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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अध्ययन

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शाखा

सत्य की ओर: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में दुष्प्रचार का एक बड़ा झूठ

Posted on December 11, 2023December 11, 2023 by student
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

आजकल देशभक्ति और सामाजिक संगठनों के बारे में फैलाए जा रहे झूठों का सामना करना बहुत ही सामान्य हो गया है। इनमें से एक बड़ा झूठ है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के खिलाफ फैलाए जाने वाले दुष्प्रचार का। इस ब्लॉग में हम इस झूठ की खोज में निकलेंगे और संघ के देशभक्ति में किए गए योगदानों को साझा करेंगे।#राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इतिहास का पहला पन्ना:

ध्यान देने योग्य है कि 1936 में कांग्रेस के फैजपुर राष्ट्रीय अधिवेशन में तत्कालीन अध्यक्ष पं. जवाहरलाल नेहरू जी की ध्वजारोहण समय में जब ध्वज अटका था, तो संघ के स्वयंसेवक “किसन सिंह परदेशी” नामक वीर सैनिक ने उसे सही करने में मदद की थीं। लोगों ने उनकी प्रशंसा की थी, लेकिन जब पता चला कि वह संघ का सदस्य हैं, तो सम्मान नहीं मिला।#राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इतिहास का दूसरा पन्ना:

1947 में श्रीनगर (कश्मीर) में संघ के स्वयंसेवकों ने तिरंगे का सम्मान स्थापित किया। जब पाकिस्तानी झण्डे शहर की इमारतों पर फहराए गए, तो संघ के लोगों ने तीन हजार तिरंगे सिलवाकर पूरी राजधानी को उनसे पाट दिया।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इतिहास का तीसरा पन्ना:

1952 में जम्मू संभाग में संघ ने “तिरंगा सत्याग्रह” करके 15 बलिदान दिए, जिसका समर्थन करते हुए भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया।#राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इतिहास का चौथा पन्ना:

1954 में पूना के संघचालक विनायक राव आपटे के नेतृत्व में संघ के सौ कार्यकर्ताओं ने सिलवासा (दादरा और नगर हवेली) में घुसकर वहां से पुर्तगाली झण्डा उखाड़कर तिरंगा फहराया और पुर्तगाली शासन का अंत किया। #राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इतिहास का पाँचवाँ पन्ना:

1962 में चीनी सेना के आगे बढ़ते समय तेजपुर (असम) से संघ के स्वयंसेवकों ने तिरंगा फहराने के लिए दिन-रात ड्यूटी दी और देश के लिए अपनी जानें दी।#राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के बारे में दुष्प्रचार का एक बड़ा झूठ कुछ इस प्रकार फैलाया गया कि संघ तिरंगे को मान्यता नहीं देता है…..! इतिहास के पन्नों से कुछ जानकारियाँ मिली हैं जो सभी से साझा किया जाना मुझे उचित लगा,, आप भी जानिये …

(1) 1936 में कांग्रेस के फैजपुर राष्ट्रीय अधिवेशन में तत्कालीन अध्यक्ष पं. जवाहरलाल नेहरू जब ध्वजारोहण कर रहे थे, झण्डा बीच में ही अटक गया। ध्वजदंड अस्सी फुट ऊंचा था। अनेक ने उस पर चढ़कर ध्वज ठीक करने की कोशिश की, पर असफल रहे।

तभी “किसन सिंह परदेशी” नामक संघ का स्वयंसेवक तेजी से उस दंड पर चढ़ गया और ध्वज खोल आया।

लोगों ने प्रशंसा की। खुले अधिवेशन में परदेशी को सम्मानित करने की बात स्वयं नेहरू जी ने कही। पर जब पता चला कि परदेशी संघ का स्वयंसेवक है, तो सम्मान नहीं किया गया।

कुछ दिन बाद संघ के जन्मदाता डाक्टर हेडगेवार – किसन सिंह के गांव शिरपुर (महाराष्ट्र) आए और तिरंगे का मान रखने के लिए उन्होंने उसे एक कार्यक्रम में चांदी का पात्र भेंट किया।

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(2) देशभक्ति का सहज संस्कार प्राप्त संघ के स्वयंसेवकों ने 1947 में श्रीनगर (कश्मीर) में भी तिरंगे का सम्मान स्थापित किया था।

वहां 14 अगस्त को (जब पाकिस्तान बना) शहर की कई इमारतों पर पाकिस्तानी झण्डे फहरा दिए गए। तब कुछ ही घण्टों में संघ के लोगों ने तीन हजार तिरंगे सिलवाकर पूरी राजधानी उनसे पाट दी थी।

(3) लोग भूल गए हैं कि 1952 में जम्मू संभाग में संघ ने “तिरंगा सत्याग्रह’ करके 15 बलिदान दिए थे। हुआ यूं कि “सदर-ए-रियासत” का पद संभालने के बाद डा. कर्णसिंह 22 नवम्बर, 1952 को जम्मू आने वाले थे। उनके स्वागत समारोह में शेख अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कांफ्रेंस केवल अपना लाल-सफेद दुरंगा झण्डा फहराने चली थी। तब जम्मू क्षेत्र के सभी मुख्यालयों पर संघ कार्यकर्ताओं ने तिरंगा फहराए जाने की मांग को लेकर सत्याग्रह किए।

चार स्थानों- छम्ब, सुंदरवनी, हीरानगर और रामवन में इन “तिरंगा सत्याग्रहियों’ पर शेख की पुलिस ने गोलियां चलायीं, जिसमें मेलाराम, कृष्णलाल, बिहारी, शिवा आदि 15 स्वयंसेवक मारे गए थे। तिरंगा फहराने का अपना अधिकार जताने के लिए स्वतंत्र भारत में किसने ऐसी कुर्बानी दी है?

(4) 2 अगस्त, 1954 को पूना के संघचालक विनायक राव आपटे के नेतृत्व में संघ के सौ कार्यकर्ताओं ने सिलवासा (दादरा और नगर हवेली का मुख्यालय) में घुसकर वहां से पुर्तगाली झण्डा उखाड़कर तिरंगा फहराया था। पुर्तगाली पुलिसजनों को बंदी बना लिया और इस तरह वहां पुर्तगाली शासन का अंत किया।

(5) पणजी (गोवा) में 1955 में पुर्तगाली सरकार के सचिवालय पर भी पहली बार तिरंगा फहराने वाला व्यक्ति भी मोहन रानाडे नामक एक स्वयंसेवक था, जो इस “जुर्म’ में 1972 तक लिस्बन (पुर्तगाल) की जेल में रहा।

(6) गोवा में पुर्तगाल शासन के खिलाफ तिरंगा हाथ में लिए सत्याग्रह करते हुए राजाभाऊ महाकाल (उज्जैन के स्वयंसेवक) पुलिस की गोली से मारे गए थे।उन्ही की स्मृति में उज्जैन बस स्टेण्ड का नाम राजाभाऊ महाकाल रखा गया है । ऐसे कितने ही उदाहरण हैं।

(7) 1962 में जब चीनी सेना नेफा (अब अरुणाचल प्रदेश) में आगे बढ़ रही थी, तेजपुर (असम) से कमिश्नर सहित सारा सरकारी तंत्र तथा जनसाधारण भयभीत होकर भाग गए थे। तब आयुक्त मुख्यालय पर तिरंगा फहराए रखने के लिए सोलह स्वयंसेवकों ने दिन-रात ड्यूटी दी थी।

(😎 15 अगस्त, 1996 को लाल चौक, श्रीनगर में आतंकवाद के सीने पर संघ के ही एक स्वयंसेवक मुरली मनोहर जोशी ने तिरंगा फहराया था।

तिरंगे की आन के लिए स्वतंत्र भारत में ऐसी कुर्बानी किसी ने भी नहीं दी है…!!!!

और इसके लिए संघ या स्वयंसेवको को किसी के शिक्षा की जरुरत नहीं है, क्योकि देशभक्ति संघ के स्वयंसेवकों का सहज संस्कार है।

🚩वन्दे मातरम्🏻

समापन:

इन घटनाओं की रौशनी में हम देख सकते हैं कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और उसके सदस्यों ने हमारे देश के लिए अद्भुत योगदान दिया है। इन संघीयों की देशभक्ति और तिरंगे के प्रति आन में किसी भी संगठन की नहीं है। इसलिए, हमें सच्चाई का सामना करते हुए समझना चाहिए कि ये धरोहर हमारे देश के लिए हमेशा सेवारत रहे हैं और उनकी योगदान को सही दृष्टिकोण से देखना चाहिए।

वन्दे मातरम्!

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