सुभाषित
हिमालयं समारभ्य यावद् इन्दुसवरम ।
तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते ॥
अर्थ : हिमालय से लेकर हिन्द महासागर (इन्दु सरोवर) तक
विस्तृत एवं देवताओं द्वारा निर्मित इस देश को हिन्दुस्थान कहते है।
अगस्त मास हेतु
उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम् ।
वर्ष तद् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः ॥
अर्थ : पृथ्वी का वह भू-भाग, जो समुद्र के उत्तर और हिमालय
के दक्षिण में स्थित है, “भारतवर्ष” कहलाता है तथा उसकी (हम)
सन्तानें भारतीय हैं।
सितम्बर मास हेतु
सोना सज्जन साधुजन टूटि जुरै सौ बार ।
दुर्जन कुम्भ कुम्हार कै एकै धका दरार ॥
अर्थ : सोना, सज्जन और सन्तजन बिखर जाने पर भी जुड
जाते हैं पर दुर्जन व्यक्ति व कुम्हार का कच्चा मिट्टी का घड़ा, ये एक
ही धक्का से टूटकर हमेशा के लिये बिखर जाते हैं अर्थात् नष्ट हो जाते हैं।
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