सुभाषित
अमानी मानदो मान्यो लोकस्वामीत्रिलोकधृक् ।
सुमेधा मेधजो धन्यः सत्यमेधा धराधरः ॥
विष्णु सहस्त्रनाम श्लोक 93 (भीम-युधिष्ठिर संवाद)
अर्थ: जिसे स्वयं के सम्मान की चिन्ता नहीं, जो दूसरों का सम्मान करता है,
इसी कारण सर्वमान्य होता है। वही समाज का नैतिक नेतृत्व प्राप्त करता है।
ऐसा कार्यकर्ता मेधावी, धन्य, अपनी बात को योग्य रूप से रखने
वाला तथा पृथ्वी की भांति सबको सम्भालने वाला होता है।
अगस्त माह हेतु
गुरुमुखि नादं गुरुमुखि वेदं गुरुमुखि रहिया समाई ।
गुरु ईसरु गुरु गोरखु बरमा गुरु पारबती माई ।।
अर्थ : गुरुवाणी ही शब्द एवं वेद है।
प्रभु इन्हीं शब्दों एवं विचारों में विश्वास करते हैं।
गुरु ही ईश्चर, त्रिमूर्ति एवं पार्वती माता है। (
श्री जपुजी साहेब श्री गुरुनानक देवजी की वाणी का संग्रह तथा श्री गुरुग्रंथ साहेव
सितम्बर माह हेतु
उदये सविता रक्तो रक्तश्चास्तमये तथा ।
सम्पत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरुपता ॥ हितोपदेश)
अर्थ : सूर्य उदय होते समय लाल वर्ण का होता है तथा अस्त होते
समय भी ला वर्ण का ही होता है। इसी प्रकार महपुरुष भी सम्पत्ति तथा
विपत्ति दोनों स्थितियों में सूर्य के समान एकरूप होते हैं।
सम्पत्ति में हर्ष युक्त तथा विपत्ति में विषादयुक्त नहीं होते।
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