Skip to content

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अध्ययन

Menu
  • होम
  • About US परिचय
  • संघ के सरसंघचालक
    • Terms and Conditions
    • Disclaimer
  • शाखा
  • संघ के गीत
  • एकल गीत
  • गणगीत
  • प्रार्थना
  • सुभाषित
  • एकात्मतास्तोत्रम्
  • शारीरिक विभाग
  • बोद्धिक विभाग
  • अमृत वचन
  • बोधकथा
    • बोधकथा
      • बोधकथा
        • प्रश्नोत्तरी
  • RSS संघ प्रश्नोत्तरी
  • डॉ० केशवराम बलिराम हेडगेवार जीवन चरित्र (प्रश्नोत्तरी)
    • डॉ केशव बलिराम हेडगेवार : Hindi Tweets
    • मातृभाषा_दिवस : Hindi Tweets
    • श्री गुरुजी: Hindi Tweets
  • गतिविधि
  • सम्पर्क सूत्र
  • Contact Us
Menu
प.पु.-डॉक्टर-हेडगेवार

प.पु. डॉक्टर हेडगेवार जी कौन है इनके चर्चे विश्व मे क्यो हो रहे है ?आओ जाने

Posted on February 14, 2023December 12, 2023 by student
प.पु.-डॉक्टर-हेडगेवार

प.पु. डॉक्टर हेडगेवार जी का सम्पूर्ण जीवन परिचय जानने की इच्छा से आपने हमारे पेज का चयन किया उसके लिए आपका धन्यवाद और आपका स्वागत है

डॉक्टर हेडगेवार जी का संझिप्त परिचय

लम्बी दासता ने भारतवासियों की बुद्धि को तो कुंठित किया ही उन्हें अपने • धर्म और कर्म से भी विमुख कर दिया। वे अपने गौरवशाली अतीत को भूल गए, अपने को हिन्दू कहने में भी उन्हें शर्म आने लगी और विदेशी सभ्यता व संस्कृति पर गर्व करने लगे। ऐसी परिस्थितियों में ‘हिन्दुत्व’ और ‘भारत’ की खो चुकी अस्मिता को पुर्नस्थापित करने के लिये डॉ. हेडगेवार ने सन् 1925 में विजयदशमी के दिन नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के रूप में एक छोटा सा पौधा रोपा था जो आज एक विशाल वटवृक्ष के रूप में विकसित हो चुका है। #प.पु. डॉक्टर हेडगेवार जी

‘डॉ. हेडगेवार का जन्म हिन्दू नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, विक्रमी सम्वत् 1946 (1 अप्रैल 1889) के पावन दिन नागपुर में पिता बलिराम पंत और माता रेवतीबाई के घर हुआ। उनका नाम केशव रखा गया। उनके दो बड़े भाई महादेव और सीताराम भी थे। पिता बलिराम वेद शास्त्रों के विद्वान थे एवं वैदिक कर्मकांड से परिवार का लालन-पालन करते थे। आंध्र प्रदेश के कुन्दकुर्ती ग्राम का मूल निवासी यह परिवार काफी समय पूर्व नागपुर आकर बस गया था। #प.पु. डॉक्टर हेडगेवार जी

बालक केशव एक स्कूल में दाखिला करा दिया गया। स्कूल आते-जाते विभिन्न भवनों पर फहराते यूनियन जैक को देखकर वह सोचता, भारत का झण्डा तो भगवा है। भगवान राम, कृष्ण, शिवाजी व महाराणा प्रताप ने भगवा झण्डे की छत्रछाया में ही अपने महान कार्यों को सम्पादित किया था। फिर यह यूनियन जैक क्यों ? अंग्रेजों की क्रूरता और अत्याचारों के किस्से सुन केशव के दिल में उनके प्रति नफरत की आग धधकने लगी। एक बार उनके स्कूल में महारानी विकटोरिया के राज्यारोहण की वर्षगांठ मनाई जा रही थी। इस मौके पर बच्चों में मिठाईयाँ बाँटी गई परन्तु केशव ने उस मिठाई को कूड़े में फेंक दिया और कहा- “विदेशी महारानी के राज्यारोहण का उत्सव मनाना देश के लिये उत्सव नहीं शम की बात है। #प.पु. डॉक्टर हेडगेवार जी

उनके घर से कुछ दूरी पर सीताबर्डी नामक छोटा सा किला है, उस प फहराता यूनियन जैक बालक केशव की आँखों में बहुत चुभता । उसने अप मित्रों के साथ उस किले पर से यूनियन जैक उतारकर भगवा ध्वज फहराने व गुपचुप योजना बनाई। योजना के तहत अपने अध्यापक के घर से सुरंग बनाकर किले तक पहुँचना था। परन्तु दो-तीन दिन बाद ही उनके अध्यापक ने उन्हें खुदाई करते पकड़ लिया। एक अन्य घटना में जब वह नीलसिटी हाईस्कूल में पढ़ते थे, कुछ अंग्रेज अधिकारी विद्यालय का निरीक्षण करने आने वाले थे। वन्दे मातरम्. बोलने पर अंग्रेजों ने प्रतिबंध लगा रखा था। पर यह क्या ? अधिकारी जिस कक्षा में भी जाते वन्दे मातरम् के उद्घोष से उनका स्वागत किया जाता। इस गुप्त योजना का नायक केशव ही था। अधिकारी बहुत क्रोधित हुए, विद्यालय ने केशव को निष्कासित कर दिया। केशव ने कहा- ‘वन्दे मातरम् और भारत माता की जय बोलना यदि अपराध है तो उसके लिये मैं कोई भी सजा भुगतने को तैयार हूँ।”#प.पु. डॉक्टर हेडगेवार जी

प.पु. डॉक्टर हेडगेवार

केशव के दिल में जलती देशभक्ति की इस अग्नि ने कोलकाता में मेडिकल की पढ़ाई के दौरान ज्वाला का रूप ले लिया। उन्होंने मेडिकल की शिक्षा पूर्ण करने के बाद भी आजादी की लड़ाई में भाग लेने का निर्णय किया। कांग्रेस में शामिल होकर 1921 के असहयोग आंदोलन में वे एक साल के लिये जेल भी गए। परन्तु बढ़ती मुस्लिम साम्प्रदायिकता, कांग्रेस के तुष्टीकरण व जगह-जगह मुसलमानों द्वारा हिन्दुओं का कत्लेआम होने से उनका कांग्रेस से मोहभंग होता चला गया। उन्हें हिन्दुओं के संगठन की आवश्यकता महसूस हुई। इसी को ध्यान में रखकर उन्होंने संघ स्थापना का निर्णय लिया। वे कहते थे- ‘भारत के वह सभी लोग हिन्दू हैं जो इस देश को पितृभूमि, पुण्यभूमि मानते हैं।’ #प.पु. डॉक्टर हेडगेवार जी

संघ स्थापना से लेकर मृत्युपर्यंत डा. साहब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक रहे। डॉ. हेडगेवार ने व्यक्ति की क्षमताओं को उभारने के लिये नये-नये तौर तरीके विकसित किये। मोहिते के बाड़े में स्थित सुनसान खण्डहर को साफ कर उसमें शाखा लगाई जाने लगी। संघ की शाखाएं लोगों के लिये कौतुहल का विषय थी। धीरे-धीरे समस्त भारत में शाखाओं का विस्तार होता गया।#प.पु. डॉक्टर हेडगेवार जी

गांधी जी, सुभाषचन्द्र बोस, मदनमोहन मालवीय, वीर सावरकर व डॉ. अम्बेडकर जैसे अनेक देशभक्त संघ और हेडगेवार से बहुत प्रभावित हुए। थे। कार्य की अधिकता व लगातार प्रवासों के कारण डॉक्टर जी रोगग्रस्त हो गए।। गंभीर रूप से बीमार होते हुए भी सशक्त हिन्दू राष्ट्र का स्वप्न लिये उनका हृदय हर समय स्वयंसेवकों के बीच ही विचरता रहता। अन्ततः 21 जून केवल 51 वर्ष की आयु में पूज्य डा. केशव राव ने अपना नश्वर शरीर छोड़ दिया। 1940 को #प.पु. डॉक्टर हेडगेवार जी

अपने परम पूजनीय सर संघचालक पू० पू० आद्य सरसंघचालक डा० केशव बलिराम हेडगेवार

सन् 1889 की 1 अप्रैल प्रतिपदा का दिन था। परम्परागत ढंग से हिन्दू घरों, में भगवा फहराया जा रहा था। ऐसा ही खुशी का अवसर इस दिन नागपुर के गरीब ब्राह्मण बलिराम पंत हेडगेवार के परिवार में पांचवी संतान का जन्म हुआ था इस महज संयोग को इस बालक ने अपने कृतित्व एवं व्यक्तित्व, संकल्प, साधना एवं संस्कार, शुद्ध चरित्र एवं मौलिक चिंतन से यथार्थ में बदल दिया। बचपन का केशव आधुनिक भारत के निर्माण की संकेत- रेखा था, जो आगे चलकर डा० केशव बलिराम हेडगेवार के रूप में यशस्वी हुआ। #प.पु. डॉक्टर हेडगेवार जी

बलिराम पंत का परिवार बड़ा था। माता-पिता के प्यार ने बच्चो को गरीबी का अनुभव नहीं होने दिया। अपने दोनों ज्येष्ठ पुत्रों को वेद अध्ययन के लिए प्रेरित किया। केशव का भी नाम संस्कृत पाठशाला में लिखाया। #प.पु. डॉक्टर हेडगेवार जी

परन्तु इस परम्परावाद पर उनके छोटे पुत्र ने प्रश्न खड़े करने का सफल कार्य किया। केशव की मानसिक संरचना असाधारण थी। उनकी कुशाग्र बुद्धि चंचलता और प्रतिभा ने उन्हे आधुनिक शिक्षा के लिए प्रवृत्त किया एवं माता-पिता ने लीक से हटकर बाद में पारिवारिक परम्परा के प्रतिकूल उनका नाम पूरे मध्यप्रांत में प्रसिद्ध नागपुर के नील सिटी स्कूल में दर्ज कराया। दृढ़ता, संकल्प-शक्ति एवं विवेक के आधार पर कार्य करने की प्रवृत्ति उनके जीवन में हमेशा दिखाई पड़ती रही। पहली घटना तब की है जब उनकी उम्र सिर्फ आठ वर्ष की थी। यह घटना 22 जून 1897 की है। ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के राज्यारोहण के साठ साल पूरे होने पर भारत में जश्न मनाया जा रहा था। #प.पु. डॉक्टर हेडगेवार जी

केशव के स्कूल में भी मिठाई बांटी गई। परन्तु उन्होंने अपने हिस्से की मिठाई फेंकते हुए सहसा कहा- “लेकिन वह हमारी महारानी तो नही हैं” देशभक्ति की उपजी भावना आने वाले वर्षो में और प्रस्फुटित होने लगी। दूसरी घटना 1901 की हैं। इंग्लैंड के राजा एडवर्ड सप्तम के राज्यारोहण के अवसर पर राजनिष्ठ लोगों द्वारा नागपुर में आकर्षक आतिशबाजी का आयोजन किया था। केशव ने बाल मित्रों को उसे देखने से रोका। उन्होने उन सबको समझाया कि ‘विदेशी राजा का राज्यारोहण उत्सव मनाना हमारे लिए शर्म की बात है। #प.पु. डॉक्टर हेडगेवार जी

महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी की वीरता की गाथा घर-घर में सुनी-सुनाई जाती थी । केशव के जीवन पर भी शिवाजी की वीरता, संकल्प-शक्ति एवं राष्ट्रीय भाव का अटूट प्रभाव था। तभी नागपुर के सीताबड़ी के किले के ऊपर इंग्लैंड के ध्वज यूनियन जैक का फहरना उनके बाल मन को कचोटता रहता था। केशव की छोटी उम्र में ही परिपक्व बातें एवं राष्ट्रवादी आकांक्षाएं आस-पड़ोस के लोगों के लिए चौंकाने वाली बात थी। #प.पु. डॉक्टर हेडगेवार जी

सन् 1901 का वर्ष नागपुर और केशव दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। इस वर्ष अंग्रेजी राज के खिलाफ इस शहर में संगठित छात्र आंदोलन की शुरूआत हुई और इस कार्य की योजना एवं क्रियान्वयन केशव के द्वारा ही हुआ। बंग विभाजन के बाद सरकारी दमनचक्र की तीव्रता पूरे देश में बढ़ती जा रही थी। बंगाल में, राजनीतिक आंदोलन में विद्यार्थियों की अहम भूमिका को देखते हुए सरकार ने एक नोटिस जारी किया। यह नोटिस ‘रिस्ले सर्कुलर के नाम से प्रसिद्ध था। इस सर्कुलर का मध्य प्रांत में विरोध नागपुर से शुरू हुआ। सन् 1907 के मध्य में विद्यालय निरीक्षक प्रतिवर्ष की भांति स्कूल का पर्यवेक्षण करने नील सिटी स्कूल आये थे। जैसे ही निरीक्षक केशव की कक्षा में गये, सभी छात्रों ने उठकर एक साथ ” वंदे मातरम्’ की जोरदार घोषणा से उनका स्वागत किया। #प.पु. डॉक्टर हेडगेवार जी

जनार्दन विनायक ओक के कमरे में गये और बिना बात किये। अपनी टोपी लेकर सीधे चले गये। केशव के हृदय में धधकने वाली देशभक्ति की प्रखर अग्नि की तीव्रता का अनुभव उनके मित्रों, गुरुजनो तथा परिवार वालों को होने लगा था। कोलकाता के नैशनल मैडिकल स्कूल में पहुँचने के बाद तो इस आग्न ने ज्वाला का रूप ले लिया। मैडिकल की शिक्षा पूरी करने के बाद पैसा और T प्रसिद्धि का मार्ग उनके स्वागत को आतुर था, विद्यालय के प्रधानाचार्य ने तो 3000 रू० मासिक वेतन पर बर्मा में एक बड़े सरकारी अस्पताल में चिकित्साधिकारी के रूप में उन्हें भेजने की संस्तुति भी कर दी। नागपुर के टूटे-फूटे पुश्तैनी मकान के बाहर डॉ० के.बी. हेडगेवार का नया बोर्ड भी उनके भाई ने लगवा दिया। परन्तु डॉ0 हेडगेवार का मन-मस्तिष्क तो उसी प्रश्न के उत्तर की खोज में अभी तक लगा था, हम बार-बार गुलाम क्यों हुए, हम क्या करें जिससे भारत फिर गुलाम न हो? यह चिरन्तन प्रश्न उन्हें चैन से नहीं बैठने देता था । #प.पु. डॉक्टर हेडगेवार जी

नागपुर लौटकर वे कांग्रेस में भर्ती हो गये, अपनी योग्यता तथा संगठन कुशलता के कारण उनकी गिनती प्रमुख कार्यकर्ताओं में होने लगी। 1920 में नागपुर में कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ, डा० हेडगेवार उसकी व्यवस्था में लगे स्वयंसेवी दल के प्रमुख थे। 1921 के असहयोग आन्दोलन में वे एक साल के लिए जेल भी गये, वहाँ उन्होंने देखा कि अपने भाषणों में बड़े-बड़े आदर्शो की बात करने वाले कांग्रेसी नेता जेल में एक गुड़ के टुकड़े और साबुन की टिकिया के लिए कैसे लड़ते हैं? मुस्लिम तृष्टीकरण अनुशासनहीनता तथा निजी स्वार्थपरता जैसी कांग्रेस-चरित्र की विशेषताओं को देखकर उनका मन इस ओर से खट्टा हो गया। वैचारिक मंथन तीव्र गति से चल रहा था। अन्ततः उन्होंने एक निष्कर्ष निकाला-बिना हिन्दू संगठन के भारत का उत्थान सम्भव नहीं है। #प.पु. डॉक्टर हेडगेवार जी

भारत को अपनी मातृभूमि, पितृभूमि, पुण्यभूमि तथा स्वतन्त्रता प्राप्त हो सकती है। जेल से बाहर आने के बाद उनके मन में एक नये संगठन की योजना कार्यरूप ले रही थी। और इसी के निष्कर्ष स्वरूप 1925 की विजयदशमी के शुभ अवसर पर उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना कर दी। प्रारम्भ में उन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, उनको उपदेश और सुझाव देने वाले तो बहुत थे, पर सहयोग करने वाले बहुत कम। ” हिन्दू समाज का संगठन जीवित मेंढकों को तौलने के समान असम्भव है, चार हिन्दू तो तब ही एक दिशा में चलते हैं जब किसी पाँचवें की अर्थी उनके कन्धे पर होती है”… आदि आते उन्हें बहुत सुननी पड़ती थी। डा० हेडगेवार की अविश्रान्त साधना के फलस्वरूप संघ का कार्य तेजी से बढ़ने लगा, युवकों की टोलियाँ उनके घर पर जमी रहती थी। #प.पु. डॉक्टर हेडगेवार जी

21 जुलाई 1930 को यवतमाल में अपने जत्थे के साथ जंगल सत्याग्रह में उन्होंने भाग लिया तथा नौ मास के कारावास की सजा उन्होंने अकोला जेल में रहकर पूरी की। डा० हेडगेवार के मन को सन्तोष कहाँ था? उनकी आँखों में तो भारतमाता को गुलामी की जंजीरो से मुक्त कराके उसे फिर से विश्व गुरू के सर्वोच्च सिंहासन पर विराजमान करने का स्वप्न तैर रहा था। दिन -रात वे इसी कार्य में लगे थे, आँखों में नींद और शरीर के विश्राम से से कोसों दूर थे । #प.पु. डॉक्टर हेडगेवार जी

1934 में वर्धा में संघ का शिविर लगा। महात्मा गांधी भी उस समय वर्धा में ही श्री जमनालाल बजाज के बंगले पर ठहरे हुए थे, शिविर के बारे में चर्चा होने पर गांधी जी ने उसे देखने की इच्छा व्यक्त की। उनके मन में संघ के बारे में कोई बहुत अच्छी धारणा नहीं थी, परन्तु शिविर में आकर वे चमत्कृत हो गये। छुआछूत और भेदभाव मिटाने को जो बात वे वर्षो से बोल रहे थे, संघ-शिविर में वह उन्हें व्यवहार में दिखायी दी। एक ओर संघ का कार्य और उसके विचारों की स्वीकार्यता समाज में निरन्तर बढ़ रही थी तो दूसरी ओर डाक्टर जी का शरीर धीरे-धीरे शिथिल होता चला जा रहा था। बीमारी और बेहोशी की अवस्था में भी वे बड़बड़ाते रहते थे। “देखो, 1940 का वर्ष भी बीता जा रहा है, हमारा कार्य शीघ्र बढ़ना चाहिए…।” #प.पु. डॉक्टर हेडगेवार जी

1940 में नागपुर तथा पुणे में संघ के चालीस दिवसीय ग्रीष्मकालीन प्रशिक्षण वर्ग (संघ शिक्षा वर्ग) लगे, पुणे के वर्ग में कुछ दिन रहने के बाद वे आग्रह पूर्वक नागपुर आये। भीषण गर्मी के कारण उनका स्वास्थ्य लागातार गिर रहा था। पर फिर भी वे स्वयंसेवकों से मिलते थे। नागपुर के इस वर्ग में पहली बार भारत के प्रत्येक प्रान्त का प्रतिनिधित्व हुआ था। स्वयंसेवकों रूप में मानो सम्पूर्ण भारत का छोटा प्रतिरूप वहाँ उपस्थित था, डाक्टर जी को भी इस बात का बहुत सन्तोष था। #प.पु. डॉक्टर हेडगेवार जी

स्वास्थ्य की अत्याधिक खराब के कारण डाक्टरों ने अन्तिम उपाय के रूप में रीढ़ से पानी निकालने के लिए लंबर-पंचर करने का निर्णय लिया। लेकिन फिर भी बुखार, रक्तचाप आदि में कोई कमी नहीं हुई । अन्ततः 21 जून, 1940 प्रातः 9.27 पर हिन्दू राष्ट्र के मन्त्रदृष्टा स्वयंसेवकों के आराध्य, संघ संस्थापक पू० डा० केशव बलिराम हेडगेवार ने अपनी नश्वर काया छोड़ दी। द्वितीय प०पू० सरसंघचालक माधव सदाशिवराव गोलवरकर (श्री गुरू जी) 19 फरवरी, 1906 सोमवार को प्रातः 4.30 पर माता श्रीमती लक्ष्मीबाई तथा पिता श्री सदाशिवराव की गोद इस बालक के जन्म से धन्य हुई। बालक का नाम ‘माधव’ रखा गया। परन्तु माँ प्यार से ‘मधु’ कहकर ही बुलाती थी। माधव अपने अपने माता-पिता की संतानों में से एक मात्र जीवित संतान थे अतः उनकी आशा अपेक्षाएं इन्ही पर केन्द्रित थी। #प.पु. डॉक्टर हेडगेवार जी

प.पु. डॉक्टर हेडगेवार जी

प.पु.-डॉक्टर-हेडगेवार

अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करे महभरात आप संघ की आधिकारिक वैबसाइट से भी प्राप्त कर सकते है उसके लिए आप यहाँ क्लिक करे http://rss.org और आप हमारे पोर्टल के माध्यम से भी जानकारी ले सकते है उसके लिए यहाँ क्लिक करे https://rsssangh.in

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

संघ के कुछ

  • Health Tips
  • RSS News
  • RSS संघ प्रश्नोत्तरी
  • Tweets RSS
  • अम्रतवचन
  • आज का पंचांग
  • गीत ,गणगीत , बालगीत और एकलगीत
  • बोधकथा
  • भारत की महान विभूतियाँ
  • महाभारत
  • राष्ट्रीय स्वयंसेवक (आरएसएस)
  • शाखा
  • संघ उत्सव
  • संघ शिक्षा वर्ग
  • सर संघचालक
  • सुभाषित
  • स्मरणीय दिवस
  • स्वामी विवेकानन्द
© 2025 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अध्ययन | Powered by Minimalist Blog WordPress Theme