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अप्रैल मास हेतु सुभाषित

१. उघय साहस धैर्य बुद्धि शक्ति पराक्रमः षड्ते यत्र वर्तन्ते तत्र देवः सहायकृतः अर्थ:- प्रयास, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति तथा पराक्रम जहाँ ये छः गुण होते हैं। वहीं देव भी सहायक होते हैं। #सुभाषित
२. जितने कष्ट कंटकों में है, जिसका जीवन सुमन खिला । गौरव गंध उन्हें इतना ही, यत्र तत्र सर्वत्र मिला ।। अर्थ- जिन्होंने जितनी अधिक विपत्तियों में कष्टों में अपना जीवनयापन किया है। उन्हें उतना ही अधिक आदर सम्मान मिला है #सुभाषित
3. निश्चित याः प्रकर्मयते, नान्तर्वसवि कर्मणा । अवन्ध्यकालो वश्यात्मा स वै पण्डित उच्चयते ।। भावार्थ: जो पहले निश्चय करके फिर कार्य का प्रारम्भ करता है। कार्य के बीच में नही रूकता समय को व्यर्थ नहीं जाने देता और चित्त को वश में रखता है वही विद्वान कहलाता है। #सुभाषित
मई मास हेतु
१.जे रहीम उत्तम प्रकृति का कर सकत कुसंग | चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग ।। अर्थ- जो मनुष्य उत्तमत प्रकृति के होते हैं उन पर बुरी संगत से कोई प्रभाव नहीं पड़ता। जैसे चन्दन के पेड़ पर सर्व लिपटे रहने से चन्दन की सुगन्ध नहीं जाती। #सुभाषित
२. दुराचारी दुरादृष्टि दुरावासी व दुर्जनः । यन्मैत्री कियते पुंसा स तु शीघ्र विनश्यति ।। अर्थ बुरे आचरण वाले से, पाप दृष्टि वाले से, खराब स्थान में रहने वाले से और दुष्टों से जो मित्रता करता है। वह शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। अर्थात बुरे का साथ नहीं करना चाहिए। #सुभाषित
नाभिशेको न संस्कारः सिंहस्य क्रियते मृगैः । विक्रमार्जित राज्यस्य स्वयमेव मृगेन्द्रता ।। भावार्थ जंगल में सिंह का राज्यभिशेक या अन्य कोई संस्कार जानवरों द्वारा नही किया जाता सिंह विक्रम से जीते हुए राज्य का स्वयं ही मृगेन्द्र होता है। #सुभाषित
नाभिशेको न संस्कारः सिंहस्य क्रियते मृगैः । विक्रमार्जित राज्यस्य स्वयमेव मृगेन्द्रता ।। भावार्थ- जंगल में सिंह का राज्यनिशेक या अन्य कोई संस्कार जानवरों द्वारा नही किया जाता। सिंह विक्रम से जीते हुए राज्य का स्वयं ही मृगेन्द्र होता है। #सुभाषित
जून मास हेतु

दावा द्रुम दण्ड पर, चीता मृगझुण्ड पर, भूषण वितुण्ड पर, जैसे मृगराज है। तेज तम अंधकार, कान्ह जिमी कंस पर, त्यों म्लेच्छ कहा वंश पर शेर शिवराज है ।। अर्थ – जिस प्रकार वन पर दावानल का, हिरणों के झुंड पर चीते का, मतवाले हाथियों के समूह पर मृगराज का, अंधेरे पर सूर्य का, तथा जिस प्रकार कंस पर कृष्ण का अधिकार था वैसे ही म्लेच्छ वंश पर यह सिंह सदृश शिवराज (शिवाजी) है। #सुभाषित
धर्म संस्कृति सम्पन्न धीर उद्वाव गुणान्वितम् । संघ षक्ति बिना राष्ट्रं न भवेत् जगत आदृतम।। भावार्थ : भले ही कोई भी देश उत्तम धर्म और श्रेश्ठ संस्कृति वाला हो और उदान्त गुणों से परिपूर्ण हो, किन्तु वह यदि संगठन शक्ति से रहित हो तो उसे संसार में आदर नही मिल सकता। #सुभाषित
धर्म संस्कृति सम्पन्न धीर उद्वाव गुणान्वितम् । संघ षक्ति बिना राष्ट्रं न भवेत् जगत आदृतम।। भावार्थ : भले ही कोई भी देश उत्तम धर्म और श्रेश्ठ संस्कृति वाला हो और उदान्त गुणों से परिपूर्ण हो, किन्तु वह यदि संगठन शक्ति से रहित हो तो उसे संसार में आदर नही मिल सकता। #सुभाषित
जुलाई माह हेतु सुभाषित
वनानि दहतो वह्नेः, सखा भवति मारुतः । स एव दीपनाशाय, कृशे कस्यास्ति सौहृदम् ॥ अर्थ : वन में आग लगते समय हवा अग्नि की सहायता करता है। किन्तु वही हवा दीपक बुझा देती है। दुर्बल की कोई सहायता नहीं करता, अतः सबल होना चाहिये। #सुभाषित
हिमालयं समारभ्य यावद् इन्दुसरोवरम् । तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते ॥ अर्थ : हिमालय से लेकर हिन्द महासागर (इन्दु सरोवर) तक विस्तृत एवं देवताओं द्वारा निर्मित इस देश को हिन्दुस्थान कहते हैं। #सुभाषित
यहूरं यद्दुराराध्यं यच्च दूरे व्यवस्थितम् । तत्सर्वं तपसा साध्यं तपो हि दुरतिक्रमम् ॥ अर्थ: कोई वस्तु चाहे कितनी ही दूर क्यों न हो तथा उसका मिलना कितना ही कठिन क्यों न हो, और वह पहुँच से भी बाहर क्यों न हो, कठिन तपस्या अर्थात् परिश्रम से उसे भी प्राप्त किया जा सकता #सुभाषित
अमानी मानदो मान्यो लोकस्वामीत्रिलोकधृक् । सुमेधा मेधजो धन्यः सत्यमेधा धराधरः ॥ विष्णु सहस्रनाम श्लोक 93 (भीम-युधिष्ठिर संवाद) अर्थ : जिसे स्वयं के सम्मान की चिन्ता नहीं, जो दूसरों का सम्मान करता है, इसी कारण सर्वमान्य होता है। वही समाज का नैतिक नेतृत्व प्राप्त करता है। ऐसा कार्यकर्ता मेधावी, धन्य, अपनी बात को योग्य रूप से रखने वाला तथा पृथ्वी की भांति सबको सम्भालने वाला होता है। #सुभाषित
गुरुमुखि नादं गुरुमुखि वेदं गुरुमुखि रहिया समाई । गुरु ईसरु गुरु गोरखु बरमा गुरु पारबती माई ॥ – जपुजी साहब 7 पौड़ 5 अर्थ : गुरुवाणी ही शब्द एवं वेद हैं। प्रभु इन्हीं शब्दों एवं विचारों में विश्वास करते हैं। गुरु ही ईश्वर, त्रिमूर्ति एवं पार्वती माता है। (श्री जपुजी साहेब श्री गुरुनानक देवजी की वाणी का संग्रह तथा श्री गुरुग्रंथ साहेब जी का सार तत्व है। #सुभाषित
अगस्त माह हेतु सुभाषित
समानी व आकूतिः समाना हृदयानि वः । समानमस्तु वो मनो यथा वः सुसहासति ॥ (ऋग्वेद) अर्थ : तुम्हारा अभिप्राय एक समान हो, तुम्हारा अन्तःकरण एक समान हो, और तुम्हारा मन एक समान हो, जिससे तुम्हारा सुसंगठन होगा, अर्थात संघशक्ति की दृढ़ता होगी। #सुभाषित
उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम् । वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः ॥अर्थ : पृथ्वी का वह भू-भाग, जो समुद्र के उत्तर और हिमालय के दक्षिण में स्थित है, “भारतवर्ष” कहलाता है तथा उसकी (हम) सन्तानें भारतीय हैं। #सुभाषित
नको रे मना क्रोध हा खेदकारी, नको रे मना काम नाना विकारी। नको रे मना सर्वदा अंगिकारू, नको रे मत्सरु दम्भ भारु ॥अर्थ : हे मन जो क्रोध, व्यक्ति को कष्ट पहुँचाता है, ऐसा क्रोध न करो। नाना प्रकार के विकार उत्पन्न करने वाली वासना का सर्वथा त्याग करो। जो द्वेष एवं अहंकार अपने विकास में सदैव बाधक होता है, उससे दूर रहो। #सुभाषित
उदये सविता रक्तो रक्तश्चास्तमये तथा । सम्पत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरुपता ॥ (हितोपदेश) अर्थ : सूर्य उदय होते समय लाल वर्ण का होता है तथा अस्त होते समय भी ला वर्ण का ही होता है। इसी प्रकार महपुरुष भी सम्पत्ति तथा विपत्ति दोनों स्थितियों में सूर्य के समान एकरूप होते हैं। सम्पत्ति में हर्ष युक्त तथा विपत्ति में विषादयुक्त नहीं होते। #सुभाषित
सितम्बर माह हेतु सुभाषित
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग | चंदन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग ॥ अर्थ : रहीम कहते हैं कि जो अच्छे स्वभाव के मनुष्य होते हैं उनको बुरी संगत भी बिगाड़ नहीं पाती, जहरीले सांप चन्दन के वृक्ष में लिपटे रहने पर भी उस पर कोई जहरीला प्रभाव नहीं डाल पाते। #सुभाषित
सोना सज्जन साधुजन टूटि जुरै सौ बार । दुर्जन कुम्भ कुम्हार कै एकै धका दरार ॥ अर्थ : सोना, सज्जन और सन्तजन बिखर जाने पर भी जुड जाते हैं पर दुर्जन व्यक्ति व कुम्हार का कच्चा मिट्टी का घड़ा, ये एक ही धक्का से टूटकर हमेशा के लिये बिखर जाते हैं अर्थात् नष्ट हो जाते हैं। #सुभाषित
वनानि देहतो वह्ने सखा भवति मारुतः। स एव दीपनाशय, कृशे कस्याति सौहृदम् ॥ अर्थ : जब जंगल में आग लगती है तो हवा भी उसका मित्र बन जाती है, परन्तु वही हवा एक अकेले दीपक को क्षणमात्र में बुझा देती है, इसलिये कहा गया है कमजोर का कोई मित्र नहीं होता।
अक्टूबर मास हेतु सुभाषित
अपि स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण । रोचते । जननी जन्मभूमि स्वर्गादपि गरीयसी ॥ अर्थ- हे लक्ष्मण यह स्वर्णमयी लंका मुझे अच्छी नहीं लगती है. क्योंकि जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है।
नवम्बर मास हेतु सुभाषित
विद्या ददाति विनयं विनयाद याति पात्रताम् । पात्रत्वाद् धनमाप्नोति धनाद धर्म ततः सुखम् ॥ अर्थ विद्या विनय को जन्म देती है। विनय से व्यक्ति सत्पात्र कहलाता है। पात्रता (योग्यता) से धन की प्राप्ति होती है और धन से धर्माचरण सम्भव होता है। परिणामतः सुख की प्राप्ति होती है।
दिसम्बर मास हेतु सुभाषित
देशरक्षासमं पुण्यं देशरक्षासमं व्रतम् देशरक्षासमो यागो, दृष्टो नैव च नैव च ॥ 1 अर्थ- देश रक्षा के समान पुण्य, देश रक्षा के समान व्रत और देश रक्षा के समान यज्ञ नहीं देखा। अर्थात् देश रक्षा ही सर्वोच्च कार्य है। संगठन से हमारा अर्थ है व्यक्ति और समाज के आदर्श संबंधा
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