गणगीत
युगों-युगों से यही हमारी बनी हुई परीपाटी है। खून दिया है मगर नही दी कभी देश की माटी है।।
इस धरती ने जन्म दिया है यही पुनीता माता है। एक प्राण दो देह सरीखा, इससे अपना नाता है।। यह घरती है पार्वती माँ, यही राष्ट्र शिवशंकर है। दिग्मण्डल सांपो का कुण्डल, कण-कण रूद्र भयंकर है।। यह पावन माटी ललाट की, ललित ललाम ललाटी है।।1।। खून दिया है….
इसी भूमि-पुत्री के कारण, भस्म हुई लंका सारी। सुई नोक पर भू के पीछे, हुआ महाभारत भारी।। पानी सा बह उठा लहू था, पानीपत के प्रांगण में। बिछा दिये रिपुगण के शव थे, उसी तरायण के रण में।। पृष्ठ बांचती इतिहासों के, अब भी हल्दीघाजी है। 12 ।। खून दिया है…
सिक्ख, मराठे, राजपूत क्या, बंगाली क्या मद्रासी । इसी मंत्र का जाप कर रहे, युग-युग से भारतवासी ।। बुन्देले अब भी दोहराते यही मंत्र है झांसी में। देंगे प्राण न देंगे माटी गूंज रहा है नस-नस में।। शीश चढ़ाया काट गरदनें या अरि गर्दन काटी है।।3।1 खून दिया है..
इस धरती के कण-कण पर है चित्र खिंचा कुर्बानी का। एक-एक कण छन्द बोलता चढ़ी शहीद जवानी का।। इसके कण हैं, नहीं किन्तु ये ज्वालामुखियों के शोले हैं। किया किसी ने धावा इन पर ये दावा से डोले हैं।। इन्हें चाटने बढ़ा उसी ने धूल धरा की चाटी है।14।।
गणगीत और अधिक जानकारीके लिया यहाँ क्लिक करे http://RSSSANG.OGL