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हमें वीर केशव मिले गीत/ गणगीत
हमें वीर केशव मिले आप जब से । नई साधना की डगर मिल गई है ।। ध्रु ।।
भटकते रहे ध्येय पथ के बिना हम, न सोचा कभी देश क्या धर्म क्या है? न जाना कभी पा मनुज-तन जगत में, हमारे लिए श्रेष्ठतम कर्म क्या है? दिया ज्ञान जब से मगर आपने है, निरन्तर प्रगति की डगर मिल गई है ।।।।। हमें वीर केशव …..
समाया हुआ घोर तम सर्वदिक् था, सुपथ है किधर कुछ नही सूझता था। सभी सुप्त थे घोर तम में अकेला, हृदय आपका हे तपी जूझता था। जलाकर स्वयं को किया मार्ग जगमग, हमें प्रेरणा की डगर मिल गई ।।2।। हमें वीर केशव …..
बहुत थे दुःखी हिन्दु निज देश में ही, युगों से सदा घोर अपमान पाया। द्रवित हो गये आप यह दृश्य देखा, नहीं एक पल को कभी चैन पाया। हृदय की व्यथा संघ बन फूट निकली, हमें संगठन की डगर मिल गई है। 3 ।। हमें वीर केशव ……
करेंगे पुनः हम सुखी मातृ भू को, यही आपने शब्द मुख से कहे थे । पुनः हिन्दु का हो सुयश गान जग में, संजोये यही स्वप्न पथ पर बढ़े थे । जला दीप त्योतित किया मातृ मन्दिर, हमें अर्चना की डगर मिल गई है ।।4।। हमें वीर केशव .
गणगीत

जिनके ओजस्वी वचनों से, गूंज उठा था विश्व गगन । वही प्रेरणा पूञ्ज हमारे, स्वामी पूज्य विवेकानन्द ।।
जिनके माथे गुरू कृपा थी, दैविक गुण आलोक भरा। अदभुत प्रज्ञा प्रकटी जग में, धन्य धन्य यह पुण्य धरा ।। सत्य सनातन परम ज्ञान का, जो करते अभिनव चिंतन । वही प्रेरणा पुञ्ज हमारे…
जिनका फौलादी भुजबल था, हर संकट में सदा अटल। मर्यादित, तेजस्वी जीवन, सजग समर्पित थे हर पल । हो निर्भय जो करें गर्जना, जिनके अंतस दिव्य अगन ।। वही प्रेरणा पुञ्ज हमारे..
जिनके रोम-रोम में करूणा, समरस जनजीवन की चाह । नष्ट करें सारे भेदो को, सेवाव्रत की सच्ची राह । । दरिद्र ही नारायण जिनका, हर धड़कन में अपनापन । । वही प्रेरणा पुञ्ज हमारे..
जिनके मन था स्वप्न महान, हो भारत का पुनरूत्थान । जीवन दीप जलाकर पायें, गौरवमय-वैभव सम्मान । जगती में सब सुखद-सुमंगल, बहे सुगन्धित मुक्त पवन।। वही प्रेरणा पुञ्ज हमारे..
जुलाई मास हेतु : गणगीत
परम् वैभवी भारत होगा, संघ शक्ति का हो विस्तार। गूँज उठे-गूंज उठे, भारत माँ की जय-जयकार ।।धृ।। भारत माँ की जय-जयकार ।।
व्यक्ति और परिवार प्रबोधन, समरसता का भाव बढ़े, नित्य मिलन चिन्तन मन्थन से, संगठना का भाव जगे । इसी भाव के बल से गूँजे, देशभक्ति की फिर हुंकार ||१|| भारत माँ की जय-जयकार……
हो किसान या हो श्रमजीवी, व्यवसायी या सैनिक हो, अध्यापक विद्यार्थी सेवक, वैज्ञानिक या लेखक हो। देशभक्ति और स्वावलम्बिता, शिक्षा में हों ये संस्कार ||२||
भारत माँ की जय-जयकार……. हिन्दू संस्कृति संरचना, मानवता का रक्षण है,#गणगीत
जीव दया सृष्टि की पूजा, यह स्वभावगत लक्षण है। शुद्ध गगन गनी माटी से, निर्विकार बन बहे बयार ॥ ३ ॥ भारत माँ की जय-जयकार…….
शुभ परिवर्तन करने को अब, हम ऐसा संकल्प करें, अखण्ड भारत का वह सपना, सब मिलकर साकार करें। बाधा कोई रोक न सकती, जन्मसिद्ध अपना अधिकार॥४॥ भारत माँ की जय-जयकार …… #गणगीत
गणगीत
युग परिवर्तन की वेला में, हम सब मिलकर साथ चलें देश धर्म की रक्षा के हित, सहते सब आघात चलें 1 मिलकर साथ चलें – २
शौर्य पराक्रम की गाथायें, भरी पड़ी हैं इतिहासों में, परम्परा के चिर उन्नायक, जिये निरन्तर संघर्षों में हृदयों में उस राष्ट्र प्रेम के लेकर हम तूफान चलें ॥ 1 मिलकर साथ चलें – २
कलियुग में संगठन शक्ति ही, जागृति का आधार बनेगी, एक सूत्र में पिरो सभी को, सपने सब साकार करेगी संस्कृति के पावन मूल्यों की, लेकर हम सौगात चलें ।। मिलकर साथ चलें -२
ऊँच-नीच का भेद मिटाकर, समरस जीवन को सरसायें, फैलाकर आलोक ज्ञान का, परा शक्तियों को प्रकटायें । निविड़ निशा की काट कालिमा, लाने नवल प्रभात चलें।। मिलकर साथ चलें -२
अडिग हमारी निष्ठा उर में, लक्ष्य प्राप्ति की तड़पन मन में, तन-मन-धन सब अर्पण करने, संघ मार्ग के दुष्कर रण में। केशव के शाश्वत विचार को, ध्येय मान दिन रात चलें ॥ मिलकर साथ चलें -२
अगस्त माह हेतु : गणगीत
नवयुग के इस नव विहान में नव उमंग संग साथ बढ़ें। हम नवयुग के गटनायक बन नवल ध्येय के साथ बढ़ें।। ध्रु ।।
मृदुल भावना लिये हृदय में हर हिन्दू के पास चलें। समता-ममता हृदय संजोये हिन्दू एकता भाव पलें। ।। केशव माधव के चिंतन पथ नव तरंग के साथ बढ़ें । हम नवयुग के ….. ।। 1 ।।
स्वतंत्रता के अमृत पर्व पर नयी सोच सब अपनायें । अर्थ पूर्ण भारत करने को भाव स्वदेशी विकसायें । जय स्वदेश का ध्येय मनों में लिये कोटि कर साथ बढ़े। हम नवयुग के …..।।2 11
चहुँ दिश मिल हरियाली रोपें वृक्षों को हम विकसायें। जल-वायु को करे सुरक्षित चहुँ दिश अमृत छलकायें ।। प्रकृति का संरक्षण करने जन-जन का सहकार बढ़ें।
हम नवयुग का ….।।3।।#गणगीत
शील शक्ति संग प्रेम भावना हर एक जन मन भाव भरें। स्वार्थ साधना त्याग देश और जिन समाज हित काम करें।। व्यक्ति-व्यक्ति का पूर्ण प्रबोधन राष्ट्रदेव सम्मान बढ़े।।
हम नवयुग का … ।।4।।#गणगीत
गणगीत
बोधयित्वा संघभावं नाशयित्वा हीनभावम् । नवशताब्द्यां कलियुगेऽस्मिन् हिन्दुधर्मो विजयताम् ।। राष्ट्रभक्तिं सामरस्यं ‘दक्ष-सम्पत’ प्रार्थनाभिः, वर्धयित्वा स्वाभिमानम् पांचजन्यः – श्राव्यताम् । दीर्घतपसा पूर्णमनसा चारुवचसा वीरवृत्त्या । स्वार्थरहितं ज्ञानसहितं क्षात्रतेजो दर्श्यताम् ।।
नवशताब्दे कलियुगाब्दे …
वेदवाणी राष्ट्रवाणी धर्मसंस्कृतिमूलगङ्गा, लोकभाषोज्जीवनार्थं संस्कृतेन हि भाष्यताम् । हिन्दुदर्शनजीवभूता संस्कृतिः खलु विश्वमान्या, भव्यभारत वैभवार्थं सा हि नित्यं सेव्यताम् ।।
नवशताब्दे कलियुगाब्दे …
ऐक्यभावं वर्धयित्वा भेदभावं वारयित्वा, मातृमन्दिर पूजनार्थं नित्यशाखा गम्यताम् । हिन्दुबान्धव स्नेहसंहितं सर्वसाधक शक्तिरूपं ।। विश्वमङ्गल शान्तिसुखदं हिन्दुराष्ट्रं राजताम् ।।
नवशताब्दे कलियुगाब्दे…#गणगीत
सितम्बर माह हेतु गणगीत
केशव ना चिंधेला मार्गे, चालवु पड़शे, नित्य साधना करी संगठन साधवु पड़शे। ओ बन्धु जागवु पड़शे….|| धृ || भेदभावना, स्वार्थ साधना
देशने दुर्बल करता। जाति- पन्थ-भाषाना झगड़ा, विषधर बनीने डसता । अन्तरनु एकात्मरूप प्रगटाववु पड़शे..। नित्य साधना करी….. ।
राष्ट्रना धन भण्डारों, नित नित, विदेशमा वही जाता। संस्कृतिना मोंघेरा मूल्यों, जतन बिना करमाता। सूत्र स्वदेशीनु घर-घर पहोचाडवु पड़शे ।। नित्य साधना करी…॥२॥
राष्ट्र जीवनने खण्डित करती, विविध प्रपंच लीला। जन-जनना मन भ्रमित करती, जूदी विचारधारा | हिन्दू चिन्तनानु अमृत छलकाववु पड़शे।
नित्य साधना करी….॥३॥#गणगीत
गणगीत
यह कल-कल छल बहती, क्या कहती गंगा धारा । युग-युग से बहता आया, यह पुण्य प्रवाह हमारा।। हम इसके लघुतम जलकण, बनते मिटते छण- छण। अपना अस्तित्व मिटाकर, तन-मन-धन करते अर्पण | बढ़ते जाने का शुभ प्रण, प्राणों से हमको प्यारा।। . यह पुण्य प्रवाह हमारा ।।1।।
इस धारा में घुल मिलकर, वीरों ने राख बही है। इस धारा की कितने ही, ऋषियों ने शरण गही है। इस धारा की गोदी में खेला इतिहास हमारा ।। यह पुण्य प्रवाह हमारा ||2||
क्या इसको रोक सकेंगे, मिटने वाले मिट जाएं। कंकड़-पत्थर की हस्ती, क्या बाधा बनकर आएं। ढह जायेंगे गिरिपर्वत, कांपे भूमण्डल सारा ।। यह पुण्य प्रवाह हमारा । 1311
यह अविरल तप का फल है, यह राष्ट्र प्रवाह प्रबल है। शुभ संस्कृति का परिचायक, भारत माँ का आँचल है यह शाश्वत है चिर-जीवन, मर्यादा धर्म हमारा । यह पुण्य प्रवाह हमारा |#गणगीत
गणगीत
नवचैतन्य हिलौरे लेता, जाग उठी है तरुणाई। हिन्दू राष्ट्र निज दिव्य रूप में, उठा पुनः ले अंगड़ाई।। जाग उठी है तरुणाई…।।धृ।।
मुट्ठी भर आक्रांताओं ने अनगिन अत्याचार किये । आत्मशून्य दिग्भ्रमित हमी ने उन्हें कई उपहार दिये । विदेशियों की चाल न समझे, लड़े मरे भाई-भाई ।। जाग उठी है तरुणाई…..11111
जाति भाषा वर्ग भिन्नता, है कितने मिथ्या अभिमान । क्षेत्र-क्षेत्र के स्वार्थ उभारे, ले अपनी-अपनी पहचान । राष्ट्र भाव का करें जागरण, पाठ चलेंगे सब खाई ।। जाग उठी है तरुणाई.. 11211
विविध पंथ मत दर्शन अपने, भेद नहीं वैशिष्ट्य हमारा । एक अभेद्य अखण्ड संस्कृति की बहती अमृत धारा । सत्य सनातन धर्म अभिष्ठित, शुभ मंगल बेला आई ।। जाग उठी है तरुणाई. 11311
ध्येय समर्पित जीवन अपना, भीष्म प्रतिज्ञा दोहरायें । एक-एक को हृदय लगाकर, विराट शक्ति प्रकटायें । माँ भारत की जगत प्रतिष्ठा, यज्ञ पताका लहराई ।। जाग उठी है तरुणाई 11411#गणगीत
नवम्बर माह हेतु गणगीत
ये उथल-पुथल, उत्ताल लहर पथ से न डिगाने पायेगी। पतवार चलाते जायेंगे, मंजिल आयेगी आयेगी।। ध्रु ।।
लहरों की गिनती क्या करना? कायर करते हैं, करने दो, तूफानों से सहमे जो हैं, पल-पल मरते हैं मरने दो। चिर पावन नूतन बीज लिये, मनु की नौका तिर जायेगी।। पतवार चलाते जायेंगे… 111.11
अन-गिन संकट जो झेल बढ़ा वह यान हमारा अनुपम है, नायक पर है विश्वास अटल, दिल में बाहों में, दम खम है। यह रैन अंधेरी बीतेगी, ऊषा जय मुकुट चढ़ायेगी।। पतवार चलाते जायेंगे….11211
विध्वंसों का ताण्डव फैला हम टिके सृजन के हेम शिखर हम मनु के पुत्र प्रताती हैं, वर्चस्वी धीरोदत्त प्रखर । असुरों की कपट कुचाल कुटिल, श्रद्धा सबको सुलझायेगी।। पतवार चलाये जायेंगे….. 113 11
इतिहास हमारा सम्बल है, विज्ञान हमारा है भुजबल, गत वैभव का आदर्श आज कर देगा भावी भी उज्ज्वल । नूतन निर्मित की तृप्ति अमर फिर गीत विजय के गायेगी। पतवार चलाते जायेंगे…… 114 11#गणगीत
दिसम्बर माह हेतु गणगीत
ध्येय मार्ग पर चले वीर तो, पीछे अब न निहारो।
हिम्मत कभी न हारो।
तुम मनुष्य हो, शक्ति तुम्हारे जीवन का सम्बल है, और तुम्हारा अतुलित साहस गिरि की भाँति अचल है। तो साथी केवल पल-भर को मोह-माया बिसारो ।। हिम्मत कभी न हारो ॥१॥
मत देखो कितनी दूरी है, कितना लम्बा मग है, और न सोचो साथ तुम्हारे, आज कहाँ तक जग है। लक्ष्य-प्राप्ति की बलिवेदी पर, अपना तन-मन वारो ।।
हिम्मत कभी न हारो ||२||
आज तुम्हारे साहस पर ही मुक्ति सुधा निर्भर है, आज तुम्हारे स्वर के साथी, कोटि कंठ के स्वर हैं। तो साथी बढ़ चलो मार्ग पर आगे सदा निहारो।।
हिम्मत कभी न हारो ||३|| #गणगीत
गणगीत
युगों-युगों से यही हमारी बनी हुई परीपाटी है। खून दिया है मगर नही दी कभी देश की माटी है।
इस धरती ने जन्म दिया है यही पुनीता माता है। एक प्राण दो देह सरीखा, इससे अपना नाता है।। यह धरती है पार्वती माँ, यही राष्ट्र शिवशंकर है। दिग्मण्डल सांपो का कुण्डल, कण-कण रूद्र भयंकर है।। यह पावन माटी ललाट की, ललित ललाम ललाटी है।।1।। खून दिया है..
इसी भूमि-पुत्री के कारण, भस्म हुई लंका सारी। सुई नोक पर भू के पीछे, हुआ महाभारत भारी ।। पानी सा वह उठा लहू था, पानीपत के प्रांगण में । बिछा दिये रिपुगण के शव थे, उसी तरायण के रण में ।। पृष्ठ बांचती इतिहासों के, अब भी हल्दीघाओ है। 12 ।। खून दिया है..
सिक्ख, मराठे, राजपूत क्या, बंगाली क्या मद्रासी । इसी मंत्र का जाप कर रहे. युग-युग से भारतवासी।। बुन्देले अब भी दोहराते यही मंत्र है झांसी में । देंगे प्राण न देंगे माटी गूंज रहा है नस-नस में ।। शीश चढ़ाया काट गरदनें या अरि गर्दन काटी है।।3।। खून दिया है…
इस धरती के कण-कण पर है चित्र खिंचा कुर्बानी का एक-एक कण छन्द बोलता चढ़ी शहीद जवानी का ।। इसके कण हैं, नहीं किन्तु ये ज्वालामुखियों के शोले हैं। किया किसी ने धावा इन पर ये दावा से डोले हैं।। इन्हें चाटने बढ़ा उसी ने धूल धरा की चाटी है | 14 || #गणगीत
गणगीत
नमन करें इस मातृभूमि को
नमन करें इस मातृभूमि को नमन करें इस आकाश को बलिदानों की पृष्ठभूमि पर निर्मित इस इतिहास को नमन करें.
इस धरती का कण-कण पावन, यह धरती अवतारों की। ऋषि मुनियों से पूजित-वंदित, धरती वेद पुराणों की।। मौर्य गुप्त सम्राटों की यह विक्रम के अभियानों की। महावीर गौतम नानक की धरती चैतन्य विहारों की ।। नमन करें झेलम के तट को. हिम मंडित कैलाश को 1111
करें
नमन याद करें सन् सत्तावन की उस तलवार पुरानी को। रोटी और कमल ने लिख दी युग की अमिट कहानी को।। माई मेरा रंग दे बसंती चोला, भगत सिंह बलिदानी को। खून मुझे दो आजादी लो उस सुभाष की वाणी को ।। गुरू गोविन्द की कलियों के उस अमर अजर बलिदान को। 1211
नमन करें. आओ हमसब मिलजुलकर यह संगठना का मंत्र जगायें। व्यक्ति-व्यक्ति के हृदय- हृदय में राष्ट्रभक्ति के दीप जलायें ।। हिन्दू-हिन्दू सब एक संग हो, भारत मां का मान बढ़ायें। अन्नपूर्णा भारत माता जग के सब दुःख दैन्य मिटाये।। अर्पित कर दें मातृभूमि हित तन, मन, धन और प्राण को। 1311 #गणगीत
गणगीत
दसों दिशाओं में जायें दल बादल से जायें उमड घुमड़ कर हर धरती पर नंदनवन सा लहरायें ।।५।।
ये मत समझो किसी क्षेत्र को खाली रह जाने देंगे दानवता का बेल विषैली कहीं नहीं छाने देंगे जहाँ कही लू झुलसाती अमृत रिमझिम बरसाये ।।1।।
फूल सुकोमल खेती पर हम बिजली नही गिराते हैं किन्तु अडीले बालू टीले वर्षा में वह जाते हैं ध्वंस हमारा काम नही अविरल जीवन सरसायें। 1211
मानव जीवन की स्वतन्त्रता नष्ट नही होने पाये यंत्र व्यवस्था हृदयहीन में स्वत्व नहीं खोने पाये जीवनस्तर का अर्थ न हम भोग डगर में भरमाये। 13 ||
देश-देश के जीवन दर्शन अनुभव कहता पूर्ण नहीं आदिसृष्टि से हिन्दु धर्म की पूर्ण धर्म उपलब्धि रही ज्ञान किरण फिर प्रकटाये शांति व्यवस्था समझायें। 411 #गणगीत
गणगीत
स्नेहसूत्र में गूंथे जन-जन, स्वाभिमान से भर दे हर मन। राष्ट्र समूचा चले विजयपथ, जग में गूंजे जय जय भारत॥धु॥
मन में लेकर यही भावना, चले निरन्तर संघ साधना । ग्राम-ग्राम में शाखा पहुंचे, जगे लोक कर्तृत्व चेतना । सज्जन सब जुटकर हो जावे धर्मविजय के लिए कर्मरत ॥1॥
घोर उपेक्षा विरोध में था, स्वयंसेवकत्व ही सहारा उसके बल नित एकल अविचल, साधक चलता कभी न हारा विजयकाल के व्यामोहों में तारणसाधन वहीं संघ व्रत || 2 ||
भेद मनों को तोड न पावे, स्वार्थ बुद्धि को लुभा न पावे। दृष्टि विविध में एक देखती वाणी मिलजुल मंगल गावे स्नेह परस्पर सर्वोपरि हो, एकव्यूह सब अभेद्य सुचरित ॥3॥
पूर्ण प्रखरतम उज्जवल रविसम, हिन्दुराष्ट्र साकार प्रकट हो । सुखी सबल समरस भारत हो, तमस छोड़ जग प्रकाशमय हो एक ध्येय के पथिक विविध हम, एक दिशा में प्रयासरत ॥ 4 ॥ #गणगीत
गणगीत जून माह हेतु
जन्मभूमि कर्मभूमि, स्वर्ग से महान है.
1 अनादि है, अनंत हैं, सृष्टि का विधान है ।। ध्रु ।
ग्रीक, हूण, शक, यवन, टूटते थे भूमि पर हारते थे हौसले, पंचनदी के तीर पर पता नहीं कहाँ हैं वे, अतीत में समा गए । काल के प्रवाह में, निज को वो मिटा गए । भव्य दिव्य लक्ष्य की प्राप्ति ही विराम है ।।1।।
छोड़ कर हटे जहाँ, शक्ति शौर्य साधना छा गयी स्वदेश में, स्वार्थ क्षुद्र भावना द्रोही तब पनप उठे, जगी प्रचंड वासना शत्रु फिर डटे यहाँ, स्वत्व की प्रताड़ना 1 देशभक्ति फिर जगे, देश का ये प्राण है 11211
जाति-वेश भिन्न-भिन्न, पंथ भी अनेक हैं भावना अभिन्न है, धर्म-मर्म एक है 1 पूर्वजों का खून एक, आज सबको जोड़ता । कौन है कपूत वह देश को जो तोड़ता अखंड देश की धरा, सुना रही ये गान है 11311
अधर्म की घिरी घटा, कुचक्र है पनप रहे । पुण्य धर्म-भूमि पर, अधर्म-कर्म बढ़ रहे व्यथा विशाल देश की आज हम समझ सकें । शुद्ध राष्ट्र-भाव से, देश यह महक उठे । राष्ट्र जागरण करो, यही समय की मांग है ।।4।। #गणगीत
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