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सुभाषित

अक्टूबर मास हेतु सुभाषित

सुभाषित

अपि स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण ! रोचते ।

जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी अर्थ हे लक्ष्मण!

यह स्वर्णमयी लंका मुझे अच्छी नहीं लगती है

, क्योंकि जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है।

नवम्बर मास हेतु

विद्या ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम् ।

पात्रत्वाद् धनमाप्नोति धनाद धर्मं ततः सुखम् ॥

अर्थ-विद्या विनय को जन्म देती है।

विनय से व्यक्ति सत्पात्र कहलाता है।

पात्रता (योग्यता) से धन की प्राप्ति होती है

और धन से धर्माचरण सम्भव होता है।

परिणामतः सुख की प्राप्ति होती है।

दिसम्बर मास हेतु

देशरक्षासमं पुण्यं देशरक्षासमं व्रतम् ।

देशरक्षासमो यागो, दृष्टो नैव च नैव च ॥

अर्थ – देश रक्षा के समान पुण्य, देश रक्षा के समान

व्रत और देश रक्षा के समान यज्ञ नहीं देखा।

अर्थात् देश रक्षा ही सर्वोच्च कार्य है।

अधिक जानकारी का लिए क्लिके करें http://rsssang.got सुभाषित

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