गणगीत
युग परिवर्तन की वेला में, हम सब मिलकर साथ चले
देश धर्म की रक्षा के हित, सहते सब आघात चले।
मिलकर साथ चलें – ३
शौर्य पराक्रम की गाथायें, भरी पड़ी है इतिहासों में
परम्परा के चिर उन्नायक, जिये निरन्तर संघषों में
हृदयों में उस राष्ट्र प्रेम के, लेकर हम तूफान चलें ॥
मिलकर साथ चलें – २
कलियुग में संगठन शक्ति ही, जागृति का आधार बनेगी,
एक सूत्र में पिरो सभी को, सपने सब साकार करेगी।
संस्कृति के पावन मूल्यों की, लेकर हम सौगात चलें ॥
मिलकर साथ चलें -२
ऊँच-नीच का भेद मिटाकर, समरस जीवन को सरसापे,
फैलाकर आलोक ज्ञान का, परा शक्तियों को प्रकटायें ।
निविड़ निशा की काट कालिमा, लाने नवल प्रभात चलें।।
मिलकर साथ चलें -२
अडिग हमारी निष्ठा उर में, लक्ष्य प्राप्ति की तड़पन मन में,
तन-मन-धन सब अर्पण करने, संघ मार्ग के दुष्कर रण में।
केशव के शाश्वत विचार को, ध्येय मान दिन-रात चलें ॥
मिलकर साथ चलें -२
#अधिक जानकरी के लिया संपर्क करे # गणगीत / https://rsssangh.in/ http://rsssangh.org