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रक्षाबंधन क्यों मनाते है ?

Posted on March 25, 2023September 13, 2023 by student
रक्षाबंधन

#रक्षाबंधन उत्सव हेतु विचारणीय बिन्दु

  • रक्षाबंधन: सम्पूर्ण भारत में पूरा हिन्दू समाज यह पर्व अति उत्साह एवं आनन्द से मनाता है। प्रमुख रूप से बहिनें भाइयों को राखी बांधती हैं। भाई इसके उपलक्ष्य में बहन को कुछ धन देता है। उपरोक्त परम्परा सामान्यतः समाज में प्रचलित हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने हिन्दू समाज के इस गौरवशाली एवं भावनाप्रधान पर्व को व्यक्तिगत स्तर के स्थान पर सामाजिक स्तर पर मनाने की परम्परा डाली है। स्वयंसेवक समाज के उन बन्धुओं से इस पर्व पर सम्पर्क करते हैं, जो दुर्भाग्य से अपने समाज के बहुत दिनों से बिछुड़े रहे हैं। राखी बांधते हुए वे गीत गाते हैं-संगठन सूत्र में मचल-मचल, हम आज पुनः बँधते जाते। माँ के खण्डित-मण्डित मन्दिर, का शिलान्यास करते जाते ॥ #रक्षाबंधन
  • • इस दिन ब्राह्मण भी अपने यजमानों के घर जाकर राखी बाँधते हैं। यजमान भी प्रसन्नतापूर्वक ब्राह्मण को सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा देते हैं। ब्राह्मण यजमान की कलाई में राखी बाँधते हुए निम्न श्लोक पढ़ते हैं-येन बद्धो बलिराजा, दानवेन्द्रो महाबलः। तेन त्वां अनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चलः ॥ रक्षाबंधन
  • रक्षाबन्धन की प्रक्रिया अपने देश में कब प्रारम्भ हुई है, यह भी विचारणीय है। अपने संस्कृत वाङमय में शचि अर्थात् इन्द्राणी द्वारा इन्द्र के हाथ में रक्षासूत्र बाँधने की घटना आती है। यह देवासुर संग्राम के समय की बात है। देवताओं की राक्षसों से बार-बार हार होने के कारण इन्द्र की कलाई में उनकी रक्षा की इच्छा से यह सूत्र बन्धन का प्रथम प्रसंग हैं देवताओं का नेतृत्व इन्द्र कर रहे थे। अतः उनकी रक्षा विष्णु द्वारा बावन अंगुलि का शरीर और विजय की कामना ही इस रक्षा बन्धन का उद्देश्य रहा। दूसरा रक्षाबन्धन का अवसर भगवान लेकर राजा बलि से सभी कुछ दान में प्राप्त करने से संबंधित है। राजा बलि के साम्राज्यवाद से पृथ्वी को मुक्त रखने के लिये वामनावतार ने उसके हाथ में रक्षासूत्र बांधा था। उसे अपने लोक में आबद्ध कर उसकी रक्षा का भी वचन दिया था। ब्राह्मण द्वारा यजमान को राखी बांधते समय बोले हुए श्लोक द्वारा इस तथ्य पर प्रकाश पड़ता है। रक्षाबंधन
  • रक्षाबन्धन पर्व का महत्व बहुआयामी है। इस अवसर पर व्यक्ति- व्यक्ति में सुखद अनुभूति के साथ-साथ व्यापक सन्दर्भ में रक्षा की आवश्यकता का भी ध्यान होना स्वाभाविक है। पर्व के नाम से रक्षा की आवश्यकता एवं महत्व पर प्रकाश पड़ता है। रक्षा किसकी करनी या होनी है? और रक्षा कौन करेगा? या किसे करनी चाहिये? आदि प्रश्न भी महत्व के हो जाते हैं। रक्षा सम्बन्धी सभी प्रश्न देश, काल एवं परिस्थिति के अनुसार ही विचार करने योग्य होते हैं। इस संबंध में शास्त्र – शुद्ध सम्यक् विवेचन कर वस्तुस्थिति समझना ही आवश्यक है। अतः इस संबंध में सतत जागरुकता की आवश्यकता है। कहा भी है, सतत् जागरुकता ही स्वातंत्र्य का मूल्य है। इस प्रकार की स्थिति में रक्षा किसकी करनी है, यह समझना चाहिये।
  • व्यक्ति और राष्ट्र आत्मरक्षार्थ अनेक उपाय करते हैं। व्यक्ति शस्त्र का अवलम्बन लेता है। अन्य उपाय भी करता है। राष्ट्र भी उसी प्रकार आन्तरिक सुरक्षा की दृष्टि से पुलिस और बाह्य सुरक्षा की दृष्टि से सेना का प्रयोग करता है। शत्रुओं तथा दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों से राष्ट्र तथा उसके घटकों को हानि से बचाने के लिये गुप्तचरों का भी प्रयोग होता है। आसन्न संकट की पूर्व जानकारी उन संकटों को सफलतापूर्वक निरस्त करने में सहायक होती है। #रक्षाबंधन
  • आत्मरक्षा तो स्वाभाविक है परन्तु शरणागत को भी सभी प्रकार की सुरक्षा प्रदान करने का मानव का स्वभाव है। व्यक्तियों का सामूहिक मन राष्ट्र रूप में यह कार्य करता है। शरणागत कपोत की रक्षा राजा शिवि ने अपने शरीर का माँस काटकर की थी। राजा दिलीप ने गी रक्षार्थ स्वयं का जीवन बलिदान करने की तत्परता प्रकट की थी। इसी प्रकार पारसी, यहूदी आदि इस देश में शरण पाने की इच्छा से आये। वे शरणागत होने से सभी प्रकार की सुरक्षा के पात्र समझे गये। उन्हें अपना कुछ भी खोना नहीं पड़ा। उनकी अपनी धार्मिक मान्यतायें, पूजापद्धति तथा सामाजिक परम्पराओं को सुचारू रूप से अक्षुण्ण रखा गया। उदात्त मानवीय गुण, उदारता, प्रेम, परदुःखकातरता, सहानुभूति आदि ही इस प्रकार रक्षा की भावना को प्रेरित करती है। #रक्षाबंधन
  • देश, काल, परिस्थिति के अनुसार राष्ट्र की रक्षा के स्वरूप, विचार और प्रक्रिया में बदल आता रहता है। एक समय था कि नारी का सम्मान एवं सतीत्व संकट में था। माताओं और बहनों ने अपने सम्मान की रक्षा के लिये जौहर किये। राजस्थान के इतिहास ‘साका’ प्रसिद्ध है। देश के विभाजन के समय भी हिन्दू नारियों ने अनेक स्थानों पर जौहर का इतिहास दुहराया था। नारियों ने रक्षा की इच्छा से अपने से अधिक सबल हाथों में राखी बाँधकर रक्षा करने का ध्यान दिलाना प्रारम्भ किया। आज वह बहन द्वारा भाई को रक्षाबन्धन पर राखी बांधने से याद आता है। एक ऐसे ही कालखण्ड में ब्राह्मण आतताइयों और आक्रमणकारियों के लक्ष्य बने। उनकी रक्षा का प्रसंग आया। उनकी रक्षा के प्रबन्ध किये गये। ब्राह्मण का यजमान को राखी बांधना उसी परम्परा को स्मरण कराता है। #रक्षाबंधन
  • मूल प्रश्न है कि रक्षाबन्धन के संदेश को कैसे समझा जाये ? रक्षाबन्धन पर्व का रक्षा के प्रश्नों से जुड़ा होने से हमें अपनी प्राथमिकतायें पहले ही निश्चित करनी पड़ेगी। संकट के बादल सदैव आते-जाते रहते हैं। हमें संकट के स्वरूप की सही पहचान कर उसे बनाने की अपनी सिद्धता प्रकट करनी होगी। अवा संकट समय समय पर हमें भरेंगे हमें उन्हें ठीक से पहचानना है। संकट स्पष्ट दिखाई देता है, परन्तु कभी-कभी छद्मवेश में आता है। मित्रता का चोला पहनकर भाई बनकर और कभी आत्मीय बनकर संकट लाने वाले अनुभव आयेंगे। हमारे अपने ही रक्त के व्यक्ति या व्यक्ति समूह हमारे लिये संकट का कारण बने हैं, आज भी हैं और आगे भी होंगे। जयचंदों की कमी नहीं है प्रलोभन और व्यक्तिगत द्वेष के कारण शक्तिसिंह (महाराणा प्रताप के भाई) जैसे पराक्रमी लोग शत्रुओं से मिलते दिखाई देंगे। मिर्जा राजा जयसिंह और राजा मानसिंह जैसे शत्रुओं की ओर से लड़ने के लिये उद्धत होंगे, शत्रु की पैरवी करेंगे, हमें इनसे सावधान रहना है। ये सबसे बड़े शत्रु हैं, जिनसे देश की रक्षा करनी है। #रक्षाबंधन
  • रक्षा का प्रश्न भावनात्मक धरातल पर भी उत्पन्न होता है। इसका क्षेत्र विस्तृत व बहुआयामी है। समाज को अपने मूल से काटकर भावना – शून्य बनाकर वैचारिक स्तर पर आधार समाप्त करना ही इसका काम नहीं है, वरन् अपनी मान्यताओं, जीवन मूल्यों एवं आदर्शों से सतत् दूर कर जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आत्मविस्मृति और आत्मग्लानि पैदा करना है। क्या हमने देखा नहीं कि रामजन्मभूमि आंदोलन के समय बाबरी ढाँचा टूटने पर अपने ही समाज के व्यक्ति ने गोलियाँ चलवाई थी। अयोध्या में राम मंदिर बनाने में आज भी विरोध के स्वर फूट पड़ते हैं ये विरोध अपने ही समाज के लोगों के हैं ये आत्मविस्मृति और आत्मग्लानि के ज्वलन्त उदाहरण हैं। हमें ऐसे लोगों से समाज की रक्षा करनी है। हमें रक्षा के और क्षेत्र भी ध्यान में रखने हैं. #रक्षाबंधन

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• अ) इस देश में बहुत दिनों से हिन्दू होना अपराध माना जाता है। हिन्दू हित के कार्य को साम्प्रदायिक कहने की परम्परा सी बन गई

है। अपने को हिन्दू कहने में लाज आती है। यह पतन की ओर बढ़ने का कैसा करुणाजनक दृश्य है ? विवेकानन्द का उदघोष ‘गर्व से कहो हम हिन्दू हैं’ जन-जन का उदघोष बनाने के लिये हमें प्रयास करना है। हमें अपने हिन्दूपन की रक्षा भी करनी है।

• ब) इस देश में वन्देमातरम् कहने पर आपत्ति होती है। माँ सरस्वती के पूजन का विरोध किया जाता है, इसे भी हम मूक होकर देखते रहते हैं। हमें अब जागना है। अपनी मातृभूमि की वन्दना करने का अपना अधिकार सुरक्षित करना है। हम अपने ही देश में अपनी माता का पूजन न कर सकें, यह नहीं होने देंगे। #रक्षाबंधन

• स) इसी के साथ अपने देवी-देवताओं, महापुरुषों, राष्ट्रनायकों, आदर्शों, प्रेरणास्रोतों, सांस्कृतिक अमूल्य निधियों आदि के प्रति अपनी दृढ़ता, श्रद्धा को बनाये रखते हुए उन पर होने वाले आक्रमणों से भी इन सभी की रक्षा करनी है।

• द) जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा के संदर्भ में भी विचार करना है। आज रक्षाबन्धन पर्व का यही संदेश है। #रक्षाबंधन

#रक्षाबंधन (श्रावणी पूर्णिमा) एक परिचय

प्राचीन काल से ही अपने देश के उत्सव एवं पर्व सामाजिक समरसता एवं सांस्कृतिक मूल्यों को बढ़ाने वाले रहे हैं। रक्षाबन इसी परम्परा की एक सशक्त कड़ी है। #रक्षाबंधन

येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबलः । तेन त्वान् अनुब्धनामि रक्षे माचल मायल ||

राखी के इन सुकोमल धागों में भाई बहिन का अटूट स्नेह गुथा हुआ है। इन धागों में छिपा है नारी के सम्मान की रक्षा के लिये सर्वस्व समर्पण करने वाले वीर पुरुषों का इतिहास । राजा बलि के साम्राज्यवाद से पृथ्वी को मुक्त कराने की वामनावतार की अद्भुत गाथा का स्मरण ये धागे हमें कराते हैं। इन पवित्र धागों से जन-जन के हृदय जोड़ने का नाम ही रक्षाबन्धन है। एकात्मता के इस पर्व को मनाते समय आज हम अपने इस देश के वर्तमान का विचार करें। कम होती सीमाएँ : गत वर्षों में अपने देश की सीमाएँ लगातार सिकुड़ती जा रही हैं । इसके मूल में हिन्दूभाव का अभाव ही है। इसी कारण पाकिस्तान बना तथा श्रीलंका आदि भी हमारे लिये संकट का कारण बन रहे हैं। चारों ओर से मानों हम शत्रुओं से घिरे हुए हैं। देश के उत्तरी और पूर्वी राज्यों में अलगाववाद के उठते स्वर तथा खालिस्तान जैसी माँगे भी इसी कारण हैं। #रक्षाबंधन

राष्ट्र जीवन को खण्ड-खण्ड करने में लगी विदेशी शक्तियों तथा सत्ताकांक्षी नेताओं की शह पर कुछ सिरफिरे आतंकवादियों ने एवं निरीह जनता की बर्बर हत्याओं का तांता लगा रखा है। #रक्षाबंधन

#रक्षाबंधन-बंधन में श्रीराम :-

जन-जन के आराध्य मर्यादा पुरुषोत्तम, राष्ट्रपुरुष श्रीराम आज बधनों में पड़े हैं। अनेक वर्षों के लगातार संघर्ष के बाद भी सरकार की तुष्टीकरण की नीति और वोट बैंक पक्का करने की कुटिल राजनीति के कारण श्री रामजन्म भूमि हिन्दू-समाज को नहीं मिली है। आश्चर्य की बात यह है कि यही राजनीतिज्ञ संघ पर साम्प्रदायिकता का निराधार आरोप लगाकर बदनाम करने का पाखण्डपूर्ण प्रचार कर रहे हैं। जो लोग मुस्लिम लीग से समझौता करके सरकार बनाते हैं. कश्मीर में धारा 370 बनाए रखकर भारत के विभाजन के लिये दोषी तत्त्वों के साथ गठबंधन करते हैं. मिजोरम में बाइबिल के आधार पर शासन चलाने की घोषणा करते हैं, वे ही धर्म (पंथ) निरपेक्षता का लबादा ओढ़कर साम्प्रदायिकता के घड़ियाली आँसू बहा रहे हैं। #रक्षाबंधन

रक्षाबन्धन पर भेदभाव को छोड़ें :-

समाज में अभी भी ऊँच-नीच, छूत-अछूत के भाव विद्यमान हैं। हम अपने सामने भगवान श्री राम के आदर्श को रखें, जिन्होंने निषादराज का आतिथ्य, भीलनी शबरी के बेर आदर और स्नेह के साथ ग्रहण किये। #रक्षाबंधन

रक्षा बंधन के इस पावन पर्व पर आइये, हम भेदभाव और छूआछूत की दीवारें ढहा दें तथा संकल्प लें कि हम सब भारतमाता की सन्तानें हैं, एक हैं। हम सर्वप्रथम हिन्दू हैं। इस विशाल हिन्दू-समाज के अंग हैं, हम सब सहोदर भाई हैं। #रक्षाबंधन

#रक्षाबंधन अवतरण

  1. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आसेतु हिमाचल विशाल और मजबूत संगठन निर्माण करने के कार्य में संलग्न है। वर्ण, जाति, पंथ, प्रान्त, भाषा सभी प्रकार के भेदों से उत्पन्न कटुता को मिटाकर एकरस, स्नेहपूर्ण जीवन की अनुभूति नगरवासियों ग्रामवासियों तक प्रत्येक को करा देने के इस महान राष्ट्र से कार्य में सभी बंधू अपनी शक्ति लगाएँ। यही आया है।#रक्षाबंधन
  2. आज के दिन हम रक्षा करने का बंधन स्वीकार करते हैं। रक्षा करने का नारी अर्थात् मातृशक्ति का ब्राह्माण अर्थात ज्ञान का और वामन रूप में अपने अविकसित पिछड़े वर्ग के करोड़ भाईयों का इतना ही नहीं आज के दिन हम उन बंधनों अर्थात मर्यादा का भी स्मरण करें और उनकी रक्षा का संकल्प लें जो की भौगौलिक मर्यादाएँ अर्थात् सीमाएं और यहाँ की सांस्कृतिक व नैतिक मर्यादाएँ इन्हीं मर्यादाओं ने इस देश के सामाजिक राष्ट्रीय गौरव को हमारे लिये बचाया है। इनकी रक्षा करते है लिए संकटों का मुकाबला करना हो अथवा शांति काल में प्रगति अभियान पर आगे बढ़ना हो, अपने हिन्दू समाज की संगठित और अनुशासित व्यवस्था आवश्यक है। #रक्षाबंधन
  3. आज जरूरत है अपना “भाईपन” जगाने की, हम सबके मूल रिश्तों को पहचानने की। इसी में हम सबके अधिकार सुरक्षित हैं और इसी में सबको अपने कर्तव्यों के पालन के अवसर उपलब्ध है। यह घड़ी है गले लगकर गिलों को भुला देने की। अवसर सामने है. हम अपना हाथ एक साथ आगे बढाएँ। बिखरते समाज की रक्षा सूत्र में बाँध कर पुनः संयोजित करें। आइए हम उन तमाम द को भर दें जो अपनों की नासमझी और परायों की साजिशों ने पैदा की हैं। हमने जिस माँ के आँचल की छाँव में जीवन पाया है, जिसकी कोख से हम सब जन्में हैं, उसे न हम नोचने देंगे औरन उसकी कोख को कलंकित होने देंगे। ‘भारत माता की जय”
  4. आगामी पचास वर्षों के लिए हमारा केवल एक ही विचार केन्द्र होगा। और वह है हमारी महान मातृभूमि भारत। हमारा भारत, हमारा राष्ट्र केवल यही एक देवता है जो जाग रहा है, जिसके हर जगह हाथ हैं, हर जगह पैर हैं, हर जगह कान हैं, जो सब वस्तुओं मेंव्याप्त है। दूसरे सब देवता सो रहे हैं। हम क्यों व्यर्थ के देवताओं के पीछे दौडे? और उस देवता की, उस विराट की पूजा क्यों न करें, जिसे हम अपने चारों ओर देख रहे हैं? जब हम उनकी पूजा कर लेंगे, तभी हम सभी देवताओं की पूजा करने योग्य बनेंगे।#रक्षाबंधन स्वामी विवेकानन्द
  5. गीत : संगठन गढ़े चलो सुपंथ पर बढ़े चलो । भला हो जिसमें देश का वो काम सब किए चलो।। युग के साथ मिल के सब कदम बढ़ाना सीख लो, एकता के स्वर में गीत गुनगुनाना सीख लो. भूल कर भी मुख से जाति पंथ की न बात हो, भाषा प्रान्त के लिए कभी न रक्तपात हो, फूट का भरा घड़ा है फोड़ कर बढ़े चलो भला हो जिसमें देश का …. ||1|| आ रही है आज चारों ओर से यही पुकार, हम करेंगे त्याग मातृभूमि के लिए अपार, कष्ट जो मिलेंगे मुस्कुराते सब सहेंगे हम, देश के लिए सदा जियेंगे और मरेंगे हम, देश का ही भाग्य अपना भाग्य है ये सोच लो भला हो जिसमें देश का …. 11211
  6. अन्य गीत / कविताएँ : आज मनाएँ रक्षा-बंधन संगठन – सूत्र में मचल-मचल हम आज पुनः बँधते जाते ,बंधनकारी पाश नहीं यह अरे मुक्ति का बंधन यह , अनेकता में एकता, हिन्दु की विशेषता

रक्षाबन्धन उत्सव हेतु अमृतवचन

परम पूज्य डॉ० हेडगेवार जी ने कहा कि जो विदेशी लोग हिन्दू संस्कृति को ध्वस्त कर हिन्दुओं को सदा गुलामी में जकड़ने के उद्देश्य से हिन्दुस्थान में आये और आज यही रहते हैं। उन सभी के भीषण आक्रमणों से हिन्दू समाज की रक्षा करने की, इस कार्य में हर प्रकार के कष्ट सहने की, आने वाले संकटों का सामना करने की, इतना ही नहीं, सदा प्राणार्पण करने को उद्यत रहने की मनोवृत्ति हमारे समाज में उत्पन्न कर सारे समाज को संगठित करने का कार्य हमें करना है।

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