गीत
जाग उठें हम हिंदू फिर से विजय ध्वजा फहराने। अंगड़ाई ले चलें तरुण माता के कष्ट मिटाने ।। ध्रु ।। जिनके पुरखे महा यशस्वी वे फिर क्यों घबराएं। जिनके सुत अतुलित बलशाली शौर्य गगन पर छायें लेकर शस्त्र शास्त्र को कर में शत्रु हृदय दहलाने ।।।।। हम अगस्त्य बन महा सिंधु को अंजुलि में पी जाएँ। तीन डगों में सृष्टि नाप लें कालकूट पी जाएँ। पृथ्वी के हम अमर पुत्र है जग को चले जगाने ।।2।। हिन्दु भाव को जब जब भूले आई विपद महान। भाई छूटे धरती खोई मिट गये धर्मस्थान। भूलें छोड़े और गुंजा दें जय से भरे तराने ।।३।।
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