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मदन लाल धींगरा जी का संझिप्त परिचय
महान् राष्ट्रभक्त मदनलाल धींगरा का जन्म अमृतसर के एक खत्री परिवार में सन् 1887 में हुआ था। मदन लाल के पिता साहिब दत्ता और भाई पूरी तरह से अंग्रेजों के भक्त थे। अमृतसर से 12वीं व लाहौर से बी.ए. करने के पश्चात् मदनलाल को इंजीनियरिंग की शिक्षा ग्रहण करने इंग्लैण्ड भेजा गया।
उन दिनों लंदन में कई भारतीय क्रांतिकारी भारत माता को आजाद कराने के लिये सक्रिय थे, जिनमें श्यामजी कृष्ण वर्मा, मैडम भीखाजी कामा, लाला हरदयाल, वीर सावरकर, भाई परमानन्द, बी. बी. एस. अय्यर, रविशंकर शुक्ल इत्यादि प्रमुख थे।
वीर सावरकर क्रांतिकारी साहित्य का लेखन करते थे तथा लन्दन में “तलवार’ नामक समाचार पत्र निकालते थे। वीर सावरकर ने लन्दन में भी ‘अभिनव भारत संघ’ नाम की क्रांतिकारी संस्था की शाखा का संचालन किया। मदन लाल धींगरा भी वीर सावरकर के सम्पर्क में आये।
सावरकर के सम्पर्क में आकर मनमौजी व फैशनपरस्त एवं अंग्रेज भक्त परिवार से सम्बन्ध रखने वाले मदनलाल के जीवन की दशा व दिशा दोनों बदल गयी। सावरकर के देशभक्ति से परिपूर्ण प्रभावशाली नेतृत्व में मदनलाल का व्यक्तित्व देशप्रेम की भावना से खिल उठा था।
सरकर्जन वाइली भारत के लिये नीति-निर्धारण करने वाले ब्रिटिश सरकार के इण्डिया ऑफिस का सर्वेसर्वा था मदन लाल धींगराभारत में हो रही हत्याओं व अत्याचारों के लिये वह ही जिम्मेदार था। क्रांतिकारियों के कट्टर शत्रु कर्जन वाइली ने 20 वर्षों तक भारत में अंग्रेजी साम्राज्य की जड़ों को पक्का करने का प्रयत्न किया था।
मदल लाल धींगरा ने कर्जन वाइली को समाप्त कर देशवासियों के क्रूर दमन का बदला लेने का प्रण लिया। 9 जुलाई सन् 1909 को लन्दन के इम्पीरियल इंस्टीट्यूट के सभागार में एक समारोह हो रहा था। कर्जन वाइली भी इस सभा में सम्मिलित होने वाला था।
मदन लाल अपने दो साथियों ज्ञान चन्द वर्मा व कोर गावरकर को साथ लेकर सभा स्थल पर पहुँच गया। मौका देखकर मदन लाल ने पिस्तौल निकालकर सीधी निशाना लगाया और अंग्रेज साम्राज्य के उस स्तम्भ पर गोली चला दी। गोलियों की बौछार से मंच पर बैठा कर्जन वाइली कटे पेड़ की तरह फर्श पर धराशायी हो गया।
एक अंग्रेज भक्त व वाइली का मित्र कावसलाल काका मदनलाल को पकड़ने के लिये आगे बढ़ा। पर उसे भी मदन लाल की सनसनाती गोली ने देशभक्तों का विरोध करने का दण्ड दे दिया। सभा में भगदड़ मच गयी। पिस्तौल की सभी गोलियाँ समाप्त हो जाने पर मदन लाल ने आत्मसमर्पण कर दिया। मदन लाल को गिरफ्तारी का जरा भी गम न था वरन् पूर्ण सन्तुष्टि और गहन शांति का भाव उसके चेहरे व आँखों में तैर रहा था।
मदन लाल धींगरा को ब्रिक्सन जेल में कैद कर दिया गया। सारी दुनिया में खलबली मचा देने वाले इस केस का मुकद्दमा लन्दन की एक अदालत चला और अन्त में मदनलाल को फाँसी की सजा सुनाई गई। 17 अगस्त 1909 को लंदन की पैंटोविला जेल में मदन लाल धींगरा को फाँसी पर लटका दिया गया। एक दिन पूर्व सावरकर ने जेल जाकर धींगरा से मुलाकात की ।
धींगरा ने अन्तिम इच्छा व्यक्त की थी कि मेरे शरीर को कोई अहिन्दू हाथ न लगाये। हिन्दू विधि के अनुसार अन्त्येष्टि की जाये तथा अस्थियाँ भारत ले जाकर पावन गंगा में विसर्जित की जाये। 13 दिसम्बर 1976 को धींगरा की अस्थियाँ भारत लायी गईं और उन्हें हरिद्वार में गंगा में प्रवाहित किया गया।
मदन लाल धींगरा की देशभक्ति और आत्म बलिदान सदैव यह स्मरण दिलाता रहेगा कि सात समुद्र लांघ कर भी उसने अपना जीवन सर्वस्व भारत माँ के चरणों में अर्पित कर दिया था।
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