
पंचम प. पू. सरसंघचालक जी का सम्पूर्ण जीवन परिचय जानने की इच्छा से आपने हमारे पेज का चयन किया उसके लिए आपका धन्यवाद और आपका स्वागत है
पंचम प.पू. सरसंघचालक श्री कुप्. सी. सुदर्शन
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को प्राप्त इस देवदुर्लभ नेतृत्व की नूतन कड़ी के नायक अपने पाँचवें सरसंघचालक मा० कुपहल्ली सीतारामय्या सुदर्शन थे। जिन्हें 10 मार्च, 2000 को नागपुर में हुई अ०भा० प्रतितिनिध सभा के उद्घाटन सत्र में ही मा. रज्जू भैय्या ने यह दायित्व दिया। श्री कुप्. सी. सुदर्शन मूलतः तमिलनाडु और कर्नाटक की सीमा पर बसे कुप्पहल्ली (मैसूर) ग्राम के निवासी थे।
पंचम प. पू. सरसंघचालक यद्यपि पिता श्री सीतारामय्या अपनी वन विभाग की नौकरी के कारण ज्यादतर म0प्र0 में ही रहे और वहीं रायपुर में 18 जून 1931 को श्री सुदर्शन जी का जन्म हुआ। रायपुर, दमोह, मंडला तथा चन्द्रपुर में प्रारम्भिक शिक्षा पूर्ण करने के बाद उन्होंने जबलपुर (सागर वि०वि०) से 1954 में दूरसंचार विषय में बी0ई0 की उपाधि ली तथा तब से संघ प्रचारक के नाते राष्ट्रहित में जीवन समर्पित कर दिया।
1964 में उन्हें मध्यभारत प्रान्त प्रचारक का दायित्व मिला, श्री सुदर्शन जी ज्ञान के भण्डार, अनेक विषयों के जानकार तथा अद्भुत वक्तत्व कला के धनी है। किसी भी समस्या की गहराई तक जाकर, उसके बारे में मूलगामी चिंतन कर उसका वास्तविक समाधान ढूँढ निकालना, उनकी विशेषता थी। चाहे पंजाब की खालिस्तान समस्या हो या असम का घुसपैठ विरोधी आन्दोलन ।पंचम प. पू. सरसंघचालक पंजाब के बारे में उनकी यह सोच कि प्रत्येक केशधारी हिन्दू हैं
तथा प्रत्येक हिन्दू दसों गुरूओं व उनकी पवित्र वाणी के प्रति आस्था रखने के कारण सिख हैं। इसी प्रकार बंगला देश से असम में आने वाला मुसलमान षड्यन्त्रकारी घुसपैठिया है,पंचम प. पू. सरसंघचालक जिसे वापस भेजना ही चाहिस।
जबकि वहाँ से लुट-पिट कर आने वाला हिन्दू शरणार्थी है, अतः उसका सहानुभूतिपूर्वक शरण दनी चाहिये। मा० सुदर्शन जी के चिन्तन एवं अध्ययन के इन निष्कर्षो को जब संघ के स्वयंसेवकों, वरिष्ठ अधिकारियों तथा देशभक्त नागरिकों को बोलना शुरू किया, तो पंजाब तथा असम आन्दोलन की दिशा ही बदल गयी।
मा० सुदर्शन जी को संघ-क्षेत्र में जो भी दायित्व दिया गया, उसमें अपनी नव-नवीन सोच के आधार पर उन्होंने नये-नये प्रयोग किय। 1969 से 1971 तक उन पर अ०भा० शारीरिक प्रमुख का दायित्व था, इस दौरान ही खड्ग, शूल छुरिका..पंचम प. पू. सरसंघचालक. आदि प्राचीन शस्त्रों के स्थान पर नियुद्ध, आसन, खेल… आदि को संघ शिक्षा वर्गों के पाठ्यक्रम में स्थान मिला।
आपातकाल अपने बन्दीवास में उन्होंने योगचाप पर पंचम प. पू. सरसंघचालकनये प्रयोग किये तथा उनके स्वरूप बिल्कुल बदल डाला। योगचाप की लय और ताल के साथ होने वाले संगीतमय व्यायाम से 15 मिनट में ही शरीर का प्रत्येक जोड़ आनन्द एवं नवस्फूर्ति का अनुभव करता है। 1977 में उनका केन्द्र कोलकाता बनाया गया तथा शारीरिक प्रमुख साथ-साथ उन पर पूर्वाचल भारत का विशेष दायित्व भी रहा। के
पंचम प. पू. सरसंघचालक श्री कूप. सी. सुदर्शन
1969 में उन्हें अ०भा० बौद्धिक प्रमुख का दायित्व मिला। पंचम प. पू. सरसंघचालकआज शाखाओं पर बौद्धिक विभाग की ओर से होने वाले दैनिक कार्यक्रम (गीत, सुभाषित, अमृतवचन) साप्ताहिक कार्यक्रम (चर्चा, कथा-कथन, प्रार्थना–अभ्यास) मासिक कार्यक्रम (बौद्धिक वर्ग, समाचार, समीक्षा, जिज्ञासा-समाधान, गीत-सुभाषित, एकात्मता, स्तोत्र … आदि की व्याख्या)
तथा शाखा के अतिरिक्त समय से होने वाली मासिक श्रेणी बैठक, इन सबको एक सुव्यवस्थित रचना-क्रम 1969 से 1990 के कालखण्ड में ही मिला। संघ कार्य तथा वैश्विक हिन्दू एकता के प्रयासों की दृष्टि से आपने ब्रिटेन, हालैण्ड, केन्या, सिंगापुर, मलेशिया, थाईलैण्ड, हांगकांग, अमेरिका, कनाडा, त्रिनिडाइ, टुबैगो, गुयाना…आदि देशों कार प्रवास भी किया।
जबकि वहाँ से लुट-पिट कर आने वाला हिन्दू शरणार्थी है, अतः उसका सहानुभूतिपूर्वक शरण दनी चाहिये।पंचम प. पू. सरसंघचालक मा० सुदर्शन जी के चिन्तन एवं अध्ययन के इन निष्कर्षो को जब संघ के स्वयंसेवकों, वरिष्ठ अधिकारियों तथा देशभक्त नागरिकों को बोलना शुरू किया, तो पंजाब तथा असम आन्दोलन की दिशा ही बदल गयी।
मा० सुदर्शन जी को संघ-क्षेत्र में जो भी दायित्व दिया गया, उसमें अपनी नव-नवीन सोच के आधार पर उन्होंने नये-नये प्रयोग किय। 1969 से 1971 तक उन पर अ०भा० शारीरिक प्रमुख का दायित्व था, इस दौरान ही खड्ग, शूल छुरिका… आदि प्राचीन शस्त्रों के स्थान पर नियुद्ध, आसन, खेल… आदि को संघ शिक्षा वर्गों के पाठ्यक्रम में स्थान मिला।
आपातकाल अपने बन्दीवास में उन्होंने योगचाप पर नये प्रयोग किये तथा उनके स्वरूप बिल्कुल बदल डाला। योगचाप की लय और ताल के साथ होने वाले संगीतमय व्यायाम से 15 मिनट में ही शरीर का प्रत्येक जोड़ आनन्द एवं नवस्फूर्ति का अनुभव करता है। 1977 में उनका केन्द्र कोलकाता बनाया गया तथा शारीरिक प्रमुख साथ-साथ उन पर पूर्वाचल भारत का विशेष दायित्व भी रहा। के
पंचम प. पू. सरसंघचालक श्री कूप. सी. सुदर्शन
1969 में उन्हें अ०भा० बौद्धिक प्रमुख का दायित्व मिला। आज शाखाओं पर बौद्धिक विभाग की ओर से होनेपंचम प. पू. सरसंघचालक वाले दैनिक कार्यक्रम (गीत, सुभाषित, अमृतवचन) साप्ताहिक कार्यक्रम (चर्चा, कथा-कथन, प्रार्थना–अभ्यास) मासिक कार्यक्रम (बौद्धिक वर्ग, समाचार, समीक्षा, जिज्ञासा-समाधान, गीत-सुभाषित, एकात्मता, स्तोत्र … आदि की व्याख्या) तथा शाखा के अतिरिक्त समय से होने वाली मासिक श्रेणी बैठक, इन सबको एक सुव्यवस्थित रचना-क्रम 1969 से 1990 के कालखण्ड में ही मिला। संघ कार्य तथा वैश्विक हिन्दू एकता के प्रयासों की दृष्टि से आपने ब्रिटेन, हालैण्ड, केन्या, सिंगापुर, मलेशिया, थाईलैण्ड, हांगकांग, अमेरिका, कनाडा, त्रिनिडाइ, टुबैगो, गुयाना…आदि देशों कार प्रवास भी किया।
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