गीत
हम सभी का जन्म तव प्रतिविम्ब सा बन जाय,
और अधूरी साधना चिर पूर्ण बस हो जाय।।
बाल्य जीवन से लगाकर अन्त तक की दिव्य झाँकी
मूक आजीवन तपस्या जा सके किस भाँति आँकी
, क्षीर सिंधु अथाह, विधि से भी न नापा जाय
, चाह है उस सिंधु की हम बूँद ही बन जाय ।।
1।। थे अकेले आप लेकिन बीज का था भाव पाया। ]
बो दिया निज को अमरवट संघ भारत में उगाया।
राष्ट्र ही क्या अखिल जग का आसरा हो जाय,
और उसकी हम टहनियाँ-पत्तियाँ बन जाएँ ।।
211 आप के दिल की कसक हो वेदना जागृत हमारी,
‘याचि देही, याचि डोला’ मंत्र रटते हैं पुजारी।
बढ़ रहे हम आप का आशीष स्वर्गिक पाय
, जो सिखाया आपने प्रत्यक्ष हम कर पाएँ
साधना की पूर्ति फिर लवमात्र में हो जाय ।। ३||
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