
सरदार वल्लभभाई पटेल जी का संझिप्त परिचय
सरदार पटेल अपने महान कार्यों एवं निर्भीकता के कारण ‘लौह पुरुष’ के नाम से विख्यात है। उनका सबसे महान कार्य देशी राज्यों को भारत संघ में सम्मिलित करना था। 15 अगस्त 1947 को मिली स्वाधीनता के समय देश विभाजन की पीड़ा को झेलता हुआ हिन्दू मुस्लिम दंगों की आग में जल रहा था और देश में मौजूद 562 देशी रियासतों में से अनेक के राजा अपने को आजाद बनाए रखने पर अड़े थे।
ऐसे कठिन समय में लौह पुरुष सरदार पटेल द्वारा उन देसी रियासतों को भारत गणराज्य में मिलाने का चुनौतीपूर्ण कार्य सम्पन्न कराया गया। उनकी महान् प्रबन्ध शक्ति, साहसी नेतृत्व, निडरता व स्पष्टवादिता ने उन्हें भारत केसरदार वल्लभभाई पटेल स्वाधीनता संग्राम का एक महान् शक्ति केन्द्र बना दिया था।
सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म गुजरात के करमसद गांव में 31 अक्टूबर 1875 ई. को हुआ था।सरदार वल्लभभाई पटेल शिक्षा पूर्ण होने पर सरदार पटेल गोधरा में वकालत करने लगे। एक बार वल्लभभाई की पत्नी को प्लेग हो गया तो वे उन्हें गाँव से इलाज के लिये बम्बई ले गये। लेकिन एक आवश्यक मुकदमे के सिलसिले में उन्हें पत्नी को वहीं छोड़कर गोधरा आना पड़ा। एक दिन जब मुकदमे की सुनवाई हो रही थी
सरदार वल्लभभाई पटेलतो उन्हें एक तार मिला। तार को पढ़कर उन्होंने चुपचाप अपनी जेब में रख लिया और मुकदमे की सुनवाई चलती रही। सरदार वल्लभभाई पटेलअदालत समाप्त होने पर ही उन्होंने अपनी पत्नी की मृत्यु के तार के बारे में अन्य लोगों को बताया। कर्तव्यबोध व धैर्य की ऐसी मिसाल दुनिया के इतिहास में कम ही मिलती है।
पटेल जी ने स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय योगदान देने के लिये अपनी वकालत का सदा के लिये त्याग कर दिया और अंग्रेज सरकार के विरुद्ध अनेक आंदोलनों का सफल नेतृत्व किया। इस दौरान उन्हें अनेक बार जेल भी जाना पड़ा। जब वे नासिक जेल में थे जो 20 अक्टूबर 1933 को उनके बड़े भाई व प्रसिद्ध देशभक्त विठ्ठलभाई पटेल का वियना में निधन हो गया।
परन्तु क्रूर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें उनकी अंत्येष्टि में शामिल होने की अनुमति नहीं दी। गाँधी जी के गिरफ्तार होने अथवा विदेश जाने की स्थिति में कांग्रेस की बागडोर पटेल जी ही संभालते थे। कमजोर नेताओं की हिम्मत भीसरदार वल्लभभाई पटेल उनके सम्पर्क में आकर बढ़ जाती थी। उनके इन्हीं गुणों के कारण भारत की जनता ने पटेल जी को सरदार की उपाधि से सम्मानित किया। परन्तु द्वितीय विश्वयुद्ध के दिनों तक पहुँचते-पहुँचते देश में जो परिस्थितियाँ बनने लगी थी
,सरदार वल्लभभाई पटेल उनसे उनके कान खड़े हो गये थे। देश में हिंसा के बढ़ते दौर को देखते हुए, उन्होंने कहा- ‘समाज पर अत्याचार करने वालों के साथ आवश्यक हिंसा इस्तेमाल किये बिना काम चला सकना मेरी बुद्धि के बाहर है।’ मुस्लिम लीग द्वारा आयोजित दंगों का मुकाबला करने के लिये उन्होंने लोगों से ‘जैसे को तैसा’ की नीति का अनुसरण करने का आह्वान किया। जब मुस्लिम लीग ने सीधी कार्यवाही की धमकी दी तो उन्होंने बड़ी निडरता से उत्तर दिया कि मुसलमान यह न समझे कि हिन्दू उनके भालों और तलवारों से डर जायेंगे, वरन् आत्मरक्षा के लिये हिन्दू भी तलवार का जवाब तलवार से देंगे।’
15 अगस्त, 1947 को विभाजन की मर्मान्तक पीड़ा के बाद भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई।
15 में से 12 कांग्रेस समितियों ने सरदार पटेल को प्रधानमंत्री बनाने की इच्छा व्यक्त की थी, किन्तु महात्मा गांधी के पक्षपात के कारण नेहरू प्रधानमंत्री बने। यदि सरदार पटेल भारत के प्रधानमंत्री नियुक्त होते तो निश्चित ही देश का वर्तमान स्वरूप कहीं बेहतर होता। नेहरू की अदूरदर्शिता व हठधर्मिता ने सरदार पटेल को उनकी कश्मीर नीति लागू नहीं करने दी। यदि पटेल के सुझाव मान लिये जाते थे कई युद्धों व आतंकवाद का कारण बनी कश्मीर समस्या उसी समय हमेशा-हमेशा के लिये दफन हो गई होती।
हैदराबाद और जूनागढ़ की समस्या के समाधान में जिस दृढ़ता का परिचय उन्होंने दिया, वह अतुलनीय था। यद्यपि सरदार पटेल ऊपर से बड़े निष्ठुर और कठोर प्रतीत होते थे, किन्तु उनकी आत्मा बड़ी पवित्र थी। 15 दिसम्बर 1950 को यह महान् आत्मा उस अखण्ड ज्योति में विलीन हो गई।
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