गीत
हम सभी का जन्म तव प्रतिविम्ब सा बन जाये, और अधूरी साधना चिर पूर्ण बस हो जाये ।। बाल्य जीवन से लगाकर अन्त तक की दिव्य झाँकी, मूक आजीवन तपस्या जा सके किस भाँति आँकी, क्षीर सिंधु अथाह, विधि से भी न नापा जाये, चाह है उस सिंधु की हम बूँद ही बन जायें।।।। थे अकेले आप लेकिन बीज का था भाव पाया। बो दिया निज को अमरवट संघ भारत में उगाया। राष्ट्र ही क्या अखिल जग का आसरा हो जाये, और हम उसकी टहनियाँ-पत्तियाँ बन जाये ।। 2 ।। आप के दिल की कसक हो वेदना जागृत हमारी, ‘याचि देही याचि डोला’ मंत्र रटते हैं पुजारी। बढ़ रहे हम आप का आशीष स्वर्गिक पाय, जो सिखाया आपने प्रत्यक्ष हम कर पाए।
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