
विजयादशमी उत्सव आरएसएस क्यों मनाता है इसके क्या कारण है ?
विजयादशमी उत्सव हेतु इसलिए मनाया जाता है
- प्रतिवर्ष आश्विन शुक्ल दशमी को हिन्दू समाज अत्यन्त उत्साह तथा आशा से परिपूर्ण होकर विजयादशमी का पावन पर्व मनाता है । आसुरी शक्ति पर देवी शक्ति की विजय के रूप में राम की रावण पर विजय की यह गौरव गाथा विश्वविख्यात है। यह न्याय की अन्याय पर, सदाचार की अनाचार पर, सत्य को असत्य पर धर्म की अधर्म पर तथा सात्विकता की पाशविकता पर विजय गाथा है। आदिकवि वाल्मीकि ने इस विजय गाथा को संस्कृत भाषा में सर्वप्रथम गाया । वाल्मीकि प्रभु रामचन्द्र के समकालीन थे और प्रभु राम उनके आश्रम में गये थे। आदि कवि का ग्रंथ “रामायण” के नाम से विख्यात हुआ है। इसके पश्चात् अनेक कवियों ने राम चरित्र का वर्णन अपनी भावनाओं के अनुकूल किया परन्तु सर्वाधिक प्रसिद्धि गोस्वामी तुलसीदास रचित ‘रामचरित मानस’ को प्राप्त हुई। महाबलशाली अतुलनीय सम्पत्ति का स्वामी, पुष्पक विमान सहित अनेकों मंत्र दीक्षित अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित साधन सम्पन्न सेनानायक रावण, जिससे बड़े-बड़े प्रतापी एवं शूरवीर राजा भी भय खाते थे। परन्तु निरंकुश शक्ति समाज के लिए घातक हो जाती है। आसुरी आचार व्यवहार के साथ-साथ संस्कृति का ह्रास होने लगता है। अपनी शक्ति के शिखर पर रावण राज्य में भी यही सब कुछ हो रहा था। ऋषि, मुनि, तपस्वी अत्याचार के शिकार थे। यज्ञ और धार्मिक कृत्य करना कठिन था। समाज मर्माहत था, ऐसे में ही
परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्म संस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥
- दशरथ नन्दन राम का आविर्भाव हुआ और उन्होंने अयोध्या का राजमहल छोड़ वन गमन किया। #विजयादशमी उत्सव
- राम ने समाज की सही स्थिति का आंकलन करते हुए वनवास के समय समाज के श्रेष्ठजनों से सम्बन्ध बनाये और साधारण कोल, भील, निषाद, वानर आदि समुदायों का संगठन खड़ा करने का सफल प्रयास किया। इस संगठित शक्ति के बल पर आसुरी सत्ता को ध्वस्त किया।#विजयादशमी उत्सव
- राम का जीवन सामाजिक समरसता के पुरोधा के रूप में अनुकरणीय है। वह एक ओर जहाँ भारद्वाज और वाल्मीकि के आश्रम गये, दूसरी ओर शबरी के आश्रम में जाकर उनके झूठे बेर खाने में संकोच नहीं करते। वह निषादराज गुह को गले लगाते हैं और उनका आतिथ्य स्वीकार करते हैं। राम के इस व्यवहार के ही परिणाम गोस्वामी जी ने निम्न चौपाई में प्रकट किये हैं। करि केहरि कपि कोल कुरंगा, बिगत बैर बिचरहिं सब संगा।#विजयादशमी उत्सव
- विजयादशमी का पर्व शस्त्र पूजन की परम्परा का भी स्मरण करवाता है। शस्त्र और शास्त्र दोनों में निपुणता के बिना कोई राष्ट्र अपनी उन्नति नहीं कर सकता। यह ध्रुव सत्य है। राम ने समुद्र से अनुनय विनय किया परन्तु समुद्र लंका जाने का मार्ग देने के लिए तैयार नहीं हुआ इस घटना को गोस्वामी तुलसीदास जी ने निम्नलिखित चौपाई में वर्णित किया।
बिनय न मानत जलधि जड़ गये तीनि दिन बीत।
बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीत ॥
इसके साथ ही समुद्र ने सागर पार जाने के लिए सेतु निर्माण की प्रक्रिया बता दी।
- नौ दुर्गा पूजा के रूप में भी हिन्दू समाज शक्ति की आराधना करता है।#विजयादशमी उत्सव
- विजयादशमी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना का दिन भी हैं। इसी दिन अपने कुछ सहयोगियों को लेकर नागपुर में प.पू. डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने संघ स्थापना की घोषणा की थी। 1925 में हिन्दू संगठन का विचार लेकर किसी संगठन की कल्पना करना प्रचलित धारा के विपरीत कार्य था। 1921-22 पै असयोहग आंदोलन और खिलाफत आंदोलन में गाँधी जी ने हिन्दू मुस्लिम एकता से ही देश स्वतंत्र हो सकता है। ऐसे विचार प्रवाह को बल दिया था। लेकिन उससे हटकर विचार करना प.पू. डॉक्टर जी के स्वतंत्र चिन्तन का ही परिणाम था। #विजयादशमी उत्सव
विजयादशमी पर अमृत वचन
प.पू. रज्जू भैया जी ने कहा- समाज परिवर्तन तो व्यक्ति के बदलने से होगा। शाखा के कार्यक्रमों से हिन्दू समाज में समरसता, अनुशासन और चरित्र निर्माण होता है। स्वयंसेवकों द्वारा चलाए जा रहे हजारों विद्यालय, सभी क्षेत्रों में लाखों सेवा कार्य, अच्छा काम कर रहे हैं। इसी से संघ के प्रति सम्पूर्ण समाज का विश्वास बढ़ रहा है। हमारी शाखायें तथा स्वयंसेवक संख्या बढ़े यह आज की आवश्यकता है। #विजयादशमी उत्सव
विजयादशमी उत्सव आरएसएस कैसे मनाता है उसके लिए क्या आवश्यक साम्रगी आवश्यक होती है ?
विजयादशमी उत्सव हेतु आवश्यक सामग्री
- साफ संघस्थान पर चूने द्वारा उचित रेखांकन।
- चुना, नील, गेरू आदि से ध्वजमंडल की सुन्दर सज्जा।
- ध्वज, ध्वजदण्ड, स्टैण्ड, माला (ध्वजलड़ी), पिन, धूप, अगरबत्ती, माचिस आदि।
- प.पू. डॉक्टर जी व श्री गुरुजी के चित्र एवं शस्त्रधारी भगवान् श्रीराम, असुरमर्दिनी माँ दुर्गा के चित्र, उनको सजाकर रखने की उचित व्यवस्था। मालायें, चादर, चाँदनी आदि ।
- उचित मात्रा में तलवार, शूल, कृपाण आदि लाइसेंस युक्त बंदूक, पिस्तौल जैसे आधुनिक अस्त्र-शस्त्र इनको भी सजाकर भूमि से ऊपर तख्त व मंच आदि की व्यवस्था करें।
- शस्त्र पूजन हेतु एक थाली में रोली, चावल एवं पुष्प। आवश्यक हो तो ध्वनिवर्धक की व्यवस्था करें। सभी शस्त्र चमकदार साफ एवं चालू अवस्था में हो। #विजयादशमी उत्सव
विजयादशमी उत्सव मनाने की विधि
- सम्पत्
- ध्वजारोहण
- सर्वोच्च अधिकारी एवं मुख्य अतिथि द्वारा शस्त्र पूजन
- अधिकारी परिचय
- मुख्य अतिथि द्वारा आशीर्वचन
- अमृत वचन
- एकलगीत
- बौद्धिक वर्ग
- प्रार्थना
- ध्वजावतरण
- विकिर #विजयादशमी उत्सव
#विजयादशमी उत्सव गीत
शील शक्ति प्रेम का हम, भाव धारण कर चलें।
राष्ट्रहित का ध्येय उर ले, विजयपथ पर बढ़ चलें। संघ पथ पर बढ़ चलें। #विजयादशमी उत्सव
संघ की यह साधना है, हिन्दू-हिन्दू एक हो ।
परस्पर सद्भाव उर में, एक मन सह चित्त हो।
संग खेलें मन विमल हो, हो सुसंस्कारित चलें।
राष्ट्रहित का ध्येय उर ले, विजयपथ पर बढ़ चलें ।। संघ पथ पर बढ़ चलें । 11 ।।
भारती माता हमारी, सब इसी के पुत्र हैं।
भारती विकसित बनाने हेतु मन में चित्र हैं।
मन बसा यह चित्र सब, साकार करने मिल चलें।
राष्ट्रहित का ध्येय उर ले, विजय पथ पर बढ़ चलें।। संघ पथ पर बढ़ चलें । 1 2 11
वाणी का संयम संजोयें, परस्पर विश्वास से ।
समरसता भाव उर ले, आपसी सहकार से।
ध्येय पथ की साधना की, पूर्ति हेतु सब चलें।
राष्ट्रहित का ध्येय उर ले, विजयपथ पर बढ़ चलें।। संघ पथ पर बढ़ चलें । 13 ।।#विजयादशमी उत्सव
विजयदशमी उत्सव पर बोद्धिक
प. पू. सरसंघचालक मोहनराव भागवत विजयादशमी विजय का पर्व है। संपूर्ण देश में इस पर्व को दानवता पर मानवता की, दुष्टता पर सज्जनता की विजय के रूप में मनाया जाता है। विजय का संकल्प लेकर स्वयं के ही मन से निर्मित दुर्बल कल्पनाओं ने खींची हुई अपनी क्षमता व पुरुषार्थ की सीमाओं को लांघ कर पराक्रम का प्रारंभ करने के लिये यह दिन उपयुक्त माना जाता है। अपने देश के जनमानस को इस सीमोल्लंघन की आवश्यकता है, क्योंकि आज की दुविधा व जटिलतायुक्त परिस्थिति में से देश का उबरना देश की लोकशक्ति के बहुमुखी सामूहिक उद्यम से ही अवश्य संभव है। #विजयादशमी उत्सव
यह करने की हमारी क्षमता है इस बात को हम सबने स्वतंत्रता के बाद के 68 वर्षों में भी कई बार सिद्ध कर दिखाया है। विज्ञान, व्यापार, कला, क्रीड़ा आदि मनुष्य जीवन के सभी पहलुओं में, देश-विदेशों की स्पर्धा के वातावरण में, भारत की गुणवत्ता को सिद्ध करने वाले वर्तमानकालीन उदाहरणों का होना अब एक सहज बात है। #विजयादशमी उत्सव
सुरक्षा की स्वावलम्बी नीति हो – ऐसा होने पर भी सय परिस्थिति के कारण संपूर्ण देश में जनमानस भविष्य को लेकर आशंकित, चिन्तित व कहीं-कहीं निराश भी है। पिछले वर्षभर की घटनाओं ने तो उन चिन्ताओं को और गहरा कर दिया है। देश की अंतर्गत व सीमान्त सुरक्षा का परिदृश्य पूर्णतः आश्वस्त करने वाला नहीं है। हमारे सैन्य-बलों को अपनी भूमि की सुरक्षा के लिये आवश्यक अद्ययावत शस्त्र, अस्त्र, तंत्र व साधनों की आपूर्ति, उनके सीमास्थित मोर्चा तक साधन व अन्य रसद पहुंचाने के लिये उचित रास्ते, वाहन, संदेश वाहन आदि का जाल आदि सभी बातों की कमियों को शीघ्रातिशीघ्र दूर करने की तत्परता उन प्रयासों में दिखनी चाहिए। इसके विपरीत, सैन्यबलों के मनोबल पर आघात हो इस प्रकार, सेना अधिकारियों का कार्यकाल आदि छोटी तांत्रिक बातों को बिना कारण तूल देकर नीतियों व माध्यमों द्वारा अनिष्ट चर्चा का विषय बनाया गया हुआ हमने देखा है। सभी वस्तुओं के उत्पादन में स्वावलंबी बनने की दिशा अपनी नीति में होनी चाहिए। सुरक्षा सूचना तंत्र में अभी भी तत्परता, क्षमता व सुरक्षा से संबंधित समन्वय के अभाव को दूर कर उसको मजबूत करने की द्वीपों सहित सीमा क्षेत्र का प्रबन्धन पक्का करने व रखने की पहली आवश्यकता ध्यान में आती है। हमारी भूमिसीमा एवं सीमा अर्न्तगत आवश्यकता है। #विजयादशमी उत्सव
विस्थापित हिन्दुओं को ससम्मान आश्रय मिले- हम सभी को यह स्पष्ट रूप से समझना व स्वीकार करना चाहिए कि विश्वभर के हिन्दू समाज के लिये पितृ-भू व पुण्य-भू के रूप में केवल भारत, जो परम्परा से हिन्दुस्थान होने से ही भारत कहलाता है, हिन्दू अल्पसंख्यक अथवा निष्प्रभावी होने से जिसके भू-भागों का नाम तक बदल जाता है- ही है। पीड़ित होकर गृहभूमि से निकाले जाने पर आश्रय के रूप में उसको दूसरा देश नहीं है। अतएव कहीं से भी आश्रयार्थी होकर आने वाले हिन्दू को विदेशी नहीं मानना चाहिये। सिंध से भारत में हाल में ही आये आश्रयार्थी हो अथवा बंगलादेश से आकर बसे हों, अत्याचारों के कारण भारत में अनिच्छापूर्वक धकेले गये विस्थापित हिन्दुओं को हिन्दुस्थान भारत में सनेह व ससम्मान आश्रय मिलना ही चाहिये। भारतीय शासन का यह कर्तव्य बनता है वह विश्वभर के हिन्दुओं के हितों का रक्षण करने में अपनी अपेक्षित भूमिका का तत्परता व दृढ़ता से निर्वाह करें। #विजयादशमी उत्सव
इस सारे घटनाक्रम का एक और गंभीर पहलू है कि विदेशी घुसपैठियों की इस अवैध कारवाई को केवल वे अपने सम्प्रदाय के है, इसलिये कहीं पर कुछ तत्त्वों ने उनके समर्थन का वातावरण बनाने का प्रयास किया। शिक्षा अथवा कमाई के लिये भारत में अन्यत्र बसे ईशान्य भारत के लोगों को धमकाया गया। मुम्बई के आजाद मैदान की घटना प्रसिद्ध है। म्यांमार के शासन द्वारा वहाँ के रोहिंग्याओं पर हुयी कार्यवाही का निषेध भारत में अमर जवान ज्योति का अपमान करने में गर्व महसूस करने वाली भारत विरोधी ताकतों को अंदर से समर्थन देनेवाले तत्त्व अभी भी देश में विद्यमान है यह संदेश साफ है। #विजयादशमी उत्सव
चिंता का विषय- यह चिन्ता, क्षोभ व ग्लानी का विषय है कि देश हित के विपरीत नीति का प्रशासन द्वारा प्रदर्शन हुआ व राष्ट्र विरोधी पंचम स्तम्भियों के बढ़े हुये साहस के परिणाम स्वरूप उन तत्त्वों द्वारा कानून व शासन का उद्दंड अपमान हुआ। सब सामर्थ्य होने के बाद भी तंत्र को पंगु बनाकर देश विरोधी तत्त्वों को खुला खेल खेलने देने की नीति चलाने वाले लोग दुर्भाग्य से स्वतंत्र देश के अपने ही लोग है। #विजयादशमी उत्सव
समाज में राष्ट्रीय मनोवृति को बढ़ावा देना तो दूर हमारे अपने हिन्दुस्थान में ही मतों के स्वार्थ से, कट्टरता व अलगाव से अथवा विद्वेषी मनोवृत्ति के कारण पिछले दस वर्षों में हिन्दू समाज का तेजोभंग व बल हानि करने के नीतिगत कुप्रयास व छल-कपट बढ़ते हुये दिखाई दे रहे है। हमारे परमश्रद्धेय आचार्यों पर मनगढंत आरोप लगाकर उनकी अप्रतिष्ठा के ओछे प्रयास हुये। वनवासियों की सेवाकरने वाले स्वामी लक्ष्मणानन्द सरस्वती की षडयन्त्रपूर्वक हत्या की गयी, वास्तविक अपराधी अभी तक पकड़े नहीं गये। हिन्दू मन्दिरों की अधिग्रहीत संपत्ति का अपहार व अप-प्रयोग धड़ले से चल रहा है, संशय व आरोपों का वातावरण निर्माण किया गया, हिंदू संतों द्वारा निर्मित न्यासों व तिरुअनन्तपुरम् के पद्मनाभ स्वामी मंदिर जैसे मंदिरों की सम्पत्ति के बारे में हिन्दू समाज की मान्यताओं, श्रेष्ठ परम्परा व संस्कारों को कलुषित अथवा नष्ट करने वाला वातावरण निर्माण करने वाले विषय जानबूझकर समाज में उछाले गये। प्रजातंत्र, पंथनिरपेक्षता व संविधान के प्रति प्रतिबद्धता का दावा करने वाले ही मतों के लालच में तथाकथित अल्पसंख्यकों का राष्ट्र की सम्पत्ति पर पहला हक बताकर साम्प्रदायिक आधार पर आरक्षण का समर्थन भी किया गया। लव जिहाद व मतान्तरण जैसी गतिविधियों द्वारा हिन्दू समाज पर प्रच्छन्न आक्रमण करने वाली प्रवृत्तियों से ही राजनीतिक साठगांठ की जाती रही है। फलस्वरूप इस देश के परम्परागत रहिवासी बहुसंख्यक राष्ट्रीय मूलक स्वभाव व आचरण का निधान बनकर रहने वाले हिन्दू समाज के मन में यह प्रश्न उठ रहा है कि हमारे लिए बोलने वाला व हमारा प्रतिनिधित्व करने वाला नेतृत्व इस देश में अस्तित्व में है कि नहीं ? हिन्दुत्व व हिन्दुस्थान को मिटाना चाहने वाली दुनिया की एकाधिकारवादी, जड़वादी व कट्टरपंथी ताकतों तथा हमारे राज्यों व केन्द्र के शासन में घुसी मतलोलुप अवसरवादी प्रवृत्तियों के गठबंधन के षडयंत्र के द्वारा और एक सौहार्द विरोधी कार्य करने का प्रयास हो रहा है। श्रीरामजन्मभूमि मंदिर परिसर के निकट विस्तृत जमीन अधिग्रहीत कर वहां पर मुसलमानों के लिये कोई बड़ा निर्माण करने के प्रयास चल रहे है ऐसे समाचार प्राप्त हो रहे हैं। #विजयादशमी उत्सव
जब अयोध्या में राममंदिर निर्माण का प्रकरण न्यायालय तब ऐसी हरकतों के द्वारा समाज की भावनाओं से खिलवाड़ सांप्रदायिक सौहार्द का नुकसान ही करेगी। 30 सितंबर 2010 के में है इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय को ध्यान में लेते हुए वास्तव में हमारी संसद के द्वारा शीघ्रातिशीघ्र भव्य मंदिर के निर्माण की अनुभति रामजन्मभूमि मंदिर निर्माण न्यास को देनेवाला कानून बने व अयोध्या की सांस्कृतिक सीमा के बाहर ही मुसलमानों के लिये किसी स्थान के निर्माण की अनुमति हो यही इस विवाद में घुमी राजनीति को बाहर कर विवाद को सदा के लिये संतोष व सौहार्दजनक ढंग से सुलझाने का एकमात्र उपाय है।
काल सुसंगत व्यवस्था चाहिये – चिन्तन के अधूरेपन के परिणामों को अपने देश में राष्ट्रीय व व्यक्तिगत शील के अभाव ने बहुत पीड़ादायक व गहरा बना दिया है। मन को सुन्न करनेवाले भ्रष्टाचार प्रकरणों के उद्घाटनों का तांता अभी भी थम नहीं रहा है। भ्रष्टाचारियों को सजा दिलवाने के, कालाधन वापस देश में लाने के, भ्रष्टाचार को रोकनेवाली नयी कड़ी व्यवस्था बनाने के लिये छोटे-बड़े आंदोलनों का प्रादुर्भाव भी हुआ है। संघ के अनेक स्वयंसेवक भी इन आंदोलनों में सहभागी है। परन्तु भ्रष्टाचार का उद्गम शील के अभाव में है यह समझकर संघ अपने चरित्रनिर्माण के कार्य पर ही केन्द्रित रहेगा। लोगों में निराशा व व्यवस्था के प्रति अश्रद्धा न आने देते हुये व्यवस्था परिवर्तन की बात कहनी पड़ेगी अन्यथा मध्यपूर्व के देशों में अराजकता सदृश स्थिति उत्पन्न कर जैसे कट्टरपंथी व विदेशी ताकतों ने अपना उल्लू सीधा कर लिया वैसे होने की संभावना नकारी नहीं जा सकती। #विजयादशमी उत्सव अराजनैतिक सामाजिक दबाव का व्यापक व दृढ़ परन्तु व्यवस्थित स्वरूप ही भ्रष्टाचार उन्मूलन का उपाय बनेगा। उसके फलीभूत होने के लिये व्यापक तौर पर शिक्षाप्रणाली, प्रशासन पद्धति तथा चुनावक्षेत्र के सुधार की बात आगे बढ़ानी होगी। तथा व्यापक सामाजिक चिन्तन- मंथन के द्वारा हमारी व्यवस्थाओं के मूलगामी व दूरगामी परिवर्तन की बात सोचनी पड़ेगी। अधूरी क्षतिकारक व्यवस्था के पीछे केवल वह प्रचलित है इसलिये आँख मूंद कर जाने के परिणाम समाज जीवन में ध्यान में आ रहे है। बढ़ता हुआ जातिगत अभिनिवेशव विद्वेष, पिछड़े एवं वंचित वर्ग के शोषण व उत्पीड़न की समस्या, नैतिक मूल्यों के हास के कारण शिक्षित वर्ग सहित सामान्य समाज में बढती हुई महिला उत्पीडन, बलात्कार, कन्या भ्रूणहत्या, स्वच्छन्द यौनाचार, हत्याएँ व आत्महत्याएँ, परिवारों का विघटन, व्यसनाधीनता की बढ़ती प्रवृत्ति, अकेलापन के परिणाम स्वरूप तनावग्रस्त जीवन आदि हमारे देश में न दिखी अथवा अत्यल्प प्रमाण वाली घटनाएँ अब बढ़ते प्रमाण में ग्गोचर हो रही है। हमें अपने शाश्वत मूल्यों के आधार पर समाज के नवरचना सुसंगत व्यवस्था भी सोचनी पड़ेगी। #विजयादशमी उत्सव
अतएव सारा उत्तरदायित्व राजनीति, शासन, प्रशासन पर डालकर हम सब दोषमुक्त भी नहीं हो सकते। अपने घरों से लेकर सामाजिक वातावरण तक क्या हम स्वच्छता, व्यवस्थितता, अनुशासन, व्यवहार की भद्रता व शुचिता, संवेदनशीलता आदि सुदृढ़ राष्ट्रजीवन की अनिवार्य व्यवहारिक बातों का उदाहरण प्रस्तुत कर रहे है? सब परिवर्तनों का प्रारम्भ हमारे अपने जीवन के दृष्टिकोण व आचरण के प्रारंभ से होता है यह भूल जाने से, मात्र आंदोलनों से काम बननेवाला नहीं है। #विजयादशमी उत्सव
आज के अपने देश के सामाजिक राजनीतिक परिदृश्य का ही यह वर्णन लगता है। ऐसी परिस्थिति में समाज की सज्जनशक्ति को ही समाज में तथा समाज को साथ लेकर उद्यम करना पड़ता है। इस चुनौति को हमें स्वीकार कर आगे बढ़ना ही पड़ेगा। भारतीय नवोत्थान के जिन उद्गाताओं से प्रेरणा लेकर स्व. महात्मा जी जैसे गरिमावान लोग काम कर रहे थे उनमें एक स्वामी विवेकानन्द थे। उनके सार्ध जन्मशती के कार्यक्रम आनेवाले दिनों में प्रारंभ होने जा रहे है। उनके संदेश को हमें चरितार्थ करना होगा। निभय होकर, स्वगौरव व आत्मविश्वास के साथ, विशुद्ध शील की साधना करनी होगी। कठोर निष्काम परिश्रम से जनों में जनार्दन का दर्शन करते हुए निःस्वार्थ सेवा का कठोर परिश्रम करना पड़ेगा धर्मप्राण भारत को जगाना होगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्य इन सब गुणों से युक्त व्यक्तियों के निर्माण का कार्य है। यह कार्य समय की अनिवार्य आवश्यकता है। आप सभी का प्रत्यक्ष सहभाग इसमें होना ही पड़ेगा। निरंतर साधना व कठोर परिश्रम से समाज अभिमंत्रित होकर संगठित उद्यम के लिये खड़ा होगा तब सब बाधाओं को चीरकर सागर की ओर बढ़नेवाली गंगा के समान राष्ट्र का भाग्यसूर्य भी उदयाचल से शिखर की ओर कूच करना प्रारम्भ करेगा। अतएव स्वामीजी के शब्दों में ‘उठो जागो व तबतक बिना रूके परिश्रम करते रहो जबतक तुम अपने लक्ष्य को नहीं पा लोगे।’#विजयादशमी उत्सव
उत्तिष्ठत! जाग्रत!! प्राप्यवरान्निबोधत !!! #विजयादशमी उत्सव
भारत माता की जय

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