#अमृत वचन ऐसे महापुरुष जो अमर हो चुके है उनकी वाणी को ही #अमृत वचन कहते है जो निम्न प्रकार है
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जनवरी महीने का अमृत वचन

स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा “यह मातृभूमि अपनी माता हैं, यह चेतनामयी हैं, आदिशक्ति जगजननी का स्वरूप हैं। केवल कंकड़ पत्थर नही। इसलिए हम सभी इसकी आराधना करते हैं, वह हमारी आराध्य देवी हैं”।#अमृत वचन
फरवरी महीने का अमृत वचन
मा० यादवराव जोशी जी ने कहा– केवल संघ का जाप निरन्तर अपने मन के अन्दर, अपने हृदय के अन्दर इसी मंत्र का जाप करूंगा। रात में संघ, निंद्रा में भी संघ एवं चारों ओर संघ का जय जयकार करूंगा।#अमृत वचन
मार्च महीने का अमृत वचन
स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा- “तब और तब ही तुम हिन्दू कहलाने के अधिकारी हो। जब इस नाम को धारण करने वाले किसी भी व्यक्ति का दुख-दर्द तुम्हारे हृदय को इस प्रकार व्याकुल कर दें, मानों तुम्हाराअपना ही भाई संकट में हो”।#अमृत वचन
अप्रैल महीने का अमृत वचन
श्री बालशास्त्री हरदाज ने कहा कि क्रान्तिकार आदोलन चलाते समय डाक्टर जी को यह अनुभव आया कि संस्कारित पीढ़ी के निर्माण के बिना कोई भी पुनरूत्थान का प्रयत्न सफल नहीं हो सकेगा। आज हमें राष्ट्र के लिए मरना नहीं दीप के समान तिल-तिल जलते हुए जीना होगा। उनके इसी चिन्तन ने आगे चलकर ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के रूप में राष्ट्र के अभ्युदय हेतु एक अभिनव कार्य को जन्म दिया। #अमृत वचन
प०पू० श्री गुरु जी ने कहा- अपना विचार तो बहुत सरल है। यह भारत भूमि अपनी मातृभूमि है तथा किसी ओर का इस माता के प्रेम पर अधिकार नहीं यह बात हम स्पष्ट रूप से बोलते हैं और समझते हैं, इसकी यथार्थ अनुभूति लेकर हमें कार्य करना है इस सिद्धान्त पर किसी का लेन-देन समझौता नही हो सकता है।#अमृत वचन
प०पू० श्री गुरु जी ने कहा- अपना विचार तो बहुत सरल है। यह भारत भूमि अपनी मातृभूमि है तथा किसी ओर का इस माता के प्रेम पर अधिकार नहीं यह बात हम स्पष्ट रूप से बोलते हैं और समझते हैं, इसकी यथार्थ अनुभूति लेकर हमें कार्य करना है इस सिद्धान्त पर किसी का लेन-देन समझौता नही हो सकता है।#अमृत वचन
मई महीने का अमृत वचन
स्वामी विवेकानन्द ने भी सेवा को सर्वोच्च कार्य बतात हुए शिवभाव से सेवा करने की प्रेरणा दी है। उन्होंने मन्त्र दिया। यत्र जीव तत्र शिव जहाँ जीव है वहाँ शिव है जिसकी सेवा कर रहे हैं उसे शिव मानते हुए सेवा करना आध्यात्मिक चरम सत्य का आविष्कार है। इसलिए उन्होंने दीन दुखियों के लिए ‘दरिद्र नारायण’ शब्द का प्रयोग किया।#अमृत वचन
प. पू. श्री गुरू जी ने कहा कि किसी राष्ट्रीय समस्या या संकट के प्रति हमारा यह संकुचित दृष्टिकोण ही विभिन्न समस्याओं का जनक है और जब तक राष्ट्र सम्बन्धी व्यापक दृष्टिकोण की गहराई में जाकर विचार नहीं करेंगे तब तक स्थानीय और तात्कालिक उपचार व्यर्थ ही सिद्ध होंगे।#अमृत वचन
जून महीने का अमृत वचन
श्री सुभाष चन्द्र बोस ने कहा कि एक सैनिक के रूप में आपको हमेशा तीन आदर्श को संजोना और उन पर जीना होगा। सच्चाई, कर्तव्य और बलिदान को जो सिपाही हमेशा अपने देश के प्रति वफादार रहता है। जो हमेशा अपना जीवन बलिदान करने को तैयार रहता है वो अजेय है, अगर तुम भी अजेय बनना चाहते हो तो इन तीन आदर्शों को अपने हृदय में समाहित कर लो।#अमृत वचन
प०पू० श्री गुरू जी ने कहा- सम्पूर्ण शक्तिशाली हिन्दु समाज यही हम सबका एकमात्र श्रद्धा स्थान होना चाहिए जाति, भाषा प्रान्त पक्ष ऐसी सभी विचारों को समाज शक्ति के बीच में नहीं आने देना चाहिए।#अमृत वचन
अक्टूबर महीने का अमृत वचन
मा. भैयाजी दाणी ने कहा- पू. डॉक्टर जी का अन्तःकरण मातृभूमि के उद्धार के लिये आमरण तड़पता रहा। जन्मभूमि के लिये उन्होंने अपने सर्वस्व जीवन की आहुति चढ़ा दी। डॉक्टर जी का जीवन मानो अखण्ड रूप से चलने वाला यज्ञ था। अपने जीवन को तिल-तिल जलाकर उन्होंने हिन्दू राष्ट्र में नूतन प्रकाश फैलाकर हिन्दू समाज को नवदृष्टि प्रदान की।#अमृत वचन
नवम्बर मास हेतु अमृत वचन
प. पू. श्रीगुरुजी ने कहा – किसी व्यक्ति को किसी देश में जन्म लेने तथा पालन पोषण होने मात्र से ही उस भू-भाग के राष्ट्रीय होने का अधिकार नहीं मिल जाता। इसके लिये तदनुरुप मानसिक प्रतिमान की आवश्यकता होती है। राष्ट्रीयता के लिये मानसिक निष्ठा एक ऐसा तत्त्व है, जिसे सम्पूर्ण संसार स्वीकार करता है।#अमृत वचन
दिसम्बर मास हेतु अमृत वचन
प.पू. डॉ. हेडगेवार जी ने कहा – कार्यकर्ता के लिये मार्गदर्शक सिद्धान्त होना चाहिये, दूसरों के गुणों के बीजों का सिंचन करना तथा उनकी बुराईयों को सावधानी से बिना दूसरों पर प्रकट किये हुए अपने श्रेष्ठ चरित्र का उदाहरण उनके सामने रखकर दूर करना।#अमृत वचन
अम्रतवचन
परमपूजनीय डॉक्टर जी के कष्टपूर्ण परिश्रमी एवं कर्मठ जीवन से सर्वसाधारण व्यक्ति को एक आशादायी संदेश मिलता है। – दरिद्रता, प्रसिद्धिविहीनता, बड़ों की उदासीनता, परिस्थिति की प्रतिकूलता, पग-पग पर बाधाएँ, विरोध, उपेक्षा, उपहास आदि के कटु अनुभव के साथ साथ स्वीकृत कार्य की पूर्ति के लिये आवश्यक साधनों का अत्यन्त अभाव आदि कितनी ही कठिनाइयाँ मार्ग में आवें तो भी अपने कार्य के साथ तन्मय होकर “मुक्त संगोऽनहंवादी’ इस वृत्ति से सुख-दुःख, मान अपमान, यश-अपयश आदि किसी की भी चिन्ता न करते हुए यदि कोई प्रयत्न रत रहेगा तो अवश्य ही सफलता मिलेगी।#अमृत वचन
हिन्दू जब तक हिन्दू है, तभी तक वह भारत की रक्षा के लिए प्राणोत्सर्ग कर सकता है, सर्वस्व होम कर सकता है। वह प्यारी मातृभूमि, परम पवित्र पुण्यभूमि के प्रति प्राण देकर स्वर्ग व मोक्ष प्राप्ति की कामना कर सकता है। किन्तु वह यदि धर्म परिवर्तन करके मुसलमान या ईसाई हो गया तो फिर क्यों वह व्यर्थ ही इस मिट्टी के ढेर की रक्षा के लिए प्राण देगा? उसकी पुण्यभूमि भी काशी से बदल कर मक्का-मदीना हो जाएगी । अतः यह निश्चयपूर्वक समझ लेना चाहिए कि इस देश का सच्चा राष्ट्रीय, वास्तविक भक्त हिन्दू ही रहा है, हिन्दू ही रहेगा। – वीर सावरकर
अपने इस कार्य की इतनी प्रगति हो कि कभी जगद्गुरु कहलाने वाले इस पवित्र ध्वज के सामने एक बार पुनः संसार नत मस्तक हो जाए, इसके चरणों में अपने जीवन की भेंट चढ़ाकर इसकी पूजा करने के लिए बाध्य हो जाए। यही आकांक्षा, यही आवेश अपने अंतःकरण में उत्पन्न हो । – प. पू. श्री गुरुजी
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने किसी भी व्यक्ति को गुरु नहीं माना है। संघ ने प्राचीन राष्ट्र के चिरंतन, ऐतिहासिक तथा आध्यात्मिक आदर्श के प्रतीक भगवाध्वज को ही गुरु माना है। ज्ञान, त्याग, पावित्र्य, संयम, शौर्य, औदार्य आदि अनेक उदात्त गुणों से जिनका व्यक्तित्व निर्माण हुआ तथा भारतीय राष्ट्र की उज्ज्वल परम्परा अनेक दुर्घट संकटों में भी जिन्होंने अबाधित रखी, उन असंख्य पुरुषों ने भी भगवाध्वज के सम्मुख नत होने में अपने आपको धन्य माना है। दैवीगुणों का दिव्य तथा अनादि इतिहास इस ध्वज के एक-एक धागे में गुँथा हुआ है। गुरुपुर्णिमा के दिन इसी भगवाध्वज की हम अर्चना करते हैं। सर्वस्वर्पण की प्रेरणा लेते हैं। तन-मन-धन से इस गुरु के गौरव के लिए उद्यमशील होने का दृढ़ संकल्प करते हैं।#अमृत वचन
आषाढ़ पूर्णिमा समाज की गुरु शक्ति की पूजा का दिन है। राजसत्ता, धनसत्ता व भूमिसत्ता आदि सब से ऊँची गुरु की सत्ता मान्य है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपना गुरु किसी व्यक्ति को न मानकर यज्ञ संस्कृति के प्रतीक परम पवित्र भगवाध्वज को अपना गुरु माना है। क्योंकि यह परम पवित्र भगवाध्वज ही राष्ट्र सम्बन्धी अमूर्त भक्ति-भावना को मूर्तरूप देने के लिए सबसे अधिक व्यापक साधन है। इस परम पवित्र भगवाध्वज में हम अपने देश का समग्र इतिहास प्रतिबिम्बित पाते हैं।#अमृत वचन
डॉ. अम्बेडकर जी ने कहा, “शिक्षित होना ही सबकुछ नहीं है, शिक्षा के साथ चरित्रसम्पन्न बनना होगा । चरित्र के बिना शिक्षा निरर्थक हो जाती है। शिक्षित व्यक्ति यदि चारित्र्य सम्पन्न होगा तो अपने ज्ञान का उपयोग समाज कल्याण के लिये कर सकेगा, शील अर्थात् चारित्र्य धर्ममय जीवन का परिपाक है।#अमृत वचन
श्री गुरुजी ने कहा- ‘राष्ट्र क्या है ? राष्ट्र के लिये मातृभूमि एवं उस भूमि के प्रति श्रद्धाभाव रखने वाले लोग आवश्यक हैं, जिन लोगों में समान परम्परा, समान आदर्श, समान भय, समान आकांक्षायें हैं, उस समाज को राष्ट्र कहते हैं। सरल शब्दों में यही हिन्दूराष्ट्र और हमारी मातृभूमि है।#अमृत वचन
स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी ने कहा– “लोगों की चिंता करने वाले आप कौन हैं? आपका धर्म केवल उनकी सेवा करना है। कारण, वे साक्षात् नारायण के रूप हैं।”#अमृत वचन
महर्षि अरविन्द जी ने कहा कि मैं तुमसे केवल वह शक्ति माँगता हूँ जिससे इस राष्ट्र को उन्नत बनाया जा सके। मैं केवल उस जनता के लिये, जिसे मैं प्यार करता हूँ, जीने और कार्य करने की अनुज्ञा चाहता हूँ। मेरी प्रार्थना है कि मेरा सारा जीवन इनकी सेवा में व्यतीत हो ।
श्री गुरुजी ने कहा कि किसी व्यक्ति को किसी देश में जन्म लेने तथा पालन-पोषण होने मात्र से ही उस भू-भाग के राष्ट्रीय होने का अधिकार नहीं मिल जाता। इसके लिये तदनुरूप मानसिक प्रतिमान की आवश्यकता होती है, राष्ट्रीयता के लिये मानसिक निष्ठा एक ऐसा तत्त्व है जिसे सम्पूर्ण संसार स्वीकार करता है।
प्रो. राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैया) ने कहा कि कार्यकर्ता में भ्रातृत्व की भावनायें स्वाभाविक एवं स्वतः स्फूर्त होनी चाहिये। उसे सम्पूर्ण समाज को परमात्मा का व्यक्त स्वरूप इस दृष्टि से देखते आना चाहिये। बाह्य आकृति पर विचार न करते हुए प्रत्येक व्यक्ति में उसे वही दिव्यता का स्फुलिंग दिखाई देना चाहिये। हमारी संस्कृति आन्तरिक एकता की अनुभूति से यही समानता की दृष्टि प्राप्त करने के लिये हमें प्रेरित करती है।
श्री गुरुपूर्णिमा उत्सव हेतु अमृत वचन

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ ने किसी भी व्यक्ति को गुरु नहीं जाना है। संघ ने प्राचीन राष्ट्र के चिरंतन, ऐतिहासिक तथा अध्यात्मिक आदर्श के प्रतीक भगवाध्वज को ही गुरु माना है। ज्ञान त्याग पावित्र्य, संयम, शौर्य, पराक्रम आदि अनेक उदात्त गुणों से जिनका व्यक्तित्व निर्माण हुआ तथा भारतीय राष्ट्र की उज्वल परम्परा को अनेकों संकटों में भी जिन्होंने अवाधित रखी, उन पुरुषों ने भी भगवाध्वज के सम्मुख नत मस्तक होने में अपने आपको धन्य माना है। दैवी गुणों का दिव्य तथा अनादि इतिहास इस ध्वज के एक-एक धागे में गुंथा हुआ है। गुरु पूर्णिमा के दिन इसी भगवाध्वज की हम अर्चना कर सर्वस्व अर्पण की प्रेरणा लेते हैं तथा तन-मन-धन से इस गुरू के गौरव के लिए उद्यमशील होने का दृढ़ संकल्प करते हैं।’
वर्ष प्रतिपदा उत्सव हेतु अमृत वचन
शारीरिक शक्ति उतनी ही पवित्र एवं मंगलमय है, जितनी की आध्यात्मिक शक्ति । पर हमें हिंसा करने के लिए बलवान नहीं बनना हैं। संसार की सारी हिंसा और अत्याचार सदा के लिए मिटा देने हेतु हमें सामर्थ्य संपादन करना हैं। :प. पू. डॉ हेडगेवार जी
मकर संक्रांति उत्सव हेतु अमृत वचन
संक्रमण का उत्सव हम बहुत महत्व का मनाते है। प्राचीन काल से ही ज्ञान रूपी प्रकाश की उपासना करने वाले। भारतीय जीवन में इस दिन का महत्व हैं। अपना कार्य भी आत्मविस्मृति रूपी अन्धकार को नष्ट कर आत्म जागरण करने के लिये ही निर्माण हुआ हैं। हमारे कार्य के अस्तित्व से ही देश की मुरझाई हुई श्रद्धा पुलकित हो उठती हैं। राष्ट्र जीवन विषयक अनेक भ्रमों का निराकरण हुआ हैं। एवं दुर्बलता की आत्मविश्वास शून्य भावना के स्थान पर सामर्थ्य की अनुभूति राष्ट्र को होने लगी हैं।
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