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सरदार भगत सिंह जी का संझिप्त परिचय
देश की स्वतंत्रता के लिये जो रास्ता शहीदे आजम भगत सिंह ने चुना था उसने आजादी की लड़ाई को निर्णयात्मक स्थिति तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लाला लाजपत राय के शहीद होने के बाद भगत सिंह ने महसूस किया कि अंग्रेजों के बहरे कानों में आजादी का मंत्र खामोशी से नहीं फूंकना चाहिये बल्कि उसे पूरे विश्व को सुनाते हुए स्वतंत्रता के अधिकार की आवाज को पक्के इरादे के साथ चरमोत्कर्ष पर पहुँचाना चाहिये। #सरदार भगत सिंह
- इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिये भगत सिंह ने अपने साथियों के साथ असेम्बली में बम फेंका। नौजवान भारत सभा, जिसके संचालक भगत सिंह स्वयं थे, ने बम कांड की जिम्मेदारी स्वीकार की। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने इस संबंध में जो वक्तव्य दिया उसकी लाखों प्रतियाँ भारत के कोने-कोने में पहुँचाई गईं। इन प्रतियों में भगत सिंह की तस्वीर और उनका जीवन परिचय भी छपा था। ‘इंकलाब जिन्दाबाद’ का नारा इन्हीं प्रतियों के माध्यम से पूरे देश में गूंजा। जेल अधिकारियों के बर्बरतापूर्ण व्यवहार का विरोध भगत सिंह और उनके साथियों ने भूख हड़ताल रखकर किया। #सरदार भगत सिंह
भगत सिंह ने जेल में रहते हुए लाहौर षड्यंत्र केस का मुकाबला बड़ी हिम्मत और सूझबूझ से किया। वे कारावास में रहकर देश की आजादी की लहर की बारीकियों को समझ रहे थे। इसी दौरान उन्होंने अपनी जेल डायरी लिखी, जो हिन्दी, पंजाबी और अंग्रेजी में प्रकाशित हुई है। इस डायरी में उन्होंने अनेक ग्रंथों के सार्थक संदर्भों को रेखांकित किया है। वास्तव में भगत सिंह की जेल डायरी उनके विस्तृत अध्ययन का प्रतीक है। #सरदार भगत सिंह
7 अक्टूबर 1930 की सुबह विशेष दूत के माध्यम से कारावास भोग रहे भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फाँसी की सजा की सूचना दी गई। फैसले का दिन गुप्त रखा गया। जैसे ही यह सूचना जनसाधारण तक पहुँची, लोगों में सरकार के इस फैसले के प्रति घृणा और विद्रोह का स्वर जाग उठा । लाहौर की सड़कों पर सरकार के खिलाफ कई जुलूस निकले। भगत सिंह जिन्दाबाद के नारे से पूरा पंजाब गूंज उठा। सरकार काँप उठी, उसे लगा कि शायद इससे बड़ा विरोध उनके पिछले डेढ़ सौ वर्ष के राज में नहीं हुआ था। 23 मार्च, 1931 को भगत सिंह और उनके साथियों को फाँसी दे दी गयी। बिजली की तरह यह खबर पूरे देश में फैल गई। पूरा देश इंकलाब जिन्दाबाद के नारों से गूंज उठा। #सरदार भगत सिंह
अपने छोटे भाई को लिखी यह आखिरी चिट्ठी उनकी शूरवीरता, इंसानियत की प्रतीक और देश के लिये संदेश भी है। केन्द्रीय जेल, लाहौर 3 मार्च, 1931 प्यारे कुलतारा. आज तुम्हारी आँखों में आँसू देखकर बहुत दुःख पहुँचा। आज तुम्हारी बातों बहुत दर्द था। तुम्हारे आँसू मुझसे सहन नहीं होते। बरखुदार, पढ़ाई करते रहना में और सेहत का ख्याल रखना। हौसला रखना, और क्या कहूँ। उसे फ्रिक है हरदम, नई तर्जे-जफा क्या है, हमें यह शौक है देखें, सितम की इन्तहा क्या है? दहर से क्यों खफा रहें, चर्ख का क्यों गिला करें। सारा जहाँ अदू सही, आओ मुकाबला करें। कोई दम का मेहमां हूँ, ए अहले महफिल, चिराग सहर हूँ, बुझा चाहता हूँ। मेरी हवा में रहेगी, ख्याल की बिजली। यह मुश्ते-खाक है फानी, रहे न रहे। #सरदार भगत सिंह
अर्थ- “सुबह की लालिमा में मेरे भाग्य की इस त्रासदी को कौन टाल सकता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, बेशक पूरा विश्व हमारे विरोध में खड़ा हो जाये। मेरे प्यारे भाई, मेरे जीवन का अन्त निकट है। भोर के तारे की तरह मेरा जीवन दीप शीघ्र ही प्रभात के आलोक में समा जायेगा। हमारे आदर्श बिजली की कौंध की तरह पूरे विश्व में जागृति पैदा कर देंगे। फिर यदि यह मुट्ठी भर राख नष्ट भी हो जाये तो दुनिया का इससे कुछ भी संवरता बिगड़ता नहीं है।”
तुम्हारा भाई भगत सिंह
सरदार भगत सिंह
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