गणगीत
जीवन में कुछ करना है तो, मन को मारे मत बैठो । आगे-आगे बढ़ना हैं तो, हिम्मत हारे मत बैठो । । ध्रु ।।
चलने वाला मंजिल पाता, बैठा पीछे रहता है। ठहरा पानी सड़ने लगता, बहता निर्मल रहता है। पांव दिए चलने की खातिर, पांव पसारे मत बैठो। आगे-आगे बढ़ना है तो……. ।।1।।
तेज दौड़ने वाला खरहा, दो पल चलकर ठहर गया। धीरे-धीरे चलकर कछुआ, देखो बाजी मार गया। चलो कदम से कदम मिलाकर, दूर किनारे मत बैठो । आगे-आगे बढ़ना है तो………. ।।211
धरती चलती तारे चलते, चांद रात भर चलता है। किरणों का उपहार बांटने, सूरज रोज निकलता है। हवा चले तो महक बिखेरे, तुम भी प्यारे मत बैठो। आगे-आगे बढ़ना है तो….. ।।3।।
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