गीत
हम सेवक हैं मानवता के, सेवा धर्म हमारा है। दीन-दुःखी की सेवा करना, निश्चित कर्म हमारा है।।। ध्रु. ।। जिसने सेवा धर्म निभाया, नर में नारायण देखा, वही महामानव देखेगा, हर मानव में प्रभु रेखा, एक ब्रह्य है पिता सभी का, निर्मित यह जग सारा है। ।1।।
दीन दुःखी की सेवा……….
सभी सुखी हों सभी निरोगी, सबको सुविधा एक मिले, नीति नियम से बंधे सभी हों, पर स्वतन्त्र प्रत्येक मिले, अनिल-अनल भू-नभ जल सब पर, शुचि अधिकार हमारा है। ।2।।
दीन दुःखी की सेवा..
सबको मिले जीविका जग में, भूखा सोये जीव वही, सभी करे श्रम साहस संयम, अपनाये तरकीब यही, सब समान हों सब सहान हों, यह हमने स्वीकारा है। ।3।।
दीन दुःखी की सेवा.
शिक्षा की सुविधा हो सबको, सभी एक हों भेद न हो, अपना-अपना कर्म करें सब, पछतावा या खेद न हो, स्वस्थ सुखी सानन्द रहें सब, यहअभियान हमारा है। ।4।।
दीन दुःखी की सेवा..
अबला बाल वृद्ध रोगी को, मिले सहारा हम सबका, निर्बल निरीह और निर्धन को, हो न कहीं कोई खटका, जो सेवा को धर्म मानता, वह ईश्वर का प्यारा है। ।5।।
दीन दुःखी की सेवा.
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