गणगीत
जिनके ओजस्वी वचनों से, गूंज उठा था विश्व गगन।
वही प्रेरणा पूञ्ज हमारे, स्वामी पूज्य विवेकानन्द ।।
जिनके माथे गुरू कृपा थी, दैविक गुण आलोक भरा।
अदभुत प्रज्ञा प्रकटी जग में, धन्य धन्य यह पुण्य धरा ।।
सत्य सनातन परम ज्ञान का, जो करते अभिनव चिंतन । वही प्रेरणा पुञ्ज हमारे..
जिनका फौलादी भुजबल था, हर संकट में सदा अटल ।
मर्यादित, तेजस्वी जीवन, सजग समर्पित थे हर पल।
हो निर्भय जो करें गर्जना, जिनके अंतस दिव्य अगन।। वही प्रेरणा पुञ्ज हमारे..
जिनके रोम-रोम में करूणा, समरस जनजीवन की चाह ।
नष्ट करें सारे भेदो को, सेवाव्रत की सच्ची राह।।
दरिद्र ही नारायण जिनका, हर धड़कन में अपनापन।। वही प्रेरणा पुञ्ज हमारे..
जिनके मन था स्वप्न महान, हो भारत का पुनरूत्थान ।
जीवन दीप जलाकर पायें, गौरवमय-वैभव सम्मान।
जगती में सब सुखद-सुमंगल, बहे सुगन्धित मुक्त पवन ।। वही प्रेरणा पुञ्ज हमारे..
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