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श्री कृष्ण कौन है इनके चर्चे विश्व मे क्यो हो रहे है ?आओ जाने

Posted on March 25, 2023December 12, 2023 by student
श्री कृष्ण

श्री कृष्ण जी का संझिप्त परिचय

श्री कृष्ण : भारतीय जनमानस को जिस महापुरुष के सर्वांगपूर्ण व्यक्तित्व ने सर्वाधिक प्रभावित किया वह यदुकुलनन्दन श्रीकृष्ण का है। महाकवि वेदव्यास ने एकश्लोकी भागवत् में श्रीकृष्ण के जीवन का वृतांत निम्न प्रकार से व्यक्त किया है-आदौ देवकीदेवगर्भजननं, गोपीगृहे वर्धनम् । मायापूतनादि हननं, गोवर्धनो धारणं ॥ कंसच्छेदनं कौरवादिदलनं, कुन्तीसुताः पालनम् । श्रीमद् भागवतं पुराण कथितं, श्रीकृष्णलीलामृतम् ॥

श्री कृष्ण

द्वापर युग के अन्तिम चरण में कंस के नृशंस शासन से ब्रज की जनता अत्यंत त्रस्त थी। कंस ने अपने ही पिता राजा उग्रसेन को बंदी बनाकर राज्यसत्ता हथिया ली थी। उसकी बहिन देवकी का विवाह वसुदेव के साथ हुआ था। ज्योतिषियों की भविष्यवाणी के अनुसार देवकी के गर्भ से उत्पन्न आठवें बालक के द्वारा ही कंस का वध होना था

श्री कृष्ण अतः मृत्यु के भय से कंस ने वसुदेव-देवकी दोनों को कारागृह में डाल दिया और उनकी सात संतानों की हत्या कर दी। आठवें पुत्र रूप में कंस के कारागृह में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। बालक श्रीकृष्ण की जीवन-रक्षा के लिए वसुदेव ने उन्हें यमुनापार गोकुल ग्राम में राजा नन्द के यहाँ पहुँचा दिया।

अतः बालक कृष्ण का लालन-पालन राजा नन्द और उनकी पत्नी के यशोदा के द्वारा ब्रजभूमि में हुआ। श्री बलराम उनके बड़े भाई थे।

श्री कृष्ण

“होनहार बिरवान के होत चीकने पात” की उक्ति बालक कृष्ण पर भी घटित हुई। उनकी विलक्षण बुद्धि और अद्वितीय पराक्रम की गाथाएँ दूर- दूर तक फैलने लगी। कंस ने जब यह सुना तो वह और अधिक आतंकित होने लगा। उसने पूतना, धेनुकासुर, बकासुर आदि अनेक दुष्टों को भेजकर कृष्ण की हत्या करवानी चाही पर उसके सफल न हो सके। कृष्ण ने उन सबको पराजित कर डाला। ब्रज के लोग बाढ़ और अतिवृष्टि से बचने के लिए देवराज इन्द्र की पूजा करते थे

पर फिर भी यमुना नदी में बाढ़ आने से, धन-जन की भारी क्षति होती थी। अतः श्रीकृष्ण ने ब्रज के सभी ग्वालबालों को संगठित कर, गोवर्धन पर्वत के समीप बाँध बनाया। इससे यमुना की धारा बदलकर बाढ़ से छुटकारा मिल गया। यमुना नदी के पास ही कालिया नामक एक नागवंशी रहता था।श्री कृष्ण वह एक दुष्ट नाग था जिसने सारे वातावरण को प्रदूषित कर रखा था। श्रीकृष्ण ने उसे पराजित करके उसके अत्याचारों से जन-सामान्य को मुक्ति दिलाई।

श्री कृष्ण

ब्रज का सारा दूध-दही बिकने जाया करता था। इससे ग्रामीण बालकों को दूध-दही से वंचित हो जाना पड़ता था। कृष्ण ने बालकों को संगठित कर इस कुप्रथा को बंद करवाया। श्रीकृष्ण के समाज-सुधार के कार्यों तथा ग्वाल-बालों की संगठन-शक्ति से घबराकर कंस ने फिर एक षड्यंत्र रचा। उसने मथुरा में क्रीड़ा प्रतियोगिता आयोजित कर कृष्ण-बलराम को उसमें अपने शौर्य तथा पराक्रम का प्रदर्शन करने के लिए आमंत्रित किया।

श्री कृष्ण-बलराम के मथुरा पहुँचने पर उनकी हत्या करने के लिए श्री कृष्ण उन पर एक पागल हाथी को उकसाकर छुड़वाया गया। जब पागल हाथी भी पराजित हो गया तब चाणूर और मुष्टिक नामक भयंकर पहलवानों से उनकी कुश्ती करवाई गई। पर ये दोनों पहलवान भी कृष्ण-बलराम के हाथों से मारे गए। जब कंस का षड्यंत्र सफल न हो पाया। तब वह स्वयं तलवार लेकर कृष्ण को मारने खड़ा हो गया। पर इसके पूर्व ही श्रीकृष्ण ने सिंहासन से खींचकर उसको जमीन पर पटका तथा उसका वध कर दिया।

श्री कृष्ण

मथुरा का राज्य कंस के पिता को सौंपकर, श्रीकृष्ण ने सम्पूर्ण व्रज में सुख और शांति की स्थापना की। उनकी शिक्षा-दीक्षा उज्जैन के समीप संदीपनी ऋषि के गुरुकुल में हुई थी। सुदामा उनके बालसखा थे। इन दिनों हस्तिनापुर में कौरव-पांडवों के मध्य सत्ता का संघर्ष चल रहा था। धृतराष्ट्र के पुत्र दुर्योधन ने द्यूत-क्रीड़ा में पांडवों को हराकर उनका राज्य छीन लिया था और उन्हें वनवास में जाने के लिए विवश कर दिया था। श्री कृष्ण पाण्डवों की माता कुन्ती श्रीकृष्ण की बुआ थी।

श्रीकृष्ण ने पाण्डवों का पक्ष लेकर, कुरुक्षेत्र में हुए महाभारत के युद्ध में उन्हें विजय इसलिए दिलाई कि वे सत्यवादी एवं सदाचारी थे।श्री कृष्ण वीर और पराक्रमी होने के साथ-साथ कुशल कूटनीतिज्ञ भी थे। मगध – नरेश जरासंध, शिशुपाल एवं दुर्योधन जैसे दुष्टों की समाप्ति उन्होंने नीति के द्वारा ही करवाई थी। पाण्डवों को भी वे समय-समय पर मार्गदर्शन प्रदान करते रहते थे। उन्होंने गुजरात में द्वारकापुरी को अपनी राजधानी बनाया था।

जरासंघ द्वारा अपहृत की गई सोलह हजार युवतियों के साथ विवाह कर उन्होंने सामाजिक पतन से उनकी रक्षा की थी।श्री कृष्ण निर्धन, असहाय और सन्मार्ग पर चलने वालों की वे हमेशा रक्षा करते थे। इसलिए उन्हें दीनबन्धु, दीनदयाल भी कहा जाता है। श्रीकृष्ण द्वारा प्रणीत श्रीमद्भागवतगीता के अलौकिक जीवन-दर्शन से यह सिद्ध होता है कि वे महान् दार्शनिक एवं परम ज्ञानी थे। संसार में बाइबिल ग्रंथ को छोड़कर यदि किसी अन्य ग्रंथ का सभी भाषाओं में अनुवाद हुआ है

तो वह गीता ही है। उनका सारा जीवन लोककल्याण, जनहित, आततायियों के विनाश एवं सद्धर्म की स्थापना में लगा। इसलिए पाँच हजार वर्ष बाद भी वे सम्पूर्ण भारत में लोकमान्य भगवान् श्रीकृष्ण के रूप में सुपूजित हैं। उनका आदर्श चरित्र हम सबके लिए अनुकरणीय है। भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी को प्रत्येक भारतीय उनका जन्मोत्सव उल्लासपूर्वक मनाता है।

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