
सन्त नामदेव जी का सम्पूर्ण जीवन परिचय जानने की इच्छा से आपने हमारे पेज का चयन किया उसके लिए आपका धन्यवाद और आपका स्वागत हैसन्त नामदेव
सन्त नामदेव जी का संझिप्त परिचय
भारत की जनता को समता, समन्वय और भक्ति का पाठ पढ़ाने वाले सन्त नामदेव का जन्म 1270 ई. में महाराष्ट्र के सतारा जिले में कृष्णा नदी के किनारे बसे नरसीबामनी गांव में एक छीपी (कपड़ों पर छपाई करने वाले) परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम नाम दामाशेटी और माता का नाम गोनाबाई था।सन्त नामदेव
नामदेव की माता विट्ठल भगवान की भक्त थी। वह प्रतिदिन विट्ठल जी को दूध का भोग लगाया करती थी। जब नामदेव 5 वर्ष के थे तो एक दिन उनकी माता को किसी कार्य से बाहर जाना पड़ा। उन्होंने नामदेव को विट्ठल भगवान को दूध का भोग लगाने भेजा ।
नामदेव सीधे मंदिर गये और मूर्ति के सामने दूध रखकर कहा कि इसे पी लो, परन्तु मूर्ति कैसे दूध पीती? बालक नामदेव ने हठ पकड़ ली – विट्ठल जी यह दूध पी लो, नहीं तो मैं यही प्राण त्याग दूँगा। भोले बालक के हठ से विट्ठल जी पिघल गये। उन्होंने मूर्ति में से प्रकट होकर दूध पी लिया। इसके बाद तो नामदेव को विट्ठल नाम की धुन लग गई।
सांसारिक कार्यों में उनका मन नहीं लगता था।सन्त नामदेव एक बार महान संत ज्ञानेश्वर जी अपने भाइयों निवृत्ति, सोपान और बहन मुक्तबाई के साथ पंढरपुर में आये तो चन्द्रभागा नदी के किनारे नामदेव जी को कीर्तन करते देख बहुत प्रभावित हुए। संत ज्ञानेश्वर और नामदेव अन्य संतों के साथ भारत भ्रमण पर निकल गये। उनकी मंडली ने सम्पूर्ण
भारत के तीर्थों की यात्रा की व मार्ग में अनेक चमत्कार किये। उनकी मंडली जब मारवाड़ के रेगिस्तान में पहुँची तो सभी को बहुत प्यास लगी थी। एक कुआं मिला लेकिन उसका पानी बहुत गहरा था व पानी निकालने का कोई साधन नहीं था। नामदेव जी ने विट्ठल भगवान का ध्यान किया, कुआं जल ऊपर तक लबालब भर गया। सभी ने अपनी प्यास बुझाई। यह कुआं आज दूरी पर मौजूद है। बीकानेर से 10 मील कीसन्त नामदेव
भारत भ्रमण के बाद संत ज्ञानेश्वर ने पुणे के नजदीक आलंदी में सजीव समाधि ले ली। ज्ञानेश्वर की समाधि के एक वर्ष के भीतर उनके भाई निवृत्ति,
सोपान और बहन मुक्ताबाई भी इस संसार को छोड़ गए। ज्ञानेश्वर के वियोग सेसन्त नामदेव
नामदेव जी का मन महाराष्ट्र से उचट गया और वे पंजाब की ओर चले गये। गुरदासपुर जिले के धोमान नामक स्थान पर आज भी नामदेव जी का मंदिर विद्यमान है। श्री गुरुग्रंथसाहिब में नामदेव जी के 61 पदों को शामिल किया गया है।
नामदेव जी के जीवन के साथ कई चमत्कारी घटनाएं जुड़ी हुई हैं। एक बार वे नागनाथ मंदिर के दरवाजे पर भजन कर रहे थे तो पुजारी ने उन्हें मंदिर के पीछे भजन करने को कहा। नामदेव पीछे जाकर भजन करने लगे तो मंदिर का मुख घूमकर पीछे की तरफ हो गया। एक बार बीदर (कर्नाटक) के एक ब्राह्मण ने नामदेव जी को कीर्तन के लिये बुलाया। वहाँ के सुल्तान ने नामदेव को पकड़कर कैद कर लिया। उसने इन पर इस्लाम स्वीकार करने का दबाव डाला। नामदेव जी की माता ने उन्हें जान बचाने के लिये इस्लाम स्वीकार करने को कहा। इस पर नामदेव जी ने अपनी प्रतिक्रिया इस प्रकार दी-
‘रुदन करे नामे की माई…
छोड़िही राम न भजऊँ खुदाई..
न मैं तेरा पूत, न तू मेरी माई।’
इनके इस्लाम धर्म स्वीकार करने से इंकार करने पर इन्हें मदमस्त हाथी के आगे फेंका गया लेकिन वह हाथी भी शांत हो गया।
इसके बाद सुल्तान ने नामदेव के सामने मरी हुई गाय को जीवित करने की शर्त रखी। नामदेव जी ने मरी हुई गाय को जीवित कर सबको आश्चर्य में डाल दिया।
नामदेव जी ने 3 जुलाई 1350 ई. को 80 वर्ष की आयु में पंढरपुर में विठ्ठल भगवान के चरणों में समाधि ली। संत नामदेव जी का सम्पूर्ण जीवन मानव कल्याण के लिये समर्पित रहा।
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