कंठों से गूंजे, भारत की जयकार ।।४।।
संघ गीत #rssgeet #Rsssangh Geet
जीना है तो गरजें
जीना है तो गरजें जग में, हिन्दू हम सब एक ।
उलझे सुलझे प्रश्नों का है, उत्तर केवल एक ।।
केशव के चिन्तन दर्शन ने, संगठन का मंत्र सिखाया।
आजीवन अविराम साधना, तिल-तिल कर सर्वस्व चढ़ाया ।।
एक दीप से जला दूसरा, जलते दीप अनेक । । १ । ।
भागीरथ के त्याग तपों से, आई भू पर गंगा धारा ।
संघ रूप में बही जाह्नवी, माधव ने है सतत संवारा।।
हुए यहीं पर विकसित कितने, तट पर तीर्थ अनेक ॥२॥
मधुकर की दो टूक गर्जना, हिन्दुशक्ति ललकार खड़ी है।
गिरि जंगल में, ग्राम नगर में, दावानल सी भड़क रही है।
जाग रहा है आज देश का, विस्मृत सुप्त विवेक ।।३।।
भाषा-भूषा मतवादों की, बहुरंगी यह परम्परा ।
सर्वधर्म समभाव सिखाती, ऋषि मुनियों की देवधरा ।।
इन्द्रधनुष की छटा स्रोत में, शुभ्र रंग है एक । ।४ ।।
स्नेह समर्पण त्याग हृदय में, सभी दिशा समता की नव जीवन रचना,
हम सब को अपनायेगा ।। आज समय की यही चुनौती, भूलें भेद अनेक ।।५।। छायेगा ।
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सूरज बदले चन्दा बदले
सूरज बदले चन्दा बदले, बदल जाय ध्रुवतारा ।
पर भारत की आन न बदले, यह संकल्प हमारा ।।
उन्नत शीश हिमालय जिसका, वह झुकना क्या जाने ।
जो शकारि-रिपु दमन विजेता, वह डरना क्या जाने ।
अब संभले वह शत्रु नराधम, जिसने है ललकारा।।१।।
देवा-सुर संग्राम जयी जो, महाबली जग माता।
रावण कंस असुर संहारक, सत्य धर्म निर्माता ।
इस स्वदेश के हम सपूत हैं, साक्षी है जग सारा ।। २ ।।
मिली चुनौती जब भी हमको, उसे सदा स्वीकार किया।
शीश चढ़ा कर मातृ-भूमि का, नित्य नया श्रृंगार किया।
वही शक्ति अब भी अक्षय है, बदलेंगे युग-धारा ।। ३ ।।
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सौगन्ध राम की खाते हैं
कोटि-कोटि हिन्दू जन का, हम ज्वार उठा कर मानेंगे।
सौगन्ध राम की खाते हैं, हम मन्दिर वहीं बनायेंगे ।।
जन-जन के मन में राम रमे, हर प्राण-प्राण में सीता है।
कंकर-कंकर शंकर इसका, हर श्वास श्वास में गीता है।
जीवन की धड़कन रामायण, पग पग पर बनी पुनीता है।
यदि राम नहीं है प्राणों में, तो प्राणों का घट रीता है।
नर-नाहर श्री पुरूषोत्तम का शुभ मन्दिर वहीं बनायेंगे ।।१।।
जो कीर्ति अपावन शासन की, वह नीति तोडकर मानेंगे।
जो सत्ता मद में भरा हुआ, वह कुम्भ फोडकर मानेंगे।
जो फैल रही है आँगन में, विष बेल कुचलकर मानेंगे।
जो स्वप्न देखते बाबर के, अरमान मिटा कर मानेंगे।
कितना पशुबल है दानव में हम उसे तौल कर मानेंगे । । २ ।
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बाल हैं गोपाल हैं
बाल हैं गोपाल हैं हम भारत के भाल हैं ।।
पुरुषोत्तम मर्यादा धारी, द्वापर में हम कृष्ण मुरारी,
हर युग में कर धर्म ध्वजा ले वैजयन्ती गल माल हैं।।१।।
वीर शिवा राणा अभिमानी,
गुरु गोविन्दसिंह थे बलिदानी,
बन्दा वैरागी जैसों के, तेजस्वी हम लाल हैं ।।२।।
नाना, तांत्या, रानी झांसी प्रलयंकर बन चूमी फांसी पाण्डे मंगल कूका फड़के, धधक उठे वे ज्वाल हैं । । ३ ।
दयानन्द अरविन्द विवेका, एक तत्व के रूप अनेक दिव्य ज्योति केशव माधव की, स्पन्दित हर प्राण हैं ।।४
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अरुण गगन पर महाप्रगति का
अरुण गगन पर महा प्रगति का अब फिर मंगलगान उठा ।
करवट बदली, अंगड़ाई ली, सोया हिन्दुस्थान उठा ।।
सौरभ से भर गई दिशायें, अब धरती मुसकाती है.
कण-कण गाता गीत गगन के सीमा अब दुहराती है,
मुक्त पवन पर राष्ट्र पताका लहर लहर लहराती है
मंगल गान सुनाता सागर, गीत दिशायें गाती है,
तरुण रक्त फिर लगा खौलने हृदयों में तूफान उठा।।
करवट- रामेश्वर का जल अंजलि में काश्मीर की सुन्दरता,
कामरूप की धूप, द्वारका की पावन प्यारी ममता,
बंग-देश की भक्ति भावना, महाराष्ट्र की तन्मयता,
शौर्य पंचनद का औ राजस्थान विश्व विजय क्षमता,
केन्द्रित कर निज प्रखर तेज को फिर भारत बलवान उठा।।
करवट– बिन्दु-बिन्दु जल मिल कर बनती प्रलयंकर सर की धारा,
कण-कण भू-रज मिल कर करती अंधकारमय जग सारा, कोटि-कोटि हम उठे,
उठाये भारतीयता का नारा, बढ़ें विश्व के बढ़ते कदमों ने फिर हमको ललकारा,
जगे देश के कण-कण से फिर, जन-जन का आह्वान उठा।। करवट-
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संघ सरिता बह रही है
संघ सरिता बह रही है।
उस भागीरथ की अनोखी, विजय गाथा कह रही है ।।
भेदकर विस्तृत शिलाएं, एक लघु धारा चली थी,रम्भ
कन्दरा धन-बीहडों को, चीर निर्मय वह बढ़ी थी,
स्वर्ग गंगा बन महानद, रूप अनुपम गह रही है ।।१।।
क्रूर बाधाऐं अनेकों, मार्ग कुण्ठित कर न पाई,
क्रुद्ध शंकर की जटा में, वह असीमित क्या समाई,
जनू की जंघा विदारी, जाह्नवी फिर चल पडी है ।।२।।
कर सुसिंचित इस धरा को, सुजल सुफला उर्वरा,
मातृ भू का पुण्य भू का, रूप है इसने संवारा,
शुष्क अरू भू शेष क्यों फिर, ताप भीषण सह रही है ।। ३ ।।
दूर सागर दृष्टि पथ में, मार्ग में विश्राम कैसा,
ध्येय सागर में मिलाकर, आज संभ्रम सोच कैसा,
अथक अविरत साधना की, पुण्य गाथा कह रही है ।।४।।
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ध्येय पथ पर बढ़ रहे हैं
ध्येय पथ पर बढ़ रहे हैं, एक ही विश्वास लेकर।
एक ही आधार लेकर ।।
शैल से जो सिंधु तक है, पुण्य भू है, मातृ भू है,
श्रेष्ठ जग से यह हमारी धर्म-भू है, कर्म-भू है,
पूज्य इसको ही समझ कर वन्दना हम कर रहे हैं, एक स्वर से गीत-गाकर ।। एक ही…
बाल रवि सा भाव लेकर जो फहरता है गगन में,
४५त्याग का संदेश देता जो लहरता कोटि उर में,
स्वर्ण- गैरिक उसी ध्वज की अर्चना हम कर रहे हैं,
विश्व गुरु का मान देकर।। एक ही एक नेता,
एक ही पथ बस यही है लक्ष्य अपना,
देश है यह हिन्दुओं का, बस यही है सत्य अपना,
सत्य को साकार करने साधना हम कर रहे हैं, संगठन का मंत्र लेकर।। एक ही….
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माँ ! बस यह वरदान चाहिये
माँ! बस यह वरदान चाहिये !
जीवन-पथ जो कंटकमय हो,
विपदाओं का घोर वलय हो,
किन्तु कामना एक यही,
बस, प्रतिपल पग गतिमान् चाहिये ।। १ ।।
हास मिले या त्रास मिले,
विश्वास मिले या फाँस मिले,
गरजे क्यों न काल ही सम्मुख,
जीवन का अभिमान चाहिये ।।२।।
जीवन के इन संघर्षों में,
दुःख-कष्टों के दावानल में
तिल-तिल कर तन जले न क्यों, पर,
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तेरी सदा हो विजय जय
तेरी सदा हो विजय जय हे मातृ-भू, जय मातृभू नगराज मस्तक मुकुट हिम-मण्डित शिखर कैलाश है।
गांधार, तिब्बत स्कंध, सुरभित मलय शीतल श्वास है ।।
इन्द्रप्रस्थ है हृदय औ कश्मीर कुम्कुम् माल है। बाल रवि बन उदय-केतु, गगन में उड़ता अमय ॥19॥
विंध्य – गिरि करधनी, पुरी और द्वारिका गुजदण्ड हैं। सह्याद्रि और महेन्द्र पद, रोमेश दीप अखण्ड हैं ।।
अनवरत बहता स्तनों से, ब्रह्म सिन्धु दुग्ध जल । जग नियंता ने चढ़ाया, चरण में लंका कमल ।।
योगी शिला पर हिन्दु-सागर, चरण धो करता विनय । ॥ २ ॥
नासिका ज्वालामुखी से निकलती प्रश्वास है। चित्राल-गिलगित नयन द्वय में प्रीत की चिर ग्यास है ।।
गुख-द्वार तक्षशिला से मुखरित, साम वैदिक गान हैं। कर्ण बद्री, हिंगुला, मेवाड़ नाभि निशान हैं ।।
श्याम बिन्दु कपोल पर, केदार नव-तारुण्यमय । । ३ । ।
उलझा जटा के जूट में यह चन्द्रमा नेपाल है। कामाख्य मणि है तिरपुरा में त्रिपुरेश डमरू – ताल है ।।
गल-हार, यमुना-गंग, कर में सोमनाथ त्रिशूल है। सब तीर्थ, द्वीप समूह, देवों ने उछाले फूल हैं ।।
कच्छ-सिन्धु-गंग, सागर, वसन के हैं छोर त्रय । । ४ ।।
कोटि पञ्चाशत सुमन तेरी उतारें आरती । ओ देश आर्यावर्त! हिन्दुस्थान !! माता भारती!!! जलें जीवन – दीप्त – दीपक तेजपुञ्ज प्रकाशरत ।
बढ़ चले बढ़ते रहें, ले विजय रथ तेरी शपथ ।। जो मिला मुझसे सभी हो अन्त में तुझ में विलय ॥ ५ ॥
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जब सारी दुनियाँ भूली थी
जब सारी दुनियाँ भूली थी माँ तुमने दीप जलाया था।
बेसुध था मनुज तमिस्रा में, जागृति का गान सुनाया था।।
जब महा प्रलय की लहरों में, थी नष्ट हुई सुर-सृष्टि सभी, अन्तिम अवशेष भरी नौका,
तेरे हिमगिरि पर टिकी तभी। मानवता का नूतन पौधा तुमने ही पुनः उगाया था।।१।।
तेरे आंचल की छाया में, मानव ने श्रुति का दूध पिया, तूने निर्मल व्यवहार सिखा,
सभ्यों सा शिष्टाचार दिया, तुमकों माँ जग ने पाया था, तुमने ही जग को जाया था।।२।।
अब भी विक्षिप्त पड़े जग को, पथ दो दायित्व तुम्हारा माँ, मानवता की सुख शान्ति हेतु,
तेरा ही एक सहारा माँ, फिर से वह व्रत पालो जननी, युग-युग से जिसे निभाया था । । ३ । ।
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कोटि स्वर वंदन निरत ओ
कोटि स्वर वंदन निरत ओ, मुक्त माँ अभिमानिनी । ।
कोटि कर जीवन कुसुम नैवेद्य से थाली संजोये,
कोटि वर अर्चन रहे कर प्राण को माला पिरोये, शुभ्र-वसना मंजु तुम गौरव-मयी कलहासिनी।।१।।
धवल यश की स्वर्ण-शर रंजिता तुंग किरीटिनी,
अन्यतम वैभव प्रकाशिनी सृष्टि हित संजीवनी,
वर प्रदायिनी कोटि अभिनन्दन तुम्हे मधु-भाषिणी ।।२।।
शस्य श्यामल शोभिता सुषमा सदा माँ भारती,
सूर्य शशि लेकर उषा – संध्या उतारें आरती, सौम्यता की मूर्ति माँ स्वागत सुधा सुर स्वामिनी ||३||
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हिन्दू हिन्दू एक रहें
हिन्दू-हिन्दू एक रहें, भेदभाव को नहीं सह संघर्षो से दुःखी जगत को, मानवता की शिक्षा दें ।।
एक ब्रह्म कुछ और नहीं, हरिहर दुर्गा मात वही देव देवियाँ रूप उसी का, देश काल अनुसार सही।
सब पंथों का मान करें, सब ग्रन्थों से ज्ञान गहें । सत् गुरुओं की सीख समझकर, जीवन को जीना सीखें ।। १ ।।
जो भाई भटके-पिछड़े, हाथ पकड़ ले साथ चलें, भोजन, कपड़ा घर की सुविधा, शिक्षा सबको सुलभ रहे,
ऊंच नीच लवलेश न हो, छुआ-छूत अवशेष न हो। एक लहू सबकी नस-नस में, अपनेपन की रीत गहें ।। २ ।।
देश प्रेम अमृत पीयें, गंगा, गीता, गौ पूजें । वेद-विदित जीवन रचना हो, रामकृष्ण शिव-भक्ति करें।
धर्म सनातन अनुगामी, बुद्धं शरणम् गच्छामि ।
अर्हन्तों को नमन करें नित, वाहे गुरु अकाल कहें । । ३ । ।
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यही मंत्र है यही साधना
यही मंत्र है यही साधना, ग्राम-ग्राम में जायेंगे। हिन्दू-हिन्दू जुटा जुटा कर सबको शाखा लायेंगे ।।
विस्मृति में जो दबा पड़ा वह, समाज हम चेतायेंगे, मानस पर है जमी राख जो, सत्वर उसे हटायेंगे।
चिनगारी प्रगटेगी उसमें, अपने दोष जलायेंगे ।।१।।
अपना देश धरित्री प्यारी, माँ का रूप निहारेंगे, हम हैं सारे सपूत उसके,
बन्धु भाव विकसायेंगे। ऊंच-नीच सब भेद हटाकर, समता ममता लायेंगे ।।२।।
अपने पुरखों की धरती का, बीता गौरव लायेंगे, इसी हेतु हम अपना सब कुछ,
अर्पित करते जायेंगे। केशव के चिंतन में था जो, हिन्दू राष्ट्र सरसायेंगे ।।३।।
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हिन्दू राष्ट्र के नव निर्माता
हिन्दू राष्ट्र के नव निर्माता, हिन्दु युवकों जागो जागो जागो-जागो ।।
हिमगिरि मुकुट उदधि चरणों में वन्दे मातरम् स्नेहसिक्त व्यवहार हमारा,
वसुधा कुटुम्बकम् समता ज्योति हो जन-जन में स्वार्थ साधना त्यागो । । १ । ।
प्रथम विकास, प्रथम उच्चारण- प्रथम सुप्रभातम् प्रथम ज्ञान, विज्ञान, सभ्यता-संस्कृति श्रेष्ठतम् ।
स्वाभिमान जागे स्वदेश का दीन हीनता त्यागो ।।२
शैव, जैन, सत् श्री अकाल जय-बुद्धंशरणं गमनम
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नवीन पर्व के लिए, नवीन प्राण
नवीन पर्व के लिए, नवीन प्राण चाहिये नवीन प्राण चाहिये, नवीन प्राण चाहिये ।।
स्वतंत्र देश हो गया, प्रभुत्वमय दिशा मही, निशा कराल टल चुकी,
स्वतंत्र माँ विभामयी, मुक्त मातृभूमि को, नवीन मान चाहिए | 19 ।।
चढ़ रहा निकेत है कि, स्वर्ग छू गया सरल, दिशा-दिशा पुकारती कि,
साधना करो सफल, मुक्त गीत हो रहा, नवीन राग चाहिए ।।२।।
युवक कमर कसो कि, कष्ट कंटकों की राह है, प्राण दान का समय,
उमंग है उछाह है, पगों में आंधियाँ भरे, प्रयाण गान चाहिए । । ३ । ।
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इस धरती को जिसने माना
इस धरती को जिसने माना, माँ प्राणों से प्यारी हिन्दू वही है हिन्दु राष्ट्र का, सच्चा वही पुजारी,
भारत माँ जयकारी ।। हिम मण्डित सागर से वेष्टित, स्मित वदना मनहारी,
पीयूष हे नद नद में, हरियाली शुभकारी, ऐसी माँ की पीड़ा लखकर,
माँ पुत्रों का क्रन्दन सुनकर मौन रहे और चुप सह जाये, यह ना हो लाचारी ।19।।
जितने मन उतने ही पथ हैं, पूजा की विधि न्यारी, खान पान भाषा अनेकता,
यह पहचान हमारी, हिन्दु भाव का यह दृढ़ बन्धन, जन-जन को देता सुख रंजन,
इसे बचाने करें संगठित, शस्त्र-शास्त्र कर धारी, ।।२।।
गिरि-वन ग्राम नगर घर-घर से, जाग उठे नर नारी, जाग रही है हिन्दु दिव्यता,
विनशें अत्याचारी, तन-मन-धन जीवन अर्पण, जीवन के क्षण-क्षण का तर्पण भोग नहीं अर्पण में है सुख,
सीखे दुनिया सारी, ।।३।।
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एक संस्कृति एक धर्म है
एक संस्कृति एक धर्म है, एक हमारा नारा ।
एक भारती की संतति हम, भारत एक हमारा ।।
दैनिक शाखा संस्कारों से, सीखें नित्य नियम अनुशासन,
मातृभूमि प्रति अक्षय निष्ठा, करें समर्पित हम तन-मन-धन ।
मातृभूमि का कण-कण तृण-तृण, है प्राणों से प्यारा ।।१।।
रूढ़ि कुरीति और विषमता, ऊँच-नीच का भाव मिटाकर,
संगठन की शंख ध्वनि हो, बन्धु-बन्धु का भाव जगाकर ।
नव जागृति का सूर्य उगादें, है संकल्प हमारा । । ३ । ।
जाति पंथ का भेद भुलाकर, प्रान्त मोह का भूत भगायें,
भाषाओं का अहम् मिटाकर, एक राष्ट्र का भाव जगायें।
हिन्दू-हिन्दू सब एक रहें मिल, है कर्तव्य हमारा । । ३ । ।
अपने शील तेज पौरुष से, करें संगठित हिन्दु सारा,
धरती से लेकर अम्बर तक , गूंज उठे जय भारत जय भारत नारा
भारत देश हमारा प्यारा भारत देश हमारा प्यारा
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दर्शनीया, पूजनीया
दर्शनीया, पूजनीया मातृ शत् शत् वन्दना।
कोटि कंठों से सुनो समवेत जननी प्रार्थना ।।
मानसर योगी शिला से, ब्रह्मनद् से सिन्धु तक,
कोटि क्षेत्रों से जुटाये पत्र फल और पुष्प जल,
भक्ति नवधा सूत्र में, बांधी सुमन आराधना ।।१।।
धवल हिमगिरि के शिखर से, नीलगिरि की श्यामता सिन्धु के सिक्ता कणों से,
दिव्य मणिपुर की प्रभा, सप्त रंगों से संवारी इन्द्रधनु की कल्पना।।२।।
धूल का अंधड़ उड़ाता, ग्रीष्म क्रूरावेग से, कड़कड़ाते पश्चिमी झोंके तनों को बेधते,
सावनी रिमझिम बसंती राग की संयोजना । ॥३॥
विविधता में एकता का पुष्ट माँ आधार तुम,
भक्ति विह्वल वीर जन की, इष्ट माँ साकार तुम,
चतुर्वर्णों के फलों की, मूल की माँ साधना।।४।।
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युग-युग से स्वप्न संजोये जो
युग-युग से स्वप्न संजोये जो, हमको पूरे कर दिखलाना,
फिर राम-राज्य है भारत के, उजड़े कानन में विकसाना।।धृ.।।
इन स्वप्नों में ही कारा के, कष्टों को हँस-हँस झेला है।
इन स्वप्नों के जयघोष लगा, भय का आतंक धकेला है।
इस युग में यह संघर्ष हुआ, दुर्लभ सौभाग्य हमारा है,
है धन्य हमारी शाखायें संस्कार समेत संवारा है,
संस्कारित जनता के द्वारा, सत्ता पर अंकुश रखवाना।।१।।
जो सपना हमने देखा था, शैशव के भोले नयनों में।
स्वर्णिम इतिहास उमंग भरा चित्रित था मन में वचनों में।
यह देश बनायेंगे ऐसा, आजादी जिसमें खिलती हो, चिरशांति,
सुमति उन्नति सरिता, पग-पग पर आकर मिलती हो,
पग पग पर पुनः प्रयाग बने, नन्दन कानन है सरसाना ।।२।।
हम धूल लगाकर मस्तक पर सौगन्ध देश की खाये हैं,
सौगन्ध हमें जगदीश्वर की, इस धरती पर जनमाये हैं,
सौगन्ध हमें आजादी की, जिसका बल प्राण समाये हैं,
सौगन्ध हमें है पुरखों की, जिनके गुण रक्त समाये हैं,
उनके अरमान अधूरों को, सच का बाना है पहनाना।।३।।
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जाग उठे हम हिन्दू फिर से
जाग उठे हम हिन्दू फिर से, विजय ध्वजा फहराने।
अंगड़ाई ले चले पुत्र हैं, माता के कष्ट मिटाने ।।
जिनके पुरखे महा यशस्वी, वे फिर क्यों घबरायें।
जिनके सुत अतुलित बलशाली, शौर्य गगन पर छाये ।
लेकर शस्त्र – शास्त्र को कर में, शत्रु- हृदय दहलाने ।।१।।
हम अगस्त्य है महासिन्धु को, अंजुलि में पी जायें।
तीन डगों में सृष्टि नाप ले, कालकूट पी जायें।
पृथ्वी के हम अमर पुत्र हैं, जग को चले जगाने ।। २ ।।
संस्थान | हिन्दू-भाव को जब-जब भूले, आई विपद महान्।
भाई टूटे धरती खोई, मिटे धर्म भूलें छोड़ें और गुंजा दें, जय से भरे तराने ।।३।।
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रुक सकता यह अभियान नहीं
प्रभु रामचन्द्र के मन्दिर का-जब तक होता निर्माण नहीं।
सौगंध राम की खाते हैं- रुक सकता यह अभियान नहीं।।
है यही अयोध्या राघव की जो रामराज्य निर्माता थे।
वे थे समता की प्रखर दृष्टि-वह भारत भाग्य विधाता थे।।
कौशल्या के नयनों का तारा जन-जन के राज दुलारे थे।
थे सूर्य वंश के ओज, तेज-ऋषियों, मुनियों के प्यारे थे ।।
उनकी इस पावन जन्म भूमि का होता जब तक सम्मान नहीं ।
रघुवंश सूर्यकुल भूषण का होता मन्दिर निर्माण नहीं ।।
हिन्दू को सौंपे जाने का बनता है अगर विधान नहीं।
संकल्प सुनो सत्ता वालों- रुक सकता यह अभियान नहीं ।।
युग पुरुषोत्तम राघव का बनता है पावन धाम नहीं।
दुश्मन का शीश काटने का हमने छोड़ा अभियान नहीं ।।
उपवन के सुरभित सुमनों की तुम पर बौछार करूँगा मैं।
रसखान, रहीम, कबीरा सा उर में उपहार रखूँगा मैं ।।
यदि वंशज बाबर बन आये स्वागत असि धारों से होगा। –
यदि अफजल खान बन आये तो वीर शिवा कारण होगा ।।
शक, हूण, यवन बनकर आये तो विक्रमादित्य बल होगा।
यदि विश्व विजय का स्वप्न लिए-तो चन्द्रगुप्त का शर होगा।।
राम- कृष्ण – शिव मन्दिर का अपमान नहीं होने देंगे।
स्वाधीन देश में देवों का सम्मान नहीं घटने देंगे ।।
हमने भी शपथ उठाई है-मन्दिर निर्माण करायेंगे ।
जो भी बाधा बन कर आये हम उसको मार भगायेंगे ।।
सत्ता मद में जो भरा हुआ वह कुम्भ फोड़ना ही होगा।
जो दूध पिलाते सांपों को वह हाथ तोड़ना ही होगा ।। –
हिन्दू जगा है आन लिए- याचना नहीं अब रण होगा।
राघव का मन्दिर बना नहीं संघर्ष महा भीषण होगा ।। भूले,
से भी आ गये कहीं तो वापस जाना आसान नहीं ।
सौगंध राम की खाते हैं-रुक सकता अभियान नहीं ।।
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रामजी की सेना चली
रामजी की सेना चली, राम जी की सेना चली।
संतों को संग ले, वेग ले, उमंग ले, राम जी की सेना चली।।
चलो अयोध्या डेरा डालें, मन्दिर का निर्माण हो ।
कोटि-कोटि हिन्दू मिल निकलें, यह पावन अभियान हो ।
कब से आस लगाये बैठे अब सपना साकार हो ।
– पूरण हो संकल्प हमारा धर्म की जय जय कार हो । –
संतों से आस है, संत तेरे साथ हैं ।
संत करेंगे भली, रामजी की सेना चली | 1911
राम काज करने को आतुर, पवन पुत्र हनुमान चले।
कौन रोक पायेगा जब, संत रूप भगवान चले।
राम नाम की महिमा देखो, पत्थर में भी प्राण पले ।
अंगद वीर, नील, नल निकले, जामवन्त बलवान चले।
अरमानों के चिह्न मिटाने, संग हमारे साथ चले ।
जन मुनि, योगी, बली रामजी की सेना चली।।२ ॥
अनय, अनीति मिटे धरती से सब दुष्टों की हार हो ।
पापों की सत्ता हिल जाये- वह भीषण हुंकार हो ।
कुम्भकरण की निद्रा टूटे, रण में हा-हा कार हो। 1
अखिल विश्व में गूंज उठें फिर, राम की जय जय कार हो।
राम का मन्दिर वहीं बनेगा-राम का झंडा वहीं गड़ेगा।
शिव जी करेंगे भली, राम जी की सेना चली ||३||
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हिन्दू राष्ट्र का शंखनाद
हिन्दू राष्ट्र का शंखनाद हो, कण-कण से आह्वान उठे।
तिमिर चीरता ज्योति पुंज हो, हिन्दू हिन्दुस्तान उठे ।।
हिन्दू राष्ट्र था, हिन्दूराष्ट्र है, और रहेगा शाश्वत है। राम-कृष्ण,
औ महादेव की हमको मिली विरासत है।
लाख-लाख पीढ़ियाँ लगी तब, हमने यह संस्कृति उपजाई ।
कोटि-कोटि सिर चढ़े तभी, इसकी रक्षा सम्भव हो पाई।
हिन्दू राष्ट्र का मूल मंत्र ले, हिन्दू शक्ति महान उठे ।।
तिमिर- हिन्दू राष्ट्र पर अब तक आये, जितने हैं भूचाल प्रबल ।
संघर्षों में सदा विजय की, फहराई है ध्वजा विमल ।
अब भी शक्ति भुजाओं में, हल्दी घाटी का शुचि पानी ।
नहीं यहां पर चलने देंगे, जयवन्दों की मन मानी ।। महादेव का शूल भयंकर लेकर मनु सन्तान उठे। तिमिर..
हृदय-हृदय में आज धधकता, राम भक्ति अंगारा है। चेतक पर चलने वाले का, चमका आज दुधारा है।
वीर शिवा की चली वाहिनी, जय समर्थ का नारा है। दूर हटो ऐ दुनिया वालो, हिन्दुस्थान हमारा है। चणक पुत्र के निश्चय जागे, चन्द्रगुप्त बलवान उठे। तिमिर……….
राम का मन्दिर वहीं बनेगा, अब हमने प्रण ठाना है। हमें चाहिए मथुरा, काशी, मन्दिर शीश झुकाना है। महाकाल की बलिदेवी पर, दुश्मन शीश चढ़ाना है। अपमानों के जो प्रतीक हैं, अब फिर उन्हें हटाना है। राजनीति का दम्भ तोड़कर, राम भक्त बलवान उठे। तिमिर………. सत्ताधीशों की हस्ती क्या, रावण कंस पछाड़ा है। दुर्योधन जैसे दुष्टों का, हमने जंघा फाड़ा है ।। राम द्रोह करने वाले का, होती जग में ठौर नहीं । । वंश हीन होता है जग में, रोता कोई और नहीं । । अर्जुन का गाण्डीव उठाकर, गीता का जय गान उठे । । लिमिर…….
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जय गंगा जी
जय गंगा जी, रामेश्वर जय, गंगासागर सोमनाथ जय । भारत माता एक हृदय हो, बोलें भारत माता की जय,
हर हर गंगे, हर हर गंगे, जय गंगा जी जय गंगे । जगन्नाथ जय महावीर जय हर हर गंगे हर हर गंगे । सारनाथ जय, अमृतसर जय, हर हर गंगे हर हर गंगे ।। अमरनाथ, बद्री, गंगोत्री वैष्णव देवी गुमतेश्वर जय । भारत माता एक हृदय हो, बोलें भारत माता की जय । । १ । । उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम हर हर गंगे हर हर गंगे
विजयनगर और कुरुक्षेत्र जय हर हर गंगे हर हर गंगे। हिन्दु जाति उत्थान पतन के, साक्षी पावन भगवद् ध्वज जय। भारत माता एक हृदय हो, बोले भारत माता की जय ||२|| गायत्री, गीता, गौमाता हर हर गंगे हर हर गंगे । जय कामाख्या, काली माता हर हर गंगे हर हर गंगे। सारी दुनियाँ से ऊंचा है, प्यारा पर्वतराज हिमालय। भारत माता एक हृदय हो, बोलें भारत माता की जय । ॥३॥ शिव गोरे, सीतापति काले हर हर गंगे हर हर गंगे। परशुराम, हनुमान निराले हर हर गंगे हर हर गर्ग । अगणित रूपों को धर आते, वही एक ओंकार दयामय । भारत माता एक हृदय हो, बोलें भारत माता की जय । ।४ ॥ सन्त उठे, विद्वान उठें सब, हर हर गंगे हर हर गंगे । लक्ष्मी सत्तावान उठें सब हर हर गंगे हर हर गंगे। धर्मधार ले चले भगीरथ, सब जग बने निरामय निर्भय । भारत माता एक हृदय हो, बोलें भारत माता की जय ।। ५ ।।
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देश हमें देता है सब कुछ
देश हमें देता है सब कुछ, हम भी तो कुछ देना सीखें।
सूरज हमें रोशनी देता, हवा नया जीवन देती है।
भूख मिटाने को हम सबकी, धरती पर होती खेती है। औरों का भी हित हो जिसमें,
Εξहम ऐसा कुछ करना सीखें। । देश हमें. पथिकों को तपती दुपहरी में, पेड सदा देते हैं छाया ।
सुमन सुगन्ध सदा देते हैं, हम सबको फूलों की माला ।
त्यागी तरुओं के जीवन से, हम ऐसा कुछ करना सीखें।।
देश हमें. जो अनपढ़ हैं उन्हें पढ़ायें, जो चुप हैं उनको वाणी दें।
जो पिछड़े हैं उन्हें बढ़ायें, प्यासी धरती को पानी दें।
हम मेहनत के दीप जलाकर, नया उजाला करना सीखें।।देश हमें..
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धर्म के लिये जियें
धर्म के लिये जियें समाज के लिये जियें । ये धड़कनें ये श्वास हों पुण्यभूमि के लिये ।। जन्म भूमि के लिये ।। ध्रु ।।
गर्व से सभी कहें हिन्दु हैं हम एक हैं। जाति पंथ भिन्नता में स्नेह सूत्र एक हैं ।। शुभ्र रंग की छटा सप्त रंग है लिये। धर्म ।।१।। कोटि कोटे कंठ से हिन्दु धर्म गर्जना,
नित्य सिद्ध शक्ति से मातृ संघशक्ति कलियुगे सुधा है धर्म के लिये। धर्म.. अर्चना, ……
व्यक्ति व्यक्ति में जगे समाज भक्ति भावना, व्यक्ति को समाज से जोड़ने की साधना, दांव पर सभी लगे जन्म भूमि के लिये।
धर्म.. एक दिव्य ज्योति से असंख्य दीप जल रहे, कौन लौ बुझा सके आंधियों में जो जले, तेज पुंज हम बढ़ें तमस चीरते हुए। धर्म..
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पिता वारया ते लाल
पिता वारया ते लाल चारे वारे
ओ हिन्दु, तेरी शान बदले ।
जनम गुरांदा पटने साहिबदा, जनम गुरांदा पटने सहिबदा । आनन्दपुरा डेरा लाया। ……..
ओ हिन्दु तेरी शान बदले। पिता जिन्हां दे तेग बहादुर, पिता जिन्हां दे तेग बहादुर माँ गुजरी दा जाया ।….
ओ हिन्दु तेरी शान बदले । हेठ गुरां दे नीला घोड़ा, हेठ गुरां दे नीला घोड़ा हथ बिच बाज सुहाया ।……
ओ हिन्दु तेरी शान बदले । चलो वीरों चल दर्शन करिए, चलो वीरों चल दर्शन करिए गुरु गोविन्द सिंह आये।…
ओ हिन्दु तेरी शान बदले।
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बन्धु ! रुक मत जाना
बन्धु रुक मत जाना मग में! लालच लखकर मत फँस जाना अपना मार्ग बदल मत जाना एक राह पे चलते जाना दुःख है अलग-अलग में, रुक मत जाना मग में!
जाल बिछाते पन्थ घनेरे, जिन पर स्वारथ होते पूरे, ध्येय छोड़ कर किन्तु अधूरे, हँसी करा मत जग में, . रुक मत जाना मग में!
कुछ वर्षों तक कष्ट सहन कर मिलजुलकर सामर्थ्य-सृजन कर भारत को करना शिव सुन्दर- भर जीवन रग रग में
रुक मत जाना मग में! ऐसा पथ फिर ऐसे नेता, ऐसे साथी कहीं मिलें क्या? महा भाग रे! बढ़ चल! लेकर अंगद सा बल पग में! रुक मत जाना मग में!
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नवीन गीत
हम कंचन हैं कांच नहीं हैं
हम कंचन हैं कांच नहीं हैं, ले लो अग्नि सुख की नहीं कष्ट सहने की, हमने ली है दीक्षा ||
चाहे ठोक बजाकर देखो चटके पात्र नहीं हैं,
अंगारों में तपे हुए हैं मिट्टी मात्र नहीं हैं, दृढ बनने के लिए सही है हमने बहुत प्रतीक्षा ||१|
हम हारे इन्सान नहीं हैं हम है वीर विजेता, क्रांति रक्त में बहती है,
हम हैं इतिहास सृजेता, तूफानों में पलने की हमने पायी है शिक्षा । । २ ।।
श्री समृद्धि पाने को श्रम का सागर पुनः मथेंगे, अगर जरूरत होगी तारे तोड़ गगन से लेंगे,
हैं पुरुषार्थ प्रबल मांगेंगे कभी नहीं हम भिक्षा । । ३ । ।
उतरेंगे हम खरे सदा हर एक कसौटी पर ही,
पाञ्चजन्य का काम करेगा आज हमारा स्वर ही,
युग का वेदव्यास करेगा अपनी कार्य समीक्षा । । ४ । ।।
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अपनी मिट्टी अपना पानी अपना पवन प्रकाश हो
अपनी मिट्टी अपना पानी अपना पवन प्रकाश हो।
अपनी मति गति रहे स्वदेशी, अडिग आत्म विश्वास हो ।।
कर्जे ले ले धाक बढ़ाना, झूठी शान हराम है। खा पीकर सब खर्च डालना, अकर्मण्य का काम है।
प्रखर तीर से धरा चीरकर, प्रकट सुधा उल्लास हो।।१।
अपने पाँवों की ताकत से पहुँचें वैभव शीर्ष पर ।
परदेशी बैसाखी के बल, नहीं बनेंगे जगदीश्वर ।
• विश्व गुरु निज अस्त्र छोड़कर, भिक्षुक नहीं हताश हो ।।२।।
देशी द्रव्यों की पोषकता, युग-युग सिद्ध प्रसिद्ध है।
परदेशी तथ्यों का हित भी, विष मिश्रित संदिग्ध है।
अपना सूरज अपना सागर, अपना मलय सुवास हो ।।३।
आजादी का फिर मतवाला जोश खरोश जगाना है।
आत्मालंबन हेतु स्वदेशी, मंत्र अचूक सिखाना है । तपो शक्ति से प्राप्त अलौकिक, सर्वांगीण विकास हो ।।४।।
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देश प्रेम का भाव जगाने
देश प्रेम का भाव जगाने, ग्राम नगर अभियान चले। लिए स्वदेशी मंत्र आज फिर, बालक वृद्ध जवान चले।।
आज विदेशी कम्पनियाँ फिर भरत भूमि पर आईं हैं। भारती की प्रभुसत्ता पर अधिकार जमाने आईं हैं।
‘ डालर के बल पर स्वदेश में, उद्योग लगाने आयीं हैं। सजग उठो हे भारत वासी, आजादी का गान चले… 11911
करें प्रतिज्ञा भारत वासी, वस्तु स्वदेशी लेंगे हम । अपना पैसा अपने घर में, देश समृद्ध बनायेंगे हम। माटी से सोना उपजाएँ, जाल विदेशी काटें हम । स्वाभिमान का भाव जगाने, ग्राम नगर अभियान चले……..।।२।।
ग्राम-ग्राम उद्योग लगायें, हस्तकला सरसायें हम। , भरे रहें भण्डार सभी के, अधिक अन्न उपजाएं हम। घर-घर दीप जले लक्ष्मी के, गीत खुशी के गायें हम। भारत भू का भाग जगाने, आज स्वदेशी भाव जगे……… ।। ३ ।।
१०१अपने पैरों आज खड़े हो, भीख नहीं हम माँगेंगे। कठिन परिश्रम करके हम सब आगे कदम बढ़ायेंगे ।। चरण चूमने मंजिल आये, भारत भाग्य बनायेंगे। मंत्र स्वदेशी तंत्र स्वदेशी का पावन अभियान चले.. 5……… 118 11
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दुःशासन की तोड़ भुजाएँ, पंचाली का शोक हरेंगे।
दुःशासन की तोड़ भुजाएँ, पंचाली का शोक हरेंगे।
काट तमिस्रा की काराऐं, कण-कण में आलोक भरेंगे ।। हमने पहचाना है उनको जो समाज को तोड़ रहे हैं।
भारतीय चिन्तन की धारा छल बल से जो मोड़ रहे हैं। हम अपनी संगठन शक्ति से षड़यंत्रों पर रोक करेंगे ।।१।।
अत्याचारी शासन में ही भंग हुई है मर्यादाएँ। करुणा की धरती पर लुटती सत्य अहिंसा की आत्माएँ।
हम विजिगिषु वृत्ति के वाहक, तीक्ष्ण शरों की नोक करेंगे ।।२।।
हर दंभी का दर्प दलन कर, रोपेंगे हम विजय पताका ।
रच देंगे अभिनव समाज हम, सत्य शील समता ममता । उच्चादर्शों की आभा से आलोकित यह लोक करेंगे ।।३।।
वीर व्रती हम ध्येयनिष्ठ हैं, विजयशालिनी शान्ति खड़ी है।
भारत माँ के श्रीचरणों में, सदा समर्पित भक्ति खड़ी है। कोटि कंठो से उच्चारित, हिन्दु राष्ट्र का श्लोक करेंगे । । ४ । ।
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मानवता को बचा प्रलय से
मानवता को बचा प्रलय से, पुनः शिखर पर प्रस्थापित कर ।
प्राप्त करें पुरुषार्थ चतुष्टय, हे जग जननी दो यह शुभ वर ।। हिरण्याक्ष की आंख लगी फिर, इस धरती के सोने पर
कृषक पुत्र बाराह उठे फिर, ध्वस्त व्यवस्था होने पर स्वर्ण किरण में जग पहिचानें, मिट्टी सोने से है सुन्दर । 1911
आज पुनः प्रहलाद बंधा है, नास्तिकता के खंभे से पूछ रही हैं तानाशाही, प्रगटेंगे प्रभु कब कैसे ? नारायण नरसिंह बने फिर, दानवता फिर काँपे थर-थर ||२||
भरतभूमि दायित्व सदा से, करना जग का मार्ग प्रदर्शन संभ्रम छोड़ उठे हम अर्जुन, योगेश्वर के अनुयायी बन अंधी शासन पद्धतियों से, मुक्त धरा हो मुक्त चराचर ||३||
जननी अपनी भक्ति प्रखर दो, स्वार्थ सकल घुल-घुल बह जावे गंगा यमुना सरस्वती सा, संगम जीवन को सरसाये राष्ट्र मालिका से चुन चुनकर, गुम्फित होवें मुक्ता मन हर॥४॥
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हे जन्म – भूमि तेरे
हे जन्मभूमि तेरे चरणों में हो समर्पित, मेरे जनम जनम के, कर्तव्य कर्म सारे । तेरे लिए जिए हैं, तेरे लिये जियेंगे । हो प्राण भी विसर्जित, तेरे लिए हमारे ।।
ये तन दिया है तूने, ये मन दिया है तूने, हर सांस दी है तूने, जीवन दिया है तूने । मेरा नहीं है कुछ भी, मैं पुत्र मात्र तेरा । तेरा ही रूप मेरा गुणधर्म सब तुम्हारे । ।
कितने ही विघ्न आए, आपात काल लाए, कारा की यातनाएँ, ले मृत्यु दूत आये। पर हम अडिग रहे माँ, तेरी ही थी ये करुणा । सब सह लिया है जननी तेरी, शक्ति के सहारे।।
जय का प्रभात आया, शासन का मोह लाया, पर हमको तेरी सेवा का पन्थ ही सुहाया।
हे माँ हमें वही दे चरणों की धूल ही दे। तेरी भक्ति में ही बीते पल क्षण सभी हमारे।।
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मातृ चरणों में समर्पित
मातृ चरणों में समर्पित है युगों की साधना । सत्य नूतन यश खिले तब यह अंकिचन कामना ।।
शीश तब हिमगिरि सुशोभित पग महोदधि धो रहा. नीर पावन सरित का तव पी चराचर जी रहा ।
शस्य श्यामल भूमि प्यारी हम करें आराधना ।। १ ।।
जो भी आया ले लिया हर्षित उससे तू गोद में, पिलाकर निज क्षीर पाला है उसे आमोद में।
विश्व में बेजोड़ तव वैशिष्ट्य माँ है मानना ।। २ ।।
कठिन झंझावात में भी तू अडिग हिमवान बन, है दिया जग को अपरिमित संस्कृति और ज्ञान धन ।
अखिल विश्वाधार औ सुख शांति की हो सर्जना । । ३ । ।
तव चरण की धूलि पर माँ कोटिशः सिर हैं समर्पित, अर्चना के दीप जननी कोटिशः हैं आज अर्पित।
कौन है जग में करे जो आज तव अवमानना । । ४ । ।
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बने हम हिन्द के योगी –संघ गीत
बनें हम हिन्द के योगी-धरेंगे ध्यान भारत का ।
उठाकर धर्म का झण्डा करें उत्थान भारत का ॥ – गले में शील की माला पहनकर ज्ञान की कफनी ।
१०४जय का प्रभात आया, शासन का मोह लाया, पर हमको तेरी सेवा का पन्थ ही सुहाया।
हे माँ हमें वही दे चरणों की धूल ही दे। तेरी भक्ति में ही बीते पल क्षण सभी हमारे।।
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संघ के संघ गीत आपको इस पेज से मिल जाएंगे। यह गीत न केवल एक राष्ट्रीय भावना को स्पष्ट करते हैं, बल्कि एक समृद्ध और समरस समाज की ओर प्रेरित करते हैं। इस संगीत के माध्यम से, हम अपनी आत्मा को राष्ट्रीय एकता और समरसता के साथ मिलाने का अनुभव करते हैं। गीतों के माध्यम से, संघ का अभूतपूर्व गौरव, ऐतिहासिक महत्व, और एक अद्वितीय सांस्कृतिक विरासत को महसूस करते हैं। इन गानों की शक्तिशाली धुनें हमें एक सुदृढ़ राष्ट्रीय भावना के साथ जोड़ती हैं और हमें याद दिलाती हैं कि हम सभी एक परिवार के सदस्य हैं। इस पेज पर उपस्थित गीतों से हम संघ के विशाल और बेहद महत्वपूर्ण सांस्कृतिक समृद्धि की ओर कदम बढ़ा सकते हैं। आधिकारिक वैबसाइट के लिए यहाँ क्लिक करे
