Skip to content

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अध्ययन

Menu
  • होम
  • About US परिचय
  • संघ के सरसंघचालक
    • Terms and Conditions
    • Disclaimer
  • शाखा
  • संघ के गीत
  • एकल गीत
  • गणगीत
  • प्रार्थना
  • सुभाषित
  • एकात्मतास्तोत्रम्
  • शारीरिक विभाग
  • बोद्धिक विभाग
  • अमृत वचन
  • बोधकथा
    • बोधकथा
      • बोधकथा
        • प्रश्नोत्तरी
  • RSS संघ प्रश्नोत्तरी
  • डॉ० केशवराम बलिराम हेडगेवार जीवन चरित्र (प्रश्नोत्तरी)
    • डॉ केशव बलिराम हेडगेवार : Hindi Tweets
    • मातृभाषा_दिवस : Hindi Tweets
    • श्री गुरुजी: Hindi Tweets
  • गतिविधि
  • सम्पर्क सूत्र
  • Contact Us
Menu
शाखा

RSS संघ की शाखा केसे लगाते है ? आओ शाखा लगाने की सम्पूर्ण विधि जाने

Posted on December 13, 2023December 13, 2023 by student

शाखा प्रारम्भ करने के लिए मुख्य शिक्षक के माध्यम से सभी आज्ञा दी जाते है जो निम्न प्रकार ओर निम्न स्टेप मे है

जैसे की उपरोक्त चित्र मे दिखाया गया है की मुख्य शिक्षक बाए और है ध्वज बीच मे ओर दाये और संघ के उस शाखा पर उपस्थित सर्वोच्च अधिकारी है

शाखा के मुख्य बिन्दु निम्न है

शाखा प्रारम्भ :- मुख्यशिक्षक द्वारा सीटी (-०-०) बजाते ही स्वयंसेवक आपस की बातचीत बंद कर संपत् स्थान के पीछे की ओर ध्वजस्थानाभिमुख होकर आरम् में खड़े रहेंगे।

संपत् की पद्धति :– मुख्यशिक्षक (1) संघ दक्ष (2) आरम् देकर अग्रेसर बुलाएगा। अग्रेसरों की संपत्रेखा ध्वजकेंद्र से ध्वजदंड की लम्बाई से कम अंतर पर नहीं होनी चाहिये। (दैनिक शाखा पर साधारणतः 6 कदम, संघस्थान छोटा होने की स्थिति में न्यूनतम 4 कदम) (3) अग्रेसर – सब अग्रसर दक्ष करेंगे और प्रचलन करते हुए नियोजित स्थान पर निश्चित क्रमानुसार (संपत् का क्रम-दाहिनी ओर से पहले अभ्यागत, उनकी बाँयी ओर क्रमशः तरुण, बाल और शिशु) दक्ष में खड़े होंगे। साधारणतः संपत रेखा के मध्य से स्वयंसेवकों की ओर मुँह करके वामवृत कर अग्रसरों की संख्या से एक कदम कम -अंतर (चार अग्रेसर हैं तो तीन कदम) जाकर स्तभ् कर पहला अग्रेसर खड़ा करना, पश्चात् दो-दो कदम (150 सें.मी.अंतर) बाँयी ओर आते हुए अग्रेसरों को खड़े करने से संपत् रचना ठीक रहती है। मुख्य शिक्षक उनका अन्तर और सम्यक् देखकर आरम् कहेगा। दो अग्रेसर के बीच दो कदमों का अन्तर (150 सें.मी.) होगा। #शाखा

(4) अग्रसेर सम्यक्

(5) अग्रेसर आरम्

(6) संघ संपत् : अग्रेसरों सहित सभी स्वयंसेवक दक्ष करेंगे। स्वयंसेवक प्रचलन करते हुए अपने-अपने अग्रेसर के पीछे गणशः हस्तांतर लेकर खड़े रहेंगे और अग्रेसर के आरम् करने पर क्रमशः आरम् करेंगे। गण के अन्त में गणशिक्षक रहेगा। संपत् करते समय प्रत्येक स्वयंसेवक अपना दाहिना हाथ (मुट्ठी खोलकर) आगे वाले स्वयंसेवक को स्पर्श करे। इसके कारण सभी का अंतर भी समान रहेगा तथा सबसे पीछे वाले स्वयंसेवक को कोई स्पर्श नहीं करेगा, अतः उसे ध्यान रहेगा कि ‘संख्या’ की आज्ञा पर उसे सख्या देनी है। मुख्यशिक्षक तथा उपस्थित सर्वोच्च अधिकारी क्रमशः वामतम तथा दक्षिणतम प्रतति के बाजू में 3 कदम अंतर पर तथा ध्वज और अग्रेसरों की पंक्ति की मध्यरेखा पर एक दूसरे की ओर मुँह कर खड़े होंगे। #शाखा

ध्वज लगाने वाला स्वयंसेवक इसी समय मुख्यशिक्षक के पास उसकी दाहनी ओर तह किया हुआ ध्वज बाँए हाथ में लेकर खड़ा रहेगा। उसके पास उस समय दंड नहीं रहेगा, क्योंकि ध्वजारोहण, ध्वजप्रणाम और संख्या के पश्चात् आरम् यह आज्ञा होने पर संख्या गणक के नाते भी उसी को कार्य करना है। छोटे अथवा बड़े सभी ध्वज का आकार आकार के ध्वजों को बनाते समय उसकी बाजुओं का मितिप्रमाण साथ में दिये हुए चित्र में दर्शाया है। #शाखा

शाखा

प्रतिदिन के शाखा के ध्वज की लंबरूप ऊँचाई 75 सेमी. चाहिए, ध्वजदंड की ऊँचाई 2.5 मीटर चाहिए।

सम्यक् की पद्धति :-

(7) संघ दक्ष

( 8 ) संघ सम्यक आज्ञा होते ही सब अग्रेसर

अर्धवृत् कर अपने अपने गणों का अथवा गटों का सम्यक् देखेंगे। सम्यक् देखते समय हाथ न हिलाते हुए यथावश्यक मौखिक सूचनाएँ दी जानी चाहिए। सम्यक देखने के लिए जब अग्रेसर अर्धवृत्त करता है तो वह पंक्ति से थोड़ा दाँई ओर हट जाता है। अतः उसे पंक्ति को अपने सामने लाते हुए अपनी नाक की सीध में सभी का दाँया कान है – यह देखना चाहिए। अन्यथा पुनः अर्धवृत्त करने पर वह पंक्ति से बाहर बाँई ओर हट जाएगा।

(9) अग्रेसर अर्धवृत् सब अग्रेसर अर्धवत् करेंगे।

(10) संघ आरम् – स्वयंसेवकों को ध्वजारोपण के लिए प्रस्तुत करने की दृष्टि से दक्ष करने के पूर्व उनसे एक बार आरम् (इसके पूर्व की आज्ञा अग्रेसरों के लिए होने के कारण और अब आरम् सभी को करना है अतः इस समय ‘सघ आरम्’ की आज्ञा देना आवश्यक है) कराना आवश्यक है।

( 11 ) संघ दक्ष :- सब स्वयंसेवकों के दक्ष स्थिति में आने पर ध्वज लगाने वाला स्वयंसेवक प्रचलन करते हए लघुतम मार्ग से ध्वजमंडल के अंदर ध्वजस्थान के सम्मुख पर्याप्त निकट जाकर स्तभ् करेगा। ध्वजारोपण के हेतु उसी स्थान से ध्वजदंड उठाकर उसे अपनी बाँयी बगल के आधार से तिरछा (संपत् रेखा की ओर लंबवत्) स्थिर रखकर दोनों हाथों का उपयोग करते हुए उस पर ध्वज चढ़ाएगा। पश्चात् ध्वजदंड का निम्न छोर ध्वजस्थान की बैठक में फँसाएगा । पश्चात् ध्वजमंडल के बाहर आकर ध्वजप्रणाम कर एक कदम पीछे जाएगा और प्रचलन करते हुए लघुतम मार्ग से दक्षिणतम अग्रेसर के दाहिनी ओर दो कदम अन्तर पर पहुँचकर अर्धवृत् कर खड़ा होगा।

(12) ध्वजप्रणाम 1-2-3 :– एक, दो, तीन आज्ञाएँ हैं, अंकताल नहीं, यह जानकर आज्ञा के पश्चात् क्रिया होनी चाहिये ।

(13) संख्या : प्रतति में खड़ा हुआ अंत का स्वयंसेवक दाँया पैर 60 सें.मी. दाँयी ओर लेकर बाँया पैर मिलाए और संख्या गिनता हुआ (प्रचल करते हुए) अग्रेसर के बाजू में स्तभ करेगा और उसे पंक्ति की संख्या बतलाकर ( सामने देखकर अग्रेसर को सुनाई दे इतनी आवाज में) खड़ा रहेगा। #शाखा

(14) आरम् :- आज्ञा होते ही उपरोक्त स्वयंसेवक अर्धवृत कर प्रचलन करते हुए गण अथवा गट के अन्त तक जाकर स्तभ और अर्धवृत् कर 60 से.मी. बाँयी ओर हट कर अपने स्थान पर सम्यक् देखकर आरम् कर खड़ा होगा। उपर्युक्त आज्ञा होने पर संख्या-गणक एक कदम (75 से.मी.) आगे आकर वामवृत् कर अग्रेसरों से क्रमशः (द्विपद पुरस् करते हुए) संख्या ज्ञात कर अंतिम अग्रेसर से एक कदम आगे जाकर तथा वामवृत कर प्राप्त संख्या के योग में अपनी संख्या जोड़कर मुख्यशिक्षक को बताएगा और अपनी बाँया पैर बाँयी ओर 60 से.मी. रखकर दहिना पैर मिलाए तथा दो कदम आगे जाकर, अर्धवृत कर मुख्यशिक्षक के बाजू में आरम् करके खड़ा होगा। #शाखा

(15) संघ दक्ष में और

( 16 ) आरम् देकर मुख्यशिक्षक उपस्थित प्रमुख अधिकारी को संख्या गणक द्वारा प्राप्त संख्या में स्वयं की, अधिकारी की तथा संपत् रचना के बाहर के स्वयंसेवकों की संख्या जोड़कर बताएगा। दक्ष द्वारा सम्मानित अधिकारी यदि उस समय संघस्थान पर हों तो मुख्यशिक्षक ने स्वयंसेवकों को संघ दक्ष देकर (क्र. 15 के पश्चात्) संख्या बताने के लिये जाना चाहिये । संख्या बताने के पश्चात् मुख्यशिक्षक एक कदम पीछे आकर स्वयंसेवकों की दिशा में घूमकर (पूर्ण रचना दृष्टिक्षेप में आवे उतना आवश्यक वर्तन) आरम् देकर अपने स्थान पर आवेगा । तदुपरान्त

( 17 ) संघ दक्ष

(18) ‘स्वस्थान’ तब स्वयंसेवक अपने अपने गणस्थान पर जाकर गणशिक्षक की आज्ञानुसार संपत् करेंगे। जहाँ स्वयंसेवक गणानुसार खड़े हैं वहाँ स्वस्थान के पश्चात् गणशिक्षक ही अपने गणों को ले जाएंगे।

सामने अधिकारी उपस्थित न हाने की स्थिति में ( 15 ) संघ दक्ष के पश्चात् सीधे स्वस्थान देना । (यदि स्वयंसेवकों को स्वस्थान के बाद भी उसी रचना में रोकना हो तो स्वस्थान के बाद ‘आरम्’ की आज्ञा देनी चाहिए। ऐसा होने पर शिक्षक गणों को नहीं ले जाएंगे। सूचना या सामूहिक कार्यक्रम के पश्चात् गणों को ले जाने के लिए सूचना मात्र देनी चाहिए।

नोट : मुख्य बिन्दु

विलंब से आने वाले स्वयंसेवक :- यदि कोई स्वयंसेवक विलम्ब से आए तो वह सर्वप्रथम ध्वज के सम्मुख (संपत रेखा पीठ की ओर रहेगी) आकर ध्वज को प्रणाम करे, बाद में उपस्थित सर्वोच्च अधिकारी को प्रणाम कर उनकी अनुमति लेकर अपने गणशिक्षक की अनुमति से गण के कार्यक्रम में सम्मिलित हो। (ध्वजारोपण के समय जो स्वयंसेवक शाखा संपत् की रचना में खड़े नहीं हो पाए वे विलंब से आने वाले माने जाएंगे) विलंब से आने पर स्वयंसेवक को पहले ध्वजप्रणाम और उसके बाद अधिकारी प्रणाम करना होता है। किसी भी स्थिति में दो बार ध्वजप्रणाम करना उचित नहीं । यदि प्रणाम अधिकारी कार्यक्रम करने / कराने में व्यस्त हैं, तो उनकी ओर मुँह करके प्रणाम कर लेना चाहिए ।

ध्वज विलम्ब से आने पर :– मुख्यशिक्षक द्वारा सभी स्वयंसेवकों को दक्ष की सूचना (–) देने के पश्चात् ध्वज लगाने वाला स्वयंसेवक ध्वज लगाएगा और एक कदम पीछे आकर प्रणाम करेगा तत्पश्चात् मुख्यशिक्षक द्वारा सभी स्वयंसेवकों को पूर्ववत की सूचना ( ००, ००) दी जाएगी। सभी स्वयंसेवकों को पुनः प्रणाम करने की आवश्यकता नहीं ।

ध्वज लगने के बाद संघचालक का आगमन :- (मा.संघचालक) (अथवा जिन्हें दक्ष द्वारा सम्मान प्रदान किया जाता है, ऐसे अधिकारी) के संघस्थान की सीमा में प्रवेश करते ही मुख्यशिक्षक सीटी (–) बजाएगा। तत्पश्चात् सभी स्वयंसेवक अपने काम बंद कर (विस्तार के कारण आवश्यकता होने पर गणशिक्षक की आज्ञा से ) ध्वजाभिमुख होकर दक्ष करेंगे। मा. संघचालक के साथ आए हुए अन्य अधिकारी तथा स्वयंसेवक भी दक्ष की ही स्थिति में खड़े रहेंगे। मा. संघचालक (अथवा तत्सम उच्च अधिकारी) के ध्वजप्रणाम करने के पश्चात् संघस्थान पर उपस्थित सर्वोच्च अधिकारी मा. संघचालक को प्रणाम करेंगे। तत्पश्चात् सीटी (००, ००) बजने पर शाखा के कार्यक्रम पूर्ववत् प्रारंभ होंगे। उच्चाधिकारी के साथ आए हुए अन्य अधिकारी और स्वयंसेवक ध्वज प्रणाम कर उनको प्रणाम करेंगे।

प्रार्थना के पूर्व जाने वाले स्वयंसेवक :- यदि कोई स्वयंसेवक प्रार्थना के पूर्व जाना चाहता है तो वह कार्यवाह की अनुमति । लेकर संघस्थान पर उपस्थित सर्वोच्च अधिकारी को प्रणाम करेगा। बाद में ध्वज को प्रणाम कर संघस्थान छोड़ेगा ।दक्ष द्वारा सम्मानित अधिकारी यदि प्रार्थना के पूर्व ही संघस्थान छोड़ रहे हों तो सभी स्वयंसेवकों को ध्वजाभिमुख दक्ष की स्थिति में खड़े कराने के लिए मुख्यशिक्षक सीटी (–) बजावेगा। जाते समय अधिकारी पहले ध्वज प्रणाम करेंगे। निकटतम निम्न अधिकारी उनके बाँयी ओर रहते हुए संघस्थान की सीमा तक उनके साथ जाएगा और वहाँ पर उनको प्रणाम करेंगे। इसके पश्चात् उच्चाधिकारी संघस्थान की सीमा छोड़ेंगे। उच्चाधिकारी के संघस्थान छोड़ चुकने के बाद मुख्यशिक्षक सीटी (००, ००) बजाएगा और तब शाखा के कार्यक्रम पूर्ववत् चालू होंगे। अन्य श्रेणी के अधिकारी यदि शाखा समाप्ति के पूर्व जाते हैं, तो निकटतम निम्न श्रेणी के अधिकारी उनको प्रणाम करेंगे। तत्पश्चात् जानेवाले अधिकारी ध्वज को प्रणाम कर संघस्थान छोड़ेंगे।

शाखा विसर्जन :– प्रार्थना के हेतु संपत् कराने के लिए मुख्यशिक्षक सीटी (-०००) बजाएगा। सब अग्रेसर (अभ्यागत सहित) अपने नियोजित स्थान पर पहुँच कर क्रमानुसार दक्ष में खड़े रहेंगे । मुख्यशिक्षक इनका अंतर ठीक कराकर और

1) अग्रेसर सम्यक् आज्ञा देकर उनका सम्यक् देखकर

2) अग्रेसर आरम् देगा। दूसरी सीटी (-००) बजते ही अग्रेसर दक्ष करेंगे व गणशिक्षक अपने गणों को रचना के पास लाकर स्वस्थान की आज्ञा देंगे। रचना के पास लाकर ‘स्वस्थान’ देने के लिए गण को ‘स्तम्’ देना अनिवार्य नहीं है । तब सब स्वयंसेवक गटशः अथवा गणशः संपत् होकर सम्यक् देखकर क्रमशः स्वयं आरम् करेंगे। तत्पश्चात् मुख्यशिक्षक सबको

3) संघ दक्ष

4) संघ सम्यक्

5) अग्रेसर अर्धवृत्

6) संख्या

7) आरम् इस क्रम से आज्ञा देगा।

प्रार्थना कहलाने वाला स्वयंसेवक ही संख्या गणक का कार्य करेगा । प्रार्थना के लिये संपत् के समय ही वह दक्षिणतम अग्रेसर के दाहिनी ओर प्रार्थना के लिये खड़ा होगा। उस समय इस स्वयंसेवक के पास दंड नहीं होगा।यदि सूचनाएं देनी हों तो वे संख्या लिए जाने के उपरान्त प्रार्थना के पूर्व आरम् ‘स्वस्थ’ देकर स्वस्थ की स्थिति में ही दी जानी चाहियें।

उपस्थित प्रमुख अधिकारी (यदि वह दक्ष द्वारा सम्मानित अधिकारी हों तो सब स्वयंसेवकों को दक्ष करा कर) को संख्या (गणक द्वारा प्राप्त संख्या में स्वयं की, अधिकारी की तथा संपत् रचना के बाहर के और छुट्टी लेकर गए हुए स्वयंसेवकों की संख्या जोड़कर) बताकर प्रार्थना के लिए उनकी अनुमति लेकर पश्चात् मुख्यशिक्षक (आरम् देकर) अपने स्थान पर आवेगा व तदुपरान्त संघ दक्ष देकर सीटी (0) बजाकर प्रार्थना करावेगा। प्रार्थना के बाद,

8) ध्वजप्रणाम होगा, पश्चात् प्रार्थना कहनेवाला स्वयंसेवक निकटतम मार्ग से जाकर ध्वजमंडल के बाहर ध्वज के सम्मुख खड़े होकर ध्वज को प्रणाम कर ध्वजमंडल के अंदर जाकर ध्वजदंड बैठक से निकाल कर अपनी बाँयीं बगल के आधार पर तिरछा रखकर स्थिर रखते हुए दाहिने हाथ से ध्वज निकालेगा और उसे पूर्ण तह कर, ध्वजदंड रखकर, बाँएं हाथ की मुट्ठी में ध्वज लेकर, मुख्यशिक्षक के बाजू में पहुँचकर, उसके दाहिनी ओर अर्धवृत कर खड़ा होगा।

पश्चात् 9) “संघविकिर” की आज्ञा दी जावेगी ।

विकिर की आज्ञा होने पर सब स्वयंसेवक दाहिनी ओर घूम कर ही प्रणाम करेंगे। तथा 4 अंक मन में गिनकर ही जगह छोड़ेंगे। परन्तु सर्वोच्च अधिकारी तथा प्रार्थना कहलाने वाला स्वयंसेवक और मुख्यशिक्षक उसी स्थिति में सब के साथ प्रणाम कर विकिर करेंगे।

शाखा का दैनिक कार्य इसी प्रकार हो यह ध्यान में रखना चाहिये। विशेष कार्यक्रम के अवसर पर स्थान के अनुरूप प्रसंगोचित व्यवस्था करनी चाहिए। संघ शिक्षा वर्गों, शिविरों की संपत् रचना में यदि मा. अधिकारी तथा मुख्य शिक्षक स्वयंसेवकाभिमुख खड़े हों तो उस समय भी मा. अधिकारी को संख्या बताते समय संख्या बताने के पश्चात् मुख्य शिक्षक एक कदम पीछे हटकर (बाजू में नहीं) ‘आरम्’ देकर अपने स्थान पर जावेगा ।

सूचनाएँ

  1. प.पू.सरसंघचालक एवं मा. सरकार्यवाह को दक्ष द्वारा सम्मानित किया जाता है। समस्त संघचालकों को भी उनके अपने कार्यक्षेत्र में दक्ष द्वारा सम्मानित किया जाता है।
  2. प्रणाम करने की दृष्टि से निम्नलिखित श्रेणी है

(अ) प.पू सरसंघचालक

(आ) मा. सरकार्यवाह

(इ) मा. क्षेत्र-प्रांत-विभाग-जिला- तहसील तथा स्थानीय संघचालक

(ई) सहसरकार्यवाह, क्षेत्र कार्यवाह तथा प्रांत कार्यवाह से लेकर यथोक्त क्रम से स्थानीय शाखा कार्यवाह तक ।

  1. प्रणाम करते समय तीन क्रमों में ही करना चाहिये। ध्वजप्रणाम, अधिकारी प्रणाम, विकिर पद्धति के अंतर्गत किए जाने वाले प्रणाम, सरसंघचालक प्रणाम, आद्य सरसंघचालक प्रणाम तथा स्वागत (अध्यक्षीय) प्रणाम की पद्धति में कोई अंतर नहीं 1

दैनिक शाखा में ध्वजस्तंभ सामान्यतः 2.5 मीटर ऊँचा हो, बैठक को केन्द्र मानकर 90 सें.मी. त्रिज्या का मंडल अथवा मंडलांश बनाना चाहिये उसका सीमांकन करते हुए ध्वजस्थान सादे ही ढंग से क्यों न हो स्वच्छ और सुशोभित रखना चाहिये। जिन शाखाओं में ध्वज नहीं लगाया जाता वहाँ के स्वयंसेवकों को ध्वजप्रणाम आदि बातों का संस्कार एवं अभ्यास कराने के लिये नियोजित स्थान पर ध्वज है ऐसा मानकर ध्वजप्रणाम आदि का व्यवहार हो । वह स्थान उपर्युक्त प्रकार से सीमांकित और स्वच्छ हो । शाखा में ध्वजारोपण हो जाने के पश्चात् किसी विशेष कारण से ध्वज को स्थानांतरित करना हो तो सब स्वयंसेवकों को दक्ष देकर ही वैसा करना चाहिये ।

  1. बौद्धिक वर्ग या उस प्रकार के किसी अन्य कार्यक्रम के चालू रहते समय ध्वजप्रणाम के बाद आनेवाले स्वयंसेवकों को इस बात की सावधानी रखनी चाहिये कि अपने आगमन से अन्य स्वयंसेवकों का ध्यान विचलित न करते हुए पीछे की ओर जाकर (जहाँ बैठना हो उस स्थान पर) ध्वज तथा अधिकारी को प्रणाम कर बैठ जाना

चाहिये ।

  1. आवश्यक सूचनाएँ आदि देने का कार्य प्रार्थना के पूर्व ही कर लेने का नियम होने के कारण प्रार्थना के पश्चात् ध्वजप्रणाम होने पर ‘विकिर’ यह आज्ञा शाखा विसर्जन की अंतिम आज्ञा समझी जानी चाहिये।

विशेष प्रसंगों पर किसी खास प्रयोजन से उसी रचना में स्वयंसेवकों को रोकना आवश्यक हो तो विकिर की आज्ञा के अनुसार स्वयंसेवकों द्वारा दक्षिणवृत् और प्रणाम करने पर वामवृत् की आज्ञा दें।

  1. खतरे की चेतावनी की सीटी (- (….) बजते ही शिक्षक अपना-अपना गण तुरन्त संपत् कर मुख्यशिक्षक के संकेतानुसार कार्य करेंगे।
  2. देश के विभिन्न केन्द्रों में चलनेवाले ‘संघ-शिक्षा वर्ग’ बहुत बार किसी एक प्रांत तक या अंचलविशेष तक सीमित दिखाई देते हुए भी वास्तविकतया एक विशेष अखिल भारतीय स्वरूप का केंद्रित कार्यक्रम है। संघ शिक्षा वर्गों (द्वितीय तथा तृतीय वर्ष) में प्रणाम की दृष्टि से निम्न श्रेणी होगी।

(अ) प.पू. सरसंघचालक

(इ) मा. सर्वाधिकारी

(उ) मा. वर्गकार्यवाह

(आ) मा. सरकार्यवाह

(ई) मा. सहसरकार्यवाह

प.पू सरसंघचालक, मा. सरकार्यवाह तथा मा. सर्वाधिकारी को दक्ष द्वारा सम्मानित किया जाता है।

अब प्रथम वर्ष का वर्ग प्रान्तीय विषय होने के कारण उसमें नियुक्त किये जाने वाले वरिष्ठतम अधिकारी को ‘वर्गाधिकारी’ कहा जाएगा और मा. प्रांत संघचालक जी के प्रतिनिधि के नाते वे भी दक्ष द्वारा सम्मानित रहेंगे। प्रथम वर्ष में प्रणाम क्रम होगा – प.पू. सरसंघचालक, मा. सरकार्यवाह, मा. क्षेत्र संघचालक, मा. प्रांत संघचालक, मा. वर्गाधिकारी, मा. सह सरकार्यवाह, मा. क्षेत्र कार्यवाह, वर्ग कार्यवाह, प्रांत कार्यवाह ।

  1. वर्ष-प्रतिपदा प.पू. आद्यसरसंघचालक जी का जन्मदिन भी है। अतः इस दिन उन्हें प्रणाम दिया जाएगा (अध्यक्ष नियोजित हो तो अध्यक्षीय प्रणाम के पश्चात्) । सर्वोच्च अधिकारी प.पू. आद्यसरसंघचालक जी की प्रतिमा को माला चढ़ाकर प्रणाम करेंगे। तत्पश्चात् मुख्यशिक्षक आद्यसरसंघचालक प्रणाम 1-2-3 यह आज्ञा देकर ध्वज प्रणाम करावेगा। ध्वजारोपण, प्रणाम आदि कार्यक्रम इसके पश्चात् होंगे।

सीटी बजाने के संबंध में लंबी सीटी (-) छोटी सीटी (०)

(-०-०) शाखा प्रारंभ कराने के लिए।

( -०००) शाखा के अंत में अग्रेसर संपत् कराने के लिए।

(००) शाखा के अंत में संपत् कराने के लिए गणशिक्षकों को सूचना ।

(−०) कार्यक्रम में परिवर्तन के लिए।

(– –) सब स्वयंसेवकों को दक्ष की स्थिति में लाने के लिए ।

(00, 00 ) पूर्ववत् कराने के लिए ।

(0) निर्धारित क्रिया कराने के लिए ।

( – – – ) खतरे की चेतावनी के लिए तीन या अधिक बार, (स्वयंसेवक सचेत होने तक)

शाखा Download

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे http://rss.org

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

संघ के कुछ

  • Health Tips
  • RSS News
  • RSS संघ प्रश्नोत्तरी
  • Tweets RSS
  • अम्रतवचन
  • आज का पंचांग
  • गीत ,गणगीत , बालगीत और एकलगीत
  • बोधकथा
  • भारत की महान विभूतियाँ
  • महाभारत
  • राष्ट्रीय स्वयंसेवक (आरएसएस)
  • शाखा
  • संघ उत्सव
  • संघ शिक्षा वर्ग
  • सर संघचालक
  • सुभाषित
  • स्मरणीय दिवस
  • स्वामी विवेकानन्द
© 2025 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अध्ययन | Powered by Minimalist Blog WordPress Theme