गीत
अंतर से, मुख से, कृति से, निश्छल हो
निर्मल मति से, श्रद्धा से, मस्तक नति से, हम करें राष्ट्र अभिवादन ।।
हम अपने हँसते शैशव से, अपने खिलते यौवन से, प्रौढ़तापूर्ण जीवन से, हम करें राष्ट्र का अर्चन ।।
हम….. अपने अतीत को पढ़कर, अपना इतिहास उलट कर,
अपना भवितव्य समझकर, हम करें राष्ट्र का चिन्तन ।।
हम्म…. हैं याद हमें युग-युग की जलती अनेक घटनाएँ जो माँ के सेवा पथ पर आई बनकर
विपदाएँ, हमने श्रृंगार किया था माता का अरिमुण्डों से,
हमने ही उसे दिया था सांस्कृतिक उच्च सिंहासन,
माँ जिस पर बैठी सुख से करती थी जग का शासन,
अब कालचक्र की गति से वह टूट गया सिंहासन,
अपना तन-मन-धन देकर, हम करें पुनः संस्थापन। हम करें राष्ट्र आराधन ।।
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