एकलगीत
आज मनायें रक्षाबन्धन
अतीत से नव-स्फूर्ति लेकर वर्तमान में दृढ़ उद्यम कर भविष्य में दृढ़ निष्ठा रखकर कर्मशील हम रहे निरन्तर ।1।
बलिदानों की परम्परा से स्वराज्य है यह पावन जिनसे वंदन उनको कृतज्ञता से ध्येय-भाव का करें जागरण ॥2॥
स्वार्थ-द्वेष को आज त्यागकर अहं-भाव का पाश काटकर अपना सब व्यक्तित्व भुलाकर विराट का हम करते दर्शन 131
अरुण-केतु को साक्षी रखकर निश्चय वाणी आज गरजकर शुभ-कृति का यह मंगल अवसर निष्ठा मन में रहे चिरंतन 141
एकलगीत और अधिक जानकारी के लिया यहाँ क्लिकhttp://RSSSANG.ORG