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संत रविदास जी का संझिप्त परिचय
संत रविदास का जन्म माघ पूर्णिमा सम्वत् 1456 दिन रविवार को काशी के निकट मांडुर ग्राम में पिता रघु और माता धुरबिनिया के पुत्र के रूप में हुआ। रविवार को जन्म होने के कारण उनका नाम रविदास रखा गया। रविदास का जन्म अछूत और उपेक्षित मानी जाने वाली जाति में हुआ।
अपने पारिवारिक जूता बनाने के व्यवसाय में रहकर भी अपनी भक्ति, सत्संग और सात्विक जीवन के द्वारा रविदास ने संत की उपाधि प्राप्त की। वे महान् सुधारवादी संत स्वामी रामानंद के शिष्य बने और कबीर, धन्ना व मीराबाई आदि भक्तों के साथ मिलकर समाज जागरण का कार्य किया।
उन्होंने वेद, गीता, गंगा, गाय, राम व कृष्ण को अपनी भक्ति का आधार बनाया। उन्होंने सिद्ध कर दिया कि भगवान के आगे कोई जाति-भेद नहीं है। उन्होंने हिन्दू समाज में व्याप्त रुढ़ियों, अंध-विश्वास, सामाजिक अन्याय और भेदभाव के विरुद्ध समता और समभाव का जीवन संदेश दिया।
संत रविदास ने जाति-भेद से ऊपर उठकर सभी को ईश्वर भक्ति का अधिकारी माना, उनके इस क्रांतिकारी जीवन दर्शन से सारे देशवासी बहुत प्रभावित हुए। महाराणा परिवार की महारानी मीरा स्वयं चित्तौड़ से चलकर काशी आयीं। उन्होंने संत रविदास को अपना गुरु बनाया और महारानी मीरा से कृष्णभक्त मीराबाई हो गई।
संत रविदास चित्तौड़ के किले में कई महीने रहे, उसी का परिणाम है आज भी पश्चिम भारत में बड़ी संख्या में रविदासी हैं। महारानी झाली व काशी के नरेश भी उनके शिष्य थे। उत्तर में पंजाब से लेकर दक्षिण में हैदराबाद और चित्तौड़ गढ़ तक रविदास जी के स्मृति चिन्ह बिखरे हुए हैं।
उन दिनों दिल्ली में सिकन्दर लोदी का शासन था, उसके अत्याचारों ने हिन्दुओं का जीना दूभर कर दिया था। हिन्दुओं पर भिन्न-भिन्न प्रकार के कर थोपे जा रहे थे। शादी-ब्याह पर, तीर्थयात्रा पर, यहाँ तक कि शव दाह पर भी जजिया कर देना पड़ता था। हिन्दू समाज त्राहि-त्राहि कर रहा था।
हिन्दू समाज में व्याप्त जातीय विषमता का लाभ उठाकर उपेक्षित जातियों के धर्मान्तरण के प्रयास हो रहे थे। ऐसे में संत रविदास समरसता के वाहक बनकर खड़े हो गये और तमाम उपेक्षित जातियों में हो रहे धर्मान्तरण को रोक दिया। इसीलिये आज दलित जातियों में बहुत कम इस्लाम मतावलम्बी दिखाई देते हैं। यह संत रविदास के प्रभाव का ही परिणाम है।
संत रविदास का प्रभाव बढ़ने पर सिकन्दर लोदी चिन्तित हो उठा। उसने विचार किया कि यदि रविदास इस्लाम धर्म स्वीकार कर लेते हैं तो भारत में बहुत बड़ी संख्या में लोग इस्लाम धर्म अपना लेंगे। उसने इस कार्य के लिये ‘सदना’ नामक मुस्लिम को रविदास जी को प्रभावित करने के लिये भेजा।
परन्तु उसकी यह योजना असफल हो गयी। शास्त्रार्थ में पराजित हो व उनकी भक्ति से प्रभावित होकर ‘सदना’ ने हिन्दू धर्म अपना लिया। संत रविदास ने शिखा धारण कराकर उसे ‘रामदास’ नाम दिया व दोनों संत मिलकर हिन्दुत्व के जागरण व प्रचार में लग गये। इससे सिकन्दर लोधी क्रोधित हो गया और उसने संत रविदास व उनके अनुयायियों को मुसलमान बनाने के लिये अनेक प्रलोभन व शारीरिक कष्ट दिये. परन्तु संत रविदास ने कहा-
वेद धर्म सबसे बड़ा, अनुपम सच्चा ज्ञान ।
फिर मैं क्यों छोडूं इसे, पढ़ लूँ झूठ कुरान ।। वेद धर्म छोडूं नहीं, कोशिश करो हजार ।
तिल-तिल काटो देह चहि, गोदो अंग कटार ।। (रैदास रामायण)
अनेक यातनाएं सहने के पश्चात् भी वे अपने वैदिक धर्म पर अडिग रहे और अपने अनुयायियों को विधर्मी होने से बचा लिया। धर्म व देश की रक्षा के लिये अपना सम्पूर्ण जीवन अर्पित करने वाले संत रविदास की मृत्यु चैत्र शुक्ल चतुर्दशी वि. स. 1584 रविवार के दिन चित्तौड़ में हुई। हिन्दू समाज को भेदभाव रहित व सामाजिक रूप से समरस बनाना ही संत रविदास के प्रति सच्ची भक्ति होगी।
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