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डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी का संझिप्त परिचय
- जुलाई 1901 को कोलकाता के एक कुलीन वंश में जन्मे श्यामा प्रसाद 6 बाल्यावस्था से ही असाधारण प्रतिभा के धनी थे। डॉ. मुखर्जी मूलतः शिक्षाविद् थे। अनूठी प्रतिभा के कारण वे मात्र 33 वर्ष की आयु में ही कलकत्ता विश्वविद्यालय के उपकुलपति बनाये गये थे। उपकुलपति बनते ही उन्होंने सम्पूर्ण शिक्षाक्रम को नवीन रूप देने का प्रयास शुरु कर दिया। उनकी पहल पर अंग्रेजी के स्थान पर मातृभाषाओं को शिक्षा का माध्यम बनाया गया।
शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय रहते हुए भी डॉ. मुखर्जी राजनीतिक गतिविधियों पर भी पैनी नजर रखते थे। गाँधी जी व नेहरू द्वारा मुस्लिमों के तुष्टीकरण की नीति से वे असहमत थे। गाँधी जी ने जब 1921 में मुसलमानों के खिलाफत आंदोलन का समर्थन किया तथा केरल में मोपला मुस्लिमों ने हिन्दुओं का कल्लेआम किया तो डॉ. मुखर्जी ने उसी समय आशंका व्यक्त की थी कि “मुस्लिम कट्टरवाद आगे चलकर देश के लिये घातक सिद्ध होगा।” #डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी
काँग्रेस के सन् 1923 के काकीनाडा (आंध्र प्रदेश) अधिवेशन में प्रसिद्ध संगीतज्ञ श्री विष्णु दिगम्बर पलुस्कर द्वारा वन्देमातरम् गीत गाये जाने पर कांग्रेस अध्यक्ष मोहम्मद अली द्वारा विरोध किये जाने की घटना ने डॉ. मुखर्जी के राष्ट्रभक्त हृदय को झकझोर डाला था। सन् 1937 में जब प्रान्तीय विधानसभाओं में वन्देमातरम् का गायन हुआ तो कांग्रेस के मुस्लिम सदस्यों ने इसे इस्लाम विरोधी बताकर बहिष्कार कर दिया था। डा. मुखर्जी को यह देखकर बहुत पीड़ा हुई कि काँग्रेस राष्ट्रहित की उपेक्षा कर कट्टरपंथी मुसलमानों के समक्ष निरन्तर घुटने टेकती जा रही है। #डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी
डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी
डॉ. मुखर्जी की आशंका सत्य सिद्ध हुई और कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टीकरण नीति के चलते भारत का विभाजन हो गया। डा. मुखर्जी ने विचार किया कि भले ही वह भारत का विभाजन रोकने में सफल न हुए हो, किन्तु पाकिस्तान का अंग बनाये जाने वाले बंगाल, पंजाब व असम का विभाजन कराकर इन राज्यों के हिन्दू बहुल क्षेत्रों को ‘पाकिस्तान’ के चंगुल में जाने से बचाया जा सकता है। बंगाल के नोआखली, चटगाँव, ढाका आदि क्षेत्रों व पंजाब में मुस्लिम लीग के निर्देश पर हिन्दुओं पर जुल्म ढाये जा रहे थे। सरेआम हिन्दुओं की हत्याएं व हिन्दू स्त्रियों को अपमानित कर जुलूस निकाले जा रहे थे। बंगाल तथा पंजाब के हिन्दू बहुल क्षेत्रों के हिन्दू पाकिस्तान में किसी भी हालत में न मिलने के प्रश्न पर एकजुट होते जा रहे थे। डॉ. मुखर्जी ने जगह-जगह हिन्दू सम्मेलन आयोजित कर इसके पक्ष में माहोल तैयार करने में अपनी पूरी शक्ति लगा दी। उन्होंने गाँधी जी से भेंट कर इसे हिन्दू बहुल क्षेत्र के लोगों के साथ घोर अन्याय बताते हुए सख्त विरोध किया। #डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी
अन्ततः बंगाल तथा पंजाब के हिन्दू बहुल क्षेत्रों को पाकिस्तान में न मिलाये जाने का निर्णय लिया गया। इस प्रकार डॉ. मुखर्जी बंगाल व पंजाब के विभाजन में हिन्दू बहुल क्षेत्रों को भारत में बनाये रखने में सफल हो गये। #डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी
परमिट प्रणाली के विरोध में जम्मू-कश्मीर में प्रवेश करने पर नेहरू की शह पर पाक-परस्त शेख अब्दुल्ला ने उन्हें बंदी बना लिया। 20 जून 1953 को उनकी तबियत खराब होने पर उन्हें कुछ ऐसी दवाएं दी गयीं जिससे उनका स्वास्थ्य और बिगड़ गया। गिरफ्तारी के 43 वें दिन 23 जून को उन्हें रहस्यमय ढंग से मृत घोषित कर दिया गया। उनकी मृत्यु की जाँच न करते हुए मामले पर लीपापोती की गयी, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान से देश भर में रोष की लहर फैल गयी और जन विरोध के चलते परमिट प्रणाली को रद्द करना पड़ा, इस प्रकार डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने अपने बलिदान से जम्मू-कश्मीर को पाकिस्तान में जाने से बचा लिया। #डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी
डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी
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