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महर्षि वाल्मीकि जी का संझिप्त परिचय
भारत ही नहीं विश्व को प्रेरणा एवं संस्कार देने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जीवन चरित्र पर ग्रंथ रचना कर महर्षि वाल्मीकि अमर हो गये। आज विश्व की लगभग सभी महत्वपूर्ण भाषाओं में 900 रामकथायें या उपकथायें उपलब्ध हैं। भारत में ही हिन्दी में लगभग 11, तेलगु में 5, उड़िया में 6, मराठी में में 12 तथा बंगला में 25 रामकथायें उपलब्ध हैं। 8, तमिल
भवभूति, भास, शंकराचार्य, रामानुज, वेदव्यास से लेकर कालीदास, राजा भोज आदि विद्वानों एवं सभी रामकथाओं के लेखकों ने महर्षि वाल्मीकि का गौरवगान किया है। तुलसीदास जी ने तो ‘वाल्मीकि भए ब्रह्म समाना’ कहकर उन्हें ब्रह्मा के समान ही माना है। वाल्मीकि प्रथम कवि भी हैं। उनकी रामायण संसार के समस्त काव्यों का बीज है ‘काव्य बीजं सनातनम्’ (ब्रह्मर्द्ध पुराण – 1.30.47)
वाल्मीकि द्वारा लिखे रामचरित की ही विशेषता है कि आज अनेक मुस्लिम देशों में भी गर्व से रामलीला का मंचन होता है। आईआईटी बैंग्लोर में प्रो. रिजवी तो राम को विश्व का सर्वश्रेष्ठ मैनेजमेंट गुरु बताते हैं। 1992 में रामायण नाम से ऐनिमेशन फिल्म बनाने वाले जापान के यूगो साको ने एक साक्षात्कार में कहा कि मैंने विश्व के श्रेष्ठ चरित्रों का अध्ययन कर राम चरित्र को ही फिल्म के लिए चुना। महर्षि वाल्मीकि ने रामायण को पढ़ना वेदों के समान फल देने वाला बताया है और इसको पढ़ने का सभी वर्णों को समान अधिकार दिया है। जनश्च शूद्रोऽपि महत्त्वमीयात् । (बालकाण्ड 1.100) अर्थ- सभी वर्णों के समान ही इसको पढ़ने से शूद्रों को भी प्रतिष्ठा प्राप्त होती है।
वाल्मीकि रामायण में स्थान-स्थान पर सामाजिक एकात्मता एवं समरसता का दर्शन होता है। वाल्मीकि के राम समाज के सभी सम्बन्धों पुत्र, भाई, मित्र, शिष्य, पति या राजा सभी रूपों में एक आदर्श उदाहरण हैं तथा उनके हृदय वनवासी, गिरिवासी तथा समाज में छोटी कही जाने वाली जाति के बन्धुओं लिये भी प्रेम और एकात्मता का भाव है।
पति द्वारा शापित एवं समाज द्वारा बहिष्कृत अहिल्या से भी राम मिलने जाते हैं और मातृवत सम्मान देते हुए उसके चरण स्पर्श करते हैं
राघवौ तु तदा तस्याः पादौ जगृहतुर्मुदा ।
(बालकाण्ड 49.17)
वही राम निषादराज गुह को अपनी आत्मा के समान प्रिय मित्र बताते हैं – स ममात्म समः सखा’ (युद्धकाण्ड, 125.5)
घायल पक्षीराज जटायु की मृत्यु पर राम उन्हें अपने पिता समान सम्मान देते हुए पूर्ण विधि विधान से उनका दाह संस्कार करते हैं।
एवमुक्त्वा चितां दीप्तामारोप्य पतगेश्वरम् । ददाह रामो धर्मात्मा स्वबन्धुमिव दुःखितः ।।
(अरण्यकाण्ड 68.31) सम्पूर्ण विश्व ही नहीं स्वयं रामायण के नायक भगवान राम भी महर्षि वाल्मीकि के सदैव ऋणी हैं। राम द्वारा माता सीता को वनवास भेजने पर महर्षि वाल्मीकि ने ही उन्हें अपने आश्रम में स्थान दिया। आश्रम में जन्मे राम के दो पुत्र कुश का पालन-पोषण और योग्य संस्कार वाल्मीकि द्वारा ही हुआ । वाल्मीकि ने स्वयं भी एक आदर्श एवं सभी प्रकार से दोषमुक्त जीवन जिया। उत्तर काण्ड में एक स्थान पर वह कहते हैं- लव और
मनसा कर्मणा वाचा भूतपूर्वं न किल्बिषम् । (उत्तरकाण्ड 96.21) अर्थ- मैंने मन, वचन, या कर्म द्वारा कभी भी कोई पापाचार नहीं किया। ऐसे महान् चरित्र को अनेक प्रकार की भ्रामक कथाओं द्वारा पाप कर्मों से जोड़ने का कारण केवल समाज में जानकारी का अभाव है।
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