संघ की प्रार्थना को निम्न प्रकार से विभाजित किया है की जो प्रारम्भ मे बोली जाती थी प्रार्थना ओर अब बोली जाने बाली प्रार्थना निम्न प्रकार है
RSS की २३ अप्रैल १९४० से पूर्व बोली जाने वाली प्रार्थना
नमो मातृभूमि जिथे जन्मलो मी, नमो आर्यभूमि जिथे बाढलो मी। नमो धर्मभूमि जिये च्याच कामी, पढो देह माझा सदा ती नमी मी ॥ १ ॥ हे गुरो श्री रामदूता ! शील हमको दीजिए, शीघ्र सारे सद्गुणों से पूर्ण हिन्दू कीजिए। लीजिए हमको शरण में रामपन्थी हम बनें, ब्रह्मचारी धर्मरक्षक वीरव्रतधारी बनें ॥२॥ ।।राष्ट्रगुरु श्री समर्थ रामदास स्वामी की जय।।
सबसे पहले की राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ की प्रार्थना )
अब बोले जाने बाली संघ की प्रार्थना (सन्धिनियमानुसार उच्चारण हेतु )
विजेत्री च नस् सव्हता कार्यशक्तिर् विधायास्य धर्मस्य सर्वौक्षणम् ।
परवँ वैभवन् नेतुमेतत् स्वराष्ट्रम् । समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम् ।।3।।
।। भारत माता की जय ।।
प्रार्थना के उच्चारण के कुछ नियम
1. संस्कृत में जब वाक्य या चरण के बीच अनुस्वार आता है तब उसका उच्चारण उसके बाद आने वाले अक्षर पर निर्भर होता है। जिस वर्ग का वह अक्षर होगा, उसी वर्ग के अनुनासिक का उच्चारण अनुस्वार ग्रहण करेगा। जैसे क, ख, ग, घ आने पर ड़, च, छ, ज, झ, आने पर ञ, द ठ ड ढ आने पर ण् त, थ, द, ध, न आने पर न प, फ, ब. स. म. आने पर तथा पंक्ति के अंत में अनुस्वार होने पर म् का उच्चारण होगा। इस दृष्टि से प्रार्थना में आए कुछ पदों का उच्चारण निम्नानुसार रहेगा :-
लिखित स्वरूप
उच्चारण का स्वरूप
सुखं वर्धितो
सुखव वर्धितो
सादरं त्वां नमामो
सादरन् त्वान् नमामो
शुभामाशिषं देहि
शुभामाशिषन् देहि
अजय्यां च
अजय्याज च
सुशीलं जगद्येन
सुशील जगद्येन
नम्रं भवेत्
नम्रम् भवेत्
श्रुतञ्चैव
श्रुतं चैव
स्वयं स्वीकृतं नः
स्वयं स्वीकृतन् नः
सुगं कारयेत्
सुगङ् कारयेत्
परं साधनं नाम
परखँ साधनन् नाम
परं वैभवं नेतुम
परवँ वैभवन् नेतुम
प्रार्थना का किस प्रकार से उच्चारण करे उसके लिए ये टेबल बनाई गयी है देखे
दूसरा उच्चारण है विसर्ग का विसर्ग के आगे क, ख, या, प. फ. आया तो विसर्ग का उच्चारण क्रमशः अख्, अफ् जैसा होगा- जैसे- हृदन्तः प्रजागर्तु : हृदन्त प्रजागर्नु किन्तु विसर्ग के आगे ष, श, स आए तो विसर्ग का उच्चारण भी ष. श् स् हो जाएगा- जैसे • नः सुगं कारयेत् नस् सुगङ्कारयेत्त दन्तः स्फुरत्वक्षया तदन्तस् स्फुरत्वक्षया नः संहता समुत्कर्ष निःश्रेयस समुत्कर्ष निश्श्रेयस् नस् संहता
अन्वय और शब्दार्थ
मैं सुखम् वर्धितः = = बारम्बार नमस्कार । वत्सले मातृभूमे ! = (हे) अपनी संतानों पर प्रेम करने वाली मातृभूमि ते = तुझे सदा निरन्तर नमः = प्रणाम हिन्दुभूमे = हे तेरे द्वारा अहम् सुख हिन्दुभूमि ! त्वया = में बढ़ाया गया हूँ (वर्धितोऽहम् = वर्धितः + अहम् ) महामङ्गले पुण्यभूमे = हे परम मंगलमयी पुण्यभूमि ! त्वदर्थे = (त्वत्+अर्थे) तेरे लिए एषः = यह कायः = शरीर पततु अर्पित हो (पतत्वेष पततु+एषः) नमस्ते नमस्ते
= 1 = 1= शक्तिमन् प्रभो = हे शक्तिमान् परमेश्वर ! हिन्दुराष्ट्राङ्गभूता • हिन्दुराष्ट्र के अंगभूत घटक (हिन्दुराष्ट्र + अङ्गभूता) इमे = ये वयम् = हम त्वाम् तुझे सादरम् = आदर सहित नमामः = प्रणाम करते हैं त्वदीयाय तेरे कार्याय = कार्य के लिए इयम् यह कटि = कमर (कटीयम् कटि + इयम्) बद्धा बाँधी है, तत्पूर्तये = उसकी पूर्ति के लिए शुभाम् आशिषम् = शुभ आशीर्वाद देहि = दे ईश = हे ईश! विश्वस्य विश्व के लिए अजय्याम् = जिसे जीतना अशक्य है (ऐसी) शक्तिम् = शक्ति देहि = दे (देहीश देहि + ईश) येन जगत् नम्रम् नम्र । भवेत् हो (ऐसा) सुशीलम् = अच्छा शील यत् स्वीकृतम् अपनी प्रेरणा से स्वीकृत किये हुए नः = हमारे कण्टकाकीर्णमार्गम् = कण्टकमय मार्ग को { कण्टक (काँटा) + आकीर्ण (व्याप्त)] सुगम् कारयेत् = सुगम करें (ऐसा ) श्रुतम् (च + एव) भी देहि = दे । = जिससे जगद् = = = = जो स्वयम् = = ज्ञान चैव =
समुत्कर्षनिःश्रेयसस्य = समुत्कर्ष और निःश्रेयस का (समुत्कर्ष = ऐहिक और पारलौकिक कल्याण, निःश्रेयस = मोक्ष) एकम् परम् उग्रम् साधनम् = एकमात्र परम उग्र साधन (जो) वीरव्रतम् नाम वीरव्रत नामक (है) तत् = वह अन्तः = अन्तः करण में स्फुरतु फुरित हो अक्षया क्षीण न होने वाली (स्फुरत्वक्षया = स्फुरतु + नक्षया) तीव्रा = तीव्र ध्येयनिष्ठा = ध्येय के प्रति निष्ठा अनिशम् =
आरएसएस की प्रार्थना का अनुवाद
हे वत्सल मातृभूमि ! मैं तुझे निरन्तर प्रणाम करता हूँ। हे हिन्दुभूमि! तूने ही मेरा सुखपूर्वक संवर्धन किया है। हे महामङ्गलमयी पुण्यभूमि! तेरे लिए ही मेरी यह काया काम आए। मैं तुझे बारम्बार प्रणाम करता हूँ।
हे सर्वशक्तिमान् परमेश्वर ! हम हिन्दुराष्ट्र के अंगभूत
घटक, तुझे आदरपूर्वक प्रणाम करते हैं। तेरे ही कार्य के लिए हमने
अपनी कमर कसी है। उसकी पूर्ति के लिए हमें शुभ आशीर्वाद दे ।
विश्व के लिए जो अजेय हो ऐसी शक्ति, सारा जगत् जिससे विनम्र
हो ऐसा विशुद्ध शील तथा बुद्धिपूर्वक स्वयं स्वीकृत हमारे कण्टकमय
मार्ग को सुगम करने वाला ज्ञान विवेक भी हमें दे ।
ऐहिक और पारलौकिक कल्याण तथा मोक्ष की प्राप्ति के लिए वीरव्रत नामक जो एकमेव, श्रेष्ठ, उत्कट साधन है, उसका हमारे अन्तःकरण में स्फुरण हो। हमारे हृदय में अक्षय तथा तीव्र ध्येयनिष्ठा सदैव जागृत रहे। तेरे आशीर्वाद से हमारी विजयशालिनी संगठित कार्यशक्ति स्वधर्म का रक्षण कर अपने इस राष्ट्र को परम वैभव की स्थिति में ले जाने में पूर्णतया समर्थ हो ।
।। भारत माता की जय ।।
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