
भगवान महावीर जी का सम्पूर्ण जीवन परिचय जानने की इच्छा से आपने हमारे पेज का चयन किया उसके लिए आपका धन्यवाद और आपका स्वागत हैभगवान महावीर
भगवान महावीर जी का संझिप्त परिचय
जिस युग में हिंसा, पशुबलि व छुआछूत इत्यादि के भेदभाव अपने चरम पर थे, उसी समय जैन पन्थ के चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी का जन्म हुआ। उनका जन्म ईसा से ५९९ वर्ष पहले वैशाली गणतंत्र के कुण्डल ग्राम मे (वर्तमान में बिहार में) चैत्र शुक्ल त्रयोदशी के दिन हुआ था। इनके पिता सिद्धार्थ कौण्डियपुर के राजा थे व माता त्रिशला पराक्रमी लिच्छवी नरेश की पुत्री थी। बचपन में महावीर का नाम वर्द्धमान था।भगवान महावीर
‘आचारांग सूत्र’ के अनुसार महावीर का विवाह हुआ था व उनकी पत्नी का नाम यशोधा था। तीस वर्ष की आयु तक उन्होंने गृहस्थ जीवन व्यतीत किया। इसी आयु में इनके माता-पिता की मृत्यु हो गयी। इनके एक कन्या थी जिसका नाम प्रियदर्शना थी। राजसी वैभव में रहते हुए भी वे वैरागी प्रकृति के थे। अतः अपने बड़े भाई नन्दीवर्धन से आज्ञा प्राप्त कर पत्नी पुत्री और सांसारिक वैभव को छोड़कर वनों में चले गये। गृहत्याग कर महावीर ने बारह वर्ष की कठोर तपस्या की। उन्होंने दुनिया को सत्य, अहिंसा का संदेश दिया। उनका सम्पूर्ण जीवन त्याग और तपस्या से ओत-प्रोत था।भगवान महावीर
महावीर स्वामी ने मोक्ष प्राप्ति के लिये तीन साधनों को बताया है पहला सम्यक् ज्ञान, दूसरा सम्यक् दर्शन और तीसरा सम्यक् चरित्र । तीर्थंकरों के उपदेशों का अध्ययन करने से सम्यक् ज्ञान प्राप्त होता है। इसी प्रकार सम्यक् दर्शन का तात्पर्य तीर्थंकरों के उपदेशों पर पूर्ण विश्वास करने से है और अन्तिम है सम्यक् चरित्र इसका अर्थ है पंचमहाव्रतों के अनुसार जीवन व्यतीत करना चाहिये। ये पाँच महाव्रत है- “अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह तथा ब्रह्मचर्य। अपरिग्रह का सिद्धान्त कम साधनों में अधिक सन्तुष्टि पर बल देता है। यह आवश्यकता से ज्यादा संग्रह करने की सहमति नहीं देता है। भगवान् महावीर के ‘अपरिग्रह’ के सिद्धान्त पर चलकर हम सामाजिक विषमता की खाई पाट सकते हैं।
भगवान् महावीर की अहिंसा केवल सीधे वध को ही हिंसा नहीं मानती, अपितु मन मे किसी के प्रति बुरा विचार भी हिंसा है। ‘अहिंसा परमो धर्मः’ की एक नई दिशा महावीर स्वामी के माध्यम से ही संसार को प्राप्त हुई है। वर्तमान अशान्त, आतंकी, भ्रष्ट और हिंसक वातावरण में अहिंसा ही शांति प्रदान कर सकती है।
भगवान् महावीर ने हरिकेशी नामक चाण्डाल को जनसमूह की उपस्थिति में अपने गले से लगाकर छुआछूत के विरुद्ध सामाजिक समरसता एवं एकता का संदेश भी दिया। उनसे दीक्षा ग्रहण करने वालों में राजपरिवारों के सदस्यों से लेकर अस्पृश्य माने जाने वाले तक सभी सम्मिलित थे।
दुनिया की सभी आत्मा एक सी है। इसलिये हम दूसरों के प्रति वही विचार एवं व्यवहार रखे जो हमें स्वयं को पसंद हो। यही महावीर का ‘जियो और जीने दो’ का सिद्धात है। भगवान महावीर हमें जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मार्गदर्शन देते हैं। उनके द्वारा बताये अहिंसा, अस्तेय व अपरिग्रह आदि के सिद्धांतों का परिपालन यदि समाज करेगा तो इस समाज में किसी का शोषण हो ही नहीं सकता। सामाजिक एकता एवं समरसता की स्थापना का यही एकमात्र मार्ग है।
भगवान् महावीर ने ७२ वर्ष की अवस्था में ५२७ ई.पू. को पावापुरी जिला नालंदा (बिहार) में कार्तिक कृष्ण अमावस्या के दिन सुबह स्वाति नक्षत्र में निर्वाण प्राप्त किया। आज से करीब छब्बीस सौ वर्ष पूर्व भारत की पावन माटी पर प्रकट हुए भगवान महावीर का नाम आज भी सारे विश्व में उसी श्रद्धा और भक्ति से लिया जाता है, इसका मूल कारण यह है कि महावीर ने इस जगत को न केवल मुक्ति का संदेश दिया अपितु मुक्ति की सरल और सच्ची राह भी बताई।
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