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श्री गुरुजी कौन है इनके चर्चे विश्व मे क्यो हो रहे है ?आओ जाने

Posted on February 14, 2023December 12, 2023 by student

श्री गुरुजी

श्री गुरुजी का सम्पूर्ण जीवन परिचय जानने की इच्छा से आपने हमारे पेज का चयन किया उसके लिए आपका धन्यवाद और आपका स्वागत है

श्री गुरुजी का संझिप्त परिचय

“आजकल सब संस्थाएं टूट रही हैं, पर संघ अपवाद रूप में सबकी आशा का केन्द्र बना है….। हमें अपनी ध्येयनिष्ठा से लोगों का विश्वास जीत कर अपने संगठन को और आगे बढ़ाना है…।” 25 मार्च 1973 को अपने अंतिम बौद्धिक में कहे गए। गुरुजी के ये शब्द स्वयंसेवकों का निरन्तर मार्गदर्शन करने के साथ-साथ भारत माता को परम् वैभव पर ले जाने के उनके संकल्प को बल प्रदान करते हैं। 21 जून 1940 को परमपूज्य डॉ. हेडगेवार जी के निधन के बाद गुरुजी को 3 जुलाई 1940 को विधिवत रूप से सरसंघचालक मनोनीत किया गया। इस अवसर पर अपने उद्बोधन में गुरुजी ने कहा- हमारे धर्मग्रंथों में “शिवो भूत्वा शिवं यजेत्” की बात कही गयी है। अर्थात् शिव की पूजा करते-करते स्वयं शिव बन जायें। इसलिये डॉक्टर जी को सच्ची श्रद्धांजलि यह होगी कि हम उनके कार्य को आगे बढ़ायें तथा उन जैसे बनें। #श्री गुरुजी

  • माधवराव गोलवलकर जी का जन्म 19 फरवरी 1906 को नागपुर में हुआ था। माता श्रीमती लक्ष्मीबाई तथा पिता श्री सदाशिव राय की नौ संतानों में केवल ‘माधव’ ही जीवित बचे थे। माता की धर्मपरायणता तथा पिता के शिक्षा- प्रेम के संस्कार बालक माधव पर अमिट रूप से पढ़े। माधव अपनी दृढ़ता, बुद्धिमता और अध्ययनशीलता के लिये सहपाठियों में प्रसिद्ध थे। तेज बुखार में भी उन्हें पढ़ते देखकर साथी छात्र आश्चर्य करते तो माधव कहते- “बुखार अपना कार्य कर रहा है और मैं अपना।” एक बार परीक्षा के दिनों में उनके पैर में बिच्छू ने काट लिया।
  • तब भी दवा मिश्रित पानी में पैर डालकर उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। मित्रों ने विश्राम करने को कहा तो उन्होंने हँसकर उत्तर दिया- “बिच्छू ने पैर में काटा है, सिर में नहीं।” इसी दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर उन्होंने काशी विश्वविद्यालय से एम.एस-सी. जीव विज्ञान की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीण की। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक मालवीय जी भी उनसे बहुत प्रभावित हुए। घरेलू आर्थिक समस्याओं के चलते माधव ने काशी विश्वविद्यालय में शिक्षण कार्य प्रारम्भ कर दिया। अपनी सादगी, प्रेमपूर्ण व्यवहार व पढ़ाने की अद्भुत शैली के कारण शीघ्र ही वे ‘गुरुजी’ के नाम से प्रसिद्ध हो गये। #श्री गुरुजी

नागपुर के एक छात्र प्रभाकर बलवंत दाणी, डॉ. हेडगेवार की योजना से काशी विश्वविद्यालय से बी.ए. कर रहे थे तथा संघ की शाखा भी लगाते थे। यहीं पर गुरुजी का संघ से प्रथम सम्पर्क हुआ। एक बार डॉ. हेडगेवार जी का काशी आगमन हुआ, डॉक्टर जी एवं गुरुजी प्रथम भेंट में ही एक-दूसरे से बहुत प्रभावित हुए। गुरुजी व हेडगेवार जी के मध्य विभिन्न विषयों पर निरन्तर विचार विमर्श होने लगा। संघ के लक्ष्यों और विचारों के प्रति गुरुजी का लगाव धीरे-धीरे बढ़ने लगा। वृद्ध माता-पिता की इच्छा थी कि उनका एकमात्र पुत्र अब विवाह कर ले पर माधव ने स्पष्ट इंकार कर दिया। उन्होंने माता-पिता को बता दिया कि जहाँ तक वंश चलाने का प्रश्न है, यदि देश एवं समाज के भले के लिये सैकड़ों वंश भी नष्ट हो जायें तो भी उसके लिये दुख एवं चिंता नहीं करनी चाहिये। इस प्रकार यह तपस्वी भौतिक और सांसारिक सुखों को त्याग कर अखण्ड प्रवास पर निकल पड़ा। #श्री गुरुजी

33 वर्ष के उनके कार्यकाल में संघ ने चहुँमुखी प्रगति की। गुरुजी के सुयोग्य नेतृत्व में संघ का कार्य भारत के कोने-कोने में तो पहुँचा ही, भारत के बाहर उन सब देशों में भी पहुँच गया जहाँ हिन्दू रहते हैं। नेहरू जी व उनके कांग्रेसी मित्र संघ की बढ़ती शक्ति से भयभीत हो उठे। उन्होंने संघ के कार्यकर्ताओं को कांग्रेस में शामिल होकर उनकी राजनैतिक इच्छाओं की पूर्ति में सहयोग करने का प्रस्ताव रखा, पर संघ ने हर बार उनका प्रस्ताव विनम्रता से अस्वीकार कर दिया।#श्री गुरुजी

इससे कुपित नेहरू ने 1948 में गांधी जी की हत्या का झूठा आरोप लगाकर संघ पर प्रतिबंध लगा दिया व गुरुजी को गिरफ्तार कर लिया। वस्तुतः नेहरू संघ की बढ़ती शक्ति को अपने तथा कांग्रेस के लिये खतरा समझकर उसे कुचल डालना चाहते थे। देशभक्तों के दबाव एवं स्वयंसेवकों के सत्याग्रह के चलते सरकार को झुकना पड़ा तथा सब आरोप वापस लेकर संघ से प्रतिबंध हटाना पड़ा। आगामी बीस वर्षों में गुरुजी के मार्गदर्शन में समाज जीवन के विविध क्षेत्रों में हिन्दुत्व का विचार पहुँचाने के लिये अनेक संगठनों की स्थापना की गयी। इनमें भारतीय मजदूर संघ, भारतीय जनसंघ, विश्व हिन्दू परिषद्, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्, वनवासी कल्याण आश्रम इत्यादि कुछ उदाहरण मात्र हैं। #श्री गुरुजी

श्री गुरुजी

गुरुजी ने अपने जीवन काल में भारत की 60-70 बार परिक्रमा की। दिन-रात की इस लगातार भागदौड़ से गुरुजी का शरीर अब थकने लगा था। उनके सीने में बायीं तरफ कैंसर की गाँठ बन गयी थी। आप्रेशन के बाद भी कैंसर पूरी तरह ठीक नहीं हो पाया था। इस अवस्था में 5 जून 1973 को उन्होंने ‘भारत माता की जय’ बोलते हुए देह त्याग दी। अपने जीवन में विश्राम को कभी महत्व न देने वाला भारत माता का यह प्रिय सपूत मातृभूमि की गोद में चिरविश्राम हेतु सो गया। ‘राष्ट्राय स्वाहा, राष्ट्राय इदं न मम्’ की वह साकार प्रतिमूर्ति दुनिया भर में फैले करोड़ों स्वयंसेवकों के मनमंदिर में सदैव जीवित है और रहेगी। #श्री गुरुजी

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