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गणगीत

संघ के गीत

संघ के गीत आपको इस पोर्टल के माध्यम से प्रमुख संघ गीत दिये जा रहे रहे है जो निम्न प्रकार है

गीत -1

गीत

हम सभी का जन्म तव प्रतिविम्ब सा बन जाय, और’ अधूरी साधना चिर पूर्ण बस हो जाय ।।

बाल्य जीवन से लगाकर अन्त तक की दिव्य झाँकी, मूक आजीवन तपस्या जा सके किस भाँति आँकी,

क्षीर सिंधु अथाह, विधि से भी न नापा जाय, चाह है उस सिंधु की हम बूँद ही बन जाय ।। 1।।

थे अकेले आप लेकिन बीज का था भाव पाया। बो दिया निज को अमरवट संघ भारत में उगाया ।

राष्ट्र ही क्या अखिल जग का आसरा हो जाय, और उसकी हम टहनियाँ-पत्तियाँ बन जाएँ ।। 2।।

आप के दिल की कसक हो वेदना जागृत हमारी, ‘याचि देही, याचि डोला’ मंत्र रटते हैं पुजारी । बढ़ रहे हम आप का आशीष स्वर्गिक पाय, जो सिखाया आपने प्रत्यक्ष हम कर पाएँ साधना की पूर्ति फिर लवमात्र में हो जाय ।। 3 ।। #गीत

गीत 2

प्राची के मुख की अरुण ज्योति, यह भगवा ध्वज फहरे यह भगवा ध्वज फहरे ।

यह वह्नि शिखा का वेष लिए, गत वैभव का संदेश लिए हिन्दू संस्कृति का अचल रूप, यह भगवा ध्वज फहरे ।। 1 । ।

भारतमाता का उच्च भाल, आर्यों के उर की अग्नि ज्वाल ।

हिन्दू संस्कृति का अमर चिह्न, यह भगवा ध्वज फहरे । 12 ।।

यह चन्द्रगुप्त कर की कृपाण, विक्रमादित्य का शिरस्त्राण ।

इस आर्य देश का कठिन कवच, यह भगवा ध्वज फहरे ।।3।।

बप्पा रावल की शान यही, चौहान नृपति का मान यही राणा के त्यागों का प्रतीक, यह भगवा ध्वज फहरे ||4||

बंदा गुरु के बलिदानों से, रक्षित फत्ता के प्राणों से । नीतिज्ञ शिवा का विजयकेतु, यह भगवा ध्वज फहरे ।।5।।#गीत

गीत 3

संगठन गढ़े चलो सुपंथ पर बढ़े चलो । भला हो जिसमें देश का वो काम सब किए चलो ।।

युग के साथ मिल के सब कदम बढ़ाना सीख लो, एकता के स्वर में गीत गुनगुनाना सीख लो,

भूल कर भी मुख से जाति पंथ की न बात हो, भाषा प्रान्त के लिए कभी न रक्तपात हो,

फूट का भरा घड़ा है फोड़ कर बढ़े चलो भला हो जिसमें देश का आ रही है आज चारों ओर से यही पुकार,

हम करेंगे त्याग मातृभूमि के लिए अपार, कष्ट जो मिलेंगे मुस्कुराते सब सहेंगे हम,

देश के लिए सदा जियेंगे और मरेंगे हम, देश का ही भाग्य अपना भाग्य है ये सोच लो भला हो जिसमें देश का 112 11

गीत 4

जाग उठे हम हिन्दू फिर से, विजय ध्वजा फहराने अंगड़ाई ले चले पुत्र हैं, माँ के कष्ट मिटाने ।।।

जिनके पुरखे महा यशस्वी, वे फिर क्यों घबराएँ जिनके सुत अतुलित बलशाली, शौर्य गगन पर छाएँ। लेकर शस्त्र-शास्त्र को कर में, शत्रु-हृदय दहलाने ।।1।

हम अगस्त्य बन महासिंधु को, अंजुलि में पी जाएँ तीन डगों में सृष्टि नाप लें, कालकूट पी जाएँ पृथ्वी के हम अमर पुत्र हैं, जग को चले जगाने ।। 2 ।

हिन्दू भाव को जब-जब भूले आई विपद् महान् भाई टूटे धरती खोई, मिटे धर्म-संस्थान भूलें छोड़ें और गुँजा दें, जय से भरे तराने । । 3 ।#गीत

गीत 5

करवट बदल रहा है देखो, भारत का इतिहास, जाग उठा है हिन्दु-हृदय में विश्व-विजय विश्वास ।।ध्रु।।

सदियों से विस्मृत गौरव का, भारत माँ परिचय देगी। सौम्य शान्त सुखदायी जननी, नव-युग नवजीवन देगी।

उस जीवन-दर्शन से होगा, मानव धर्म विकास । पश्चिम के असफल चिन्तन का, होगा शनैःशनैः अब ह्रास ।।1।।

ग्रीक मिटे यूनान मिट गए, भरत- -भूमि है अविनाशीं आदि अनादि अनंत राष्ट्र है, संस्कृति शुचिता अभिलाषी ।

भोग-वाद के महल ढह रहे, बदल रहा इतिहास । बुझा सके हिन्दुत्व सुधा ही, अब वसुधा की प्यास । । 2 11

सत्रह बार क्षमा अरिदल को, ऐसी भूल न अब होगी । कोटि-कोटि बाँहों वाली माँ, अब ना अबला कहलाएगी ।

देश-विघातक षड्यंत्रों का, निश्चित निकट-विनाश | एक अखंडित-भारत देगा, अनुपम अटल- विश्वास ।।3।।

संघ-वृक्ष शाखा-उपशाखा, दसों दिशा में फैल रही । हिन्दू – राष्ट्र की विजय-पताका, लहर-लहर ललकार रही। केवल सत्ता से मत करना, परिवर्तन की आस । जागृत जनता के केन्द्रों से, होगा अमर समाज ।।#गीत

गीत -6

हम करें राष्ट्र आराधन,

तन से, मन से, धन से, तन-मन-धन जीवन से, हम करें राष्ट्र आराधन । ‘

अंतर से, मुख से, कृति से, निश्छल हो निर्मल मति से, श्रद्धा से, मस्तक नति से, हम करें राष्ट्र अभिवादन ।। हम…. अपने हँसते शैशव से, अपने खिलते यौवन से,

प्रौढ़तापूर्ण जीवन से, हम करें राष्ट्र का अर्चन ।। हम…. अपने अतीत को पढ़कर, अपना इतिहास उलट कर, अपना भवितव्य समझकर, हम करें राष्ट्र का चिन्तन ।। हम…..

हैं याद हमें युग-युग की जलती अनेक घटनाएँ जो माँ के सेवा पथ पर आई बनकर विपदाएँ, हमने शृंगार किया था माता का अरिमुण्डों से,

हमने ही उसे दिया था सांस्कृतिक उच्च सिंहासन, माँ जिस पर बैठी सुख से करती थी जग का शासन, अब कालचक्र की गति से वह टूट गया सिंहासन,

अपना तन-मन-धन देकर, हम करें पुनः संस्थापन । हम करें राष्ट्र आराधन ।।#गीत

बालगीत

बालगीत -1

नदिया न पिए कभी अपना जल, वृक्ष न खाए कभी अपना फल अपने तन को मन को धन को, देश को दे-दे दान रे, वो सच्चा इन्सान रे-211

चाहे मिले सोना चाँदी, चाहे मिले रोटी बासी, महल मिले बहु सुखकारी, चाहे मिले कुटिया खाली, प्रेम और संतोष भाव से, करता जो स्वीकार रे ।।1।।

चाहे करे निन्दा कोई, चाहे कोई गुणगान करे, फूलों से सत्कार करे, काँटों की चिन्ता न करे, मान और अपमान ही दोनों, जिसके लिये समान रे 112 11

वो सच्चा इन्सान… वो सच्चा इन्सान…

मुझको मिले दीपक सा तन, बाती बन हंसकर जलना, राष्ट्रधर्म की नौका को, भवसिंधु में खेते रहना,

चन्दन सम उपकारी बनकर, करता जो उपकार रे ।।3।। वो सच्चा इन्सान …

बालगीत –2

शाखा है गंगा की धारा, डुबकी नित्य लगाते हैं । माँ का वन्दन साँझ सवेरे श्रद्धा सुमन चढ़ाते हैं ।। ध्रु ।। संघ साधना अर्चन पूजन प्रतिदिन शीश झुकाते हैं,

भारत माँ के भव्य भाल पर भगवा ध्वज लहराते हैं।

संघस्थान मंदिर सा पावन मन समरस हो जाते हैं ।।

माँ का वंदन सांझ सवेरे ….. ।। 1 ।।

इसकी रज में खेल खेलकर तन चन्दन बन जाता है, योग खेल रविनमस्कार से तन निरोग हो जाता है । स्नेह भाव से मिलते जुलते मन-मत्सर मर जाते हैं ।। माँ का वंदन सांझ सवेरे…… 11211

लोक संगठन के संवाहक गटनायक बन जाते हैं, कुम्भकार सी रचना करके गण शिक्षक कहलाते हैं 1 देश भक्ति के गीत हृदय में मातृभक्ति पनपाते हैं ।। माँ का वंदन सांझ सवेरे 113 11

मधुकर की यह तप साधना वज्र शक्ति बन जाएगी, माँ बैठेगी सिंहासन पर यश वैभव को पाएगी । केशव माधव का यह दर्शन मोहजाल कट जाते हैं ।। माँ का वंदन सांझ सवेरे……

बालगीत –3

हम भारत के भरत खेलते, सिंहों की संतान से । कोई देश नहीं दुनिया में बढ़कर हिन्दुस्थान से ।। ध्रु ।।

इस मिट्टी में पैदा होना, बड़े गर्व की बात है । साहस और वीरता अपनी, पुरखों की सौगात है । बड़ी बड़ी ज्वालाओं से कम, नहीं यहाँ चिंगारियाँ । काँटे पहले फूल बाद में देती हैं फुलवारियाँ । कभी महकते कभी चहकते, जीते मरते शान से । कोई देश नहीं दुनिया में, बढ़कर हिन्दुस्थान से 111

कूद समर में आगे आये जब भी हमें ललकारने । अंगुली दांतों तले दबाये अचरज से संसार ने । बनते आये हैं हम पन्ने गौरव के इतिहास में । जब भी निकला हीरा निकला यहाँ किसी भी खान से । कोई देश नहीं दुनिया में बढ़कर हिन्दुस्थान से ।।2।।

बालगीत –4

चंदन है इस देश की माटी तपो भूमि हर ग्राम है हर बाला देवी की प्रतिमा बच्चा बच्चा राम है। ।धु ।।

हर शरीर मंदिर सा पावन हर मानव उपकारी है जहां सिंह बन गये खिलौने गाय जहां माँ प्यारी है जहां सवेरा शंख बजाता लोरी गाती शाम है ।। 1 ।।

जहां कर्म से भाग्य बदलता श्रम निष्ठा कल्याणी हैं। त्याग और तप की गाथाएं गाती कवि की वाणी है ज्ञान जहां का गंगाजल सा निर्मल है अविराम है।। 2।।

जिस के सैनिक समरभूमि में गाया करते गीता हैं जहां खेत में हल के नीचे खेला करती सीता हैं जीवन का आदर्श जहां पर परमेश्वर का धाम है ।। 3 ।।

बालगीत –5

हमको अपने भारत की, माटी से अनुपम प्यार है माटी से अनुपम प्यार है, माटी से अनुपम प्यार है ।। ध्रु ॥

इस धरती पर जन्म लिया था, दशरथ-नन्दन राम ने इस धरती पर गीता गायी, यदुकुल भूषण श्याम ने इस धरती के आगे झुकता, मस्तक बारम्बार है ।।1।।

इस धरती की गौरव गाथा, गायी राजस्थान ने इसे बनाया वीरों ने, पावन अपने बलिदान से मीरा के गीतों की इसमें छिपी हुई झंकार है 11 211

कण-कण मंदिर इस माटी का कण-कण में भगवान हैं। इस माटी से तिलक करो, यह अपना हिन्दुस्थान है हर हिन्दु का रोम-रोम, भारत का पहरेदार है ।13।।

हमको अपने भारत की, माटी से अनुपम प्यार है। माटी से अनुपम प्यार है माटी से अनुपम प्यार है।

बालगीत –6

उठो जवानों देश की वसुन्धरा पुकारती है

देश है पुकारता पुकारती मां भारती ।।धु ।।

रगों में बह रहा है खून राम श्याम का जगद्गुरू गोविन्द और राजपूती शान का तू चल पड़ा तो चल पड़ेगी साथ तेरे भारती ||1|| देश है पुकारता..

है शत्रु दनदना रहा चहुंदिशा में देश की पता बता रही हमें किरण-किरण दिनेश की वो चक्रवर्ती विश्वविजयी मातृभूमि हारती ।।2।। देश है पुकारता…

उठा कदम बढ़ा कदम, कदम-कदम बढ़ाये जा कदम-कदम पे दुश्मनों के धड़ से सर उड़ाये जा उठेगा विश्व हाथ जोड़ करने तेरी आरती ।।3।। देश है पुकारता ……

संघ के आधिकारिक वैबसाइट से आप सभी गीत भी प्राप्त कर सकते है उसके लिए इस लिंक पर क्लिक करे http://rss.org आप हमारे इस पोर्टल के माध्यम से भी गणगीत ओर एकलगीत प्राप्त कर सकते है

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