सुभाषित
निश्चित याः प्रकर्मयते, नान्तर्वसवि कर्मणा।
अवन्ध्यकालो वश्यात्मा, स वै पण्डित उच्चयते ।।
भावार्थ : जो पहले निश्चय करके फिर कार्य का प्रारम्भ करता है।
कार्य के बीच में नहीं रूकता समय को व्यर्थ नहीं जाने देता
और चित्त को वश में रखता है वही विद्वान कहलाता है।
- मई मास हेतू
नाभिशेको न संस्कारः सिंहस्य क्रियते मृगैः।
विक्रमार्जित् राज्यस्य स्वयमेव मृगेन्द्रता ।।
भावार्थ-जंगल में सिंह का राज्यभिशेक या
अन्य कोई संस्कार जानवरों द्वारा नही किया जाता।
सिंह विक्रम से जीते हुए राज्य का स्वयं ही मृगेन्द्र होता है।
- जून मास हेतू
धर्म संस्कृति सम्पन्न धीर उद्वाव गुणान्वितम् ।
संघ षक्ति बिना राश्ट्रं न भवेत् जगत आदृतम ।।
भावार्थ: भले ही कोई भी देश उत्तम धर्म और श्रेश्ठ संस्कृति वाला हो
और उदान्त गुणों से परिपूर्ण हो, किन्तु वह यदि संगठन शक्ति हो
तो उसे संसार में आदर नही मिल सकता। से रहितa