
हमारी मातृभूमि भारत, एक रूप में ही माता, पिता एवं गुरु तीनों का कर्त्तव्य हमारे प्रति पूर्ण करती है – श्री गुरुजी
#श्री गुरूजी
“साधारणत: अपने देश और उसकी परम्परा के प्रति, उसके ऐतिहासिक महापुरुषों के प्रति, उसकी सुरक्षा तथा समृद्धि के प्रति जिनकी अव्यभिचारी एवं एकान्तिक निष्ठा हो-वे जन राष्ट्रीय कहे जायेंगें -श्री गुरुजी
#श्री गुरूजी
जब तक मनुष्य के जीवन में समाज हित का भाव नहीं आयेगा, तब राष्ट्र की समृद्धि संभव नहीं
– #श्री गुरूजी
सम्पूर्ण समाज, सम्पूर्ण राष्ट्र और इसका कण – कण मेरा है, इसका दु:ख मेरे लिए लज्जा की बात है, ऐसी भावना से ओतप्रोत वैचारिक और मानसिक क्रान्ति की आवश्कता है श्री गुरुजी
– #श्री गुरूजी
वैचारिक परिवर्तन लाने के लिए समाज के प्रत्येक घटक में अपनी भूमि, अपने समाज, अपनी परम्परा और अपने राष्ट्र के प्रति उत्कृष्ट प्रेम जागृत करना पड़ेगा |जितने विपरीत संस्कार हैं, उन्हें अन्त: करण से उखाड़कर फेंकना होगा श्री गुरुजी
– #श्री गुरूजी
एक देश एक समाज का पूर्ण एकात्मक भाव प्रत्येक व्यक्ति में उत्पन्न करना होगा |श्री गुरुजी
– #श्री गुरूजी
हमारे राष्ट्रीय अस्तित्व का आधार राजकीय सत्ता नहीं रहा
– #श्री गुरूजी
यदि हमारे राष्ट्रीय अस्तित्व का आधार राजकीय सत्ता रहा होता तो हमारा भी भाग्य उन राष्ट्रों से अच्छा नहीं होता जो आज केवल अजायबघर की दर्शनीय वस्तु मात्र रह गये हैं |
– #श्री गुरूजी

समग्र समाज को अपने स्नेह के, आत्मीयता के, ध्येयवाद के नियंत्रण में अपने साथ लेकर चलने वाला प्रबल, संगठित, सामर्थ्यशाली हिन्दू समाज यदि राष्ट्रव्यापी बनकर खड़ा रहा तो राजसत्ता नियंत्रित रहेगी
– #श्री गुरूजी
चाहे कोई भी दल राजसत्ता पर बैठे सबको प्रणाम वहीं करना होगा जहां समाज की नि:स्वार्थ सेवा प्रकट हुई है | ऐसी स्थिति हमें उत्पन्न करनी है |
– #श्री गुरूजी
कोई समय ऐसा भी आता है जब जीवन के सभी मोहों को दूर कर अपना सम्पूर्ण सामर्थ्य अपने कार्य की पूर्ति में लगाना पड़ता है
– #श्री गुरूजी
भारतवर्ष की दुर्बलता ही विश्व-अशान्ति का मूल कारण है | अत: दुर्बलता हमें शीघ्रातिशीघ्र नष्ट करनी चाहिये -श्री गुरूजी
#श्री गुरूजी
जिसमें सच्चा पौरुष होगा वह दुनिया के सारे संकटों को ठुकरा कर आगे ही कदम बढ़ाता है और साहस से अपनी मंजिल तक पहुंचता है
– #श्री गुरूजी
कार्य करते करते कभी भ्रम हो जाता है कि चारों ओर के कोलाहल में मेरी क्षीण वाणी कौन सुनेगा, यह धारणा व्यर्थ है | सब सुनेंगे और अवश्य सुनेंगे यदि मेरे शब्दों के पीछे, त्याग और चारित्र्य है तो लोग सिर झुकाकर सुनेंगे |
– #श्री गुरूजी
व्यक्ति के चारित्र्य तपश्चर्या और त्याग की मात्रा से ही उसके शब्दों में सर्वोच्च शक्ति का समावेश होता है
– #श्री गुरूजी

श्री गुरुजी संझिप्त परिचय के रूप मे ट्वीट्स #श्री गुरूजी
माधवराव सदाशिवराव गोलवरकर ‘श्री गुरूजी’ का जन्म – फाल्गुन मास की एकादशी संवत् 1963 तदनुसार 19 फ़रवरी, 1906 को महाराष्ट्र के रामटेक में हुआ था : – #श्री गुरूजी श्रीगुरुजी का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संपर्क बनारस में हुआ भैयाजी दाणी तथा नानाजी व्यास ने बनारस में संघ की शाखा प्रारंभ की. जब 1931 में श्रीगुरुजी ने विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य प्रारम्भ किया तो उनकी लोकप्रियता के कारण भैयाजी दाणी ने संघ-कार्य एवं संगठन के लिए उनसे संपर्क किया – #श्री गुरूजी
सरसंघचालक का दायित्व सँभालने के बाद श्रीगुरुजी का भाषण “उठो! उत्साह एवं दृढ़ता से काम में जुट जाओ और संघ कार्य (स्वतंत्रता संग्राम में योगदान) को बढाने में तत्पर होने के लिए कटिबद्ध हो जाओ” श्री गुरुजी ने सरसंघचालक का दायित्व 5 जून, 1973 तक अर्थात लगभग 33 वर्षों तक संभाला | श्री गुरूजी
संघ को देश भर में स्थापित करने के लिए गुरूजी का सम्पूर्ण देश में प्रवास होता था. वे साल 1943 में – अप्रैल में अहमदाबाद, मई में अमरावती एवं पुणे, जून में नासिक एवं बनारस, अगस्त में चंद्रपुर, सितम्बर में फिर से पुणे, अक्तूबर में मद्रास एवं मध्य प्रान्त और नवम्बर में लाहौर एवं रावलपिंडी के प्रवास पर थे #श्री गुरूजी
श्रीगुरुजी के अनुसार, “हम अपनी प्रतिज्ञा में शपथ लेते हुए कहते हैं कि राष्ट्र को स्वतंत्र करने के लिए मैं स्वयंसेवक संघ का घटक बना हूँ.” (राष्ट्रीय आन्दोलन और संघ, सुरुचि प्रकाशन : नई दिल्ली, पृष्ठ 10) #श्री गुरूजी
स्वातंत्र्य वीर सावरकर के द्वारा भारत के स्वतंत्रता के लिए स्थापित ‘अभिनव भारत’ के समापन कार्यक्रम में श्री गुरुजी सहभागी हुए। #श्री गुरूजी
श्री गुरुजी के 51वें वर्धापन दिन के निमित्त से संघ का व्यक्ति-व्यक्ति से संपर्क कर के संघ का संदेश सुनाने का अभियान। – #श्री गुरूजी चीन के आक्रमण के बारें में भारत को सचेत करने वाला श्री गुरुजी का वक्तव्य। श्री गुरुजी की नेपाल भेंट में, नेपाल महाराजा से हिंदु हित के विषयों पर चर्चा। पाकिस्तान का भारत पर आक्रमण। तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री द्वारा श्री गुरुजी को सर्वदलीय सम्मेलन में सहभागिता का निमंत्रण। सम्मेलन में श्रीगुरुजी द्वारा सभी प्रकार से पूर्ण सहयोग देने का आश्वासन।
1972 में दीनदयाल शोध संस्थान का शिलान्यास समारोह दिल्ली में श्रीगुरुजी के हाथों से हुआ। संघ के दूसरे सरसंघचालक श्रीगुरूजी नवम्बर 1943 में लाहौर के प्रवास पर थे. यहाँ उन्होंने अस्पृश्यता का स्थाई निराकरण समाज के लिए बेहद जरूरी बताया – #श्री गुरूजी

अस्प्रश्यता के खिलाफ गुरूजी ने सामाजिक समरसता की मुहिम चलाई थी. 1965 में संदीपनी आश्रम तथा उसके बाद 1966 के इलाहावाद कुम्भ में आयोजित धर्म संसद में सभी शंकराचार्यों एवं साधू संतों की उपस्थिति में घोषणा हुई – ना हिन्दू पतितो भवेत! ऊंचनीच गलत है सभी हिन्दू एक हैं!
गुरू जी ने सतत प्रवास एवं प्रयास से 1969 में उडुपी में जैन, बौद्ध, सिक्ख सहित समस्त धर्माचार्यों को एकत्रित किया गया. मंच से जब घोषणा हुई – “हिन्दवः सोदरा सर्वे, न हिन्दू पतितो भवेत, मम दीक्षा हिन्दू रक्षा, मम मंत्र समानता”
अस्पृश्यता को परिभाषित करते समय श्री गुरुजी ने कहा – “सवर्णों के मन के क्षुद्र भाव का नाम अस्पृश्यता है.” दूसरे शब्दों में अस्पृश्यता एक मानसिक विकृति है. मानसिक सुधार संस्कारों द्वारा ही संभव है| संस्कार एकात्मता का, एकरसता का, भ्रातृभाव का, सेवाभाव का निरंतर करना चाहिए # श्री गुरूजी
सेवा करने का वास्तविक अर्थ है – हृदय की शुद्धि; अहंभावना का विनाश; सर्वत्र ईश्वरत्व की अनुभूति तथा शांति की प्राप्ति|
संघ का लक्ष्य- अपनी परंपरा, धर्म व संस्कृति की रक्षा करते हुए मातृभूमि के लिए उत्कट देशभक्ति के दृढ़ संस्कार पैदा करना और जीवन की बाजी लगाकर उसकी रक्षा करना है – श्री गुरूजी
– #श्री गुरूजी
श्री जय प्रकाश नारायण ने कहा, “श्री गुरुजी एक आध्यात्मिक रूप से महान व्यक्तित्व थे, जिन्होंने युवाओं को सच्चा राष्ट्रवाद के लिए जागृत किया।”
आज तो शिक्षितों के लिए आह्वान है कि वे ग्रामों को लौटें तथा ग्रामवासियों के जीवन स्तर को उन्नत करें – श्री गुरूजी संघ ने न तो किसी व्यक्ति विशेष को और न ही किसी ग्रंथ-विशेष को, ‘अपितु भगवाध्वज को परम् सम्मान के अधिकार-स्थान पर अपने सामने रखा है।
– #श्री गुरूजी
हम अपने राष्ट्र को इष्ट देवता के रूप में देखते हैं। हमारा समर्पण, हमारी अपने सर्वस्व की भेंट, राष्ट्र देवता की पूजा के रूप में होनी चाहिए।
श्री गुरूजी
हमें समर्पण की प्रेरणा देनेवाला एकमात्र आदर्श है- ‘राष्ट्र-सेवा।’ श्री गुरूजी
श्री गुरूजी
हमारे कार्य के लक्ष्य का अंतिम स्वरूप हमारे समाज की पूर्ण संगठित अवस्था है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति आदर्श हिंदू मनुष्यत्व की मूर्ति बनकर समाज के संगठित व्यक्तित्व का सजीव अंग होगा। श्री गुरूजी
श्री गुरूजी
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