एकल गीत की सम्पूर्ण जानकरी
श्री गुरु पूर्णिमा उत्सव हेतु एकलगीत

यह भगवा ध्वज हमारा है स्वाभिमान अपना |
यह अग्नि जैसा पावन, ये है ईश्वरीय रचना || ||
समरस बनाऐं जीवन, हर पल हमें सिखाता । रंग लाल – पीला समरस, हो भव्य रूप पाता समरसता मूल इसका, कहे ऐक्य भाव रखना 1 यह अग्नि जैसा पावन, ये है ईश्वरीय रचना ।। 1 ।।
लिए उषाकाल आभा, प्रभा अग्नि ज्वाल जैसी । तप, त्याग, शील शिक्षा, जन मन जगाये ज्योति ।। भरे राष्ट्रभक्ति उर में, कहे सत्यकर्म करना यह अग्नि जैसा पावन, ये है ईश्वरीय रचना 112 11
जब वीर इसको लेकर, रणक्षेत्र में हैं जाता वीरों के उर में साहस, बलिदानी भाव भरता नवचेतना का वाहक, मां भारती का गहना यह अग्नि जैसा पावन, ये है ईश्वरीय रचना ।13।।
भगवा ये ध्वज हमारा, गुरुवंद्य हैं हमारे यह तत्वरूप धर मन के, गुण सभी निखारे ।। हिन्दुत्व का ये वाहक, ये है मनुजता की गरिमा ।। यह अग्नि जैसा पावन, ये है ईश्वरीय रचना ।।4।। #एकल गीत
रक्षाबन्धन उत्सव हेतु एकलगीत

आओ मनाऐं रक्षाबंधन, आज मनाऐं रक्षाबंधन | | ध्रु।।
गिरिवासी भी वनवासी भी, हिंदु बन्धु सब भारतवासी । राष्ट्रप्रेम का भाव जगाकर, कसै नेह सूत्र का बन्धन ।। आओ मनाऐं रक्षाबंधन, आज मनाएं रक्षाबंधन ।। 1 ।।
लैं अतीत से आज प्रेरणा, सुनै सभी की हृदय वेदना । मन का कलुष हटाकर सबमिल, तप कर करें धरा को नन्दन।। आओ मनाऐं रक्षाबंधन, आज मनाएं रक्षाबंधन ।। 2 ।।
नहीं सूत्र यह मात्र सूत का, यह है साक्षी भवति भूत का । हिन्दु-हिन्दु का भाव जगाकर, करें एक हम सबका तन-मन ।। आओ मनाऐं रक्षाबंधन, आज मनाएँ रक्षाबंधन 113 11
छुआछूत का भाव मिटाकर, सब स्वजनों को गले लगाकर । समरसता का भाव जगे जब, तभी सिद्ध हो रक्षाबंधन ।। आओ मनाऐं रक्षाबंधन, आज मनाऐं रक्षाबंधन ।। 4।।#एकल गीत
एकलगीत
आज श्रद्धा सुमन अर्पित कर रहा हर्षित गगन हे परम आराध्य केशव युग पुरुष शत-शत नमन।।ध्रु।।
दासता की श्रृंखला के बद्ध भारत भूमि प्यारी लुप्त चिति धृती और कृति थी सुप्त थी संस्कृति हमारी सुप्त हिन्दू राष्ट्र को जागृत किया बन रवि किरण ।।
हे परम आरध्य ||१||
संघटन का मंत्र अभिनव संघ सुरसरी को बहाकर कोटि युवकों के हृदय में राष्ट्र भक्ति को जगाकर कर दिया अर्पित स्वयं को मातृ चरणों में मगन में हे परम् अराध्य ||२||
आपका वह धन्य जीवन प्रेरणा है बन गयी कोटि युवकों के लिये साधना है बन गयी मातृ भू पर हो समर्पित एक है बस यह रटन।।
हे परम् अराध्य ||३||
हर नगर हर ग्राम में नव चेतना का दीप जलता हर हृदय को कर प्रकाशित संघटन का राग भरता हो रही साकार है वह कल्पना साक्षी गगन।।
हे परम् अराध्य ||४||#एकल गीत
एकलगीत
देश का पौरूष जगायें
आज यह पावन दिवस है, देश का पौरूष जगायें। फूट – आलस हर निराशा, शीघ तन-मन से मिटायें।।ध्रु।।
आपसी मतभेद जिनसे, था कभी यह देश हारा, प्रण करें उनको न उठने, फिर कभी देंगे दुबारा, संगठन और एकता के सूत्र में सबको बंधायें ।। 1 ।।
अब न पैसे से बिकेगी, देश की यौवन-जवानी, हम लिखेंगे आज नूतन, देश की उज्जवल कहानी, अर्थ को भी आज फिर से, धर्म अनुगामी बनायें | 12 ||
उठ रही है आज जो भी, क्षितिज पर काली घटाएं, निज पराक्रम से उन्हीं की, हम बदल देंगें दिशाएं, आज भीषण नाश से इस, डूबते जग को बचायें | 3 ||
प्यार का जो पात्र होगा, हम उसे निज प्यार देंगे, दुष्ट-दानव – दस्युओं को, फिर करारी हार देंगे आज अपने देश को नव, अस्त्र-शस्त्रों से सजायें ।।4।।
हम परिश्रम से रचेंगे, देश की शुभ दिव्य झाँकी विश्व में होगी निराली, शान अपनी भारत माँ की विश्व भर को पुनः अपने, शौर्य का दर्शन करायें ।15।। #एकल गीत
हिन्दू साम्राज्य दिवस हेतु एकल गीत
पावन हिन्दू साम्राज्य दिवस स्वातंत्र्य-साध के ओ प्रतीक ओ विजय-गान के भाग्य-दिवस
पावन हिन्दू साम्राज्य दिवस ।।ध्रु।।
खण्डित कर यवनों का शासन खण्डित कर पापी सिंहासन भारत को करने एकसूत्र गौ-ब्राह्मण का करने पालन गर्जा शिव सरजा का साहस ।।1।।
शिवराज छत्रपति के पीछे भारत की तरूणाई जागी इस अरूण ध्वजा के नीचे आ वीरों की अरूणाई जागी जागा था हिन्दू तज आलस।।2।।
सिर काट शत्रु के, मुकुट छेद दुर्दम्य भवानी दमक उठी रिपुदमन-पराक्रम दिखलाकर स्वातंत्र्य – मूर्ति थी चमक उठी मस्तक नत हो जाता बरबस ।।3।।
उसका कर पावन नाम-स्मरण पुलकित होता तन का कण-कण भुजदण्ड फड़क उठते क्षण-क्षण कर याद शिवा का अद्भुत रण बिजली सी भरती है नस-नस 11411#एकल गीत
एकल गीत
जय जय जय हे भगवा ध्वज हे जय हे राष्ट्र निशान। राष्ट्र चेतना की अंगड़ाई। क्रांतिकारियों की तरुणाई ॥ तुझमें कोटि-कोटि वीरों के प्रतिबिम्बित बलिदान जय हे राष्ट्र निशान ॥
मूर्त शक्ति तू मूर्त त्याग तू । विश्व विजय का अमर राग तू । तुझमें लक्षावधि प्राणों के सुरभित हैं बलिदान । हे जय हे राष्ट्र निशान ॥
दिशि दिशि में अवनी अम्बर पर अपनी दिव्याभा प्रसरित कर। धर्म प्राण तू धर्म संस्कृति का करता आह्वान जय हे राष्ट्र निशान ॥
यज्ञ -ज्वाल में जलते मन सा
तप-तप कर निखरा कंचन सा तुझ पर अगणित बार निछावर सारा हिन्दुस्तान ॥
जय हे राष्ट्र निशान ॥#एकल गीत
श्री गुरुपूजन (दक्षिणा) हेत एकल गीत
विश्व गुरु तव अर्चना में, भेंट अर्पण क्या करें? जबकि तन-मन-धन, तुम्हारे और पूजन क्या करें? प्राची के अरुणिम छटा है, यज्ञ की आभा-विभा है, अरुण ज्योतिर्मय ध्वजा है, दीप दर्शन क्या करें ? ।। 1 ।।
वेद की पावन ऋचा से, आज तक जो राग गूँजे, वन्दना के उन स्वरों में, तुच्छ वन्दन क्या करें ? ।।2।।
राम के अवतार आएँ, कर्ममय जीवन चढ़ाएँ अजिर तन तेरा चलाएँ, और अर्चन क्या करें ? ।।3।।
पत्र-फल और पुष्प जल से, भावना ले हृदय तल से, प्राण के पल-पल विपल से, आज आराधन करें।।4।।#एकल गीत
एकलगीत : आज मनायें रक्षाबन्धन
अतीत से नव-स्फूर्ति लेकर वर्तमान में दृढ़ उद्यम कर भविष्य में दृढ़ निष्ठा रखकर कर्मशील हम रहे निरन्तर ॥1॥
बलिदानों की परम्परा से स्वराज्य है यह पावन जिनसे वंदन उनको कृतज्ञता से ध्येय-भाव का करें जागरण ॥2॥
स्वार्थ-द्वेष को आज त्यागकर अहं भाव का पाश काटकर अपना सब व्यक्तित्व भुलाकर विराट का हम करते दर्शन ॥3॥
अरुण-केतु को साक्षी रखकर निश्चय वाणी आज गरजकर शुभ-कृति का यह मंगल अवसर निष्ठा मन में रहे चिरंतन ॥4॥#एकल गीत
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